हिंदी साहित्य के पर्याय की तरह है राजकमल प्रकाशन. पुस्तकों को लेकर नवोन्मेष से लेकर हिंदी के क्लासिक साहित्य के प्रकाशन, प्रसार में इन सत्तर सालों में राजकमल ने अनेक मील स्तम्भ स्थापित किये हैं. सहयात्रा के उत्सव के बारे में राजकमल प्रकाशन के सम्पादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम के फेसबुक वाल से साभार- मॉडरेटर
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~सहयात्रा का उत्सव~
किसी प्रकाशन का महत्व इससे तय नहीं होता कि वह कितना पुराना है! प्रकाशन का महत्व इस बात से तय होता है कि उसके सफर के साथी कौन हैं, वह किस-किसके साथ है। वह समाज के बीच, समाज के लिए प्रकाशित क्या कर रहा है। Rajkamal Prakashan Samuhके लिए अपनी स्थापना का 70वाँ वर्ष इस मायने में बहुत खास है। नए-पुराने सभी रिश्तों की याद, संगत, बैठकी का साल…आत्मालोचन का साल, विस्तार-परिष्कार और नवाचार का साल, जलसे का साल!
2019–उत्सव-वर्ष होगा राजकमल प्रकाशन के लिए; आप सबके साथ, भरोसे के साथ! उत्सव-वर्ष का लोगो आज क्रिसमस के मुबारक दिन वृहत्तर पाठक समाज के बीच सार्वजनिक करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। उत्सव स्याही और कागज़ के साहचर्य का, शब्दों की निरन्तर यात्रा का, भरोसे के टिकाऊपन का–लेखक-पाठक-प्रकाशक की सहयात्रा का!
सहयात्रा के उत्सव को घर-घर ले चलना है, हर उस घर जहाँ किताबें हैं, जहाँ किताबों को होना चाहिए…70 से शुरू हुआ है, 75 तक हम सब किताबों के लिए ज्यादा से ज्यादा, और ज्यादा घरों को जोड़ने में जुटें, इस उत्सव-वर्ष का यही संकल्प रहेगा…
[ उत्सव-वर्ष के लोगो की परिकल्पना रबीउल इस्लाम की है। ]