Home / Featured / कमला दास की कहानी ‘उण्णि’ हिंदी अनुवाद में   

कमला दास की कहानी ‘उण्णि’ हिंदी अनुवाद में   

अनामिका अनु जानी-मानी युवा कवयित्री हैं। उनको अपनी कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार मिल चुका है। वह अच्छी अनुवादिका भी हैं। अंग्रेज़ी और मलयालम से हिंदी अनुवाद करती हैं। आज उनके अनुवाद में पढ़िए कमला दास की कहानी, जिसका अनुवाद उन्होंने अंग्रेज़ी से किया है-

=================================

 

खड़ी दुपहरिया में एक अपरिचित पदचाप को सुनकर वह खिड़की के पास गयी, उसने एक दस वर्षीय बालक को आंगन के कंकड़ी रास्ते से घर की ओर आते देखा। चिलचिलाती धूप में उसका चेहरा लाल हो चुका था। पसीने से लथपथ – नीली शर्ट, भूरा पायजामा, नंगे पाँव…

खिड़की की देहरी पर घुटने को टेक कर उसने ऊँघाई आँखों से उसे देखा। उसे लगा, उसने पहले भी कहीं इस लड़के को देखा है।

चलते-चलते लड़का रूका और उसकी ओर देखकर पूछा- “यह कुत्ता काटेगा क्या?”

कुत्ता दरवाजे की ओर आने वाली सीढ़ियों पर सोया हुआ था। एक नीली मक्खी उसके सिर के चारों तरफ भिनभिनाते हुए मंडरा रही थी।

“तुम कौन हो?”

उसने कोई उत्तर नहीं दिया। बस मुस्कुरा कर रह गया,उसकी इस मुस्कुराहट ने उसकी सुषुप्त पड़ी स्मृतियों को छू लिया। इसके बावजूद भी वह नहीं समझ पायी कि वह कौन था?

“क्या दरबान सो रहा है?” उसने पूछा

“क्या तुम्हें पता नहीं है कि भिखारियों को यहाँ अंदर आने की इज़ाजत नहीं है?”

“मैं भिखारी नहीं हूँ।” उसने कहा, उसकी आँखों में एक मुस्कुराहट झलक रही थी।

“तब तुम कौन हो?”

“मैं उण्णि हूँ।”

“उण्णि?”

“हाँ”

 उण्णि कौन है? वह सोचने लगी। वह केवल एक ही इंसान को इस घरेलू नाम से जानती थी। वह था – उसका पति,जो लोग उन्हें उण्णि के नाम से पुकारते थें, वे पहले हीं मर चुके हैं।

“तो यह कौन है?”

“मैं तुमको नहीं जानती।” उसने कहा। फिर उसने खिड़की को एक अनोखी शैली में बंद किया जो अवर्णनीय है।

फिर भी बाहर में कोई हलचल नहीं थी। क्या वह अब भी वहीं खड़ा था? वह दरवाजा खोलकर बरामदे पर आयी। कुत्ता अब भी सो रहा था। मक्खियाँ अब भी भिनभिना रही थीं। उसने राहत की सांस ली। वह जैसे ही पीछे मुड़ने वाली थी, उसी क्षण उसकी नजर उस लड़के पर पड़ी,वह अपने हाथों पर सिर रख कर पेड़ के नीचे बैठा हुआ था।

“तुम अब तक गये नहीं?” उसने पूछा।

लड़के ने “न” में सिर हिलाया।

“तुम गये नहीं?”

मैं कहाँ जाऊँगा?”वह बोला ।

उसने उस सूखे पत्ते को देखा जो लड़के के सिर पर आ गिरा था,इस बार उसने मृदुता से कहा -”तुम चले जाओ अच्छा रहेगा, जब दरबान जागेगा तो तुम्हारी पिटाई करेगा। भिखारियों को अंदर आना मना है।”

“मैं भिखारी नहीं हूँ।”

“तुम्हें क्या चाहिए? मैं तुम्हें पचास पैसे या कुछ मिठाईयाँ दूंगी। जितनी जल्दी हो सके चले जाओ, तुम्हारे लिये यहाँ से दूर चले जाना अच्छा रहेगा।”

वह पलट कर आगे की ओर मुखातिब हुई। दरवाजे की सीढ़ियों पर पहुंच कर उसने लड़के को बुलाया-“अंदर आ जाओ। कुछ खा लो फिर चले जाना।”

लड़के ने कदम अंदर रखा और कुछ क्षणों तक अंधेरे में संकोचवश खड़ा रहा।

”यहाँ काफी अंधेरा है।” वह बोला।

“हाँ मैंने सारी खिड़कियाँ बंद कर दी है ताकि रौशनी आ न सके। मेरी आँखें रौशनी बर्दाश्त नहीं कर पाती । देखो मेरे चश्में का शीशा कितना मोटा है।”

 वह मुस्कुराया।

ऐसी मुस्कान जिससे उसकी दोनों गालों पर डिंपल बनते थें।

“तुम एक खूबसूरत लड़के हो।” उसने खुश होकर कहा।

“अगर मेरा बच्चा होता तो वह संभवत: तुम्हारी तरह ही दिखता क्योंकि मेरे पति का भी यही रंग है। उनके गालों पर भी डिंपल पड़ते हैं और उनके बाल भी तुम्हारी तरह ही घुंघराले हैं…”

वह अतिथिखाने के लाल कालीन पर बैठा था। उसका सोफ़ा छोड़कर नीचे ज़मीन पर बैठना, उसकी अत्यधिक विनम्रता को दिखाता था। अचानक उसके हृदय में लड़के के लिए सहानुभूति जगी।

तुम सोफ़ा पर बैठ सकते हो। मुझे बुरा नहीं लगेगा।” वह बोली।

“मेरे घर में अमीर-गरीब सब एक-समान हैं, समझे?”

वह अंदर गयी, बाहर आयी तो उसके हाथ में एक गिलास दूध और कटोरे में कुछ मिठाईयाँ एवं पकवान थें।

तुम ये ले लो और चले जाओ।” वह बोली।

“मेरे पति लंबी यात्रा के बाद आज मद्रास की फ्लाइट से वापस आ रहे हैं, वे कुछ घंटों में यहाँ होंगे। तुम्हें देखकर गुस्सा होंगे।”

लड़के ने गिलास होंठों से लगाकर आंखें बड़ी -बड़ी करके उसे देखा।

“तुमसे नाराज़ नहीं होंगे। मुझसे गुस्सा होंगे। मुझसे पूछेंगे-मैंने क्यों दूसरे के बच्चे को घर पर आमंत्रित किया है। वे हमेशा यात्रा पर होते हैं। बहुत मेहनत करते हैं। जब घर वापस आते हैं, तब बहुत थके होते हैं। इसलिए उन्हें गुस्सा…”

लड़के ने खाली गिलास और कटोरी उसे पकड़ायी ,उसके साफ सुथरे नाखूनों को देखकर वह बहुत खुश हुई।

“अब तुम जा सकते हो।” वह बोली।

लेकिन लड़का नि:शब्द उठा और शयन कक्ष की ओर जाने लगा। उसने लड़के का पीछा किया।

“तुम मुझे परेशान करने आए हो?” वह बोली।

“क्या तुम मुझे सुन नहीं रहे हो?”

वह चुपचाप बेडरूम में रखे आईने के सामने खड़ा हो गया।

तालाब की तरह।

वह बोला-“एक श्वेत तालाब”

“क्या तालाब की तरह है यह आईना?”

लड़के के हाथों को पकड़कर वह जोर से बोली-

“अब तुम जा सकते हो।”

अगर तुम चाहो तो कल फिर से आ जाना। लेकिन आज वे वापस आ रहे हैं। वे थके होंगे।”

 लड़का हँस रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि वह लड़का उसकी बातों को झूठ समझ रहा है। अचानक उसकी आँखें नम हो गयी।

लड़के ने बेबसी के साथ अपना कंधा सिकोड़ लिया। बिस्तर के एक कोने पर जा बैठा और अपने दोनों पाँवों को लयबद्ध तरीके से हिलाने लगा।

“तुम कौन हो? तुम मुझे इस तरह से क्यों परेशान कर रहे हो?”

कोई सामने के दरवाज़े को जोर- जोर से पीट रहा था। वह बहुत घबरा गयी और लड़के की तरफ मुड़ी।

“इसे सुनो, ये मेरे पति हो सकते हैं। वे मुझे डांटेंगे। उन्हें यह जानकर अच्छा नहीं लगेगा कि मैंने तुम जैसे भिखारी को इस कमरे में आने दिया।”

“मैं भिखारी नहीं हूं।”

वह दरवाजे की ओर दौड़ी। उसे खोला। अपने पति के सेक्रेटरी को खड़ा देखा, उसके होंठ पीले और सूखे पड़े थे।

“मिसेज मेनन” वह बोला।

“वहाँ एक दुर्घटना हुई है…वह हवाई जहाज…

“मर गये? वे मर गये?” उसने हताश और विचलित स्वर में पूछा।

सेक्रेटरी ने सिर झुका लिया। उसने बड़े हल्के से अपना हाथ उसके कंधे पर डाला और बोली-“हिम्मत रखो,

यह कब हुआ?”

“३ बजे के बाद शायद…

यही विमानन विभाग के लोगों ने दूरभाष पर बताया।”

वह नहीं रोई।

उसे लगा कि वह अब तक किसी समस्या को ढूँढ रही थी। बस इसी क्षण उसे समस्या और निदान दोनों एक साथ मिल गये।

वह दौड़ कर बेडरूम में आयी। लड़का अब तक गतिहीन बना बैठा हुआ था, रेशमी फैलाव के साथ। उसने उसे पकड़ कर बिस्तर से नीचे की ओर खींचा। उसके हाथों में निष्ठुर ताकत आ गयी थी जो अविवेकपूर्ण थी।

“यहां से बाहर चले जाओ।”

क्या मैंने तुम्हें जाने के लिए कहा था न? लेकिन तुम नहीं गये, देखो अब क्या हुआ? मेरे पति मर चुके हैं। वह आदमी, जिससे मैं ने पन्द्रह साल में शादी की थी। तुम्हें पता है, वह कितने साल का था,जब उसने कहा था कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे शादी करना चाहता है। तब वह केवल दस साल का था…उन दिनों लोग उसे उण्णि कहा करते थे।

उन दिनों वह उण्णि कहलाता था…

मैं भी उसे उण्णि कहती थी।”

उसकी आवाज धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और फिर बिल्कुल बिखर गयी।

लड़का दीवार से लगा उसे देख रहा था।

“तुम अब तक गये नहीं।” वह अचानक चिल्लायी-“अगर तुम नहीं होते तो मेरे पति अभी यहाँ होते।”

उसने लड़के को कस कर पकड़ा और पीछे की ओर धकेला। वह कमरे से बाहर जाकर गिरा पर उसने उठकर बाहर जाने की कोशिश नहीं की। उसने उसे अपने दाहिने पैर से ठोकर मारी।

“बाहर जाओ।” वह रोने लगी।

”नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगी।”

लड़के ने एक बार और अपना चेहरा उसे दिखाया, उठा और दरवाजे की तरफ तेजी से चल दिया। वह बाहर गया और मुख्य दरवाजा धड़ाम से बंद हो गया। उसे लगा कि इस खड़ी दुपहरिये में वह लड़का उसका उपहास उड़ा रहा है और उस हँसी की प्रतिगूंज पूरे आंगन में गुंजायमान है। वह अपने बेडरूम में जाकर लेट गयी। उसे लगा कि वह दस साल का लड़का उस पर हँस रहा है और कह रहा है कि वह सिर्फ़ उसी से शादी करेगा।

जल्दी से वह अपने पैरों पर खड़ी हुई और खिड़की की तरफ दौड़ी। लेकिन वह नीली शर्ट वाला लड़का दरवाजे से बाहर जा चुका था,वह विलीन हो चुका था।

दरबान चारपाई पर बैठा अब भी ऊँघ रहा था।

अनामिका अनु

 

 

 

 

 

==================================

दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

नानकमत्ता फिल्म फिल्म फ़ेस्टिवल: एक रपट

कुमाऊँ के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में 26 और 27 मार्च को फिल्म फ़ेस्टिवल का आयोजन …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *