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जेमिथांग घाटी वाले नक्सल बाबा की चिट्ठी

इधर लेखिका अरुंधती राय को लेकर वाद-विवाद संवाद चल रहा है उधर नक्सली बाबा की चिट्ठी आ गई. अपने नॉर्वे-प्रवासी डॉक्टर प्रवीण कुमार झा को मिली है यह चिट्ठी. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर

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कल जेमिथांग घाटी वाले नक्सल बाबा की चिट्ठी आई। नक्सल बाबा मेरे पुराने बंगाली मित्र हैं।अंग्रेजी अरूंधती रॉय वाली है और शौक लखनवी नवाबों वाले। वो हैं मेरी उमर के, पर अपने जीवनका अधिकतर समय अरूणाचल के जेमिथांग घाटी में बरबाद करते हैं।

बहरहाल, वो लिखते हैं,

“तुम तो ध्रुव पर बैठे हो। कुछ खबर भी है देश की? या वहीं से राष्ट्रभक्ति दिखाओगे? फेसबुक पर,ब्लॉग पर, किताबों में। तुम अरूणाचल के दस जिले लिख दो, मान जाऊँ।

तुम्हें ब्रूनेई की राजधानी पता है, सोमालिया पता है, चिली और बरमूडा पता है, पर मेघालय औरत्रिपुरा मैप पर दिखाने कहूँ तो इधर-उधर कहीं भारत के ‘चिकेन-लेग’ में घुसा दोगे। चलो, तुम तोशोध-वोध करते हो, फिर भी बताओ।

अच्छा ये बताओ, वो जो तुम्हारा भाई त्रिची में पढ़ता था, क्या कर रहा है? अब तो केरल-कर्नाटक भीघूम चूके होगे। तुम तो कन्नड़ बोल लेते हो, भाई मलयाली बोल लेता होगा। दक्खिन के मंदिर-मंदिरअंकल-आंटी को घूमा चुके होगे। अरूणाचल कब लाओगे? बिहार से तो पास ही है। बगडोगरा सेहवाई जहाज। सुभानसरीन का डैम घूमने आओ। मुझसे मिलने आओ, अब तो रास्ते भी बन रहे हैं।

सुना है एक वीसा से पूरा यूरोप घूम सकते हैं। जब मन हुआ जर्मनी, कभी फुदक कर डेनमार्क, तोकभी पोलैंड। तुम्हारे फोटो देखे, स्पेन के किसी द्वीप में। बड़ा वीराना सा लगता है। कभी दिल नहींकरा कि ये सात राज्य भी फुदक-फुदक कर घूमो।

सच बता रहा हूँ, गर मेरा आई.आई.टी. खड़गपुर में नहीं, ईटानगर में होता, यहीं पढ़ता। खड़गपुरभी भला कोई जगह है? तुम नॉर्वे को ‘डेथ बाई नेचर’ कहते हो, यहाँ भी वही हाल है। मैं किसी दिनइन्हीं पहाड़ों से ब्रह्मपुत्र में छलांग लगा दूँगा।

कभी घूमने आओगे नहीं। नॉर्स्क और स्पैनिश सीख गए, लेकिन मिजो का एक शब्द नहीं पता। नतुम्हारे खानदान का कोई कभी यहाँ पढ़ने आए। न किसी ने फौज के अलावा कुछ यहाँ नौकरी की।न कभी रिक्वेस्ट कर यहाँ ट्रांसफर कराया। न कभी मिले, न कभी जुले।

चार दिन से अपडेट कर रहे हो, ‘इंटिग्रल पार्ट’। लिखो लेख अब इंटिग्रल पार्ट पर। सौ शब्दों में हीलिखो, पर लिखो। आसान है, तुम्हारा ही तो अपना हिस्सा है। और साल में एक बार इस पार्ट परकदम भी रखो। दिल्ली-बंबई बहुत कर लिया।”

मैनें चिट्ठी पढ़ी और टी.वी. देखने लगा। उनके फोन में जब भी सिग्नल पकड़ता है, एक ई-मेल ठोकदेते हैं। मैं भी टका सा जवाब देता हूँ।

“घोष बाबू! आपको पता है, कॉर्पस कैलोजम आपका इंटिग्रल हिस्सा है दिमाग का। लेख लिख देंगें?जरूरी है सारे पार्ट को जाना ही जाए? बात करते हैं।”

पर आज कुछ मन कुलबुला रहा है। गाँव जा रहा हूँ गर्मियों में। बैंगलूर भी जाऊँगा। नेपाल केपोखरा भी। एक छोटा सा काम गुजरात में भी है। नक्सल बाबा और उनका अरूणाचल फिर कभी।

 
      

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