आज अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस है. इस अवसर पर आज मोहन राकेश का यह प्रसिद्ध लेख जिसमें उन्होंने नाटककार के नजरिये से रंगमंच को देखने की कोशिश की है. उनके उठाये सवाल आज भी प्रासंगिक लगते हैं- मॉडरेटर =================================================== और लोगों की बात मैं नहीं जानता, केवल अपने लिए कह सकता …
Read More »नाटक क्या सिनेमा का फाटक होता है?
आज ‘प्रभात खबर’ अखबार में भारंगम के बहाने मैंने नाटक-नाटककारों पर लिखा है. आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं- प्रभात रंजन ================ ‘अपने यहाँ, विशेष रूप से हिन्दी में, उस तरह का संगठित रंगमंच है ही नहीं जिसमें नाटककार के एक निश्चित अवयव होने की कल्पना की जा सके’- …
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