Home / Featured / प्रेम में लोग अक्सर अक्टूबर में आये फूलों की तरह ख़त्म हो जाते हैं

प्रेम में लोग अक्सर अक्टूबर में आये फूलों की तरह ख़त्म हो जाते हैं

आमतौर पर किसी कवि की कविताएँ इतनी जल्दी दुबारा नहीं प्रकाशित की जानी चाहिए, हिंदी में बहुत कवि हैं। लेकिन अभिषेक रामाशंकर कुछ अलग कवि है जिसको जितना पढ़ता जाता हूँ मुग्ध होता जाता हूँ। इंजीनियरिंग के छात्र अभिषेक की भाषा शैली बहुत भिन्न है। कविता आख़िर कहने का एक ढंग ही तो है। क्या कहन है इस कवि की- मॉडरेटर
===================
१. दुःख
दुःख मोमेंटल होता है फिर भी इसे पसरने से कोई रोक नहीं पाता।
इसके पास यही एक हथियार है – पसरना ।
एक क्षण में एक आदमी का दुःख बन जाता है एक परिवार का,
एक परिवार से पूरे समाज का फिर पूरे गाँव का – पूरे शहर का ।
सुख इतना प्रोग्रेसिव नहीं है ।
अतीत में छला गया व्यक्ति भविष्य में रोता है
हमें हमारे गहरे सुख के क्षण भी विस्मरण हो चुके होते हैं
सुख के आँगन में बैठा दुःख आमरण अनशन करता है
दुःख – अमर है
दुःख – अश्वत्थामा है
जीवन – पछतावों का एक ज़खीरा है
दुःख कार्बन है – कोयला है : सुख हीरा है
२. उदास लड़कियाँ
संसार दो किस्म की लड़कियों में बँटा हुआ है । एक वे जो कहना चाहती हैं । दूसरी वे जो सुनना चाहती हैं।
जो कहना चाहती हैं उन्हें कभी सुना नहीं गया और जो सुनना चाहती हैं उनसे कुछ साझा ना हो सका।
कहने वाली लड़कियों के पास अथाह प्रेम होता है इतना कि हम अघा जायें।
सुनने वाली लड़कियों के पास अथाह उदासी जिसे सुनने के लिये उदास होने जितना खाली होना पड़ता है।
वे सब सुनकर आपको अनकहा रह जाने से बचाती हैं।
वे जानती हैं अनकहा रह जाने का दुःख।
उदास लड़कियाँ कुछ भी अनसुना नहीं करती।
मुझे याद करती है मेरी नई प्रेमिका
मुझे आती हैं हिचकियाँ
नई प्रेमिका को कुछ नहीं सुनता
मेरी पहली प्रेमिका सुन लेती है
३. प्रेम में अक्टूबर होना
प्रेम में लोग अक्सर अक्टूबर में आये फूलों की तरह ख़त्म हो जाते हैं।
किसी को कानोंकान ख़बर तक नहीं होती।
कब सितंबर की उदासी आई और फूल बनकर चली गई।
प्रेम इतना ही क्षणिक होता है। मोमेंटल।
शायद रेडियोएक्टिव एलिमेंट।
ख़त्म होकर भी बना रहता है।

४. ब्लैकहोल यात्री

सूख जाएंगे पेड़, कबूतरों को विस्मरण हो जायेगा ज्ञान दिशाओं का,

संसार के सारे जल स्रोत बन जाएंगे मृग मरीचिका,

जितनी है रेत उतना ही बचेगा पानी,

ना बचेगा पत्थर, ना बचेगा फूल, ना माटी – ना धूल!

क्या होगा इस संसार का तुम्हारे बिना?

जैसे नायिका की नाभि का चक्कर काटता हुआ लट्टू खोकर अपना नियंत्रण लुढ़क जाता है

नीचे ठीक उसी तरह अपनी धुरी छोड़ देगी ये पृथ्वी और जा गिरेगी ब्लैकहोल में।

क्या होगा मेरा अकेले तुम्हारे बिना?

मैं तुम्हें ढूंढ़ता हुआ बनकर रह जाऊंगा संसार का पहला ब्लैकहोल यात्री।

तुम्हारे जाने के बाद…

 

५. आत्ममुग्धता
मैंने जब भी देखा है खिड़कियों से बाहर
बाहरी दुनिया को
पाया है झांकता हुआ खुद को
खुद की आँखों से
और पाया है खुलता हुआ
संसार के लिए
मेरी आँखें संसार की सबसे सुंदर खिड़कियां हैं
और मेरा हृदय :
संसार की ओर खुलता हुआ दरवाजा
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

ज्योति शर्मा की नई कविताएँ

आज पढ़िए ज्योति शर्मा की कविताएँ । इन कविताओं में स्त्री-मन का विद्रोह भीतर ही …

12 comments

  1. A. Charumati Ramdas

    Wonderful…

  2. I love the way this blog is written – it’s clear, concise, and easy to understand.

  3. This blog is an invaluable resource for anyone looking to stay informed and educated on the topic.

  4. I enjoy visiting your blog and discovering new perspectives.

  5. I appreciate the inclusive and supportive community you’ve built around your blog.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *