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आयाम : साहित्यिक आयोजन है या गुटबाजी का एक मंच

पटना में ‘आयाम’ संस्था के बैनर तले स्त्री लेखन का एक अच्छा आयोजन हुआ। इस आयोजन का आँखों देखा हाल सुना रहे हैं  युवा लेखक सुशील कुमार भारद्वाज

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बिहार की साहित्यिक संस्था “आयाम” का दूसरा वर्षगांठ जेडी विमेंस कॉलेज, पटना के भव्य सभागार में तिलक एवं अक्षत के साथ बड़ी ही सफलता पूर्वक मनाया गया. जहां रोहिणी अग्रवाल और अलका सरावगी के साथ–साथ नीलाक्षी सिंह, संध्या सिंह एवं अन्य ने माहौल को साहित्यमय बनाये रखा वहीं खगेन्द्र ठाकुर, हृषिकेश सुलभ, शिवनारायण, अवधेश प्रीत, कर्मेंदु शिशिर, शिवदयाल, आशा प्रभात समेत शहर के अन्य प्रतिष्ठित साहित्यकार इसके गवाह बने.

समारोह की शुरुआत सविता सिंह ‘नेपाली’ के मंगलाचरण से हुई तो पद्मश्री उषाकिरण खान ने विषय प्रवेश करवाया. और मुख्यवक्ता के रूप में आमंत्रित चर्चित कथालोचक डॉ रोहिणी अग्रवाल ने समकालीन महिला लेखन की चुनौतियां और सम्भावनाएं (विशेष सन्दर्भ, बिहार) विषय पर अपना जोरदार एवं प्रभावी भाषण दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि स्त्रियों के मार्ग की बाधा पुरूष नहीं बल्कि सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं व परम्पराएं हैं. परम्पराओं ने स्त्री को याचक के रूप में प्रस्तुत कर गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया है जबकि स्त्री से बड़ा कोई दाता हो ही नहीं सकता है. हमें दाता के रूप में उभरने की जरूरत है. स्त्री को देह मानने की सोच से ऊपर उठने की जरूरत है. स्त्री देह ही नहीं विवेक भी है. गीताश्री की कहानियों में स्त्री की सही स्थिति का जायजा लिया गया है. हिंदू- मुस्लिम के विभाजन ने इंसानियत को जितना मारा उससे कम इंसानियत की हत्याएं स्त्री-पुरूष और थर्ड जेंडर के विभाजन से नहीं हुआ. लेकिन स्त्री –लेखन जरूरी है पितृसत्ता की बारीकियों को समझने के लिए क्योंकि पुरूष जहां बाहरी दुनियां को प्रस्तुत करते हैं वहीं स्त्री –रचनाकार खुद के अंदर झांकती हैं. खुद से संवाद करती हैं. और उसे प्रस्तुत करती हैं. लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि साहित्य में स्त्री –विमर्श के नाम पर दिया क्या जा रहा है?

पटना को पाटलिपुत्र के विभिन्न बिंबों में याद करने के बाद डॉ रोहिणी ने रेणुजी और दिनकरजी को याद किया. जबकि स्त्रियों के विभिन्न स्थितियों एवं उनके बदलाव को रेखांकित करने के लिए उन्होंने उदाहरण के रूप में बिहार की चर्चित कथाकार गीताश्री के डाउनलोड होते सपने एवं अन्य कहानियों के विभिन्न प्रसंगों एवं पात्रों का उल्लेख किया. साथ ही साथ उन्होंने कविता, वंदना राग, नीलाक्षी सिंह, पंखुरी सिन्हा एवं उषाकिरण खान की कहानियों का भी जिक्र किया.

रोहिणी जी के वक्तव्य के बाद जहां अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए जेडी विमेंस कॉलेज की प्राचार्या डॉ मीरा कुमारी अपने लिखित भाषण को पढ़ रहीं थीं और सत्र समापन की घोषणा हो रही थी वहीं खचाखच भरे सभागार से पटना के कई सम्मानित एवं चर्चित साहित्यकार उठकर चले गए. कुछ बुदबुदाते रहे कि यह साहित्यिक आयोजन है या गुटबाजी का एक मंच.

दूसरे सत्र में पटना की नीलाक्षी सिंह ने जहां पश्चिमी देश की पृष्ठभूमि पर लिखी अपने एक उपन्यास अंश से काली त्वचा वाली एक औरत की कहानी सुनाई वहीं कोलकाता से आईं साहित्य अकादमी से सम्मानित अलका सरावगी ने अपने आनेवाले उपन्यास एक सच्ची –झूठी दास्तान के एक अंश को सुनाया जो भाषाई पहचान और समस्या पर आधारित थी. तीसरे सत्र में जहां लखनऊ से आईं संध्या सिंह ने अपनी कविता, दोहा, गीत, और गजल से मनमोहा वहीं मीरा श्रीवास्तव, पूनम सिंह, रश्मि रेखा, प्रतिभा चौहान, डॉ भावना कुमारी, एवं पंखुरी सिन्हा ने अलग–अलग तेवर की कविताओं एवं गजलों से शमां बांधती रहीं.

पटना में वर्ष 2015 से साहित्यिक गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं. और इसी सक्रियता के बीच बिहार की स्त्री-लेखिकाओं को उचित सम्मान और प्लेटफोर्म उपलब्ध कराने के अलावे नये साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 22 जुलाई 2015 को आयाम (साहित्य का स्त्री स्वर) को उषाकिरण खान की अध्यक्षता में निवेदिता झा और सुनीता गुप्ता के संयुक्त प्रयास से शुरू किया गया. जिसे भावना शेखर, पूनम आनंद, सुमन सिन्हा, सरिता सिंह नेपाली, तथा अर्चना आदि ने मजबूती दी. आयाम के बैनर तले पिछले दो वर्षों में अमूमन पटना एवं आसपास में रहने वाली रचनाकारों ने कई कहानी पाठ, कविता पाठ एवं परिचर्चाएं आयोजित की. आयाम की खासियत रही कि महिलाओं का संगठन होने, महिलाओं का कार्यक्रम आयोजित करने के बाबजूद इसमें न सिर्फ पुरुष साहित्यकारों को श्रोता के रूप में आमंत्रित किया जाता है बल्कि उनके सलाह-मशविरे का भी सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है.

जब आयाम के दूसरे वर्षगांठ को भव्य तरीके से मनाने की पहल हुई तो समस्याएं कम नहीं थी. जहां एक तरफ वक्ता के रूप में गणमान्य रचनाकारों के नाम पर सहमति बनाने एवं उनसे समय लेने की परेशानी थी तो दूसरी तरफ कुछ महिला साहित्यकार कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दबाब भी बना रहीं थीं.  लेकिन आयोजक अपने कौशल का इस्तेमाल करते हुए अपने तय रुपरेखा में कार्यक्रम को आयोजित करने में सफल रहे. लेकिन एक खास बात जोड़ना बहुत ही जरूरी है कि पिछले दो वर्षों से लगातार कलम, मसि एवं आखर के बैनर तले पटना में साहित्यिक गतिविधि को सक्रिय रूप से गति देने वाली आराधना प्रधान का हाथ भी इस आयोजन की सफलता में बहुत अधिक था जिसका उल्लेख किसी ने नहीं किया.

संपर्क :- sushilkumarbhardwaj8@gmail.com

 
      

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5 comments

  1. रोचक रिपोर्ट। लेकिन इधर ये बात साफ़ नहीं हुई कि इस आयोजन गुटबाजी का मंच क्यों बोला गया? शीर्षक में ये बात रखी गयी है तो इस चीज को साफ करना चाहिए था। जिन्होंने कहा उनके विचार भी रखने चाहिए थे। वरना इस चीज को शीर्षक में रखने का कोई तुक मुझे तो नहीं दिखता।

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