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युवा कवि कुशाग्र अद्वैत की कुछ कविताएँ

नए लड़के जब अच्छा लिखते हैं तो बहुत खुशी होती है। वे भाषा का भविष्य हैं, भाषा की श्रेष्ठ सर्जनशीलता का। कुशाग्र अद्वैत बीए तृतीय वर्ष के छात्र हैं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं। ज़रा उनकी कविताओं की ताज़गी देखिए- मॉडरेटर

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1

एक सोलह बरस के लड़के की कविताओं के बिम्ब
इतने कुरूप क्यों हैं?
 
यहाँ
मगरमच्छ क्यों हैं,
रंग-बिरंगी मछलियाँ क्यों नहीं?
 
कोई पूछता भी नहीं
सोलह बरस के कवि से
कि यहाँ तो सोता होना था
फिर इतनी प्यास क्यों हैं?
 
हरदम महकती रहनी थी यह जगह
इत्र होते या कुछ और
फिर, चिमनियों का-सा धुआँ क्यों हैं?
रंग-बिरंगी तितलियाँ क्यों नहीं?
 
सोलह बरस के लड़के को तो
शुतुरमुर्गी चुम्बन में डूब जाना था,
या कोई अश्लील किताब ले
बिस्तर में ही लुका जाना था,
उसकी पथरीली आँखों को
किसी की सजीली आँखों के आगे,
सहसा ही झुक जाना था,
दो कदम आगे आना था
तीन कदम पीछे,
फिर असमंजस में
बीच में ही कहीं रुक जाना था।
 
उसकी कविताओं के माध्यम से
ईश्वर को बसन्त के आगमन की
आधिकारिक घोषणा करनी थी।
 
उसकी कविताओं में हुई
नुक्तों की गलतियाँ
आलोचकों को
आकाश से छिटके तारों सी लगनी थी।
 
उसकी कविताओं के आकाश को नीला
और धरती को असामान्य रूप से हरा होना था।
 
उसकी कविताओं में
मधुमक्खियों को छत्ता लगाना था,
कोयलों को घोंसला बनाना था।
 
उसकी कविताओं के आसपास
होना चाहिए था―
एक अद्भुत प्रकाश
किसी लैम्पपोस्ट की तरह
कीट-पतंगों को जहाँ डेरा जमाना था।
 
उसकी कविताओं में
उपासना,
विपासना,
सपना
लड़कियों के नाम होने थे।
 
और, वासना?
वासना―किसी ऋतु का!
 
लेकिन,
उसकी कविताओं के बिम्ब
इतने कुरूप हैं
और
कोई पूछता भी नहीं
कि यहाँ तो सोता होना था
फिर इतनी प्यास क्यों हैं?
2018
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तुम्हारा
कम्बल नीला,
तकिये नीले,
पर्दे-वर्दे भी
सब नीले,
बुकशेल्फ़
नीला,
स्वेटर नीला,
मफ़लर नीला,
अलमारी नीली
चप्पल नीली
 
और,
अब तो तुमने
मनमानी करके
ले लिए हैं
जूते भी
नीले ही
 
अब
सब कुछ जब
नीला ही था
तो,
क्या ज़रूरत थी
दीवारों पर
नीले ही
पेंट की?
 
तुममें
रत्ती भर
समझ नहीं है
contrast की!
 
*****************
 
वो
Olive green टीशर्ट
कितनी फबती थी
तुम पर
 
और,
terracotta red वाली
के तो
कहने ही क्या
 
पर,
तुमको
हर बार
वह नीली वाली ही
क्यों पहननी होती थी?
 
*****************
 
मेरे बार-बार कहने पर
जब सफ़ेद शर्ट पहनकर आते थे
 
कफ़ में लगे होते थे
नीली स्याही के दाग
यह कैसा लाग!
 
*****************
 
होली पर तो
सबको लाल-गुलाल
ही सूझता है
 
परन्तु,
उस दिन भी
लगे रहते थे तुम
नील के ही कारोबार में
 
******************
 
मैंने
उस दिन
गुस्से में पूछा था,
“What is this obsession with blue?”
 
जैसे, पहले से ही
सोच रक्खा हो जवाब―
बस कर रहे थे
मेरे पूछने का इंतज़ार―
कि मैं यह बोलूँ
तो, तुम
बोल दो वह
 
कैसे तपाक से कहा था तुमने,
“Because, you came into my life, out of the blue.”
 
*****************
 
ख़ून ना सही,
लाल स्याही से ही
लिख देना था
 
कितना unromantic
लगता है,
नारंगी डायरी से
झाँकता
 
नीली स्याही से
लिखा
प्रेमपत्र!
 
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तुम
प्रकाश
थे
 
मेरे
जीवन
के
 
अमूमन, प्रकाश
विभाजित होता है―
इंद्रधनुष में
 
लेकिन,
मेरे मन के
प्रिज्म पर
 
चढ़ पाया है
 
केवल
तुम्हारा
नीला रंग!
 
*****************
 
एक घण्टे, उन्नीस मिनट
की ड्राइव के बाद
 
काई लगे
उस पत्थर पर
बैठते ही
 
तुमने रख दिए थे
मेरी गोद में
अपराजिता के चार फूल
 
और, मैंने पूछा था,
“ये कहाँ मिल गए तुम्हें?
हद्द करते हो…
Who proposes with Bluebellvine?”
 
*****************
 
जब-तब
उतारते रहते थे
मेरी तस्वीर
 
अब कोई नहीं खींचता
या मैं ही जता देती हूँ अनिच्छा
 
(किसी से विदा लो
तब सब सामान-असबाब लेते जाओ…
कुछ भी न छोड़ो)
 
मूँह चिढाता रहता है
तुम्हारा
आइस ब्लू पोलरॉइड कैमरा!
 
*****************
 
 
यह
उदास
और
निष्क्रिय
रंग:
हमेशा से
बनता रहा है
यातना का बायस
 
पिकासो ने
गहरे अवसाद के दिनों में
बनाई थी―
नीली पेंटिंग्स
 
अनैच्छिक ही,
कितने कृषकों को
जोत दिया था
खेतों में,
यह रंग
उपजाने को
 
इस शाही रंग से
मैंने हमेशा की है―
एक मीठी घृणा
 
तुम्हारा जाना था
और, मैंने
नहीं धरे हैं
इस नीले ग्रह पर
अपने पाँव
 
बाँहे फैलाकर
नहीं ली है साँस
इस नीले गगन
के तले!
 
*****************
 
शक्ति ने
शिव के
कण्ठ में ही
रोक दिया था
विष
 
और वह
नीला हो गया
 
मैंने तो नहीं रोका
कभी
खुद को
तुम्हारे प्रेम में पड़ने से
 
फिर मुझ पर
क्यों हो रहा है
नील का अतिक्रमण!
 
*****************
 
सावन के अँधे को
दिखता होगा
हर तरफ़
हरा ही हरा
 
तुम्हारे प्रेम के
अंधेपन में
मेरी आँखों में,
रोम-रोम में,
नफ़स नफ़स में
उतर आया है
नील
 
कल ही
एक दोस्त ने पूछा भी था,
“तुम्हें निमोनिया हुआ है क्या?”
 
*****************
 
यदि मुझे
आत्महत्या करनी होगी
 
जोधपुर चली जाऊँगी,
किसी ऊँची पहाड़ी से
कूद जाऊँगी
 
पुलिस वालों को
मिलेगी
मेरी आधी-तीही लाश
 
अगले रोज़
अख़बार में छपेगा―
“किसी ने
सोख लिया है
इस शहर का नील,
सूख गई सब झील!”
 
*****************
नवम्बर
2018
=====
हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
लोग हमें देखते और औरों को नसीहत करते―
इनकी तरह मत होना,
हम में होने जैसा था ही क्या
सो, हम भी खुद की तरफ़ देखने वालों को
यही हिदायत देते―
हमारी तरह मत होना
और, वैसे भी
हमारी तरफ़ देखता ही कौन था
गली के आख़िरी मकान के। दुसरे माले
की। बालकनी पर। गिटार बजाने वाली
इक उदास लड़की के सिवा।

हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
परन्तु, हमें शहर ने
बड़ी ही सहजता से अपनाया
ऐसे जैसे कोई घर आए,
भूख लगे,
फ़्रिज खोले,
सब्ज़ियाँ काटे,
पकाए,
खाए,
टीवी में खो जाए;
ऐसे जैसे किसी को नींद आए,
बत्तियाँ बुझाए,
कम्बल खोले,
लेटे और सो जाए।

हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

हमने तब शराब पी
जब हमारे पास
पीने को बहुत कुछ था
जीने को कुछ नहीं

हम उन सफ़हों की तरह थे
जो किताबों में तो थे
निसाबों में नहीं

हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

हम धूप और छाया के मध्य कहीं थे,
राजा और रिआया के मध्य कहीं थे

शहर के सब इंतज़ाम बदलते रहते थे,
शहर के निज़ाम बदलते रहते थे,
और हम…
हम सबको बराबर खटकते रहते थे

हम अलजेब्रा के ‘एक्स’ के उस मान कि तरह थे
जिसे निकालने के सौ तरीके होते हैं
कोई भी निकाल देता था हमें

सबकी चाहना थी, हम वैधानिक लोच बनें,
लेकिन, हम सरकार के पैरों की मोच बने,
हमसे कहा गया “हमारी जान को खतरा है।”
अगले कुछ दिनों तक
हम अपने ही शरीर की खरोच बने

हम शब्द बने,
ऋतु बने,
रुचियाँ बने,
हम हर वो शय बने
जो हमें उपलब्ध न थी

हम क्रांतियों में
लिया गया वक्त बने,
बहा रक्त बने,
फाँसियों के तख़्त बने

हम वो अधर बने
जो अचूमे रहे,
हम वो नयन बने
जो अझूमे रहे

ऐसा नहीं है कि
हम कुछ और नहीं कर सकते थे
कुछ और यानी―
किसी दो कौड़ी की परीक्षा में
आ सकते थे अव्वल,
या फिर, मान सकते थे अपने अब्बा की बात,
खुश कर सकते थे सारी क़ायनात को एक साथ
भर सकते थे कोई दो कौड़ी का फॉर्म,
बदल सकते थे अपनी तक़दीर
परन्तु, हमने प्रेम करना चुना
एक ऐसी लड़की से
जिसे पता भी नहीं था
प्रेम कैसे किया जाता है।

ऐसा नहीं है कि हम कुछ और नहीं हो सकते थे
लेकिन, हमने सहर्ष बर्बाद होना चुना
हमने चुनाव का हमेशा सम्मान किया
इसलिए हमें इस बात का ज़रा भी मलाल नहीं है
कि हम अचुने रह गए

हम शहर के सबसे आवारा लड़के रहे
और हमने इस तमगे का कभी दिखावा नहीं किया

हम देर-सबेर घर आते रहे,
चीखते-चिल्लाते रहे,
हमने तब आवाज़ की
जब चुप रहना
हर तरह से
फ़ायदे का सौदा बताया गया था

हम मुर्दों के बीच रहकर भी मरे नहीं,
हमने शहर को मरघट बताया
और मरघट पर शहर बसाने का ख़्वाब सजाया

हमें जब भूख लगी
हमने शहर खाया,
हमें जब प्यास लगी
हमने शहर पीया,
और जब हम अपच के शिकार हुए
तब हमने थोड़ा-सा शहर उगल दिया

जब बढ़ने लगा कोलाहल
शहर ने हम में पनाह ली
हमने अपने भीतर,
बहुत भीतर
एक मरते हुए शहर को
ज़िंदा रक्खा

हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे

2019
संपर्क-mkushagra660@gmail.com

 

 
      

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