काला पहाड़, बाबल तेरा देस में, रेत, नरक मसीहा, हलाला, सुर बंजारन, वंचना, शकुंतिका और अब ख़ानज़ादा। पिछले कुछ वर्षों से अपने उपन्यास लेखन की निरंतरता और विषयों की विविधता के लिए चर्चित कथाकार भगवानदास मोरवाल ने हिंदी में अपनी एक अलग छवि और पहचान बनाई है। इनके बारे में यह मशहूर है कि ये आमतौर पर अपने उपन्यासों के लिए ऐसे विषयों को चुनते हैं, जो चुनौतीपूर्ण तो होते ही हैं बल्कि जिन पर हिंदी के लेखकों की प्राय: नज़र नहीं जाती है। कहना चाहिए कि मेवात इनके लेखकीय और नागरिक सरोकारों का केंद्र रहा है। इसलिए मेवात की संस्कृति, इतिहास और उसके समाजार्थिक पक्षों पर इन्होंने बार-बार निग़ाह डाली है।
हाल में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इनके नए उपन्यास ख़ानज़ादा को इसकी अगली कड़ी के रूप में देख सकते हैं है । यह उपन्यास भारत में तुग़लक़, सादात, लोदी और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना और इसके बाद इनके द्वारा मेवातियों पर किए गए बर्बर अत्याचारों; और मेवात में मचाई गई तबाही का सृजनात्मक दस्तावेज़ है। एक ऐसा दारुण दस्तावेज़ जिसमें मेवातियों के रक्त में सनी तेगों से टकराती इनकी शौर्य-गाथाओं की टंकार सुनाई देंगी। इतिहास, कल्पना और अपने पिछले उपन्यासों की तरह क़िस्सागोई में पगा यह उपन्यास भारतीय मध्यकालीन इतिहास में मेवातियों की भूमिका, बाहरी आतताइयों के साथ हुए उनके युद्धों और हिंदू अस्मिता के उस दौर में मुस्लिम आक्रान्ताओं से क्या रिश्ता बनता था, उनके बहुत सारे सूत्र और संकेत इस उपन्यास में मिलते हैं।
प्रस्तुत है भगवानदास मोरवाल के इसी उपन्यास का एक लंबा अंश। उपन्यास सोमवार से पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगा-
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पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी उर्फ़ चिराग़-ए-देहलवी
फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के हुक्म का पालन करते हुए पूरे मेवात में फ़रमान जारी कर दिया गया l जैसे ही पूरे मेवात में इश्तिहार के साथ मुनादी कारवाई गई, उसकी चारों तरफ़ चर्चा होने लगी l शौपरपाल और समरपाल के एक कारिंदे की नज़र जैसे ही इश्तिहार बाँटने और मुनादी करने वाले फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के अहलकारों पर पड़ी, उसने उनसे एक इश्तिहार ले लिया l इश्तिहार लेने के बाद कारिंदे ने घोड़े को एड़ लगाई और सीधा शौपरपाल व समरपाल के पास पहुँच गया l
“झुमरू, मियाँ ऐसी क्या आफ़त आ गई जो इस तरह हाँफ़ रहे हो…औ…और, हाथ में यह क्या है ?” छोटे भाई समरपाल ने मुस्कराते हुए अपने कारिंदे के हाथ की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा l
सचमुच हाँफ़ता हुआ कारिंदा अपने घोड़े से उतरा और अदब के साथ झुकते हुए बोला,”हुज़ूर, देखिए देहली दरबार से यह क्या शाही फ़रमान आया है ?”
“शाही फ़रमान ! तुझे यह किसने दिया ?” समरपाल ने हैरानी के साथ पूछा l
“शाही अहलकार बाँट रहे थे हुज़ूर l उन्हीं से लाया हूँ l”
“क्या लिखा है इसमें ?”
“इसमें लिखा हुआ है कि जनता से लूटपाट और उन पर ज़ुल्म करने वाले अगर बादशाह के दरबार में पेश होकर उसकी ग़ुलामी क़बूल कर लें, तो सरकार उनकी रोज़ी-रोटी और रोज़गार का इंतज़ाम करेगी l इतना ही नहीं आगे लिखा हुआ है कि सरकार उनके सारे गुनाहों को भी मुआफ़ कर देगी l”
इससे पहले कि समरपाल आगे कुछ कहता, उसका बड़ा भाई शौपरपाल भी आ गया l
“क्या हुआ झुमरू, तू इतना बदहवास-सा क्यों है ?” शौपरपाल ने अपने छोटे भाई समरपाल के सामने खड़े अपने कारिंदे से पूछा l
“बदहवास ना हो तो क्या करे l देख, देहली दरबार का यह फ़रमान !” समरपाल ने कारिंदे के जवाब देने से पहले बताया l
“ऐसे फ़रमान और हुक्म हमें रोज़ाना मिलते हैं l कौन परवाह करता है देहली दरबार के इन फ़रमानों की l इन मेवातियों ने आज तक किसी बादशाह या देहली का हुक्म या फ़रमान माना है, जो अब मान लेंगे ?” शौपरपाल ने लापरवाही के साथ अपने छोटे भाई से कहा l
“फिर भी इस पर ध्यान देने में क्या बुराई है ?” इस बार समरपाल अपने बड़े भाई को सलाह देते हुए बोला l
“ठीक है, क्या लिखा है इसमें ?” शौपरपाल ने एक तरह से अपने छोटे भाई की बात मानते हुए पूछा l
“झुमरू, तू ही बता इसमें क्या लिखा है !” समरपाल ने अपने कारिंदे को आदेश देते हुए कहा l
कारिंदे ने एक बार फिर हाथ से लिखे इश्तिहार की सारी बातें पढ़ कर सुना दी l सुन कर पहले तो शौपरपाल चुप रहा, फिर कुछ सोचते हुए बोला,” रोज़ी-रोटी और रोज़गार का इंतज़ाम तक तो बात ठीक है, मगर हम उसकी ग़ुलामी क़बूल कर लें, यह हरगिज़ नहीं होगा l”
“दरबार सारे गुनाहों को मुआफ़ करने की बात भी तो कह रहा है ?”
“समरपाल, वह हमारे गुनाहों को मुआफ़ करने के बदले में, हमें ग़ुलाम बना कर हमसे अपनी क़ीमत वसूलना चाहता है l”
“भाई, एक बार अच्छी तरह सोच ले l“ समरपाल ने एक तरह से बात अपने बड़े भाई पर छोड़ दी l
“ठीक है l मगर कोई भी फ़ैसला लेने से पहले अच्छा होगा कि इस बारे में एक बार हम चिराग़-ए-देहली मेरा मतलब है पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब से भी मशविरा कर लें l जब हम उन्हें इतना मानते हैं और वे हमारा इतना ख़याल रखते हैं, तो एक बार हमें उनसे ज़रूर मशविरा करना चाहिए l” अपने छोटे भाई समरपाल से एक हद तक सहमत होते हुए शौपरपाल बोला l
“यह ठीक रहेगा l वैसे भी सुना है कि बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ पीर साहब चिराग़-ए-देहली की बहुत इज़्ज़त करते हैं l उनको बहुत मानते हैं l वे जैसा मशविरा देंगे, उस पर अमल करना मुनासिब होगा l”
अंततः भाई दोनों सहमत होते हुए मेवात से पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी से मिलने देहली के लिए रवाना हो गए l
मेवात से शुरू हुए देहली के बीच लगभग पचास-पचपन मील लंबे रास्ते में दोनों भाइयों के बीच पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी यानि चिराग़-ए-देहली को लेकर बातें होती रहीं l
“भाई, देहली दरबार अपने पीर साहब की इतनी इज़्ज़त क्यों करता है l जबकि देहली के आसपास और भी तो सूफ़ी हैं ?” छोटे भाई समरपाल ने अपने बड़े भाई से जिज्ञासावश पूछा l
“ऐसा कहा जाता है कि अपनी बादशाहत के आख़िरी दिनों में जब सुल्तान महमूद शाह तुग़लक़ थट्टा गया, तब उसने देहली के कई सूफ़ियों को ज़बरन अपने साथ थट्टा चलने का हुक्म दिया l इन सूफ़ियों में एक हमारे पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब भी थे l कहते हैं कि देहली से थट्टा के बीच का सफ़र तक़रीबन दो हज़ार मील का है l”
“दो हज़ाsssर मील ! यानि अपने पीर साहब को सुल्तान के साथ घोड़े पर इतना लंबा सफ़र करना पड़ा ?” समरपाल ने हैरानी के साथ पूछा l
“हाँ l मगर थट्टा पहुँचने से पहले तक़रीबन दस मील पहले सिंध दरिया के किनारे सुल्तान महमूद शाह तुग़लक़ की अचानक मौत हो गई l इस तरह बिना किसी हारी-बीमारी के सुल्तान की मौत के बाद फ़ौज का हौसला टूटने लगा l ऐसे में जब एक तरफ़ से सिंधियों का और दूसरी तरफ़ से मंगोलों का हमला हो रहा हो, तो फ़ौज का हौसला टूटना ही था l इसी बीच हमारे पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब ने आगे बढ़ कर फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ को बादशाह बनाने की पेशकश रखी l पीर साहब की पेशकश को उसी वक़्त मान लिया गया l इधर फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ को सुल्तान बनाने का ऐलान किया गया, उधर फ़ौज में जैसे फिर से जान आ गई l थट्टा की जंग जीतने के बाद पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब देहली आ गए और उन्होंने फिर से देहली में ख़ानक़ाह में फ़न-ए-शेख़ी की गद्दी सँभाल ली l उनके जमाअत ख़ाने में हर धर्म और समुदायों के लोगों की भीड़ लगी रहती है l हो सकता है हम जब पीर साहब के ख़ानक़ाह पर पहुँचे, तब भी हमें कुछ अक़ीदतमंद मिल जाएँ l”
“और भाई पीर साहब को चिराग़-ए-देहली क्यों कहा जाता है ?” समरपाल ने उत्सुकतावश पूछा l
“इसको लेकर कई तरह के क़िस्से हैं l इनमें सबसे मशहूर क़िस्सा सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लक़ और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के बीच हुए एक मन-मुटाव का है l हुआ यह कि हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने चबूतरा-ए-याराँ के पास एक बावली बनवाने का हुक्म दिया l जब सुल्तान को इसकी ख़बर लगी कि उसकी इजाज़त और मदद के बिना एक फ़क़ीर बावली बनवा रहा है, तब उसे बहुत बुरा लगा और उसने मज़दूरों को काम करने से रोक दिया l मगर लोगों में हज़रत जी के प्रति इतनी श्रद्धा थी कि उन्होंने दिन में तो बावली का काम रोक दिया, पर रात को फिर शुरू करवा दिया l इधर सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लक़ को जैसे ही यह पता चला कि उसके हुक्म की ना-फ़रमानी हो रही है, और चिराग़ों की रोशनी में रात में काम हो रहा है, तब ग़ुस्साए सुल्तान ने शहर में तेल की बिक्री पर रोक लगवा दी l जैसे ही तेल की बिक्री बंद हुई, काम एक बार फिर रुक गया l क्योंकि अँधेरे में तो काम होने से रहा l”
“इसका मतलब हुआ कि बावली नहीं बनी ?”
“इससे आगे का क़िस्सा तो सुन l जब काम रुक गया तो हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने अपने ख़लीफ़ाओं को हुक्म दिया कि चिराग़ों में पानी भर दिया जाए !”
“चिराग़ों में पानी भर दिया जाए, वो किसलिए ?”
समरपाल ने जिस तरह सवाल किया, उसे सुन बड़ा भाई शौपरपाल पहले मुस्कराया और फिर मुस्कराते हुए बोला,”अब आगे सुन ! अपने उस्ताद का हुक्म सुन शेख़ नसीरुद्दीन साहब आगे आए और एक-एक कर चिराग़ों में पानी भरना शुरू कर दिया l जब चिराग़ों में पानी भर दिया गया, तब हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने फिर से हुक्म दिया कि अब इन चिराग़ों को जलाया जाए !”
“भाई, कहीं पानी से भरे चिराग़ भी जलते देखे हैं ?” समरपाल के दिमाग़ ने जैसे काम करना बंद कर दिया l
“भले ही पानी से भरे चिराग़ जलते नहीं देखे या सुने होंगे, मगर अपनी अलौकिक और दिव्य शक्ति से पीर साहब ने उस रात चिराग़ों को रोशन कर दिया l”
बड़े भाई शौपरपाल ने जैसे ही अपनी बात ख़त्म की, समरपाल ने घोड़े की लगाम इतनी ज़ोर से खिंची कि घोड़ा हिनहिनाते हुए रुक गया l शौपरपाल ने अपने छोटे भाई की तरफ़ देखा और फिर मुस्कराते हुए बोला,”जब पीर साहब ने चिराग़ों को रोशन कर दिया, तब हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया पीर साहब के पास आए और बोले, कि शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब आप तो चिराग़-ए-देहली हो l”
इतना सुन समरपाल ने अपने घोड़े को एड़ लगाई l घोड़ा एक बार फिर देहली की तरफ़ चल पड़ा l इसके बाद दोनों भाइयों के बीच देर तक ख़ामोशी छाई रही l रह-रह कर उन दोनों को लगता रहा मानो वे सर के ऊपर चढ़ आए सूरज की धूप में नहीं, चबूतरा-ए-याराँ के पास बनी बावली के पास, रात में पानी से जलते चिराग़ों की रोशनी में नहाए हुए हैं l इस बीच दोनों के घोड़े अरावली में सोहना के गर्म चश्मे के बग़ल से होते हुए, नीचे चपटे मैदान में पहुँच गए l
“और इनके नाम के साथ जो अवधी लगा हुआ है, वह क्यों लगा हुआ है ?” समरपाल ने दोनों भाइयों के बीच पसरे सन्नाटे को तोड़ते हुए पूछा l
“दरअसल, इनके दादा हज़रत अब्दुल लतीफ़ यज़दी लाहौर में पैदा हुए थे l बाद में इनका ख़ानदान अवध में जाकर बस गया था l उसी अवध में जहाँ हम हिंदुओं की पवित्र जगह अयोध्या, जहाँ हमारे भगवान रामचंद्र पैदा हुए थे l इसी अयोध्या में पीर शेख़ नसीरुद्दीन साहब पैदा हुए थे l पीर साहब जब सिर्फ़ नौ बरस के थे, तब इनके सर से इनके पिता का साया उठ गया l चूँकि इनकी माँ पढ़ी-लिखी थी और इनकी माली हालत ठीक थी, इसलिए उसने इनकी अच्छी तालीम का इंतज़ाम कर दिया l मौलाना अब्दुल करीम शेरवानी और मौलाना इफ़्तख़ारुद्दीन गिलानी से तालीम हासिल की l अपनी जवानी के पच्चीसवें साल में पीर साहब ने आध्यात्मिक रास्ते पर चलने का मन बना लिया l अपनी माँ की मौत के बाद तक ये अयोध्या में ही रहे l आज भी इनकी माँ की मज़ार अयोध्या में ईदगाह के पीछे मौजूद है l इनके ख़ानदान के लोग आज भी अयोध्या में मौजूद हैं l इसके बाद पीर साहब देहली आ गए और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के जमाअत ख़ाने में ख़िदमत करने लगे l”
“इसीलिए पीर शेख़ नसीरुद्दीन, पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी कहे जाते हैं l” समरपाल ने सर हिलाते हुए अपने बड़े भाई शौपरपाल की बात से सहमत होते हुए कहा l
बराबर में चलते हुए शौपरपाल ने पीछे मुड़ कर सूरज की तरफ़ देखा, तो पाया दिन ढलने के बाद वह काफ़ी नीचे आ गया है l ढलती धूप से उसने अनुमान लगा लिया कि मग़रिब की नमाज़ से पहले वे पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी यानि चिराग़-ए-देहली के ख़ानक़ाह पर पहुँच जाएँगे l
इस तरह दोनों भाई समरपाल और शौपरपाल, ख़्वाजा मोईनुद्दीन साहब अजमेरी के ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने वाले पीरज़ादे ख़्वाजाकुतुबद्दीन बख़्तियार काकी, महरौली से होते हुए, शेख़ नसीरुद्दीन अवधी के ख़ानक़ाह पहुँच गए l
दूर से दोनों भाइयों को अचानक, बिना किसी पूर्व सूचना के आया देख शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब चिराग़-ए-देहली के कुछ समझ में नही आया l अपने-अपने घोड़ों को वहीं तकिए में एक पेड़ के नीचे बाँध कर दोनों भाई पीर साहब के पास आ गए l
“मियाँ, सब ख़ैरियत तो है ?” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने दोनों भाइयों से हैरानी के साथ पूछा l
“सब ख़ैरियत है पीर साहब l” बड़े भाई शौपरपाल ने अनमनेपन के साथ जवाब दिया l
“नहीं, ख़ैरियत तो नहीं लगती है l होती तो इस तरह बिना इत्तिला किए चिराग़ देहली की तरफ़ नहीं आते ? कुछ तो है जो बिना बताए दोनों भाई औचक चले आए ?” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने मुस्कारते हुए धवल दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा l
“आपका अंदाज़ा एकदम सही है पीर साहब l दरअसल…” शौपरपाल कहते-कहते रुक गया l उसने पलट कर अपने छोटे भाई समरपाल की तरफ़ देखा l
“मियाँ कैसे कहते-कहते चुप हो गए ? बोलो, क्या बात है ?” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने जैसे शौपरपाल की दुविधा भाँप ली l
“बात यह है पीर साहब कि देहली से एक फ़रमान आया है l उसी के बारे में आपकी राय लेने आए हैं l” समरपाल ने बताया l
“मैं तो दूर से ही भाँप गया था कि ज़रूर आपके सामने कोई परेशानी आ खड़ी हुई है, जो दोनों भाई कोसों दूर से चल कर आए हैं l बोलो क्या फ़रमान आया है ?”
“पीर साहब, देहली का बादशाह हमसे अपनी ग़ुलामी क़बूलने के लिए कह रहा है l आप बताइए कि जिन मेवातियों ने आज तक अपना सर देहली के किसी सरदार या बादशाह के आगे नहीं झुकाया, वे कैसे अब इसकी ग़ुलामी क़बूल कर लें ?” शौपरपाल तमतमाते हुए बोला l
“देखो, इस तरह ग़ुस्से से काम नहीं चलेगा l इत्मिनान और ठंडे दिमाग़ से बताइए कि असल माजरा क्या है ? फ़रमान में क्या लिखा है ?” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने शांत भाव से कहा l
समरपाल ने इसके बाद पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी को पूरी बात बता दी l
सुन कर पहले तो शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चुप रहा और फिर दोनों की तरफ़ देखते हुए बोला,”अब आप क्या चाहते हैं ?”
“पीर साहब, यही सलाह लेने के लिए हम आपके पास आए हैं कि हमें क्या करना चाहिए ?” उलटा समरपाल ने पूछा l
“देखिए, फ़ैसला तो आप दोनों को करना है l मुझसे आपको किस तरह की मदद चाहिए, वह बताइए ?”
“यही तो समझ में नहीं आ रहा है कि हम क्या करें l” समरपाल बोला l
“मेरा तो मानना यह है कि आपको यह लूटपाट और लोगों पर ज़ुल्म ढहाना बंद कर देना चाहिए l दूसरा, अगर आप अपने ख़ानदान की ख़ुशहाली और तरक़्क़ी चाहते हैं, तो आपको देहली दरबार से दुश्मनी छोड़नी पड़ेगी l अपने तेवर को थोड़ा नर्म बनाना चाहिए l अगर लूटपाट और लोगों पर ज़ुल्म न करने के बदले देहली दरबार आपकी रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम करने का वायदा कर रहा है, तो इसमें बुराई क्या है ? बल्कि वह तो आपके सारे गुनाहों को भी मुआफ़ करने का भरोसा दे रहा है l”
दोनों भाइयों से तुरंत कोई प्रतिक्रिया देते नहीं बनी l
“थोड़ी देर के लिए सोचिए कि जिस जनता ने आपके ज़ुल्मों की शिकायत देहली में जाकर की है, वही जनता आपके ख़िलाफ़ बग़ावत कर दे, तो क्या होगा ? मियाँ, जो आप अपनी जनता के साथ कर रहे हैं, इसे हुकूमत नहीं कहते हैं l और, जिसे आप ग़ुलामी कह रहे हैं, वह आपके लिए एक मौक़ा है l बाकी आपकी मर्ज़ी l”
इसके बाद पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी यह कहते हुए खड़ा हो गया,”मग़रिब की नमाज़ का वक़्त हो गया है l मैं नमाज़ पढ़ कर आता हूँ, तब तक आप दोनों अच्छी तरह सोच लीजिए !”
नमाज़ पढ़ने के बाद शेख़ नसीरुद्दीन अवधी वापिस आया, तो आते ही पूछा,”कुछ सोचा ?”
“पीर साहब, आप सही कह रहे हैं l हमें बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का फ़रमान मान लेना चाहिए l” छोटे भाई समरपाल ने सहमति जताते हुए कहा l
“तो फिर ठीक है l आज तो वक़्त नहीं है l मैं कल सुबह आप दोनों को साथ लेकर दरबार में हाज़िर होता हूँ l इस वक़्त आप आराम करिए !”
अन्य दिनों की तरह बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ शाही दरबार में अपने कुछ ख़ास अमीर-उमरा, बहादुरों, वज़ीरों, ओहदेदारों, सिपहसालारों और सरदारों के साथ किसी ज़रूरी मसले में डूबा हुआ था, कि एक दरबान ने कोर्निश करते हुए बड़े अदब के साथ झिझकते हुए बीच में दख़ल दिया,”हुज़ूरे आली !”
बादशाह ने सामने दोनों हाथ बाँध कर खड़े दरबान की तरफ़ देखा l
“हुज़ूर, हज़रत शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब चिराग़-ए-देहली तशरीफ़ लाए हैं !”
“क्या, पीर साहब तशरीफ़ लाए हैं ! ऐसा करिए, उन्हें मेहमानख़ाने में बैठाइए l हम अभी आते हैं l
अपने बादशाह का हुक्म सुन दरबान वापिस लौटने लगा, तो पीछे से बादशाह ने टोका,”ऐसा करिए, उन्हें यहीं दरबार में ले आइए !”
“जी हुज़ूरे आली l”
कुछ ही देर में पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी दरबार में आ गया l पीर साहब को देखते ही बादशाह अपनी गद्दी से उठा और चल कर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी के पास आ कर झुक कर स्वागत करते हुए बोला,”ख़ुशामदीद पीर साहब…आइए, दरबार में आपका ख़ैरमक़दम है ! ऐसा क्या ज़रूरी काम आ गया पीर साहब, जो बिना इत्तला किए चले आए ? पैग़ाम भिजवा देते, मैं ही आपके पास चला आता l”
“बादशाह सलामत, मसला ही कुछ ऐसा है कि मुझे बिना इत्तला किए आना पड़ा l इसके लिए मुआफ़ी चाहता हूँ l” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने मुस्कराते हुए बड़ी विनम्रता से जवाब दिया l
“ऐसा न कहो पीर साहब l आपको पूरा हक़ है l आप जब चाहे दरबार में आ सकते हैं l”
“यह आपकी ज़र्रानवाज़ी है बादशाह सलामत l”
“आइए, इधर बैठिए !” अपने बाएँ तरफ़ बैठने का इशारा करते हुए बादशाह बोला l
शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली बताई गई जगह की तरफ़ बढ़ गया l
“पीर साहब, इन साहिबान का तआरुफ़ ?” बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने शेख़ नसीरुद्दीन अवधी के साथ आए दो अजनबियों की ओर देखते हुए पूछा l
“दरअसल, इन्हीं का मसला लेकर आपके दरबार में हाज़िर हुआ हूँ l” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने अपनी जगह पर बैठते हुए कहा l
“इनका ऐसा क्या मसला आ गया जिसके लिए आपको यहाँ तक चल कर आना पड़ा ?”
“वही बताने जा हूँ l सुना है आपने कोई शाही फ़रमान भिजवाया है जिसमें…”
“पीर साहब, हमने ऐसा कौन-सा फ़रमान कब और कहाँ भिजवाया है ?”
“वही जिसमें आपने कहा है कि अगर वे बादशाह के दरबार में पेश होकर आपकी ग़ुलामी क़बूल कर लें, तो सरकार उनकी रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम करेगी l बल्कि सरकार उनके सारे गुनाहों को भी मुआफ़ कर देगी l”
पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली के इतना बताने पर भी बादशाह को कुछ याद नहीं आया l बादशाह ने दरबार की तरफ़ देखा l जिस तरह बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने देखा, एक वज़ीर बोला,”हुज़ूरे आली, हज़रत पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब उस शाही फ़रमान की बात कर रहे हैं, जो मेवात में भेजा गया था l”
“अच्छा-अच्छा, आप उस फ़रमान की बात कर रहे हैं l बात यह है पीर साहब कि हमें मेवात की आवाम की तरफ़ से बार-बार यह शिकायत मिल रही थी, कि वहाँ के मौजूदा हुक्मरान राहगीरों से न सिर्फ़ लूटपाट करते हैं, बल्कि अपनी आवाम पर ज़ुल्म भी ढा रहे हैं l उन्हीं के लिए यह शाही फ़रमान भेजा गया था l”
“बादशाह सलामत, वे हुक्मरान यही दोनों भाई हैं l ये शौपरपाल हैं और ये इनके छोटे भाई समरपाल हैं l” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने दोनों का संक्षिप्त-सा परिचय देते हुए बताया l
“अच्छा, तो ये हैं वे हज़रात l पीर साहब, मैंने तो सुना है कि मेवाती बेहद ख़तरनाक होते हैं l इतने ख़तरनाक कि जब मुहम्मद गौरी ने हिंदुस्तान पर हमला किया, तब इन्होंने क़ुतुबुद्दीन एबक के एक सिपहसालार को मार दिया था l”
“आप सही कह रहे हैं बादशाह सलामत l इसीलिए गयासुद्दीन बलबन ने हज़ारों मेवातियों का क़त्ल करवा दिया था l आपने जब यह शाही फ़रमान भेजा, तब इस डर से कि कहीं बलबन की तरह आप भी मेवातियों का क़त्ले-आम न करवा दें, ये मेरे पास आए l मेरी ये लोग बहुत ख़िदमत करते हैं और मुझे बहुत मानते हैं, इसीलिए मैं इन्हें आपके पास लेकर आया हूँ l” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने कुछ बातें अपनी तरफ़ से जोड़ते हुए कहा l
“फिर बताइए पीर साहब, इस ख़ादिम के लिए क्या हुक्म है ?” बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने सर झुका कर मुस्कराते हुए पूछा l
“मैं चाहता हूँ कि आप इन दोनों भाइयों को शाही दरबार में रख लें !”
“यानि ये हमारी चौखट चूमने के लिए तैयार हैं ?” बादशाह ने शौपरपाल और समरपाल की तरफ़ देखते हुए पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी से पूछा l
“जी हुज़ूरे आली, हम आपकी ताउम्र ग़ुलामी करने के लिए तैयार हैं l” बड़े भाई शौपरपाल ने ग़ुलामाना अंदाज़ में फ़र्शी सलाम करते हुए कहा l
“ठीक है पीर साहब l अगर ये मेवात की आवाम पर ज़ुल्म न ढाने का वायदा करते हैं, और इन्हें शाही दरबार की ग़ुलामी मंज़ूर है तो मैं इन्हें शाही ख़िदमतगारों में शामिल करने का हुक्म देता हूँ l ये जब चाहे इसमें आकर शामिल हो सकते हैं l”
“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया बादशाह सलामत l” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का शुक्रिया अदा करते हुए बोला l
“कैसा शुक्रिया पीर साहब l आपके हुक्म को यह ना-चीज़ कैसे टाल सकता है l”
“आपका बुलंद ऐसे ही क़ायम रहे बादशाह सलामत l अब चलने की इजाज़त दीजिए !” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने अपनी जगह से खड़े होते हुए कहा l
“मैं कैसे कहूँ पीर साहब l” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब का हाथ अपने हाथ में ले, उसे चूमते हुए बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ बोला l
“ख़ुदा हाफ़िज़ l”
इतना कह पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी वापिस चिराग़ देहली के लिए चलता, इससे पहले शौपरपाल और समरपाल दोनों भाइयों ने उलटे पाँव पीछे हटते हुए बादशाह को कोर्निश किया और पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी के पीछे-पीछे चल दिए l
जुह्र की नमाज़ होते-होते पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी दोनों भाइयों के साथ चिराग़ देहली लौट आया l
“मै नमाज़ पढ़ कर आता हूँ, तब तक आप दोनों थोड़ा आराम फ़रमा लें !” इतना कह पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी वज़ू करने के लिए चला गया l
नमाज़ पढ़ने के बाद पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी थकान मिटाने की ग़रज से तख़्त पर लेट गया l अब दोनों भाइयों शौपरपाल और समरपाल ने भी वापिस मेवात लौटने की इच्छा जाहिर की, तो पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी उनकी तरफ़ करवट लेते हुए बोला,”मियाँ, यह आपके हक़ में बहुत अच्छा हो गया कि बादशाह सलामत ने सिर्फ़ आपके गुनाहों को ही मुआफ़ नहीं किया है, बल्कि आप दोनों को अपने शाही ख़िदमतगारों में शामिल कर, आपकी रोज़ी-रोटी का पुख़्ता इंतज़ाम भी कर दिया l ऐसा नसीबवालों को हासिल होता है l”
“सब आपकी बदौलत हासिल हुआ है पीर साहब l” शौपरपाल ने कहा l
“मैं कौन होता हूँ किसी का कुछ करने वाला l करने वाला तो वो परवरदिगार है जो हम सबका मालिक है l बस, आप दोनों भाइयों से एक अर्ज़ है कि बादशाह सलामत आपको जो भी ज़िम्मेदारी दें, उसे पूरी वफ़ादारी और ईमानदारी के साथ उसकी मंज़िल तक पहुँचाने की कोशिश करना l”
“आप बेफ़िक्र रहें पीर साहब l हमारी तरफ़ से आपको किसी तरह की शिकायत का मौक़ा नहीं मिलेगा l” समरपाल ने दोनों भाइयों की तरफ़ से आश्वासन दिया l
“आपकी बस इसी तरह कृपा बनी रहे और हमें रास्ता दिखाते रहें l” बड़े भाई शौपरपाल ने पूरे समर्पित भाव से कहा l
जल्दी ही मेवात से लौटकर दोनों भाई बादशाह के शाही ख़िदमतगारों में शामिल हो गए l इन्हें जो भी ज़िम्मेदारी दी जाती, उसे ये पूरी वफ़ादारी और ईमानदारी के साथ निभाते l इस वफ़ादारी और ईमानदारी का नतीजा यह हुआ कि बादशाह समरपाल को हमेशा अपने साथ रखने लगे l इधर पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली को जब यह पता चला कि समरपाल बादशाह का ख़ास ख़िदमतगार बनने में कामयाब हो गया है, सुन कर उसे बड़ी ख़ुशी हुई कि अपनी लगन और ईमानदारी से उसने बादशाह के दिल जगह बना ली है l
एक दिन बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने समरपाल से कहा,“समरपाल, हमारी ख़्वाहिश है कि एक बार दरगाह अजमेर शरीफ़ की ज़ियारत की जाए l सूफ़ी मोईनुद्दीन चिश्ती ख़्वाजाग़रीब नवाज़ की दरगाह को हम देखना चाहते हैं l देखना चाहते हैं कि ईरान के शहर चश्त में अबू इसहाक शामी के उस चिश्तिया सिलसिले को, जिसे हिंदुस्तान में सूफ़ी मोईनुद्दीन चिश्ती ने शुरू किया था l सुना है कि मोईनुद्दीन साहब के तक़रीबन एक हज़ार ख़लीफ़ा थे l आख़िर इस सूफ़ी में ऐसी क्या ख़ूबी थी कि हिंदुस्तानभर के लोग इसकी इबादत के लिए आते हैं l मगर दिक्कत यह है कि वहाँ किस रास्ते से जाया जाए ?”
“हुज़ूरे आली, इसका सबसे आसान रास्ता मेवात के ऊपर से है l मेवात होते हुए अजमेर जाया जा सकता है l”
“फिर तो हमारे साथ आप भी चलिए !”
“जैसा आपका हुक्म हुज़ूरे आली l”
“ठीक है l इस बार चाँद के दीदार अजमेर शरीफ़ में ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर ही किए जाएँगे l”
“हुज़ूर, एक छोटी-सी अर्ज़ है ?”
“हाँ बोलो समरपाल l”
“अगर पीर साहब चिराग़-ए-देहली को भी साथ ले चलें, तो कैसा रहेगा ?”
“यह आपने अच्छा याद दिलाया l हज़रत शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब साथ रहेंगे, तो और भी अच्छा रहेगा l ऐसा करिए, पीर साहब को तुरंत अजमेर जाने की इत्तला भिजवा दीजिए l” समरपाल की सलाह मान बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने अजमेर शरीफ़ के लिए रवाना होने का हुक्म दे दिया l
इस तरह चाँद दिखने से पंद्रह दिन पहले बादशाह का शाही क़ाफ़िला अजमेर के लिए रवाना हो गया l देहली के कोटला से चला क़ाफ़िला सबसे पहले चिराग़ देहली पहुँचा l यहाँ से पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी को साथ ले शाही क़ाफ़िला आगे बढ़ गया l
दोपहर होते-होते शाही काफ़िले ने अरावली के बदन को छू लिया l
“हुज़ूरे आली, यहाँ से काला पहाड़ शुरू हो जाता है l” दूर तक फैले स्याह परबत और उसके ऊँचे-नीचे बीहड़ों में ठुकी हरियाली की तरफ़ इशारा करते हुए समरपाल ने बादशाह को बताया l
“काला पहाड़ ! मगर मैंने तो सुना है यहीं कहीं आसपास अरावली परबत भी है ?” बादशाह ने दूर तक फैले पहाड़ पर नज़र दौड़ाते हुए पूछा l
“हुज़ूर, यही अरावली परबत है l इसे हमारे मेवात में काला पहाड़ भी कहा जाता है l”
“ओह ! तो यह है वह पहाड़ जहाँ, देहली के सुल्तानों के आने की हिम्मत नहीं पड़ती है l वाक़ई यह तो बेहद ख़तरनाक पहाड़ है l देखिए, दूर-दूर तक घना जंगल इस क़दर पसरा हुआ है कि एक बार इंसान इसमें दाख़िल हो जाए, तो उसे ढूँढ़ना बेहद मुश्किल है l”
समरपाल ने कोई जवाब नहीं दिया l बस, मुस्करा कर रह गया l
“समरपाल, फिर तो इसमें ख़तरनाक और खूँ-ख़्वार जंगली जानवर भी होंगे ?”
“जी हुज़ूरे आली l शेर, तेंदुए, भेड़िए, बारह सिंगा, हिरन, ख़रगोश और दूसरे जंगली जानवर…वो देखिए हुज़ूर, सामने जंगली सूअरों का झुंड !” अचानक जंगली सूअरों के एक झुंड पर समरपाल की नज़र पड़ी l
“सिपाहियो, काफ़िले को यहीं रोक दो !”
अचानक बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के इस हुक्म को सुन, पत्थरों से टकरा कर घोड़ों के खुरों से निकलती खनक सहम कर ख़ामोश हो गई l
“क्या हुआ हुज़ूरे आली ?” समरपाल ने सहमते हुए पूछा l
“आज की दोपहर हम यहीं बिताएँगे और इस जंगल में शिकार खेलेंगे l” इतना कह बादशाह अपने घोड़े से उतर गया l
बादशाह के हुक्म की तामील करते हुए सारे शाही सैनिक अपने-अपने घोड़ों से उतर गए l एक समतल जगह देख वहाँ ख़ेमे गाड़ दिए गए l ख़ेमे लगने के बाद सब अपने-अपने ख़ेमों में आराम करने लगे l
कुछ देर आराम करने के बाद बादशाह ने समरपाल को बुलवाया l
“समरपाल, चलिए शिकार के लिए चलते हैं !” इतना कह बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ शिकार की तैयारी करने लगा l
अपने तीर-कमान के साथ पहले से तैयार समरपाल अपने बादशाह के साथ हो लिया l आगे बढ़ते हुए बादशाह को पहाड़ में जंगली जानवर तो बहुत दिखाई दिए, मगर उसने शिकार किसी का नहीं किया l समरपाल को यह देख कर बेहद हैरानी हुई कि उसका बादशाह क्यों नहीं इन जानवरों का शिकार कर रहा है l आख़िर इस बीहड़ में इसे किसकी तलाश है ?
“वो देखो समरपाल !” बादशाह ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा l
एकाएक अपने बादशाह की इस फुसफुसाहट पर समरपाल का ध्यान भंग हुआ l मगर अगले ही पल वह मुस्तैद हो गया l उसने देखा कि उनसे कुछ क़दम की दूरी पर एक दरख़्त की घनी छाँह में शेर आराम कर रहा है l लगता है गहरी नींद में भी है l बादशाह ने एक झटके के साथ अपने कंधे से कमान उतारी और उस पर तीर चढ़ा, शेर की तरफ़ बढ़ते हुए उस पर निशाना साधने ही वाला था, कि समरपाल ने उसे बीच में टोक दिया,”बादशाह सलामत, रुकिए !”
अपने ख़िदमतगार के इस दख़ल पर बादशाह के क़दम ठिठक गए l प्रत्यंचा पर चढ़ा तीर ढीला पड़ता चला गया l उसने झल्लाते हुए पलट कर अपने ख़िदमतगार की तरफ़ सवालिया निग़ाह से देखा l
“हुज़ूरे आली, एक अर्ज़ है और वो यह कि शेर का शिकार करने में जो मज़ा तलवार से है, वह तीर-कमान में नहीं है…और फिर यह तो सोया हुआ है l सोए हुए पर क्या वार करना l बहादुरों को इस तरह कपट से एक बे-ज़बान पर हमला करना शोभा नहीं देता है l” बड़े अदब से झुकते हुए समरपाल ने मुस्करा कर अपने बादशाह का आह्वान किया l
एक ख़िदमतगार ने जिस तरह अपने बादशाह को चुनौती दी, उसे देख बादशाह फ़िरोज़ शाह ने पहले अपने क़दम पीछे खींचे और फिर अपने ख़िदमतगार की तरफ़ पलट कर हुक्म देते हुए बोला,”अगर ऐसा है समरपाल, तो शमशीर से आप शिकार करके दिखाइए !” इतना कह बादशाह ने अपनी कमर में लटकी म्यान से तलवार खींच कर समरपाल की तरफ़ बढ़ा दी l
अपने बादशाह के हुक्म का पालन कर समरपाल ने तलवार ग्रहण की ही थी, कि उन दोनों की बातचीत से शेर की नींद खुल गई l नींद खुलते ही शेर तेज़ी से उठा और दहाड़ते हुए बादशाह पर इतनी तेज़ी से झपटा कि बादशाह की आँखें बंद होती चली गईं l मारे भय के उसकी आँखों के सामने जैसे अँधेरा छ गया l
“बादशाह सलामत, बचाइये अपने आपको !” समरपाल बादशाह को सावधान करते हुए चीख़ा l
इससे पहले कि शेर बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ पर झपटता, एक चीत्कार भरी दहाड़ से अरावली की वादियाँ गूँज उठीं l जहाँ-तहाँ पेड़ों की डालों पर सुस्ताते परिंदे घबरा कर फड़फड़ाते हुए इधर-उधर उड़ने लगे l शेर की दहाड़ सुन अपने-अपने ख़ेमों में आराम कर रहे शाही सिपाही बाहर आ गए l अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर सब उस तरफ़ दौड़ पड़े, जिधर से दहाड़ सुनाई दी थी l
बादशाह और ख़िदमतगार समरपाल के सामने ख़ून में नहाई शमशीर, और ज़मीन पर पड़ी धड़ से अलग हुई लहूलुहान शेर की गर्दन को पूरा शाही क़ाफ़िला हैरत भरी निगाहों से देखता रह गया l
“मुबारक हो हुज़ूरे आली !” एक अमीर ने ख़ुश होकर जैसे ही अपने बादशाह की इस बहादुरी पर बधाई दी, वहाँ मौजूद दूसरे अमीर और शाही सिपाहियों की तरफ़ से मुबारकबाद की जैसे झड़ी लग गई l
बादशाह ने सबको पहले शांत रहने का इशारा किया l फिर इत्मिनान से पूरा वाक़या बयान कर आख़िर में बोला,”…इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, समरपाल ने पलक झपकते ही शेर की गर्दन पर ऐसा हमला किया कि या तो मुझे हवा में उठी शमशीर नज़र आई, या फिर शेर के धड़ से किसी नर्म टहनी की तरह क़लम हुई इसकी गर्दन l इसलिए आपकी इस मुबारकबाद का हक़दार मैं नहीं, यह समरपाल है l ख़ुदा का शुक्र है कि अगर आख़िरी वक़्त में समरपाल इस शेर पर हमला नहीं करता, तो शायद आपको आपके बादशाह की इस अरावली में लाश भी नहीं मिलती l पता नहीं वह इस शेर का कब का निवाला बन चुका होता l” इसके बाद वह अपने ख़िदमतगार की तरफ़ पलटा,”शाबाश समरपाल ! आपकी इस बहादुरी का मैं आज कायल हो गया l आपने आज यह साबित कर दिया कि मेवाती सचमुच जाबाँज़ और दिलेर होते हैं l लीजिए, इस शाही शमशीर पर आज से बादशाह का नहीं, आपका हक़ है l जिस शमशीर ने एक खूँ-ख़्वार शेर को हलाक़ कर दिया, वह उसी जाँ-बाज़ के हाथ में अच्छी लगती है, जिसने इसे चलाया है l मैं इसी वक़्त अपनी इस शाही शमशीर और अपना कमरबंद आपको बतौर ईनाम पेश करता हूँ l” बादशाह ने पहले अपना कमरबंद खोलकर समरपाल की कमर में बाँधा और उसके बाद अपनी तलवार उसे भेंट कर दी l
”बादशाह सलामत का बुलंद क़ायम रहे !” तलवार देने के साथ ही शाही सिपाहियों ने अपने बादशाह द्वारा समरपाल को प्रदान की गई इस भेंट पर ख़ुश होते हुए उद्घोष किया l
“एक बात और…!” इतना कह बादशाह ने मुस्करा कर सामने खड़े अमीरों और शाही सिपाहियों की ओर देखा l
किसी की कुछ समझ में नहीं आया कि बादशाह अब और क्या ऐलान करने वाले हैं l बस, दम साधे अपने बादशाह द्वारा किसी भी पल की जाने वाली आगामी घोषणा की प्रतीक्षा करने लगे l
“चूँकि, समरपाल ने एक खूँ-ख़्वार नाहर का शिकार किया है, इसलिए मैं आज से समरपाल को बहादुर नाहर के नाम से पुकारा करूँगा l”
इस घोषणा को सुनते ही सब ने एक-दूसरे की तरफ़ हैरानी के साथ देखा l उन्हें अपने बादशाह की इस कल्पनाशीलता पर जितनी ख़ुशी हुई, उससे ज़्यादा हैरानी हुई l इधर शाही सिपाहियों से पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली की नज़र, जब-जब समरपाल पर पड़ती, तब-तब उसकी गर्व से आँखें चमक उठतीं l
“हज़रत पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी साहब !”
अचानक बादशाह द्वारा अपने नाम की आवाज़ सुन, पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी की तस्बीह पर फिसलती अँगुलियों के पोर ठिठक गए, और अपलक वह बादशाह को ताकने लगा l
“हमें ख़ुशी ही नहीं बल्कि फ़ख्र भी है कि समरपाल …मुआफ़ करना बहादुर नाहर की शक्ल में आपने हमें एक नायाब हीरा दिया है l आपकी इस पारखी नज़र के हम सचमुच कायल हैं पीर साहब l”
समरपाल की तारीफ़ सुन पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली की रगों में कुछ पल पहले ठहरा लहू फिर से दौड़ने लगा l इसके बाद बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ अपने शाही ख़ेमे में चला आया l पीछे-पीछे अमीर और दूसरे शाही सिपाही भी एक-एक कर अपने ख़ेमों में लौट आए l जुह्र की नमाज़ अदा करने के बाद क़ाफ़िला अरावली से निकल कर एक बार फिर अजमेर की तरफ़ बढ़ गया l
अजमेर पहुँचने तक रास्ते में लगभग रोज़ाना दोपहर बाद अस्र के आसपास पश्चिम दिशा से उठती तेज़, कभी आसमानी तो कभी ज़मीनी राजस्थानी आँधियों से सामना होता रहा l कई बार ये आँधियाँ एकदम पीली होतीं, तो कभी एकदम धूसर l वैसे तो अक्सर ये आँधियाँ दिन में ही आतीं, मगर कई बार ये रात में भी आ जातीं l कभी ये सूखी होतीं, तो कभी-कभी अपने साथ गरज के साथ छींटें भी ले आतीं l जब-जब ये आँधियाँ आती तो पूरा काफ़िला, आँधी में उड़ने वाले अपने-अपने ख़ेमों को लटक-लटक कर उन्हें उखड़ने से रोकने की कोशिश करते l
बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने अजमेर पहुँच कर ईरान के अबू इसहाक शामी के चिश्तिया तरीक़े से सूफ़ी मोईनुद्दीन चिश्ती ख़्वाजाग़रीब नवाज़ की दरगाह पर चादर चढ़ाई l बादशाह के साथ दरगाह पर चादर चढ़ाने में शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने पूरी मदद की l बादशाह को सबसे ज़्यादा यह देख कर हैरानी हुई कि ख़्वाजाग़रीब नवाज़ की दरगाह पर सिर्फ़ मुसलमान अक़ीदतमंद ही नहीं, हिंदू भी चादर चढ़ा रहे हैं l दरगाह से बाहर आकर बादशाह से पीरज़ादे से कहे बिना नहीं रहा गया l
“हज़रत चिराग़-ए-देहली साहब, यह मुल्क भी अजीब है l”
“कैसे हुज़ूरे आली ?” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने हैरत के साथ पूछा l
“देखो न, दरगाह एक मुसलमान सूफ़ी की है और चादर दूसरे मज़हब के लोग भी चढ़ा रहे हैं l”
“बादशाह सलामत एक बात कहूँ, इस मुल्क की सबसे बड़ी यही ख़ासियत है l वैसे भी अक़ीदत, अक़ीदत होती है l किसी मज़हब या दीन से उसका कोई वास्ता नहीं होता l वैसे भी हुज़ूर, दरगाह-मज़ारों, मंदिर-मस्जिदों और दूसरे इबादतख़ानों पर आने वाले अक़ीदतमंदों का दुःख एक-सा होता है l इंसानी सुख-दुःख या ग़म और ख़ुशी का कोई मज़हब नहीं होता l सुख-दु:ख तो सबके साझा होते हैं l”
“आप सही फ़रमा रहे हैं पीर साहब l” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी से बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ सहमत होते हुए बोला l फिर कुछ रुक कर कहा,”कुछ रोज़ रुक कर देहली की तरफ़ रुख़सत करते हैं l”
“जैसा आप चाहें l” शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने फ़ैसला अपने बादशाह पर छोड़ दिया l
सूफ़ी मोईनुद्दीन चिश्ती ख़्वाजाग़रीब नवाज़ की दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ देहली लौट आया l देहली लौटने के बाद एक दिन बादशाह ने शाही दरबार में समरपाल अर्थात बहादुर नाहर को एक बार फिर ख़िलअत देकर उसका सम्मान किया l उसी दिन बादशाह ने भरे दरबार में यह ऐलान भी कर दिया कि बहादुर नाहर को शाही ख़िदमतगार नहीं, आज से नायब वज़ीर के रूप में तैनात किया जाता है l अब बहादुर नाहर एक ख़िदमतगार नहीं, एक वज़ीर के रूप जाने जाना लगा l
जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया अपनी वफ़ादारी, ईमानदारी, निडरता और बहादुरी के बल पर शाही दरबार में बहादुर नाहर का रुतबा और इज़्ज़त बढ़ने लगी l दूसरे अमीर-उमरा और वज़ीरों की तरह बादशाह ख़ास फ़ैसलों में समरपाल को शामिल करने लगा l पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी को अपनी तरक्क़ी की ख़बर कभी बहादुर नाहर चिराग़ देहली जाकर ख़ुद देता, तो कभी पीर को दरबार से पता चल जाता l
दरबार में बढ़ती ज़िम्मेदारी के बावजूद कुछ वक़्त निकाल कर उस दिन काफ़ी दिनों बाद बहादुर नाहर चिराग़ देहली गया l वह देर तक पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी के पास बैठा रहा l जितनी देर वह वहाँ रहा, लगभग चुप ही रहा l शेख़ नसीरुद्दीन अवधी को लगा कि बहादुर नाहर कुछ कहना चाह रहा है, मगर कह नहीं पा रहा है l बहादुर नाहर की दुविधा को भाँप, पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने ही उससे पूछा,”मियाँ बहादुर नाहर, आज कैसे इतने चुप हो ? दरबार में कुछ परेशानी या कोई दिक़्क़त आ रही है ?”
“पीर साहब, ऐसी कोई बात नहीं है l” अनमनेपन से जवाब दिया बहादुर नाहर ने l
“नहीं, कुछ तो बात है जिसे दिल में दबाए बैठे हो ?”
इस बार भी नाहर ने कोई जवाब नहीं दिया l शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली को अपना शक सही लगने लगा l
“देखिए, अगर ऐसी कोई बात है जिसे बादशाह से कहने की हिम्मत नहीं हो रही है, तो मुझसे कहो l मैं बादशाह तक पहुँचा देता हूँ l”
नाहर ने गर्दन उठाते हुए पीर की तरफ़ देखा l
“हाँ-हाँ बोलो, क्या बात है ?” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने बहादुर नाहर की हिम्मत बँधाई l
“बात यह है पीर साहब कि…” इसके बाद बहादुर नाहर ने अपने मन की बात कह दी l
“य…यह क्या कह रहे हो मियाँ ? होश में तो हो ? जानते हो इसका क्या मतलब होता है ?” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी ने बहादुर नाहर की पूरी बात सुनते ही चौंकते हुए कहा l
“हाँ पीर साहब, हम दोनों भाइयों ने यह फ़ैसला पूरे होशो-हवास और सोच-समझ कर किया है l”
“इसका मतलब यह हुआ कि आपको अपने मज़हब पर भरोसा नहीं रहा l”
“ऐसा नहीं है पीर साहब l यह तो हम अपनी मर्ज़ी से कर रहे हैं l हमारे ऊपर किसी का कोई दबाव भी नहीं है l”
“मगर बरख़ुरदार मैं आपको इसकी इजाज़त नहीं दे सकता l ऐसा करना अपने दीन, ईमान और अपने मज़हब से ही नहीं, बल्कि ख़ुद के ज़मीर से भी धोख़ा और ना-फ़रमानी है l ऐसा फ़ैसला कमज़ोर और बुज़दिल इंसान ही ले सकता है l एक बात कहूँ, जिस इंसान का अपने मज़हब पर एत्तेमाद ख़त्म हो गया हो, वह एत्तेमाद दूसरा मज़हब क़बूल करने पर कैसे क़ायम होगा ?” पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी समरपाल अर्थात बहादुर नाहर को समझाने लगा l
पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली के इस तर्क पर उसने कोई जवाब नहीं दिया l
“मियाँ, इतना बड़ा फ़ैसला ज़ल्दबाज़ी में नहीं बहुत सोच-विचार करने के बाद लिया जाता है l आख़िर आपके इस फ़ैसले को सुनकर आपके ख़ानदान और आपकी आशनाइयों पर क्या बीतेगी, ज़रा सोचा है ? आप फ़िलहाल यहाँ से दरबार लौट जाइए ! वहाँ जाकर अकेले में, सुकून के साथ ठंडे दिमाग़ से अपने इस फ़ैसले पर एक बार फिर से सोच कर देखना l”
समरपाल कुछ नहीं बोला l चुपचाप चिराग़ देहली से शाही दरबार लौट आया l
आख़िर समरपाल ने जो कहा, वह कर दिखाया l एक दिन पीर शेख़ नसीरुद्दीन अवधी चिराग़-ए-देहली को मालूम हुआ कि शौपरपाल और समरपाल दोनों भाइयों ने बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के सामने भरे दरबार में इस्लाम क़बूल कर लिया है l बादशाह ने शाही दरबार से यह भी ऐलान कर दिया,”बाहैसियत बादशाह, मैं नायब वज़ीर समरपाल के इस्लाम क़बूल करने पर यह ऐलान भी करता हूँ कि दरबार में अब इसे समरपाल की जगह बहादुर नाहर के नाम से पुकारा जाए !”
इस ऐलान के बाद बहादुर नाहर ने बादशाह को फ़र्शी सलाम किया l
“बहादुर नाहर, आज से हम आपका ओहदा भी बढ़ाने का ऐलान करते हैं l इसलिए शाही दरबार में आज से आप नायब वज़ीर नहीं, वज़ीर बनाए जाते हैं l हम चाहते हैं कि अब आपको मेवात की ज़िम्मेदारी भी दे दी जाए ! क्या यह आपको क़बूल है ?” बादशाह ने पूछा l
“बादशाह सलामत, अगर मुझे अपने मादरे वतन की ख़िदमत का मौक़ा मिलता है, तो यह मेरी ख़ुशक़िस्मती होगी l” घुटनों के बल बैठे-बैठे बहादुर नाहर बोला l
“ठीक है l”
इसके बाद बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने कुछ ज़रूरी हिदायत दे, समरपाल को सरकारी ख़ज़ाने से धन उपलब्ध कराने का हुक्म जारी कर दिया l
इस तरह इस्लाम क़बूल करने के बाद बड़ा भाई शौपरपाल छज्जू खाँ, और समरपाल बहादुर नाहर हो गया l
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