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नितिन यादव की कहानी ‘द बैटल ऑफ द ऐप्स’

आज युवा लेखक नितिन यादव की कहानी पढ़िए। जब युवा प्रयोग करते हैं, कुछ नया करते हैं तो अच्छा लगता है। इस कहानी को पढ़ते हुए ध्यान इस बात की ओर गया कि हिंदी में सबसे अधिक प्रयोग गद्य में हुए हैं। लगता है जैसे कविता एक ठहरी हुई विधा हो गई है। ख़ैर, आप यह कहानी पढ़िए- 

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द बैटल ऑफ द ऐप्स

( जोनाथन स्विफ्ट की द बैटल ऑफ़ द बुक्स की प्रेरणा से )

यह दीपक के मोबाइल के सभी ऐप्स ( मोबाइल एप्लीकेशन ) के बतियाने का समय था। अंधेरा घिर आया था और सन्‍नाटा उनमें संवाद की उत्तेजना पैदा कर रहा था। कई दिनों से उनकी सामूहिक बैठक नहीं हुई थी। 

कूलर के तल में आधा पानी बचा था, जिसका मतलब था रात के दो बजने वाले हैं । दीपक ने एक दिन हिसाब लगाया था कूलर का पानी आठ घंटे चलता है। वह रोज रात को लगभग दस बजे कूलर में पानी डालता था । 

एकांत और अंधियारे के तार को हमेशा की तरह सबसे पहले झंकृत किया व्हाट्सएप ऐप ने  “सब सो गए क्या ?” यह उसका बातचीत शुरू करने का पुराना और घिसा हुआ तरीका था । 

“हां सब सो गए । चुपचाप मोबाइल को चार्ज होने दे । क्यों सभी ऐपों को जगा कर मोबाइल की बैटरी चार्ज होने में अड़ंगा लगा रहा है ? रात को तो शांति रखो । पूरे दिन तुम सब धमाचौकड़ी मचा कर बैटरी को डिस्चार्ज करने में लगे रहते हो । बैटरी सेवर ऐप ने डांटते हुए कहा ।

” हां दादा सही कह रहे हो ।” सबसे ताजा न्यूज़ देने का दावा करने वाले ऐप ने खुशामदी स्वर में कहा ।

“तू तो चुप ही रह । मैं सरकार नहीं, जो मेरी चापलूसी कर रहा। सबसे ज्यादा तू ही दिन भर बकवास खबरों के नोटिफिकेशन भेजकर बैटरी खाता रहता है। मैं तो उस दिन को कोस रहा जब दीपक (मोबाइल मालिक ) ने अपने दोस्त के झांसे में आकर तुझे डाउनलोड किया था।” बैटरी सेवर ऐप ने न्यूज ऐप को झिड़कते हुए कहा । 

हां सही कह रहे। आजकल के ये सारे ऐप किसी काम के नहीं। एक मैं ही हूं जो जब से मोबाइल आया है तबसे इसके साथ हूं। आखिर मोबाइल या फोन है किसलिए ? बात कराने के लिए। मैं दीपक की सबसे बात कराता हूं। मेरे अस्तित्व से ही तुम सब ऐपों की मौज-मस्ती चलती है । मैं बात कराना बंद कर दूं तो तुम सब की एक मिनट में हवा टाइट हो जाये । कॉलिंग ऐप ने बुजुर्गाना अंदाज में कहा।

“दादा, ज्यादा घमंड ठीक नहीं। तुम्हें तो पता ही है मैं ऑडियो और वीडियो दोनों कॉल करा सकता हूं और सारी कंपनियों या बैंकों के घटिया विज्ञापन कॉल पर तुम्हीं दीपक से बात कराते हो। जिसके बाद मिनटों दीपक झुंझलाता रहता है। मैं दीपक की बात और मैसेज सिर्फ ‘अपनों’ से कराता हूं। मुझे पता है दीपक के नजदीकी कौन है । जाति के ग्रुपों से लेकर उसके बचपन के मित्रों के ग्रुपो तक मैं उसे जोड़ता हूं । मैं दीपक के दिल के कोने-कोने का हाल जानता हूं । “व्हाट्सएप ऐप ने शेखी बघारते कहा।

तुम दीपक की मां और पिता से उसकी बात करा सकते हो , जो गांव में रहते हैं और बेसिक फोन इस्तेमाल करते हैं? उनसे ज्यादा कौन उसका अपना है? और तुम जो व्हाट्सएप ग्रुपों का ढेर सारा कचरा रोज इस मोबाइल में भरते रहते हो उसे साफ करने में दीपक का पूरा रविवार निकल जाता है। उसका क्या ? फेक न्यूज़ का तुमने पूरा उद्योग खोल रखा है। अब तो सुना है तुम्हारे पास एक पूरी यूनिवर्सिटी है, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ….जो कभी भी किसी भी मुद्दे पर कच्चा पक्का ज्ञान चटा सकती है । तुमने लोगों के समय को अफवाहों के तंदूर में सेका है” कॉलिंग ऐप ने व्हाट्सएप पर बिगड़ते हुए कहा।

“सही कहा कॉलर दादा, मोबाइल की मेमोरी का यह हमेशा अतिक्रमण करता है।” मोबाइल मेमोरी क्लीनर ऐप ने दृढ़ता से कहा। फेसबुक और इंस्टाग्राम ऐप व्हाट्सएप को घिरते देख उसके बचाव में चिल्लाए ” कोई इस मोटरसाइकिल टैक्सी ऐप को कुछ क्यों नहीं कहता ? जो दिन भर दीपक को शहर के इस कोने से उस कोने तक दौड़ाता रहता है। हमें पता है, इसे कोई कुछ नहीं कहेगा, क्योंकि इसी ऐप से दीपक का खर्चा चलता है और तुम लोगों की सांसें। अब कमाऊ पूत को बुरा कौन बताए।”

कॉलिंग ऐप ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा ” हां , परसों ही दीपक अपने दोस्त को कह रहा था कि आज कमरे की टेबल पर रखे कागज के नोट पर चींटी घूम रही थी, मुझे लगता है मैं भी पूरे शहर के नक्शे पर इसी चींटी की तरह रेंगता रहता हूं एक आभासी नक्शे के सहारे।”

अब मोटरसाइकिल टैक्सी ऐप के लिए अपने बचाव में बोलना जरूरी हो गया था। उसने सधे हुए स्वर में कहा ” दीपक की माली हालत तो तुम में से किसी भी ऐप से छुपी हुई नहीं है, बैंकिंग वाले ऐप ने ही हम सब को बताया था कि उसके खाते में बैंक द्वारा निर्धारित न्यूनतम बैलेंस भी नहीं बचा था। कॉलर दादा आप ही ने हम सब को बताया था कि दीपक का गरीब किसान पिता जो उसके लिए कर सकता था वह उसने किया। बड़े भाई पर कुछ करने की जब जिम्मेदारी आयी तब तक उसे गांव की राजनीति का चस्का लग गया था। वह रोज सुबह सफेद धुले कपड़े पहन कर घर से निकलता है और देर रात दारु का भभका छोड़ता घर में घुसता है। यह तो भला हो दीपक की मां और भाभी का जो दूध बेच कर घर चला रही हैं वरना दीपक कब का वापस गांव चला गया होता । “

कॉलिंग ऐप ने आद्र स्वर में कहा” हां, मैंने दीपक की मां को रोते हुए फोन पर कहते सुना था – तेरे पिता कह रहे थे – मैं चाहता हूं कि दीपक भी एक-दो साल सरकारी नौकरी के लिए शहर में कोचिंग लेकर अपना नसीब आजमा ले, पर चाहने से क्या होता है। तू कब तक दूध बेच कर मिले पैसों में से बचा कर उसे देती रहेगी। इस साल हमें बहन का भात भी भरना है। पैसे हैं कहां? उसे कह कि गांव आ जाए। और कुछ नहीं तो खेती ही संभाल ले। तेरे बड़े बेटे को तो राजनीति से फुर्सत नहीं। मेरे हाड़-गोड़ के भी वश की कहां है अब ? 

गूगल ऐप जो अब तक चुप बैठा था, ने बात आगे बढ़ाते कहा “हां, फोन पर यह सुनने के ठीक तीन दिन बाद दीपक ने यह मोटरसाइकिल टैक्सी वाला ऐप डाउनलोड किया था ।”

उसने कितनी बार मेरे पर टाइप किया था ‘पार्ट टाइम जॉब इन दिस सिटी ‘ 

कॉलिंग ऐप ने इठलाते हुए कहा” गूगल तुम्हारे भरोसे तो वह कहीं का नहीं रहता यह मैं शुरू से जानता था, इसलिए मैंने उसकी बात उसके दोस्त रवि से करवायी जो खुद बाइक टैक्सी चलाता है।”

गूगल ने खुशामद भरे स्वर में कहा ” कॉलर दादा, आपका कोई मुकाबला नहीं। वैसे कॉलर दादा नेहा के बारे में कुछ बताओ ना। ” सभी एप्स ने समवेत स्वर में कहा “हां , कॉलर दादा प्लीज ! सब एप्स की नेहा के बारे में जानने की उत्सुकता थी। टुकड़े-टुकड़े में तो सभी ऐप्स थोड़ा-थोड़ा नेहा के बारे में जानते थे। जैसे गैलरी में उसकी कुछ फोटो सेव थी, व्हाट्सएप पर उसके कुछ संवाद, फेसबुक-इंस्टाग्राम पर कुछ लाइक और कमेंट परंतु सभी ऐपों को लगता था कि सबसे अधिक जानकारी किसी के पास है तो वह कॉलर ऐप के पास। क्योंकि आजकल दीपक घंटों नेहा से बात करता था।

कॉलिंग ऐप ने गंभीरता से कहा ” देखो, नेहा अलग दुनिया की है। तुम्हें तो पता ही है इंटरनेट के इस अदृश्य से संसार में हम सब ऐप एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जैसे व्हाट्सएप और फेसबुक की सारी सूचना एक जगह डेवलपर के पास होती है , वैसे ही हमारे कॉलर ऐप की भी सारी जानकारी एक जगह जमा होती है। हम ऐप्स कभी नहीं सोते ठीक वैसे ही जैसे दुनिया कभी नहीं सोती …. लोग सोते हैं । जब लोग सोते हैं तो हम अपने आप को बदलने में और अपडेट करने में लगे रहते हैं , मैं भी अपने सभी साथियों के साथ अपडेट हो रहा था , वहीं मैंने नेहा के कॉलिंग एप से नेहा के दीपक संबंधी विचार पूछे थे तो उसने हंसते हुए बताया था कि नेहा अपनी सहेली महिमा को कह रही थी कि ‘यार दीपक की बातें मुझे रोचक और दिलचस्प लगती हैं। उसकी दुनिया मेरे लिए अजनबी है… गांव देहात की दुनिया। वह जितना बाहर से शहरी और हमारी तरह बनता जा रहा है उतना ही मुझे ‘बोर’ करने लगा है। मैं उससे बातें करती थी ‘चेंज’ के लिए “। इतना कहकर कॉलिंग ऐप चुप हो गया । 

“तुम सब ऐप्स ठीक उसी प्रकार आपस में जुड़े हुए हो जैसे आत्मा परमात्मा आपस में जुड़े हैं । व्यक्ति जब सोकर उठता है तब तक न सिर्फ दुनिया बदल चुकी होती है बल्कि उसका मोबाइल भी और हर मोबाइल अपने स्वामी के बारे में उतना कुछ जानता है जितना शायद वह भी अपने स्वयं बारे में नहीं जानता। यह शायद उसकी आत्मा की गतिशील लेकिन स्पष्ट परछाईं है ।” मेडिटेशन ऐप जिसे दीपक के मोबाइल में पधारे हुए कुछ ही सप्ताह हुए थे ,ने अपने धीर गंभीर वाणी में कहा ।

इस गंभीरता को भंग किया व्हाट्सएप ऐप ने ” नेहा को दीपक के मोटरसाइकिल टैक्सी चलाने के बारे में भी नहीं पता है । दीपक उस इलाक़े की सवारी कभी नहीं लेता जिधर नेहा का घर है । सुनीता अच्छी लड़की है। वह दीपक की तरह ही गांव की है और दीपक को पसंद भी करती है पर दीपक उसके मैसेज का कोई जवाब नहीं देता। इंस्टाग्राम ने मुंह बिचकाते कहा “वह तो  इंस्टाग्राम पर है ही नहीं !”

फेसबुक ने धीरे से कहा “हां फेसबुक पर भी उसकी एक ही तस्वीर है, सीधी-सादी सी। उसमें कोई ग्लैमर नहीं।”

कॉलिंग ऐप ने हंसते हुए कहा “हां, जो सोशल मीडिया पर नाना रूप धारण ना करे, उसमें ग्लैमर कहां? वह पढ़ाई में समय देती है, सोशल मीडिया पर नहीं ।”

बैंकिंग एप ने शिकायती लहजे में बाइक टैक्सी एप से कहा ” तुम दीपक की कमाई का बड़ा हिस्‍सा सीधा हड़प लेते हो। दिनभर शहर की गलियों में मारा -मारा फिरे दीपक और तुम एक झटके में उसके अकाउंट का तीस प्रतिशत हिस्सा साफ कर देते हो। तुम्हारा बस चले तो तुम मोटरसाइकिल पर ड्राइवर की जगह रोबोट बैठा दो। हद है !”

मोटरसाइकिल टैक्सी ऐप ने सपाट लहजे में जवाब दिया ” कस्टमर से लेकर रास्ते तक सब हम उसे बताते हैं। हमने उसे रोजगार दिया है। दीपक को हमारा एहसानमंद होना चाहिए। रही बात रोबोट ड्राइवर की तो उसके बारे में तुम्हें गूगल ज्यादा अच्छे से बता पाएगा। जल्दी ही रोबोट ड्राइवर पर भी काम पूरा होने वाला है। “

बैंकिंग ऐप ने व्यंग्य से कहा “हां ,तुम्हारा एहसानमंद होना चाहिए उस भावहीन शुष्क आवाज के लिए जो दिन भर दीपक के कानों में गूंजती रहती है .. 500 मीटर के बाद दाएं मुडें …. 800 मीटर के बाद यू टर्न लें…..। इस आवाज का पीछा करता वह शहर में भटकता फिरता है ।”

मेडिटेशन ऐप ने शांत व गंभीर वाणी में कहा – बैंकिंग ऐप तुम जिस भावहीन  साफ्टवेयर आवाज का जिक्र कर रहे हो उससे मुझे गीता में कृष्‍ण का स्थितप्रज्ञता का उपदेश याद आता है –

दुःखेष्वद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:।

वीतरागभयक्रोध स्थितधीक्षैनिरुच्यते ॥ 

अर्थात दु:खों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्धि कहा जाता है।

कॉलिंग ऐप ने इन सब से बिना प्रभावित हुए मेडिटेशन ऐप से पूछा “और दिन भर फोन पर अलग-अलग लोगों का एक ही सवाल ‘भैया कहां हो ? कितनी देर में आ रहे हो ? ‘और दीपक का सबको एक ही जवाब ‘सर, पास में ही हूं ,पांच मिनट में आ रहा हूं। इससे तुम्हें किसकी याद आती है ? बस दोपहर में ही दीपक को कुछ सुकून के पल मिल पाते हैं जब वह कोचिंग जाता है ।”

तभी ऑनलाइन शॉपिंग ऐप ने पूछा “कॉलर दादा, आजकल कोचिंग वाले मालिक के दीपक के पास खूब फोन आते हैं। क्या चक्कर है ?”

कॉलिंग ऐप ने संकोच से कहा” बैंकिंग ऐप को तो पता ही है दीपक कोचिंग वाले के लिए दलाली का काम करता है। वह अपने गांव और उसके आसपास के क्षेत्र से आए लड़के-लड़कियों का एडमिशन कोचिंग में कराता है और बदले में अपना कमीशन लेता है। आजकल सरकारी भर्तियों का अकाल पड़ा है इसलिए गांव के लड़के-लड़कियां शहर कोचिंग करने कम आ रहे हैं। कोचिंग का धंधा मंदा चल रहा है।  कोचिंग वाला बार-बार फोन कर दीपक को नए मुर्गे (विद्यार्थी ) लाने को कहता है। पर नए मुर्गे हैं कहां जो दीपक उनको फांसे ? “

ऑनलाइन शॉपिंग ऐप ने कुछ सोचते हुए कहा” तभी पिछले तीन महीने से दीपक ने एक भी खरीद का ऑर्डर नहीं किया है।  पांच हजार के जूते पिछले आठ महीने से उसकी विश लिस्ट में पड़े हैं। बेचारे ने इस सूची में कितनी चीजें इकट्ठा कर रखी हैं। घड़ी, टी शर्ट, जींस की पैंट, चश्मा ,बेल्ट …..। मैं भी किस गरीब के मोबाइल में फंस गया । मेरे सारे साथी मेरी हंसी उड़ाते हैं । आदमी की औकात उसकी अतृप्त कामनाओं से भी पता लगती हैं ।”

मेडिटेशन ऐप ने गहरी सांस लेते हुए कहा ” इसे शास्त्रों में तृष्णा कहा गया है।

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते ।

ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ते अध्रुवं नष्टमेव हि ।।

अर्थात् जो व्यक्ति ध्रुव यानी जो सुनिश्चित् है उसकी अनदेखी करके उस वस्तु के पीछे भागता है जो अनिश्चित् हो, तो अनिष्ट होना ही है । निश्चित् को भी वह खो बैठता है और अनिश्चित् का तो पहले से ही कोई भरोसा नहीं रहता। “

कॉलिंग ऐप ने गंभीरता से कहा” तृष्णा कहां? बहुत मामूली और छोटी-छोटी इच्छाएं ही तो थीं दीपक की भाभी की, शादी के समय…। जो मोटरसाइकिल आजकल दीपक टैक्सी में चला रहा है और जिस पर रोजाना अनेकों अनजान लोग बैठते हैं, उसे वह दहेज में लाई थी, एक छोटे से सपने के साथ कि पति के पीछे बैठ वह इस पर दुनिया घूमेगी। एक और छोटा सा सपना था उसका…. शहर जाकर कोचिंग करने का… पढ़ने का। अब भी खेती और पशुओं के काम के बीच जब भी उसे सांस लेने का समय मिलता है वह दीपक द्वारा भेजे गए कोचिंग के नोट्स पढ़ती है और देर तक एक-एक पंक्ति के नीचे पेंसिल से निशान बनाती रहती है। क्यों, तुम्हारे पास इसके लिए भी कोई पंक्ति है क्या ?” कॉलिंग ऐप ने व्यंग्य से मेडिटेशन ऐप से पूछा 

मेडिटेशन ऐप ने धीमें से कहा ” तुलसीदास ने कहा है ।

” कत विधि सृजी नारी जग माहीं ,

   पराधीन सपनेहु सुख नाही । “

ई-मेल ऐप ने गूगल से पूछा “दीपक ने अभी सरकारी नौकरी के लिए जो परीक्षा दी थी उसका परिणाम क्या रहा ?”

गूगल ने बताया “नहीं हुआ। तुम रोज लोन लेने के लिए बैंकों के मेल दीपक के इनबॉक्स में ठेलते रहते हो, जबकि तुम्हें पता है जब दीपक उनसे सच में लोन मांगेगा तो वे दीपक को लोन देने से इंकार कर देंगे, क्योंकि न तो उसके पास कोई सैलरी स्लिप है और ना ही गिरवी रखने के लिए कोई संपत्ति ।”

व्हाट्सएप ने गुस्से में कहा ” दीपक का चयन कैसे होता ? पेपर तो पहले ही लीक हो गया था। व्हाट्सएप पर पेपर पांच-पांच लाख में बिका है।”

दीपक के मोबाइल में जो सबसे ताजा ऐप डाउनलोड हुआ वह है – ज्योतिष और जन्म कुंडली संबंधी ऐप। उससे उन सबने पूछा ” तुम बताओ दीपक की नौकरी कब लगेगी? “

जन्म कुंडली ऐप ने गणना करके बताया” नौकरी के योग तो बन रहे हैं लेकिन अड़चनें हैं।”

सोशल मीडिया ऐप ने कहा ” तुम्हारा भी ठीक है, जन्म कुंडली ऐप भाई। तुम्हारे अनुसार दरवाजे ना तो बंद हैं और ना ही खुले। बेचारा दीपक! हमारी भाषा जितनी आक्रमक तीखी और पैनी है तुम्हारी उतनी ही अस्पष्ट और गुढ़”

गूगल ने डपटते हुए कहा ” उतना भला भी नहीं है दीपक, जितना वह अपने आप को सोशल मीडिया पर दिखलाता है। वह गूगल पर क्या-क्या सर्च करता है और कैसे-कैसे वीडियो देखता है तुम्हें नहीं पता।”

“और तुम उसकी इस बात की थाह लेकर आगे से आगे उसको इस तरह की चीजें परोसते हो । इसी को शायद आग में घी डालना कहते हैं । एंटीवायरस ऐप ने पैनी नजरों से घूरते हुए कहा ।

 ‘यह काम तो हम सब ऐप्स करते हैं , हम सब  बाजार के मामूली से प्यादे भर हैं ।बुरा मत मानना एंटीवायरस ऐप भाई ।पहले वायरस बनाया जाता है । उसका खतरा दिखाया जाता है और उसके बाद फिर तुम्हें बनाया जाता है । हीरो और एंटी हीरो दोनों हम ही तो हैं .. जरूरतों की बूंदों को इच्छाओं की चाशनी की नदी में प्रवाहित करते हुए” गूगल ने जम्हाई लेते हुए कहा ।

इतने में मोबाइल सॉफ्टवेयर अपडेशन का नोटिफिकेशन आ धमका ।

“यार तुम हर पंद्रह दिन में अपडेट होने का संदेश लेकर जाते हो जबकि अपडेशन के बाद न तुम्हारी काया बदलती है और ना ही तासीर ” कॉलिंग ऐप ने गुस्से में कहा ।

“बदलना इतना आसान कहां होता है दादा ? वैसे भी परिवर्तन सतह के नीचे होते हैं , जो बुजुर्ग दृष्टि कहां देख पाती है ? मोबाइल सॉफ्टवेयर ने कॉलर ऐप पर कटाक्ष करते हुए कहा ।

कॉलर ऐप के बाद दूसरा सबसे वरिष्ठ ऐप मैसेजिंग एप था , जिसकी हालत भारतीय डाक विभाग जैसी थी । जिसके पास सुनहरा अतीत था और फटेहाल वर्तमान । उसकी बोरियत दूर करने के लिए एक ही सहारा था वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी । उसकी हर बात इस वाक्य से शुरू होती थी “यह उन दिनों की बात है…” सारे ऐप्स उससे मजा लेने के लिए पूछते थे  “दादा आप के समय में भी क्या ऐसा होता था ?” मैसेजिंग एप को खुश करने का सबसे आसान तरीका था व्हाट्सएप ऐप की बुराई ।वह व्हाट्सएप ऐप से बुरी तरह चिढ़ता था । उसके आने से पहले मैसेजिंग एप का रुतबा ही अलग था । अब वह उस निर्वासित राजकुमार की जिंदगी जी रहा था जिसे हर माह कुछ पेंशन मिलती हो ।

व्हाट्सएप ऐप ने मौज लेते हुए मैसेजिंग एप से कहा  “दादा आप भी कभी अपडेट हो लिया करो ?”

मैसेजिंग एप ने भद्दी सी गाली देते हुए व्हाट्सएप से कहा

“मैं अश्वत्थामा की तरह हमेशा जिंदा रहूंगा चाहे जैसे भी रहूं लेकिन तुम कभी भी इतिहास से किसी छोटे से बिंदु में समा सकते हो बच्चा “

“दादा क्यों अमरता को रोमांटिसाइज कर रहे हो । आज में जीना सीखो “व्हाट्सएप ऐप ने चुहल करते हुए कहा ।

तभी अलार्म ऐप जिसको अपनी वरिष्ठता व इतिहास पर बड़ा गर्व था उसने कर्कश आवाज में कहा ” अच्छा अब तुम सब चुप हो जाओ। दीपक के उठने का समय हो गया है। 

व्हाट्सएप ने धीमे से कहा ” मेरी छोटी सी जिज्ञासा है मैडिटेशन ऐप से – सोना ज्यादा मुश्किल है या जागना ?” 

मेडिटेशन ऐप ने सोचते हुए कहा “नो कमेंट्स”। 

तब तक अलार्म ने आसमान सर पर उठा लिया था।

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8 comments

  1. Concept acha laga! Good job.

  2. नवीनता लिए हुए दिलचस्प कहानी। वर्तमान समय की समस्याओं को शामिल करने से कहानी प्रासांगिक बन पड़ी है।

  3. अभी के दौर का यथार्थ चित्रण 👌👌

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