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‘ये मैं हूँ’ सबकी प्यारी शैंटी

रक्षा गीता दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिन्दी कॉलेज में पढ़ाती हैं,  लिखने-पढ़ने वाली अध्यापिकाओं में हैं। यह उनकी रचना है, जिसको संस्मरण, अनुभव, कहानी कुछ भी कह सकते हैं। आप भी पढ़िए-

हिना ने बड़े चाव से अपने मेहँदी लगे हाथों की फोटो खिंचवाई और संदीप को व्हाट्स अप पर सेंड कर दी, 5 मिनट के अंदर-अंदर संदीप का वीडियो कॉल आ गया,मोबाइल स्टैंड पर था,हिना ने सावधानी से कॉल उठाया और अपनी हथेलियों को कैमरे के सामने कर दिया, उधर से कुछ झुंझलाहट में संदीप ने सीधा प्रश्न दाग़ दिया “हिना यार! खूब ज़ूम कर-कर के देख लिया मगर इसमें मुझे मेरा नाम कहीं नहीं दिखा” हिना जो अपनी तारीफ़ सुनने को तैयार बैठी थी इल्जाम में डूबा प्रश्न उसे स्तब्ध कर गया|कुछ बोलती इसके पहले ही संदीप कुछ नरम पड़ते हुए बोला “अच्छा बाबा! मान ली मैंने हार,बताओ न, मेरा नाम कहाँ लिखवाया जानेमन!” हिना कुछ हैरान होती हुई बोली “हार! कैसी हार, पहले ये तो बताओ, मैं मेहँदी में तुम्हारा नाम क्यों लिखूँवाऊंगी? “क्यों सभी लडकियाँ लिखवाती हैं, छिपाकर!” संदीप कुछ मजाकिया लहजे में बोला “पर मैंने नहीं लिखवाया किसी का नाम!” हिना की इस सपाटबयानी पर संदीप अब सचमुच चौंक पड़ा “ ‘किसी का’ से क्या मतलब है? पति होने वाला हूँ तुम्हारा! ऐसे कैसे ‘किसी’ बना दिया मुझे? यार मेरे ही नाम की मेहँदी लगवाई है न तुमने?” माहौल को हलका बनाने के इरादे से संदीप ने मजाक किया| “मुझे मेहंदी लगाना पसंद नहीं है,पर रिवाज़ के चलते मैंने मेहँदी लगवा ली” संदीप को लगा हिना मज़ाक कर रही है हँसते हुए बोला “कमाल करती हो यार ! सभी लड़कियों को मेहँदी लगाना पसंद होता है,तुम अनोखी ही हो|” “नहीं,मैंने कब कहा मैं अनोखी हूँ,ऐसा कुछ नहीं है संदीप! “अरे,अरे! मेरी जान इसमें उदास होने की क्या बात है” हिना को रुंआसा होते देख संदीप ने बात सँभाली, “भूल गई,तो भूल गई! क्या फर्क पड़ता है जाने दो न! “नहीं संदीप, मैं भूली नहीं,बल्कि मेहँदी वाले ने मुझसे पूछा था कि सर का क्या नाम है स्पेलिंग यहाँ लिख दो पर मैंने मना कर दिया” और हिना फूट-फूटकर रोने लगी| “अरे मैं तुम्हें कुछ थोड़े ही कह रहा हूँ, हालांकि अपनी झुंझलाहट को उसने बड़ी मुश्किल से दबाया था| अच्छा सुनो रोओं मत,आँखे काली हो जाएगी,चलो अब सो जाओ इसके बारे में ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं और संदीप ने स्क्रीन को चूम लिया, इसके पहले हिना फोन काट चुकी थी|

बिस्तर पर गिरते हुए हिना को आज फिर लगा कि हाथ धो ही डालूँ लेकिन फिर रिवाजों की रूढ़ियों ने फिर कदम आगे न बढ़ने दिए| रह-रहकर शैंटी मानो पूछ रहा था ‘किसी का नाम लिखूं यहाँ,किसी को भी पता न चलेगा” वो उठी और उसने संदीप को नार्मल कॉल लगाईं ‘अब कैसी हैं हमारी बन्नो’ हेल्लो न बोलकर संदीप ने बहुत ही प्यार जताते हुए कहा | ‘ठीक हूँ सो तो नहीं गये थे’ जानते हुए भी हिना ने प्रश्न किया ‘नहीं तुम्हारे फोन का इंतज़ार कर रहा था…जानता हूँ आज सारी रात जगाने वाली हो” ‘कैसे तो जान लेते हो मेरे मन की बात संदीप अब संदीप रोमांटिक होते हुए बोला ‘अरे,प्यार करता हूँ तुमसे जनाब ! एक साल, छह महीने और कोई आठ-सात दिन बहुत होतें हैं किसी को जानने समझने के लिए”  “तो एक माँ-बाप अपने बच्चे के भावनाओं को क्यों नहीं समझ पाते संदीप”  “अच्छा जी, तो कुछ ख़ास ही है जो मुझे बताना है ,है न!” “हाँ! जानते हो संदीप,स्मृतियों का सबसे बेहतरीन ज़जीरा किशोरावस्था में बनता है और जिंदगी भर वो आपके चारों ओर तैरता रहता है…” हिना बात पूरी भी न कर पाई थी कि संदीप ने बीच में ही उसे टोका “तो हमारी ये ‘किशोरी’ किस जजीरे में तैर रही है हम भी तो जाने, कोई ‘बचपन का प्यार’ अठखेलियाँ खेलने आ गया? आगे वो ये भी कहना चाहता था कि तभी मेरा नाम नहीं लिखा पर उसे फिर किसी और मौके के लिए शायद छोड़ दिया | हिना ने उसकी बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया “संदीप याद तो आया है लेकिन प्यार! …हमें मौका ही कहाँ मिला, पढ़ाई-लिखाई के माहौल में प्यार-व्यार करने का!” हिना हँसना चाह रही थी पर गंभीर-सी होती हुई बोली “इस उम्र की जिज्ञासाएं, कौतुहल और रहस्यों को थामकर, उनके भीतर घुसने की जिद और विद्रोह स्वभाव का स्थायीभाव हो जाता है, और आयु बढ़ने के साथ नामालूम कब मन के अंतस्तल में डेरा जमा लेता है| ये स्मृतियां किसी पुख्ता दीवार-सी अडिग रहती हैं, मन- मस्तिष्क जब-तब उनसे टक्कर लेने लगता हैं, जानते हुए भी कि इसमें आगे बढ़ने का कोई दरवाज़ा नहीं,हम दीवार से सिर धुनतें रहतें हैं।संदीप मौन रहा, हिना के ही बोलने का इंतज़ार करने लगा |

शैंटी…दोनों ओर से एक गहरी साँस की आवाज़ आई, हिना ने दोबारा कहना शुरू किया “शैंटी, संदीप बड़े ताऊजी का सबसे छोटा लड़का” पर शैंटी? तुम्हारें बड़े ताऊजी के तो तीन ही लड़के है न ? “चार थे” ‘थे! मतलब’?संदीप ने छेड़ा, हिना ने मानो न सुना बोलती गई “संदीप शैंटी की बड़ी पनीली आंखें जाने क्यों जब-तक भर आती थी, ये समझने की उस समय मेरी आयु भी नहीं थी। मेहंदी लगाते हुए उसका झुका हुआ चेहरा ऊपर की तरफ उठता और वह झटके से अपने बालों को पीछे करता, तब मुझे उसके चेहरे में सिर्फ आँखे ही क्यों नजर आती, जो बहुत कुछ बोलती सी-लगती,मगर क्या नहीं मालूम”। अभी वो कहाँ है? उत्तर शायद संदीप जान चुका था, फिर भी प्रश्न किया उसने, हिना किसी और ही दुनिया की हो गई थी अब वो रुकना नहीं चाहती थी, बिना उत्तर दिए आगे बढ़ी “वैसे बोलता बहुत था वह, चटर-पटर, लड़कियों की तरह, उफ़! मैंने क्या कह दिया,लड़कियों की तरह! पर यही उसके ‘व्यक्तित्व’ की सामाजिक सच्चाई बन गई थी कब कैसे …? जानते हो मेरे पापा को हमारे हाथों में मेहंदी लगाना पसंद नहीं था, उन्हें हम दोनों बहनों का सजना-संवरना भी पसंद नहीं था, वे चाहते थे कि हमारा ध्यान पढ़ाई की तरफ रहे, अक्सर मम्मी से भी लड़ जाया करते| कहते कि ‘जिंदगी भर इन्हें काम ही तो करना है सुषमा! गहनों का बोझ,घर गृहस्थी का बोझ,जाने कैसे-कैसे बोझ संभालने हैं,अभी हाथ  किताब थाम लेंगे तो बाकी बोझ खुद-ब-खुद हलके हो जायेंगे पर…|  ओह,तो इसलिए तुम्हें मेहँदी लगाना पसंद न था ! “नहीं संदीप बहुत पसंद था,फिर हमारी सामाजिक बुनावट में गढ़ा मेरा लड़कीपना! भला मैं भी कैसे इस शौक से अछूती रहती?  कोई भी तीज त्यौहार आता है भागे-दौड़े तीसरी गली में चाचाजी के घर पहुंच जाते, जहां मेहंदी का कार्यक्रम होता और शैंटी सबके बीच फ्री में अपनी कलाकारी दिखाकर अपना शौक पूरा करता सब कहते “ हाथ देखो इसका, कैसे तेज चलता है, हलवाई भी इतनी तेजी से जलेबी नहीं बनाता’  क्यों रे शैंटी, तेरा कंधा नहीं थकता! और इतने प्यारे-प्यारे डिजाइन कहाँ से सोच लेता है! तब तक गूगल बाबा का आविष्कार नहीं हुआ था न संदीप | तब सिर उठाकर अपने बाल झटके से पीछे कंधे उचकता हुए बोलता  ‘न चाची, आपको तो पता है मुझे मेहंदी कितनी पसंद है…’जानते हो संदीप, ताईजी उसे बचपन में लड़कियों की तरह सजा कर रखती थीं, मेहँदी भी लगाती थी पर… शैंटी आगे बोला ‘अब देखो न, माँ पापा दोनों को पसंद नहीं कि मैं मेहंदी लगाऊं,अगर लगाई तो पापा कूट-पीस के रख देंगे… और जो लाल रंग हथेलियों पर रचता है न, मेरे पूरे बदन पर रच जाएगा, इसलिए तो आप लोगों के हाथों में जब मेहंदी लगाता हूँ तो बड़ा अच्छा-सा लगता है’  एक आह के साथ बोला था वो,गीली मेहँदी के हरे रंग और उसकी खुशबू से वो बावला-सा हो जाता “ फिर उसकी चमकदार आँखे पनीली हो गई चाची ने कहा ‘हाँ जेठजी तो जानवरों की तरह पीटते है’ “इस पर चाचा का नाम लिख दूँ”?  शैंटी ने बात बदलते हुए कहा, नहीं रे! चाची लजा गई’ जब मैंने सुना कि मेंहदी लगाने पर ताऊजी उसे मारते है तो  पहले तो दया आई, फिर लगा कि ठीक ही तो है, लड़के मेहंदी थोड़ी न लगाते हैं! हां, एक बार शादी में जरूर लगाते हैं, जब मौसी जी की शादी हुई थी तब मौसा जी के हाथों में मेहंदी देखी थी मैंने। “ऐसा कुछ नहीं है हन्नू, मैंने कहाँ लगाईं मेहँदी? ये तो अपनी-अपनी चॉइस का मामला है” संदीप ने स्पष्टीकरण दिया| “हूँ… ठीक कहते हो ‘चॉइस का मामला’ आज ये कहना कितना आसान है न! देखो न,जबकि हम दोनों बहनों को मेहँदी लगाना कितना पसंद था पर तब हमारे पापा मेहंदी नहीं लगाने देते थे, हाँ, उसका कारण अलग है, ताऊ जी भी शैंटी को मेहँदी नहीं लगाने देते, इसका भी कुछ कारण अलग ही था|और एक खामोशी की एक गहरी खाई|

कुछ बातें काल के गह्वर में ऐसे समा जाती हैं,संभावनाएं कितने ही हाथ पैर मार लें आप शून्य में भटकते रह जाते हैं और बातों के कारण, वे तो गढ़े जाते हैं| ‘कारण’ ! समाज में कुछ भी करने या न करने के ‘कारण’ निर्धारित कर दिए गयें हैं और उन कारणों के भँवरों में हम धँसते चले जाते हैं, जो इनके आदी हो जाते हैंवे इनपर सवार हो झूला –सा झूलते हैं, वे इन्हें अनिवार्य समझते हैं,पर ज्यादातर डर के मारे, कारणों को फॉलो करने लगते हैं, भँवर का चक्र जिस दिशा में घूमने लग जाता है, उसी दिशा में घूमने लगते हैं, पर कारणों के भी खाँचे क्यों बना दिए गये लड़का लड़की के नियम,कारण अलग-अलग क्यों हैं, किशोर-बालक समझ ही नहीं पाते| “संदीप मैं हर बार सोचती कि इस बार तो मेहंदी लगवा ही लूँगी लेकिन फिर नहीं लगवाती ये सोच कर कि एक बार मेहंदी लग जाती है तो 15-20 दिन से पहले तो क्या ही छूटेगी, कितना छिपा लूंगी अपने हाथों को पापा से। पर चाचा की लड़की सुनीता दी शादी में, मम्मी ने पापा को मना लिया था,वो हमारे ‘लड़कीपने’ को बचाए जो रखना चाहती थी| ख़ुशी के मारे मन हिरनी-सा उछल रहा था और ख़ुशी का वह किशोरी-सा भाव 32 साल की हिना के चेहरे पर साफ़ झलक रहा था| मेहँदी की रस्म पर शैंटी भागा-दौड़ा आ धमका और तब मेहँदी वाले भैया से कोई मेहँदी न लगवाना चाहता था| मैंने उसे कहा- शैंटी आज पहली बार मेहँदी लगवाऊँगी, तू ही लगाना? उसने कहा बैठ जा, तेरा तीसरा नम्बर है, शिप्रा के बाद लगवा लियो,पर इधर उधर मत हो जाना|मैं इत्मीनान से उसे देख रही थी,कभी गुनगुनाते हुए, गप्पे लगाते हुए उसे सुनती रही और हैरान होती कि वो साड़ियों के डिज़ाइन से कैसे पता लगा लेता है कि साड़ी किस राज्यविशेष की है उसका नाम क्या है,मैं तो आज भी नहीं जान पाती हूँ “कौन सा डिज़ाईन लगाएगा?” मेरा नम्बर आने पर मैंने पूछा ? मेरे हाथ पकड़कर पहले तो वो खूब हँसा,“क्या हुआ? अरे, तेरे हाथ कितने छोट-छोटे हैं! क्या ही तो बनाऊं इसमें  मैं? तो फिर मैं अभी छोटी ही हूँ, तो हाथ भी छोटे ही होंगे न? मुझसे कोई डेढ़ ही वर्ष बड़ा था| कुछ रूआंसी होकर मैं बोली थी|  ‘तू भी तो दसवीं में हैं न? तब कहाँ छोटी हुई?मैं भी दसवीं में हूँ, देख मेरे हाथ कितने बड़े हैं, उसने मिलान करने के लिए मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया|सच कहूँ संदीप, उसके हाथ बहुत सुन्दर थे, कोमल लड़कियों जैसे चिकने ! फिर भी मैं बोली “ पर तू तो लड़का है न ? तेरे हाथ तो मुझसे बड़े ही होंगे न? लड़का! ‘हाँ’… लड़का! उसकी ‘हाँ’ में छिपी कशमकश को मैं तब न पहचान पाई थी,शायद उस समय भी वो उस दिन को याद कर रहा था जिसके किस्से वो अक्सर मेहँदी लगाते हुए सुनाया करता था, भली भान्ति ये भाँपकर कि आसपास ताईजी-ताऊजी या कोइ-सा भाई तो नहीं,और वह फोटो, जिसने उसे कभी कुछ भूलने ही नहीं दिया”|

ताईजी यानी शैंटी की माँ के तीन लड़के हुए लेकिन वो चाह रही थी कि अबकी दफे लड़की हो लेकिन शायद ये उनके कौशल्या नाम की महिमा थी अथवा जो भी कहो शैंटी हो गया| खुश  तो सभी थे कि रामायण का शत्रुघ्न आ गया लेकिन माँ का शौक अधूरा ही रहा क्योंकि अब किसी भी बालक को जन्मने की सम्भावना पर  डॉक्टरों ने विराम चिह्न लगा दिया था|  माँ ने  उसका नाम संतोष रखकर संतोष कर लिया, संतोष की शक्लो-सूरत बिलकुल माँ पर थी, उसके हाथ लम्बे और कलात्मक थे, बाल काले घने, रंग भी ऐसा गोरा कि देखकर हाय! निकले ही निकले ! एक बार मायके में  कौशल्या को जाने क्या सूझी अपनी बहिन की लड़की के कपड़े संतोष को पहनाकर माथे के बीचों-बीच छोटी-सी लाल बिंदी भी लगा दी और उसकी स्टूडियो में फोटो खिंचा लाई, सभी उस चार-पाँच साल के बच्चे को प्यार और दुलार दे रहे थे, नानी नजर उतार रही थी उसके बड़े मामा ने तो कह ही दिया अरे, मेरी छोटी बहन आ गई, और सभी उस पर प्यार लूटाने लगे,संतोष के लिए ये प्यार नया नहीं था पर आज का-सा दुलार पहले कभी नही मिला था, और जब उसके बड़े भाई राजू ने जो संतोष के लिए ईर्ष्यालु और असुरक्षित था उसने भी  कह दिया ‘अरे,मेरी प्यारी बहनियां, मम्मी हम इसे हमेशा लड़की जैसे क्यों नहीं रख सकते, आज से इसे हम शैंटी कहेंगे हैं न अच्छा नाम ? सभी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे, “वह नन्हा बालक या और भी कोई कहाँ जानता रहा होगा कि शौक-शौक में और हँसी मज़ाक में रखा गया ये नाम संतोष के ‘व्यक्तित्व’  शैंटी के रूप में मज़ाक बना कर रह जाने वाला है” यह कहते हुए हिना बस रोई नहीं थी पर रोने कीसी कोई कसर भी बाकी न थी| “तुम्हारी ताईजी को ऐसा नहीं करना चाहिए था”,संदीप ने अपनी बात रखते हुए पूछा, ‘फिर, फिर क्या हुआ हिना? संदीप का भी मन बहुत विचलित-सा हो रहा था| “ हाँ,लड़का हूँ,कहने के बाद वो मेरे हाथों में, गुम-सा चुपचुप मेहँदी लगाने लगा,फिर अचानक ही गीत गाने लगा ‘फिर नींद कहाँ आती है…जब लग जाती है…महबूब की मेहँदी  हाथों में’ सभी उसके गीत का आनंद ले रहे थे पर मुझे! पर संदीप,जाने क्यों मेरा मन बैठा-सा जा रहा था,उसकी आवाज़ में खनक थी, पर दर्द भी था जब उसने कहा ‘भूल न जाना…सखी हमको भूल न जाना’  फिर अचानक शरारत से बोला-‘किसी का नाम लिखूं यहाँ, किसी को भी पता न चलेगा”  सभी खिलखिला उठे और मैं ! सच कहती हूँ संदीप,कोई भी नाम या चेहरा ज़हन में नहीं था, फिर भी शर्म से पूरा बदन काँप-सा उठा और हाथ झटक दिया मैंने ‘अरे!! देख मेहँदी खराब हो जाएगी!  सबकी  हँसी बहुत बुरी लगी उस वक्त, जबकि वो तो सभी से ये सवाल करता था पर जाने क्यों…क्यों चिढ़ के मैंने गुस्से में कह दिया, ‘अच्छा है ताऊजी तुझे पीटते हैं! बेकार ही तेरे से मेहँदी लगवाई,हालांकि बाद में मन दुखी हुआ लगा, कह दूं! भाई तेरी तरह मुझे भी मेहँदी अच्छी लगती है, तो किसी के नाम पर भला मेहँदी क्यों लगवाऊं ? एकबार को ये भी मन किया कि हाथ धो डालूँ  लेकिन जानती थी कि फीका-सा रंग हथेलियों को और भी खराब कर देगा| तभी बिना मेरी बात का बुरा माने, वो बोला ‘क्यों री! देख न तेरे छोटे-छोटे हाथों पर भी कितने सुन्दर फूल उकेरे है मैंने? मैं हँस दी और उसे थैंक्स कहा और वो दूसरे हाथों में व्यस्त हो गया| ओह… पता है हन्नू, क्या मन कर रहा है, कल मैं भी मेहँदी लगवा ही लूं और उसपर तुम्हारा नाम लिखवाऊँगा, सच! माँ भी खुश हो जाएगी’ इस सन्दर्भ में हिना का कुछ भी कहने को मन न हुआ|

हम दोनों एक ही स्कूल में थे मगर मैं सुबह लड़कियों की पाली में वो दोपहर वाली पाली में, मैं जानती थी कि वो दूसरी बार दसवीं के पेपर देगा और इस बार भी पास होने की गुंजायश नहीं थी| दो दिन बाद गणित का आख़िरी पेपर बचा था बहुत टेंशन में बैठी पढ़ रही थी कि चाचा जी का बड़ा लड़का आया और मम्मी से बोला ताई जी बड़े ताऊजी का शैंटी और रोने लगा माँ ने कहा, क्या हुआ! पता नहीं क्या हुआ था,लेकिन उसने पंखे से…आत्महत्या कर ली,मम्मी ने कहा है कि साथ चलेंगे आप घर आ जाओ! इस अप्रत्याशित खबर ने मुझे विचलित कर दिया,मम्मी मैं भी चलूँ? पागल है क्या बैठ यहीं! मम्मी चली गई तो मेरा मन उचट चुका था,एक साथ कई प्रश्न हथौड़े से प्रहार कर रहे थे ‘मैंने तो उसे नोट्स दे दिए थे, उसने मेहँदी लगाते हुए कहा था अपने नोट्स दे दियो, मैं फोटो कॉपी करवा लूँगा इस बार भी फेल हो गया तो पापा मुझे जान से मार डालेंगे! तो क्या ताऊजी की मार का डर…पर अभी तो एक रिजल्ट भी नहीं आया था| उसका पढ़ाई में मन क्यों न लगता था, उसने मुझे खुद बताया कि वो तो महीने में चार-पांच बार ही स्कूल जाया करता था, अपनी साईकल पर इधर-उधर घूमता रहता है,पार्क में बैठता तो वहाँ भी स्कूल ड्रेस देख,लोग सवाल करते इसलिए दूसरे मुहल्ले के चक्कर काटता रहता जब नोट्स देने उसके घर गई तो गली में खड़े होते हुए उसने ये सब बताया था|यह पूछने पर ‘क्यों पढ़ने में मन नहीं लगता’ उसकी आँखे सच में भीग गई, अच्छा रो मत,इन नोट्स को ठीक से पढ़ लेना!” तेरा नाम हिना है न, यानी मेहँदी! तुझ पर विश्वास  करने को जी करता है, मेहँदी किसी के साथ भेदभाव कहा करती है, सबको एक रंग से रचती है, डिज़ाइन भले ही कुछ हो, तुझे बाद में बताऊंगा कभी उसने गला साफ़ करते हुए कहा था’ पर फिर …क्या हुआ होगा ? ताऊजी उसे क्यों इतना मारा करते थे? अपने किसी भी लड़के पर उन्होंने हाथ नहीं उठाया था ऐसा मम्मी बताया करती, फिर ये ऐसा क्या गुनाह किया करता कि …फिर मैंने वो तस्वीर निकाली जो मेरी कॉपी में थी जिसमें उसने फ्राक पहनी हुई थी, एक बिंदी भी थी उसके चेहरे पर,फोटो वाले ने उसके गालों पर लाली भी लगा दी थी, उसकी मासूम हँसी मेरा कलेजा चीर रही थी फिर ध्यान उस वाक्य पर गया जो ऊपर लिखा था ‘ये मैं हूँ’ सबकीप्यारी शैंटी’ अब लगता है उसने वो फोटो मेरी कॉपी में जानबूझकर रखी थी, समझ आ रहा था कि उसने क्यों कहा था ‘कितना अच्छा होता न, मैं तेरे साथ सुबह की शिफ्ट में पढ़ता होता| हम दोनों हंसने लगे थे|

कोई 10-12 दिन बाद पापा-मम्मी की बातों से जो कुछ पता चला मेरे लिए उसपर कुछ भी कह पाना सोच पाना तब आसान न था| वो पेपर देने के लिए मना कर रहा था और भाई साहब को जिद थी कि चाहे फेल हो, पेपर देने तो जाना पड़ेगा, गालियों के साथ उसे मारे चले जा रहे थे ‘स्साले बहाने बनाता है, न पढ़ने के! अरे हमारे साथ भी ये सब हुआ, बड़े लड़के तंग करते थे पर हम कभी घर न बैठे,सबके साथ होता है ? कोषालय से न रहा गया उन्होंने ढीठ सी होकर पूछा ‘आपने भी कभी अपने से छोटे लड़कों को तंग किया था क्या स्कूल के बाथरूम में जाकर..   कौशल्या!!! ताऊजी जोर से चिल्लाये और शैंटी को एक लात मारते हुए बोले ‘कौशल्या तू इसे समझा दे नहीं तो मेरे हाथों ये बचेगा नहीं’! और घर से बाहर निकल गये | शैंटी माँ के पैरों में पड़ा था,वही बात फिर दोहराने लगा जो अब से पहले माँ और पापा से कई बार कह चुका था  मम्मी आपको तो पता है न,राजू था तो लड़के छेड़ते तो थे लेकिन राजू के कॉलेज में जाने के बाद… शैंटी बिल्कुल अकेला पड़ गया, राजू ने भी बताया था हाँ,मम्मी मैंने एक बार देखा था बाथरूम में पर मुझे देख सब भाग गए, माँ ने रोते-रोते जब अपने पति को बताया तो उन्होंने कहा ये सब नार्मल है, वो मानने को तैयार नहीं थे कि उनका फूल-सा बच्चा कैसा कुम्हलाता जा रहा है| माँ वहीँ  बैठ गई, उसने शैंटी को अपने सीने से जोर से भींच लिया, मानो उसे वापस अपनी देह-गुफा में छिपा लेना चाहती हो| क्या करूँ मेरे बच्चे, तेरे पापा कुछ समझना ही नहीं चाहते,…पर माँ, आप तो मुझे समझती हो न’? उसकी हिचकियाँ रुक नहीं रही थी, माँ की आँखों में कोई उत्तर न पढ़कर शैंटी बोला ‘माँ तुमने मेरा एडमिशन लडकियों की शिफ्ट में क्यों नहीं करवाया? बार-बार के इस  सवाल से कौशल्या फिर चिढ़ और उसे खुद से दूर करते हुए,संयम बरतते हुए बोली, ‘मेरा बच्चा! फिर उस दिन को कोसने लगी जब उसने लड़की की चाहना की, थी,और संतोष को लड़की की तरह सजा कर अपने शौक पूरे किया करती थी| ‘अभी तू जा पेपर की तैयारी कर, कल देखते हैं क्या करना है! माँ शून्य में घूरती जा रही थी,जानती थी कि शैंटी के पापा को कभी भी समझ नहीं आएगा, वो खुद भी तो नहीं समझ पा रही थी कि आगे क्या और कैसे होगा! बुझे मन से रसोई में घुस गई, डिनर बनाना ज्यादा ज़रूरी था,आधे घंटे बाद उसने रसोई से ही पूछा शैंटी कितनी रोटी बनाऊँ, तेरी पसन्द की सब्जी बनी है, पर अब उसकी पसंद नापसंद के कोई मायने नहीं बचे थे,उसने किसी भी इम्तिहान को देने से छुटकारा पा लिया था| हिना न चाहते हुए भी रोने लगी फिर चौंककर बोली ‘अरे 5 बज रहें हैं, चलो घंटा भर सही,अब सोतें है ताकि नई ताज़ी सुबह में ताज़ा होकर जागे| और हाँ संदीप , संदीप यदि तुम्हे मेहँदी पसंद नहीं तो मत लगवाना अपने हाथों में मेहँदी! आखिर ये चॉइस का मामला है, सिर्फ किसी को खुश करने के लिए कभी अपने मन को मत मरना …

रक्षा गीता

सहायक आचार्य हिंदी विभाग

कालिंदी महाविद्यालय

9311192384

 
      

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