शायक आलोक और विवाद का बहुत अन्तरंग रिश्ता है. लेकिन सब कुछ के बावजूद उनकी रचनात्मकता प्रभावित करती है. मसलन इन कविताओं को ले लीजिये- प्रभात रंजन
(एक दिन)
एक दिन
कीड़े खा जाएंगे तुम्हारी रखी जमा की गई किताबों को
फिर कीड़े आहार बनाएंगे तुम्हारी लिखी जा रही कविताओं को
फिर वे तुम्हारे जेहन पर हमला करेंगे
चबा लेंगे अजन्मी कविताओं के एक एक शब्द
वे खा लेंगे नींब से चाटते तुम्हारी पूरी कलम
और अंत में वे तुम्हारी उँगलियों को घर बना लेंगे.
कीड़े खा जाएंगे तुम्हारी रखी जमा की गई किताबों को
फिर कीड़े आहार बनाएंगे तुम्हारी लिखी जा रही कविताओं को
फिर वे तुम्हारे जेहन पर हमला करेंगे
चबा लेंगे अजन्मी कविताओं के एक एक शब्द
वे खा लेंगे नींब से चाटते तुम्हारी पूरी कलम
और अंत में वे तुम्हारी उँगलियों को घर बना लेंगे.
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(वे जो कविताएं लिखते हैं, मेरी कविताएं चबाएंगे)
अंत में यही होगा बहुत से बहुत कि
तुम उठा डाल दोगे मुझे पागलखाने में
एक बयान जारी कर कहोगे कि नहीं था यह किसी के पक्ष में
न लाल हरा न नीला केसरिया
कि इसने मुझे भी
मेरे विरोधियों को भी गालियाँ बकी
कि प्रेस वार्ता के बाद के शराब भोज में
मुझे जानने वाला संपादक तुम्हारे कान में कहेगा–
‘ ठीक किया .. अजब पागल था ‘ वे जो मुझे कनखियों से देखते हैं
जो इस दौरान चुप थे, रहे थे ताक में
मुस्कुराएंगे
वे जो कविताएं लिखते हैं, मेरी कविताएं चबाएंगे. यह भी होगा कि
पागल–दीवार की सलाखों से मैं हंसूंगा तुमपर
कुछ और ही जोर से, और चिल्लाऊंगा
और तुम्हें लिखेंगे गुमनाम चिट्ठियाँ वे कुछ
जो मेरी तरह शोक में थे लोकतंत्र के. अंत में यह भी होगा कि तुम्हारे तमाम पक्षों के खिलाफ
मेरे पक्ष की संख्या में इजाफा होगा
या यह होगा कि इस मुल्क में
पागलखानों की तादाद बढ़ानी होगी तुम्हें. ________________
तुम उठा डाल दोगे मुझे पागलखाने में
एक बयान जारी कर कहोगे कि नहीं था यह किसी के पक्ष में
न लाल हरा न नीला केसरिया
कि इसने मुझे भी
मेरे विरोधियों को भी गालियाँ बकी
कि प्रेस वार्ता के बाद के शराब भोज में
मुझे जानने वाला संपादक तुम्हारे कान में कहेगा–
‘ ठीक किया .. अजब पागल था ‘ वे जो मुझे कनखियों से देखते हैं
जो इस दौरान चुप थे, रहे थे ताक में
मुस्कुराएंगे
वे जो कविताएं लिखते हैं, मेरी कविताएं चबाएंगे. यह भी होगा कि
पागल–दीवार की सलाखों से मैं हंसूंगा तुमपर
कुछ और ही जोर से, और चिल्लाऊंगा
और तुम्हें लिखेंगे गुमनाम चिट्ठियाँ वे कुछ
जो मेरी तरह शोक में थे लोकतंत्र के. अंत में यह भी होगा कि तुम्हारे तमाम पक्षों के खिलाफ
मेरे पक्ष की संख्या में इजाफा होगा
या यह होगा कि इस मुल्क में
पागलखानों की तादाद बढ़ानी होगी तुम्हें. ________________
(कवि होने की हताशा से गुजरते हुए)
और एक दिन
मैं ही घोषित करूँगा कि प्रतिदिन सुबह कविता पढने से ज्यादा जरुरी था
कागज पर गुणा जोड़ घटाव बनाना
जरुरी था चाय से ज्यादा भरा ग्लास नीम का जहर
जरुरी था कि पुरानी मसहरी सिलते हुए
मैं ही घोषित करूँगा कि प्रतिदिन सुबह कविता पढने से ज्यादा जरुरी था
कागज पर गुणा जोड़ घटाव बनाना
जरुरी था चाय से ज्यादा भरा ग्लास नीम का जहर
जरुरी था कि पुरानी मसहरी सिलते हुए
एक दिन मैं पूरे दिन बैठकर बनाता मच्छड़ों से जूझने की कोई ठोस कार्यनीति.
एक दिन मैं ही घोषणा करूँगा कि प्रेम से ज्यादा जरुरी था देह का सम्बन्ध
अनामिका कुमारी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण थी नामिका कुमारी
घोषणा करूँगा कि मैं लिखता रहा हूँ झूठ
दुनिया के कथित सच पर अंत में मैं भी लगाऊंगा मेरा नाम का अंगूठा. मैं खुद से माफ़ी मांगूंगा एक दिन. मैं घोषणा करूँगा एक दिन कि चूक हुई है मुझसे
कविता मगजमारी के बजाय मुझे पास करनी चाहिए थी क्लर्की की परीक्षा
दफ्तरी बड़ा बाबू बनकर समय रहते खरीद लेनी चाहिए थी स्कूटर
स्कूटर पर पीछे बैठने वाली अंगिकाभाषी पत्नी का इंतजाम
समय रहते कर लेना चाहिए था. और किसी दिन अगर मुझे कविता के लिए चिन्हित होने का सर्टिफिकेट मिलेगा
तो उस दिन हाथ पकड़कर ले आऊंगा तुम्हारे पास मेरे वृद्ध होते पिता को
मेरे पिता पूछेंगे तुमसे कि प्रति कविता किस दर से किया तुमने सौदा
सस्ते रेट के लिए मुझे घूरेंगे –कोसेंगे
और मैं करूँगा अट्टहास
घोषणा करूँगा कि कविता नहीं है किसी ख़ास काम की चीज
और इस कवि को चौराहे पर टांग दूंगा.
अनामिका कुमारी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण थी नामिका कुमारी
घोषणा करूँगा कि मैं लिखता रहा हूँ झूठ
दुनिया के कथित सच पर अंत में मैं भी लगाऊंगा मेरा नाम का अंगूठा. मैं खुद से माफ़ी मांगूंगा एक दिन. मैं घोषणा करूँगा एक दिन कि चूक हुई है मुझसे
कविता मगजमारी के बजाय मुझे पास करनी चाहिए थी क्लर्की की परीक्षा
दफ्तरी बड़ा बाबू बनकर समय रहते खरीद लेनी चाहिए थी स्कूटर
स्कूटर पर पीछे बैठने वाली अंगिकाभाषी पत्नी का इंतजाम
समय रहते कर लेना चाहिए था. और किसी दिन अगर मुझे कविता के लिए चिन्हित होने का सर्टिफिकेट मिलेगा
तो उस दिन हाथ पकड़कर ले आऊंगा तुम्हारे पास मेरे वृद्ध होते पिता को
मेरे पिता पूछेंगे तुमसे कि प्रति कविता किस दर से किया तुमने सौदा
सस्ते रेट के लिए मुझे घूरेंगे –कोसेंगे
और मैं करूँगा अट्टहास
घोषणा करूँगा कि कविता नहीं है किसी ख़ास काम की चीज
और इस कवि को चौराहे पर टांग दूंगा.
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(मुझे नींद नहीं आती)
मेरी खिड़की के दक्षिण के बांस जंगल में
इन दिनों रात के पहले पहर बोल उठता है एक सियार
एक बच्चे के रोने की आवाज़ आती है
मेरे अन्दर उतर आती है बुढ़िया होकर मर गयी दादी मेरी
भर्राई भारी आवाज़ में मुझे सोने को कहती है
कहती है सो जाओ नहीं तो सियार आ जाएगा दादी के चले जाने और सियार के थक कर चुप हो जाने के बीच
मैं याद करता हूँ दिन भर की खबरें
ज़ुम्म्म जमाक किसी मृत नवब्याहता के गले के नीले निशान पर
फोकस मारता है मेरा कैमरा
फ्रेम में ढूंढता हूँ एक चील
जो कलम खरीदने निकले बिंद बच्चे की सड़क पर पड़ी लाश पर निशाना साध रहा हो
रोज के बलात्कार के बीच रोज के पत्रकार की तरह
सपाट पूछता हूँ बकरीहारन से कि बताओ कितने आदमी थे
इन दिनों रात के पहले पहर बोल उठता है एक सियार
एक बच्चे के रोने की आवाज़ आती है
मेरे अन्दर उतर आती है बुढ़िया होकर मर गयी दादी मेरी
भर्राई भारी आवाज़ में मुझे सोने को कहती है
कहती है सो जाओ नहीं तो सियार आ जाएगा दादी के चले जाने और सियार के थक कर चुप हो जाने के बीच
मैं याद करता हूँ दिन भर की खबरें
ज़ुम्म्म जमाक किसी मृत नवब्याहता के गले के नीले निशान पर
फोकस मारता है मेरा कैमरा
फ्रेम में ढूंढता हूँ एक चील
जो कलम खरीदने निकले बिंद बच्चे की सड़क पर पड़ी लाश पर निशाना साध रहा हो
रोज के बलात्कार के बीच रोज के पत्रकार की तरह
सपाट पूछता हूँ बकरीहारन से कि बताओ कितने आदमी थे
मेरी हलकी साँसों से सियार की गंध और तेज साँसों से
दादी के हुक्का गुडगुडाने की आवाज़ आती है आज सियार की हुआँक के अंतिम अक्षर में
दादी के हुक्का गुडगुडाने की आवाज़ आती है आज सियार की हुआँक के अंतिम अक्षर में
Tags shayak alok शायक आलोक
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अदभुत शब्दों का ठेठ अंदाज एकदम नयी प्रस्तुति के साथ जो अल्हड़पन को स्वीकार्यते हुए झकझोर के रख दे।मेरे प्रिय कवियों में जिन्हें पढ़ना अपने में आंदोलन सा महसूस करना है।
मेरे प्रिय कवि ,आपकी कविताएँ सम्मोहित करती है ।।
अपने वर्ग सर्वश्रेष्ठ ।।
रचनात्मकता का सबसे जुदा अन्दाज़ …..बेहद गहरी रचनाओं के लिये ढ़ेरों बधाइयां |
रचनात्मकता का सबसे जुदा अन्दाज़ …..बेहद गहरी रचनाओं के लिये ढ़ेरों बधाइयां |
शायक बेजोड़ है इस मामले में तो ख़ास है कि वह हथियार नहीं डालता, कविता कहना आता है…बड़े कवियो तक को आईना दिखती कविताएँ अपने आप में सिद्ध करती है कि भाषा का अनोखा पन पाठक को वह दे रहा है जो हाल फिलहाल कहीं और उपलब्ध नहीं है..
इन कविताओ में "एक दिन" जो की सबसे पहली कविता है और फिर कुकरमुत्ता , समय संक्रमित है …आदि कविताएँ ख़ास पसन्द आई,, सभी मठो और प्रभुत्वता से अकेले लड़ते कवि को पढ़ना हमेशा से मेरे लिए एक अलग सा अनुभव रहा है।
शायक को पढ़ने के लिए और उसकी तारीफ करने के लिए उसका मित्र होना जरुरी नहीं, उसका तेवर ही उसकी पहचान है
उसे जूझते देखना अच्छा लगता है वह अहसानमंद कवि नहीं है वह जो है अपने दम पर है…..व्यक्तिगत बेबाकी अपनी जगह है
पर मैं मात्र उसके खरे और कठोर होने भर से उसे पढ़ना नहीं छोड़ सकता…..हजारो की भीड़ में "सही" होना भी एक बड़ी उपलब्धि है
और यही वह वजह है कि मैं उसे पढता हूँ…..
बिलकुल 🙂
मिलिए कभी कुछ खिलाइए पिलाइए तब सुनेंगे न आपकी .. कि ऐसीये दूर से गुलेल मार घायल कीजियेगा तब ..
प्रिय कवि श्री अम्बुज सहित सभी मित्रों को शुक्रिया
महराज आप बहुतै उम्दा लिखत हैं पर आपन सुभाव भी नरम कइ लियो तनी।
बाकी ई बात माने न माने का पूरा हक्क है आपका। फूल पत्ती वाले क तो हम भी नहीं घास डालत हैं।
महराज आप बहुतै उम्दा लिखत हैं पर आपन सुभाव भी नरम कइ लियो तनी।
बाकी ई बात माने न माने का पूरा हक्क है आपका। फूल पत्ती वाले क तो हम भी नहीं घास डालत हैं।
महराज आप बहुतै उम्दा लिखत हैं पर आपन सुभाव भी नरम कइ लियो तनी।
बाकी ई बात माने न माने का पूरा हक्क है आपका। फूल पत्ती वाले क तो हम भी नहीं घास डालत हैं।
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दू महाराज .. कौन फूल पत्ती कवित्री के नेह वशीभूत होकर ऐसा वक्तव्य जारी करते हैं वह तो कहिये .. उसको उसकी मूर्खता के लिए लतिया के हम लिस्ट से निकाले होंगे और आप पीछे पीछे बेकार के क्रांतिकारी हो रहे हैं .. आमने सामने बात कीजिये हमसे .. ढेलफेक्का खेल हम तभय खेलना छोड़ दिए थे जब स्कूल में पढ़ते थे .. बहुत बरस बीता ..
सभी कविताएँ भी बेहतरीन शायक की कविताओं में नयापन है सोचने को विवश करती है।
अद्भुत.! तत्काल यही एक शब्द याद आ रहा है ! …एक अजीब तरह का नयापन …बधाई…
अद्भुत.! तत्काल यही एक शब्द याद आ रहा है ! …एक अजीब तरह का नयापन …बधाई…
उससे पहले मुझे मेरे बचे रहने की संभावना तलाशनी होगी …"……"… जिंदगी की जद्दोजहद को दर्शाती कविताएं |
इन कविताओं के औचकपन और अंदाज ने शायक के रचनाकर्म के प्रति मेरी दिलचस्पी पैदा कर दी है। कुकरमुत्ता तो काफी बेहतर है।
आज के युग की बेहतरीन कविता | शायक जी की कविता में युग का सच बड़ी शिद्दत से उभरता है | आज उनको पढ़ कर मुझे एक जर्मन कवि की कविता याद आ गई जिसने हिटलर की तानाशाही युग को झेला था और उस पर लिखा था –
‘First they came for the Communists,
Well, I was not a Communist ñ
So I said nothing.
Then they came for the Social Democrats,
Well, I was not a Social Democrat
So I did nothing,
Then they came for the trade unionists,
But I was not a trade unionist.
And then they came for the Jews,
But I was not a Jew ñ so I did little.
Then when they came for me,
There was no one left who could stand up for me.’
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लिखने और होने में साम्य नहीं है तो कवि किसके लिए लिखता है। अगर कवि संवेदना और मानवता के बारे में लिखता है तो उसके अंदर भी ये सब होने चाहिए। इसके अभाव में कविता बढ़िया होते हुए भी फ़कत शब्दजाल है।
शायक की कविता पढ़ती रही हूँ . मुझे बेहद पसंद है .तज़रबात की गहराई , एहसास की शिद्दत और कलम की धार जहाँ मिल रही हो आप समझें वहां शायक मौजूद हैं
बेहद सुन्दर रचनाएँ
Shayak ki kavitaaye. na sirf aaj kee khaas kavitao me hai balki jaise prshant ji ne kahaa ye kavitaaye itni lubhavni hoti hai ki puri padhe bina najar nahi hattee.
विवेकशील
कवितामयी सच
समाज की विद्रूपताओं को एक अलग ढंग से रेखांकित करती हैं ये कविताएं।
Shabd kam. hain taarif ke liye..kavita jiwan kee sabse pahli jarurat hai, akhiri nahin..sach mei bahut saarhak kavitaye hain.
आसान शब्दों में बड़ी बात कहने में सिछहस्त हैं आलोक। बधाई।
Very beautiful poems
शायक आलोक की कविता पहली बार पढ़ रहा हूं । कवियों के भीड़ में एक अलग पहचान का कवि ।
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