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‘श्वेत’ बहुत माहौल में ‘अश्वेत’ अनुभव

मिशेल ओबामा की आत्मकथा ‘बिकमिंग’ बेहतरीन किताब है, प्रेरक भी। अल्पसंख्यक(अश्वेत) समाज में पैदा होकर भी आप संघर्ष करते हुए मुख्यधारा में अपनी जगह बना सकते हैं। शिकागो के अश्वेत समुदाय से निकलकर अमेरिका के प्रिंसटन जैसे विश्वविद्यालय में पढ़ना और बाद में राष्ट्रीय फ़लक पर अपना मुक़ाम बनाना। मैंने यह किताब अंग्रेज़ी में पढ़ी थी और सच बताऊँ तो इसलिए पढ़नी शुरू की थी क्योंकि यह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी की लिखी आत्मकथा थी। लेकिन किताब पढ़ते हुए बराक पीछे रह गए, मिशेल का विराट किरदार उभर कर आया। ‘अश्वेत’ होने के कारण समाज में भेदभाव के अपने अनुभवों को भी उन्होंने लिखा है। यह अंश तब का है जब वह प्रिंसटन में पढ़ने के लिए आ गई थीं। किताब का अनुवाद कुमारी रोहिणी ने लिया है और प्रकाशन पेंगुइन बुक्स इंडिया ने किया है- जानकी पुल।

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थर्ड वर्ल्ड सेंटर- जिसको हम टीडब्ल्यूसी बुलाते थे, जल्दी ही मेरे लिए घर जैसा बन गया. वहां पार्टी दी जाती थी, सब मिल जुल कर सब साथ खाना खाते थे. वहां स्वयंसेवी अध्यापक थे जो पढाई में मदद करते और वह जगह घूमने फिरने के लिए भी थी. समर प्रोग्राम के दौरान मैंने जल्दी ही कुछ दोस्त बनाए, और हम लोगों में से कई खाली समय होने पर उस सेंटर की तरफ आते थे. उनमें सुजान अलेले भी थी. सुजान लम्बी और दुबली पतली थी, उसकी भौंहें घनी थीं, और उसके बाल काले घने थे जो उसकी पीठ पर चमकते हुए लटके रहते थे. उसका जन्म नाइजीरिया में हुआ था और लालन पालन किंग्स्टन, जमैका में. जब वह किशोरावस्था में थी तो उसका परिवार रहने के लिए मेरीलैंड आ गया था. शायद इसकी वजह से लगता था कि वह किसी एक सांस्कृतिक पहचान से बंधी हुई नहीं थी. लोग सुजान की तरफ खींचे चले आते थे. ऐसा न कर पाना बहुत मुश्किल था. उसकी मुस्कान खुली हुई थी और उसकी आवाज में एक कशिश थी जो तब और मुखर हो जाती थी जब वह हल्के नशे में होती थी या थकी हुई होती थी. उसमें एक तरह की कैरेबियन मस्ती थी, हल्के फुल्के मिजाज में रहती थी जो प्रिंसटन के स्टूडियो मास में सबसे अलग कर देती थी. वह ऐसी पार्टियों में भी जाने से नहीं डरती थी जहाँ वह किसी को भी नहीं जानती थी. इसके बावजूद कि वह पहले से जानती थी लेकिन इसके बावजूद उसने मिटटी के सामान बनाना और डांस की क्लास करना जरूरी समझा क्योंकि इस बात से उसको ख़ुशी मिलती थी.

बाद में जब हम सीनियर क्लास में आ गए तो सुजान ने एक और शौक पाल लिया, उसने खानपान के एक क्लब कप एंड गाउन के लिए बिकर करना शुरू कर दिया, ‘बिकर’ शब्द प्रिंसटन में ही इस्तेमाल किया जाता था जिसका मतलब यह होता था कि जब कोई नया सद्स्य क्लब का सदस्य बनता था तो उसका सामाजिक पुनरीक्षण किया जाता था. सुजान खान-पान की उन पार्टियों से लौटकर जिस तरह की कहानियां सुनाती थी मुझे बहुत पसंद आती थीं लेकिन मेरा मन कभी नहीं करता था कि मैं भी पुनरीक्षण का यह काम करूँ. मुझे टीडब्ल्यूसी में जो अश्वेत और लैटिनो विद्यार्थी मिले थे मैं उनसे ही खुश थी, मैं प्रिंसटन के बड़े सामजिक जीवन के निचले पायदान कर खड़े होकर बहुत खुश थी. हमारा समूह छोटा था लेकिन आपस में बहुत जुड़ा हुआ था. हम पार्टियाँ देते और आधी रात तक डांस करते. खाते समय हम दस या उससे अधिक लोग एक टेबल के इर्द गिर्द जुट जाते थे और बातें करते, हँसते. हमारा डिनर उसी तरह से घंटों चलता था जब हम साउथसाइड के घर में पूरे परिवार के साथ मिलकर खाते थे.

मेरे ख़याल से प्रिंसटन के प्रशासकों को यह बात पसंद नहीं आती थी कि अश्वेत विद्यार्थी अधिकतर एक साथ चिपके रहते थे. उम्मीद यह की जाती थी कि हम सभी मिल जुलकर एक साथ सौहार्द के साथ रहेंगे, जिससे सभी विद्यार्थियों की गुणवत्ता में सुधार होगा. यह लक्ष्य हासिल करने लायक था. आदर्श तो यह था होता कि कैम्पस में कुछ उस तरह का माहौल बने जिस तरह का कॉलेज के ब्रोशर पर होता था- मुस्कुराते हुए विद्यार्थी मिले जुले समूहों में काम करते हुए. लेकिन आज भी कॉलेज कैम्पस में अश्वेत विद्यार्थियों के मुकाबले श्वेत विद्यार्थी बहुत अधिक होते हैं, मिल जुल कर रहने की जिम्मेदारी मूलतः अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के ऊपर ही रहती है. मेरे अपने अनुभव में यह बहुत बड़ी मांग थी.

प्रिंसटन में मुझे अपने अश्वेत दोस्त चाहिए होते थे. हम एक दूसरे को राहत पहुंचाते थे और समर्थन देते. हम लोगों में से बहुत जब कॉलेज आये थे तो उनको इस बारे में पता भी नहीं था कि नुक्सान क्या क्या थे. आपको धीरे धीरे इस बात का पता चलता कि आपके साथ पढने वाले विद्यार्थियों को स्कूल स्तर पर ही ही सैट ट्यूटरिंग दी गई थी या हाई स्कूल के स्तर पर ही कॉलेज स्तर की शिक्षा दी गई थी या वे बोर्डिंग स्कूल में जा चुके थे और इस वजह से उनको उस तरह की मुश्किलें नहीं हो रही थीं जो घर से पहली बार बाहर निकलने पर होती हैं. यह उस तरह की बात थी कि आप पहली बार स्टेज पर पियानो बजाने के लिए चढ़ें और तब आपको यह समझ में आये कि आपने कुछ भी ऐसा नहीं बजाया था बल्कि जो बजाया था वह टूटी चाभी वाला एक बाजा भर था. आपकी दुनिया बदलती है, लेकिन आपको उससे उबरने और समायोजन के लिए कहा जाता है, आप से उम्मीद यह की जाती है कि आप भी उसी तरह संगीत बजाएं जिस तरह दूसरे बजा रहे हों.

जाहिर है, यह संभव है- अल्पसंख्यक और असुविधाजनक परिस्थितियों से निकले बच्चे हर बार चुनौतियों का सामना करते हैं- लेकिन इसके लिए ऊर्जा चाहिए. इसके लिए ऊर्जा चाहिए कि पूरी क्लास में आप अकेले अश्वेत हों या महज कुछ गैर श्वेत लोगों में हों जो अंदरूनी दल का सदस्य बनने की कोशिश में हों. इसके लिए कोशिश करनी पड़ती है, इसके लिए अतरिक्त आत्मविश्वास की जरूरत होती है, ताकि आप वैसे माहौल में बोल सकें और कमरे में अपनी उपस्थिति को दर्ज करवा सकें. इसी वजह से जब डिनर पर रात में मैं और मेरे दोस्त मिलते थे तो हम राहत महसूस करते थे. इसी वजह से हम बहुत देर तक साथ रहते थे और खूब खूब हँसते थे.

पायने हॉल में मेरे दो श्वेत रूममेट्स थीं और दोनों ही बहुत अच्छी थी, लेकिन मैं डोरमेट्री में इतना रहती ही नहीं थी कि गहरी दोस्ती हो सके. असल में मेरे अधिक श्वेत दोस्त थे ही नहीं. पीछे मुड़कर देखने पर समझ में आता है कि इसमें किसी और की नहीं मेरी अपनी ही गलती थी. मैं बहुत चौकस रहती थी. मैं जो जानती थी उसी पर टिकी रहती. इस बात को शब्दों में रख पाना मुश्किल होता है जब कई बार आपको सूक्ष्म रूप से यह क्रूर रूप में महसूस होता है कि आप वहां के हैं ही नहीं, आपको सूक्ष्म रूप से ऐसे संकेत मिलते रहते हैं कि कोई खतरा न उठाया जाए, अपने जैसे लोगों को खोजकर उनके बीच ही रहा जाए.

मेरी एक रूममेट कैथी कई साल बाद ख़बरों में आई, उसने शर्मिंदगी के साथ कुछ ऐसा लिखा था जिसके बारे में मुझे तब नहीं पता था जब हम साथ साथ रहते थे: उसकी माँ न्यू ओर्लायंस में अध्यापिका थीं, जब उनको यह पता चला कि उनकी बेटी को एक अश्वेत के साथ कमरा दे दिया गया है तो वह बहुत गुस्से में आ गई और वह विश्वविद्यालय के पीछे पड़ गई कि हमें अलग किया जाए. उसकी माँ ने भी इंटरव्यू दिया और इस बात की पुष्टि करते हुए कुछ और सन्दर्भ दिए. एक ऐसे परिवार में पली बढ़ी जिसमें अश्वेतों के प्रति नफरत की भाषा घर में बोली जाती थी, उनके दादा एक शेरिफ थे और वे अश्वेत लोगों को शहर के बाहर खदेड़ने की बात किया करते थे, इसलिए जब उनको पता चला कि मैं उनकी बेटी के साथ रहने वाली थी तो वह डर गई थी. मुझे बस इतना ही याद है कि यूनिवर्सिटी में पहले साल के बीच में कैथी तीन लड़कियों के कमरे से बाहर निकल कर एकल कमरे में रहने के लिए चली गई. मैं यह बात ख़ुशी ख़ुशी कह सकती हूँ कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था कि क्यों.

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किताब का लिंक- https://www.amazon.in/Becoming-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%9E%E0%A4%B0/dp/9353494850/ref=sr_1_1?crid=2TETYHHY1QGUD&dchild=1&keyword

 
      

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