Home / ब्लॉग / ‘अरे! तुम! उमराव जान अदा !’

‘अरे! तुम! उमराव जान अदा !’

रोहिणी अग्रवाल एक सजग आलोचक और संवेदनशील कथाकार हैं. उनके इस लेख में उनके लेखन के दोनों रूप मुखर हैं. आप भी पढ़िए- जानकी पुल.
=================================


हर चैनल पर आनंद से उमगते मनचलों की भीड़ है जो डांस क्लबों में बार डांसर्स के दोबारा लौट आने की खबर से बागबाग है। झल्ल कर मैंने टी वी ऑफ कर दिया है और अधूरा लेख पूरा करने बैठ गई हूं।
भाग क्यों आई?” मैंने देखा, कागजों पर हर्फ नहीं, आक्रोश और व्यथा से तिलमिलाती कोई स्त्री कमर पर दोनों हाथ रखे आंख ही आंख से मुझे निगल जाने को तैयार है। फटेहाल! झुर्रीदार चेहरा!
मैं गौर से देखती रही उसे। आंखें में मादकता और मुख पर बांकी मुस्कान की कल्पना कर मैंने उसके हाथ नृत्य की मुद्रा में विन्यस्त कर दिए।अरे! तुम! उमराव जान अदा !” ”सचसच बताना बन्नो, अदाओं और बेबसी को मेरे वजूद से निकाल कर इल्म और जद्दोजहद के सहारे कितना याद रखोगी मुझे?”
 मैं मारे खुशी के उछल पड़ी।
आपा जानती हो, कितनी मुरीद हूं तुम्हारी! तुम्हारी अदाएं, तुम्हारा इल्म! तुम्हारी जद्दोजहद! तुम्हारी बेबसी! . . . नॉवेल पढ़ती हूं तो सुबकसुबक कर रोती हूं।
मैं परेशां! किरदार को इससे ज्यादा और क्या तवज्जोह दी जाए?
उमराव जान मन की बात पढ़ने में माहिर! ”तकलीफ तो यही है मुनिया कि औरतों को किरदार से ज्यादा किसी ने तवज्जोह दी ही नहीं। तमगे और मौत . . . हर शख्स अदीब हुआ और मन मुताबिक औरत को तकदीर बांटता गया।
हां आपा, तुम्हारे जमाने की औरतों के पास अपने रास्ते बनाने का हौसला भी तो नहीं था !”
हमारी ही तकदीर को दोहराना और  . . .कायराना होने की तोहमतें भी हमीं पर! वल्लाह!” तंज से स्वर लहक गया आपा का।दोचार तरक्कीपसंद मर्दों के संग औरत की आजादी और हकूकों की बात करके तुम मुट्ठी भर औरतें अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने को दुनिया बदलने का नाम
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

5 comments

  1. Os telemóveis Samsung sempre foram uma das marcas mais populares do mercado com uma variedade de funcionalidades, sendo a gravação de voz uma delas.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *