बारहवीं कक्षा में पढने वाली जूही ने भारत में खानपान के बदलते अंदाज पर यह लेख लिखा है. अच्छा है. पढियेगा- मॉडरेटर
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खान-पान भारतीयों के लिए सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, जुनून भी है, जो वक्त के साथ बढ़ता और बदलता जा रहा है। हिंदुस्तानी खाना स्वाद और सुगंध का रसीला संगम है। आज जब हम भारत की सड़कों से गुज़रते हैं तो बाज़ार रेस्टोरेंट्स, स्ट्रीट फूड और तरह तरह की खान पान की चीज़ों से भरा नज़र आता है। समय के साथ साथ लोगों की पसंद का दायरा और स्वाद दोनों बदल रहे हैं जो कि उनकी पहचान और शख़्सियत को दर्शाता है।
घाट घाट जहां बदले पानी, हर इक रंग नया सा, स्वाद भला फिर क्यों ना बदले जब बदल रही है भाषा। भारत एक ऐसा देश है जहां कदम कदम पर भाषा और वेशभूषा बदलती है।
यही ख़ासियत यहां के खान-पान की है। ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में भारत में जहां हर क्षेत्र में क्रांति हुई है वहीं भारतीय खान-पान भी इससे अछूता नहीं रहा है। पिछले एक दशक में देश में बहुत तेज़ी से खान-पान में बदलाव नज़र आ रहा है। आज हमारे सामने इंडियन फूड इंडस्ट्री के रूप में एक नया बाज़ार खड़ा है, जो कि लगातार बढ़ता जा रहा है। जब 90 के दशक में मेकडॉनल्ड्स, डॉमिनोज़, के एफ़ सी जैसी पश्चिमी फास्ट फूड चेन्स ने भारतीय बाज़ार में प्रवेश किया तब उन्हें बहुत से मुश्किलात का सामना करना पड़ा। हिंदुस्तानी खाना अपने चटपटे मसालों, मिठाइयों और उनकी खुशबू के लिए विश्व भर में मशहूर है। अलग पसंद और स्वाद के कारण बाहरी फास्ट फूड इंडस्ट्रीज़ को भी खाना बनाने के तौर तरीकों में बदलाव करने पड़े। एक बहुत ही मुश्किल वक्त को पीछे छोड़ते हुए फास्ट फूड इंडस्ट्रीज़ ने भारत में अपने आप को स्थापित कर लिया है। पहले जहां लोग फास्ट फूड को अपनाने में हिचकते थे वहीं अब बढ़ चढ़कर इसका ज़ायका ले रहे हैं।
बदलते वक्त के साथ भारतमध्य वर्गीय, एकल परिवारों की संख्या बढ़ी है।ज़्यादातर एकल परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं। आर्थिक विकास की वजह से लोगों की खर्च करने की क्षमता भी बढ़ी है। समय की कमी और रोचक विकल्पों को आज़माने की चाह में लोग बाहर खाना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। विज्ञापनों के इस दौर में फूड कंपनियों ने सभी वर्गों तक पहुंच बना ली है। आकर्षक व्यंजनों की वजह से सभी फ़ास्ट फूड खाना पसंद कर रहे हैं। फ़ास्ट फूड चेन्स भी लोगों की रग़ से वाक़िफ हो चुकी हैं और अलग-अलग तरीके अपनाकर उन्हें अपनी तरफ खींचने में सफल हो रही है। आजकल हर गली-नुक्कड़ पर फ़ास्ट फूड सेन्टर्स खुल गए हैं। यूं तो भारत में स्ट्रीट फ़ूड का रिवाज़ कोई नया नही है लेकिन कचौरी, समोसे, दही चाट टिकिया से शुरू होकर पिज़्जा, चाउमीन जैसे खान-पान तक का सफर अपनी रोचकता के साथ नए पैमाने और मज़ेदार विकल्प भी लाया है।साथ ही पुराने भारतीय ब्रांड्स भी अब यूथ को टार्गेट कर रहे हैं। बाहर कुछ न कुछ खा के आना यूथ के लिए कॉमन ट्रेंड है। संजीव कपूर, विकास खन्ना जैसे पाक कला के महारथियों ने हिंदुस्तानी खान-पान को नए आयाम दिए हैं। उसे घर की रसोई से निकालकर दुनिया भर की रसोई तक पहुंचाया है।खाना स्ट्रीट फूड से ऑनलाइन स्टोर्स तक पहुंच गया है।
इंडिया ब्रेंड इक्विटी फाउंडेशन (IBEF) के अनुसार इंडियन फूड इंडस्ट्री के 2020 तक US$ 894.98 बिलियन पहुंचने के आसार हैं। मुँह में पानी लाने वाले स्वादिष्ट खाने का स्वाद हमारी ज़बान पर ताउम्र चढ़ा रहेगा रहेगा। हमारी फूडी जेनेरेशन का फूड पैशन न सिर्फ उन्हें नई- नई खाने की गलियों तक पहुँचा रहा है बल्कि कइयों को रोज़गार भी दे रहा है। खाने के कई स्टार्टअप्स इसका बेहतरीन उदाहरण हैँ।
इसलिए खाते रहिए, खिलाते रहिए। हैव अ हैल्दी डाइट एन्ड हैप्पी लाइफ़।