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कोरोना की चुनौती एवं अवसर

दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा भूमिका सोनी एक बहुराष्ट्रीय बैंक में काम करती हैं। लॉकडाउन के दौरान कामकाज के अनुभव किस प्रकार के हैं, युवा किस तरह से सोच रहा है इसके ऊपर उन्होंने एक अच्छा लेख लिखा है- आप भी पढ़िए-

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कोरोना पूरे विश्व में फैल चुका है। भारत में इसने फ़रवरी के आस पास दस्तक दी जिसकी आहट हमें मार्च आते आते सुनाई दी। 10 मार्च को होली थी। कोरोना के चलते सब होली कार्यक्रम रद्द किए जा चुके थे। कॉलेज के बच्चे और कई कामकाजी युवा घर जा चुके थे। ऐसे में मेरे ऑफिस में होली तक का अवकाश नहीं था। मार्च चल रहा था तो जाहिर सी बात है की एक बहुराष्ट्रीय बैंक का काम काफ़ी जोरो पर होता है। मुझे समय नहीं मिल रहा था कि ख़बरे विस्तार से पढूं, बस पता था की कोरोना नाम का एक नया वाइरस आया है जो स्वाइन फ़्लू से भी कई ज़्यादा ख़तरनाक है। धीरे धीरे दूसरी कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को वर्क फ़्रोम होम (घर से काम) करने को कहने लगी। अभी तक मेरी कंपनी ने घर से काम करने का कोई आदेश जारी नहीं किया था, हालाँकि सेनिटाइज़र के डिस्पेंसर हर जगह लगा दिए गये थे। अब हर कोई बार बार सेनिटाइज़र से हाथ मलता हुआ नज़र आ रहा था। ऑफिस में एक कोलाहल सा फैला हुआ था कि बाकी कम्पनियों की तरह हमारी कंपनी का आदेश कब आएगा। कंपनी अपनी तरफ से “ड्राइ रन्स” कर रही थी की क्या इतने लोग एक साथ घर से काम कर पाएँगे?  बिज़नेस पर तो कोई असर नहीं होगा?

अभी ड्राइ रन्स चल ही रहे थे कि देश में इतनी दहशत फैल गई की कंपनी को आदेश निकालना ही पड़ा। भविष्य से अनभिज्ञ, मैं बहुत खुश हुई। अब कुछ दिन ऑफिस नहीं जाना पड़ेगा। ट्रॅफिक से छुटकारा, ऑफिस में 9 घंटे पूरे करने की आफ़त से छुटकारा। अपने लिए कितना वक़्त होगा। सबसे पहले रसोई पर धावा बोला गया। नये नये व्यंजन बनाना शुरू हुआ, फिर योग की बारी आई, फिर सोचा बचपन से कथक सीखना चाहती थी तो क्यूँ ना ऑनलाइन कथक सीखा जाए। दो हफ्तों में ही पैरों ने जवाब दे दिया। वीडियो पॉज़ कर कर के सीखने में वो मज़ा नहीं था जो एक गुरु से क्लास में सीखने से होता। नमस्कार की मुद्रा भी ठीक से नहीं सीख पाई। वो भी छूट गया। धीरे धीरे खाने से भी उब गये और फिर से सिंपल दाल चावल पर आ गए। योग करने में अब आलस आता है। लॉकडाउन के तीसरा महीना आते आते कोई रुटीन फॉलो कर पाए यह बड़ा मुश्किल हो रहा है।

ऑफिस का काम जो लॉकडाउन शुरू होने से थोड़ा धीमा पड़ा था फिर से अपने जोरो पर है। ‘न्यू नॉर्मल’ के जुमले के साथ फिर से उसी रफ़्तार में काम होने लगा है। अब घर और ऑफिस में कोई फ़र्क नहीं रह गया। घर पर आप अपना ऑफिस तो बना लेते हैं पर स्वंय ऑफिस जैसा अनुशासन लाना मुश्किल होने लगता है। Work from Home का प्रावधान कॉर्पोरेट में बहुत पहले से था। लॉकडाउन होने से इसे विशाल पैमाने पर लागू कर दिया गया। Work From Home की सुविधा ज़्यादातर हर कॉर्पोरेट कंपनी में होती है। किसी भी आपातकालीन स्थिति या कंपनी बैठक क्षमता 100% से ज़्यादा करने के लिए, कर्मचारियों को हफ्ते में एक दिन घर से काम करने की पहले से अनुमति होती है। उस स्थिति में लैपटॉप ही आपका ऑफिस बन जाता है। वैसे देखा जाए तो कॉर्पोरेट में हर इंसान का ज़्यादातर काम तो अपने लैपटॉप पर ही होता है।ऑफिस की बिल्डिंग तो सबको एक जगह लाने और काम का एक अनुशासन बनाने में मदद करती है। हालाँकि, Work from Home कॉर्पोरेट में भी उन्हीं कामों में लागू किया जा सकता है जो लैपटॉप पर व्यक्तिगत रूप से किए जा सकते हैं। मीटिंग्स फोन या फिर ‘ज़ूम’ पर होने लगी हैं।

जिन कामों में क्लाइंट से रूबरू होकर काम किया जाता है वहाँ Work from Home संभव नहीं है। अख़बारों में कई चर्चाएँ आ रही है की क्या यही कॉर्पोरेट नौकरियों का भविष्य है? जहाँ Work from Home कई मायनों में बहुत सहूलियत देता है वहीं इसका एक सबसे बड़ा नुकसान यह है की आपके सहयोगियों के साथ आपका मेलजोल, परस्पर विचार विमर्श एक दूसरे शून्य हो जाता है।जो बात आप अपने सहियोगी या मॅनेजर से चाय-कॉफी पर आसानी से बोल देते हैं, वो फोन पर उतनी ही फॉर्मल लगने लगती है।आमने सामने सहयोगियों के साथ मीटिंग करना कॉल पर बात करने से कई ज़्यादा सहज होता है। हाव भाव शब्दों को बेहतर अर्थ दे पाते हैं । मेसेज पर ‘गुड वर्क’ लिखना एक औपचारिकता लगती है। यही आप किसी से हाथ मिला कर उसे बधाई दे तो उसका अलग प्रभाव पड़ता है। ऐसी परिस्थियों में घर से काम कर पाना एक अच्छा विकल्प है पर काम में सहज प्रवाह के लिए सामाजिक संयोजन बहुत ज़रूरी है। इस लॉकडाउन में कई छात्र ऐसे होंगे जो इस साल मई जून में अपनी पहली नौकरी या इंटर्नशिप करने वाले होंगे। कई फ्रेशर्स का जॉब अभी ‘होल्ड’ पर रख दिया गया है और इंटर्नशिप वर्चुअल यानी के घर से कर दी गई है। इंटर्नशिप नौकरी शुरू करने से पहले का वो समय होता है जब एक युवा ऑफिस के तौर तरीक़ो, कामकाज़ की प्रक्रिया से परिचित होता है।कॉलेज में आप जैसे चाहे वैसे रह सकते है,  लेकिन ऑफिस परिवेश की अपनी एक संस्कृति होती है जो बिना लोगो से मिले नहीं जानी जा सकती। दूसरा कई युवा नौकरी और इंटर्नशिप के बहाने अपने घर से बाहर निकलते हैं। नई जगहों से परिचित होते है।लॉकडाउन के चलते यह सारे अनुभव कुछ फीके पड़ गये हैं।

गनीमत है कि युवाओं का एक बड़ा तबका घर बैठे तकनीकी मदद से नौकरी कर पा रहा है। कई छोटी कंपनियाँ और स्टार्ट-अप लोगों को नौकरी से निकाला रही हैं या फिर एक लंबी अवैतनिक छुट्टी पर भेज रही हैं। LinkedIn खोलो तो लगता है की पूरी अर्थव्यवस्था और व्यापार डगमगा चुका है। हर दूसरा पोस्ट एक जॉब एप्लिकेशन होता है|

रचनात्मक क्षेत्रों में होने वाले कामकाज़ भी बहुत प्रभावित हुए हैं।एक मित्र है जिन्होने पिछले साल ही दिल्ली में एक्टिंग व राइटिंग संस्थान की स्थापना की थी। लॉकडाउन होने की वजह से इस साल के एडमिशन नहीं हो पाए हैं।वे वीडियो के माध्यम से छात्रों को पढ़ा रहे हैं लेकिन जो परिवेश एक क्लास शिक्षक और छात्र को दे सकती है उसकी जगह ऑनलाइन मीडियम नहीं ले सकता। थिएटर भी बंद हैं, जिस से नियमित अभ्यास प्रभावित है। उनका कहना है की वो यह वक़्त ज़्यादा से ज़्यादा अपने लेखन में बिताते हैं। इस से मायूसी भी नहीं होती और आगे के लिए काम तैयार भी हो रहा है। थिएटर कंपनी और सिनेमा घरों का इस समय काफ़ी नुकसान हुआ है, हालाँकि उन्हे बंद करने के अलावा अभी कोई और विकल्प भी नहीं है। फ़िल्मों के साथ साथ अब नाटक भी ऑनलाइन प्रदर्शित किए जा रहे हैं।यह मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि फ़िल्मों की तरह क्या भविष्य में हम नाटक केन्द्र जाने के बजाए नाटक हमारे फोन या लेपटॉप की स्क्रीन पर देख रहे होंगे? मुझे अपने कॉलेज का पहला साल याद आता है, जब मैने कॉलेज के फेस्ट में पहली बार नाटक देखा था। ऑडिटोरियम में अंधेरा था और नाटक के एक भाग में दो लड़कियों को भयवश मंच पर ज़ोर से चिल्लाना था।जैसे ही वो सीन आया, मंच पर लड़कियाँ तो चिल्लाई हीं उनके साथ ऑडिटोरियम की सीढ़ियों पर नीचे से उपर भागती हुई 4 लड़कियाँ भी चिल्लाई ।ऑडिटोरियम गूँज गया। मैं सिहर उठी।मेरे ख़याल में ऐसा अनुभव ऑनलाइन प्रसारण में नहीं मिल सकता, पर हाँ अभी के इस माहौल में यह एक अस्थायी विकल्प ज़रूर हो सकता है। इसमे कोई शक़ नहीं के लॉकडाउन ने हमें यह सीखा दिया है कि करीबन सब काम ऑनलाइन हो सकते हैं।जैसे कोर्ट के मामलों को ही ले लीजिए।जज और विवादित पक्षों के वकील ऑनलाइन ही केस की सुनवाई कर रहे हैं।हालाँकि, अभी हमें ‘वर्चुअल कोर्ट’ को पूरी तरह से अपनाने में समय लगेगा।यहाँ में अपने एक मित्र का अनुभव साझा कर रही हूँ।वो कहते हैं वकालत से जुड़े लोग अभी भी उसी मानसिकता में ढले हुए हैं कि आमने सामने दी गई दलीलों का असर ज़्यादा होता है।फिर तकनीक़ी समस्याएँ तो हैं ही, जिस से काम में एक सहज प्रवाह नहीं रहता।

कॉलेज में मेरे साथ रहने वाली मेरी एक दोस्त ने हाल ही में दिल्ली से मेक-अप का कोर्स किया था।पिछले 6 महीने से स्टेज कार्यक्रम और अन्य समारोह जैसे शादी से उसका बिज़नेस अच्छा चल रहा था, किंतु लॉकडाउन के चलते उसे फिर से अपने घर लोटना पड़ा। छोटे शहरों में इन व्यवसायों से उतनी आमदनी नहीं होती और यह ऐसा काम है जो बिल्कुल भी ऑनलाइन नहीं हो सकता।ऐसे में वो युवा जो पारंपरिक करियर विकल्प ना चुन कर ऐसे करियर चुनते हैं उनके लिए यह समय काफ़ी हतोत्साहित कर देने वाला है।मसलन आप ऑनलाइन बिज़्नेस ही देख लीजिए।मैं यहाँ बड़ी बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइटों की बात नहीं कर रही।सोशल मीडिया के जमाने में कई ऐसे युवा हैं जो अपने घरों से अपना ऑनलाइन बिज़्नेस चला रहे हैं जिसकी मार्केटिंग वह लोग अक्सर सोशल मीडिया जैसे इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक के माध्यम से करते हैं, चाहे फिर वो परिधानों की बिकरी हो या फिर गिफ्ट आइटम्स जैसे स्केच, पेंटिंग्स आदि। लॉकडाउन में डिलीवरी समय से नहीं हो पा रही जिस वजह से कई ऑर्डर रद्द कर दिए जाते हैं।ग्राहक भी ऑर्डर देने से हिचकिचा रहे हैं।लॉकडाउन की वजह से स्वतंत्र व्यापारों (फ्रीलांस) को काफ़ी नुकसान हुआ हैं|

ऐसा नहीं हैं की सब कुछ बुरा ही हो रहा हैं।काम कुछ धीमे ज़रूर पड़ गए हैं, कहीं ना कहीं हताशा  और बोरियत सबको घेरने लगती है पर हम सब इस से उपर उठकर सकारात्मक रहने का प्रयास करते हैं।कई ऐसे कार्य हैं जो हम सब ने सोचे थे कि समय मिलने पर करेंगे।कई लोग उन्हीं कामों में इस समय का सदुपयोग कर रहे हैं।अपनी सेहत के प्रति जागरूक हो रहे हैं, परिवार के साथ ज़्यादा समय बिता पा रहे हैं। हर प्रोफेशन की अपनी चुनौतियाँ हैं लेकिन उनको दरकिनार करते हुए हर कोई अपने आपको उन गतिविधियों में लगा रहा है जो उन्हे पसंद हैं और काफ़ी समय से करना चाहते थे। कहानियाँ लॉकडाउन के चलते रंगमंच तक तो नहीं पहुँच पा रही परंतु वे कहानियाँ जो कितने समय से मन में थी अब कागज़ पर लिखी जा रही हैं।कई क्षेत्रों के अनुभवी ऑनलाइन सेशन ले रहे हैं जिस से उस क्षेत्रों में जाने वाले युवाओं को घर बैठे काफ़ी मार्गदर्शन मिल रहा हैं। फ्रीलांसर इस समय में अपनी कला को और निखारने का प्रयास कर रहे हैं|

लेखक डेविड इपस्टिन अपनी किताब ‘रेंज़’ (Range), के एक अध्याय ‘learning to drop your familiar tools’ में बताते हैं की हमेशा चुनौतियाँ एक जैसी नहीं होती। नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए नए तरीके अपनाने पड़ते हैं।यदि आप ऐसी चुनौतियों में भी अपने पारंपरिक तरीकों (familiar tools) में बँधे रहते हैं तो आप उन चुनौतियों को पार नहीं कर पाते। कोरोना भी एक ऐसी ही चुनौती है, जिसमे युवाओं को अपने काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए धैर्य के साथ नये तरीके अपनाने होंगे। क्या नहीं हो पाया यह ना सोच कर, क्या कर सकते हैं, क्या सीख सकते हैं, इस पर ध्यान देना होगा।

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लेखिका का मेल पता-sonibhumika3@gmail.com

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4 comments

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