यतीश कुमार ने काव्यात्मक समीक्षा की अपनी विशिष्ट शैली विकसित की। उसी शैली में उन्होंने संजीव के उपन्यास ‘जंगल जहाँ शुरू होता है’ पर यह ख़ास टिप्पणी लिखी है। आप भी पढ़िए- ==================== 1. संवलाया-सा समय खिलती हुई शाम अन्हरिया में फुदकता मन सपनों को छूने के न जाने कितने …
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