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Tag Archives: रज़ीउद्दीन अक़ील

दिल्ली की सूफी दरगाहें और दिलों के राहत का सामान

आजकल दिल्ली में सड़कों पर दरबदर भटकते इंसान दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में दिल्ली की सूफ़ी दरगाहों की याद आई, जहां ग़रीबों को खाना खिलाना इबादत के हिस्से की तरह रहा है। यह सूफ़ी परम्परा का हिस्सा रहा है। जब इस परम्परा की याद आई तो प्रसिद्ध इतिहासकार रज़ीउद्दीन …

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क्यों नहीं हो रहा हिंदी में इतिहास-लेखन

जाने-माने इतिहासकार रजीउद्दीन अक़ील ने इस लेख में बहुत गम्भीर सवाल उठाया है कि इतिहास लेखन हिंदी में क्यों नहीं हो रहा? इतिहासकारों के सामने यह बड़ा सवाल है कि उन्होंने कभी इस दिशा में कोई ठोस काम क्यों नहीं किया? रज़ी साहब का यह लेख पहले ‘नवजीवन’ में प्रकाशित …

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इतिहास के गड़े मुर्दे, धर्म और इतिहास

इतिहासकार रज़ीउद्दीन अक़ील लगातार हिंदी में लिखते हैं और अनेक संवेदनशील विषयों से हिंदी भाषा को समृद्ध करते हैं. जैसे यह लेख देखिये जिसमें इतिहास लेखन और धर्म के विषय पर उन्होंने स्पष्ट सोच के साथ लिखा है- मॉडरेटर ======================== वैचारिक संघर्षों और पहचान की राजनीति में इतिहास का इस्तेमाल …

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ख़ुसरौ रैन सुहाग की जागी पी के संग, तन मेरो मन पियो को दूधिए एक रंग 

जब इतिहास के किसी किरदार, किसी प्रसंग पर इतिहासकार लिखता है तो उससे विश्वसनीयता आती है और आजकल इतिहास के विश्वसनीय पाठ पढना जरूरी लगने लगा है. हज़रत अमीर ख़ुसरौ देहलवी (१२५३ – १३२५) पर जाने-माने इतिहासकार रज़ीउद्दीन अक़ील का लिखा पढ़िए. हिंदी और उर्दू के इस आरंभिक शायर पर रज़ी साहब …

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भारतीय भाषाओं में इतिहास-लेखन की परम्पराएँ और चुनौतियाँ (हिंदी के विशेष सन्दर्भ में)

मध्यकालीन इतिहास के विद्वान रज़ीउद्दीन अक़ील ने भारतीय भाषाओं में इतिहास लेखन को लेकर एक गंभीर सवाल उठाया है. आजकल रज़ी साहब की चिंता के केंद्र में यह बात है कि हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में इतिहास की किताबें आनी चाहिए ताकि देश के आम जन तक इतिहास की …

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दरवेश सोई जो दर की जानें

रज़ीउद्दीन अक़ील दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में असोसियेट प्रोफ़ेसर हैं. मध्यकालीन इतिहास के वे उन चंद विद्वानों में हैं जिन्होंने अकादमिक दायरे से बाहर निकलकर आम पाठकों से संवाद करने की कोशिश की है, किताबें लिखी हैं. वे किताबें जरूर अंग्रेजी में लिखते हैं लेकिन बहुत अच्छी हिंदी भी …

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