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कुछ इज़रायली कविताएँ प्रभात रंजन के अनुवाद में

इजरायल के कुछ कवियों की कविताओं के मैंने अनुवाद किये थे. आज उनमें से कुछ ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में प्रकाशित हुए हैं. उनमें से दो प्रसिद्ध हैं येहूदा अमीखाई और हिब्रू भाषा की महान कवयित्री दहलिया रविकोविच की कविताएं यहाँ प्रस्तुत हैं- प्रभात रंजन

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येहूदा अमीखाई की कविताएं
 
जर्मनी में एक यहूदी कब्रिस्तान
एक छोटी सी पहाड़ी पर उपजाऊ जमीन के बीच एक छोटा सा कब्रिस्तान है,
एक यहूदी कब्रिस्तान, जंग लगे फाटक के पीछे, झाड-झंखाड़ में छिपा,
परित्यक्त और विस्मृत. न तो प्रार्थना की आवाज
न ही विलाप की आवाज सुनाई देती है यहाँ
मृतक ईश्वर की स्तुति नहीं कर सकते.
बस हमारे बच्चों की आवाजें सुनाई देती हैं, कब्रों को तलाशते
और कोई मिल जाए तो ख़ुशी मनाते- जैसे जंगल में मशरूम मिल जाए, या
जंगली झरबेर.
यहाँ एक और कब्र है! यह नाम है,
मेरी माँ की माओं का, और एक नाम पिछली शताब्दी का. और एक नाम यहाँ है,
और वहां! और जब मैं नाम से से काई साफ़ करने ही वाला था—
देखो! एक खुला हाथ खुदा है कब्र के पत्थर पर, यह कब्र है
एक पादरी का,
उसकी अंगुलियाँ फैली हैं पवित्रता और आशीर्वाद के संकुचन से,
और यहाँ एक कब्र है छिपी हुई झरबेरी की घनी झाड़ियों के बीच
इसे परे हटाना होगा जैसे हटाया जाता है घने उलझे बालों को
सुन्दर प्यारी स्त्री के चेहरे से.
मत करो स्वीकार
मत करो स्वीकार ऐसी बारिश को जो बहुत देर से आये.
बेहतर है ठहरना. अपने दर्द को बनाओ
आईना रेगिस्तान का. कहो जो कहा गया
और मत देखो पश्चिम की ओर. इनकार कर दो
आत्मसमर्पण से. कोशिश करो इस साल भी
कि रह पाओ अकेले लम्बी गर्मियों में,
खाओ अपने सूखी रोटियां, बचो
आंसुओं से. और मत सीखो
अनुभव से. उदाहरण की तरह लो मेरे यौवन को,
लौटना रातों को देर तलक, जो लिखा जा चुका है
पिछले साल की बारिश में. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
अब. देखो अपनी घटनाओं को जैसे मेरी घटनाएँ हों.
सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा: अब्राहम फिर अब्राहम हो जायेगा
और सारा हो जाएगी सारा.
कमरे में मौजूद तीन या चार के लिए
कमरे में मौजूद तीन या चार में से
एक हमेशा खिड़की के पास खड़ा रहता है.
मजबूरन देखता है अन्याय काँटों के बीच,
आग पहाड़ों पर.
और लोग जो साबूत गए थे
घर लाए गए शाम में छुट्टे(चिल्लर) की तरह.
कमरे में मौजूद तीन या चार में से
एक हमेशा खिड़की के पास खड़ा रहता है.
काले बाल हैं उसकी चिंताओं के ऊपर.
उसके पीछे, शब्द, भटकन, बिना सामान,
दिल बिना किसी बंधन के,
भविष्यवाणी बिना पानी
वहां रखे हैं बड़े पत्थर
खड़े, चिट्ठियों की तरह बंद
बेपता; और कोई नहीं उनको पाने वाला.
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दहलिया रविकोविच की कविताएं
 
एक दुष्ट हाथ
धुआँ उठ रहा था तिरछी रौशनी में
और मेरे पिता मुझे पीट रहे थे.
वहां सब हंस रहे थे देखकर
मैं सच कह रही हूँ, और कुछ नहीं.
धुआँ उठ रहा था तिरछी रौशनी में
पिता ने मेरी हथेलियों पर चपत लगाई
उन्होंने कहा, यह हथेली है एक दुष्ट हाथ की.
मैं सच कह रही हूँ, और कुछ नहीं.
धुआँ उठ रहा था तिरछी रौशनी में
और पिता ने छोड़ दिया मारना
उंगलियाँ उग आईं दुष्ट हाथों से,
यह सब कुछ सहन करती हुई और कभी ख़त्म नहीं होगी.
धुआँ उठ रहा था तिरछी रौशनी में
भय की सिहरन है दुष्ट हाथों में.
पिता ने छोड़ दिया मारना
लेकिन भय बाकी है और कभी ख़त्म नहीं होगा. 
उष्म स्मृतियाँ
 
कल्पना: मेरे साथ सिर्फ धूल थी,
मेरा और कोई संगी न था.
धूल मुझे नर्सरी स्कूल ले जाती,
मेरे बालों को छेड़ जाती
सबसे ऊष्म छुटपन के दिनों में.
कल्पना कीजिए कौन था मेरे साथ
और सभी लड़कियों के साथ था कोई और.
जब जाड़ा अपना भयानक जाल बिछाना शुरू करता,
जब बादल भकोसने लगते अपना शिकार
कल्पना कीजिए कौन था मेरे साथ
और मैं कितना चाहती थी और कोई और.
देवदार-शंकु खड़खड़ाते, और कुछ देर को
मैं तरस जाती हवा के साथ अकेले होने को.
कई रातों में मैं बेचैनी में सपने देखती
उन एकाकी घरों के जो प्रेम से सिक्त थे.
कल्पना कीजिए मैं कितनी महरूम थी
कि बस धूल ही मेरा संगी था.
मार्च की तेज हवाओं के दिनों, मैं हर तरफ तैरती
व्हेलों की राजधानी तक.
मैं भर जाती लापरवाह ख़ुशी से.
मैं कभी लौट कर नहीं आती उस दिन तक कि मैं मर जाती,
लेकिन जब मैं लौटी मैं स्याह पड़ चुकी थी,
अपने स्याह भाई-बहनों से तिरस्कृत.
मेरा कोई संगी न था
बस धूल थी मेरे साथ.

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13 comments

  1. धन्यवाद

  2. कविताओं के सुगम और ग्राह्य अनुवाद के लिए धन्यवाद.
    मदन पाल सिंह

  3. This comment has been removed by the author.

  4. आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक सम्पूर्ण मंच प्रदान करता है.
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  5. त्रास, यातना, और एकाकीपन .

    मेरा कोई सगी न था
    बस धूल थी मेरे साथ

    बहुत अच्छी कवितायेँ

  6. बहुत ख़ूब।

    लौटना रातों को देर तलक, जो लिखा जा चुका है
    पिछले साल की बारिश में.

    वैद फेलोशिप की हार्दिक बधाई के साथ।

  7. यादवेन्द्र

    एक कब्र है छिपी हुई झरबेरी की घनी झाड़ियों के बीच
    इसे परे हटाना होगा
    जैसे हटाया जाता है घने उलझे बालों को
    सुन्दर प्यारी स्त्री के चेहरे से.

    बहुत अच्छी कविता का बड़ा सहज प्रवाहमान अनुवाद।बधाई।

    यादवेन्द्र

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