आज नरेश जैन की कहानी पढ़िए। वे पेशे से अध्यापक रहे हैं। उनकी यह कहानी में ग्रामीण समाज का यथार्थ है जो आज भी प्रासंगिक है-
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सारा गाँव उसे जमुनिया वाली के नाम से पुकारता है. उसका मायका जमुनिया में है और ससुराल अभी हाल इमलिया में.
अभी हाल सुनकर आप चौंक गए न? मुझे भी रोमांच हुआ था यह जानकर कि रामरज उसका तीसरा पति है और वह रामरज की दूसरी पत्नी . आपके एक पतिव्रत समर्थक मन को कष्ट हुआ न? मुझे भी हुआ था. किसी पुरुष के जीवन में दूसरी पत्नी आना उपलब्धि ही है, पर स्त्री का तीसरा पति होना…… धर्म संस्कृति का क्षरण ! मेरे हृदय में भी उसके प्रति किंचित जुगुप्सा का भाव आ गया था. एक दिन मैं उस पर कटाक्ष कर बैठा –
‘क्यों जमुनिया वाली, अब चौथा आदमी कब करोगी?’ उसने बिना रोष और आवेश के कहा –
“कहाँ तक बदलूँ ,तुम सब मर्द एक से ही होते हो ! शरीर के भूखे ! इमलिया वाला ठीक ही है.” फिर पहाड़ी झरने के समान खिलखिलाकर बोली-
“ तुम रखोगे मुझे ?बन जाओ मेरे चौथे आदमी !”
सुनकर मेरे भीतर का मर्द सुकड़ गया.
जमुनिया वाली की गिनती अच्छी औरतों में नहीं होती . बड़ी जंडेल औरत है वह.. हर कोई उसके बारे में दो चार जानकारियाँ रखता है और एक दूसरे को चटकारे लेकर सुनाता है.पर उसके मुँह पर बोलने की हिम्मत किसी की नहीं होती. ऐसी गालियाँ सुना देती है कि बड़ी बड़ी मूँछें उमेठने वाले महामर्द भी झेंप जाएँ
मैनें जब उसके घर से लगी हुई झोपड़ी किराए से ली तो मेरे ही कुछ साथी बोले-
“सम्हल के रहना प्यारे, जमुनिया वाली तुम्हें फाँस न ले. बड़ी जादूगरनी है.” डर तो मुझे भी लगा था – फँसाए जाने का नहीं बल्कि किस्सा गढ़ने में माहिर भीकम नाई का. कहीं एकाध किस्सा मेरा भी न बना दे.पर उस गाँव में वही एक झोपड़ी खाली थी, सो अनिच्छापूर्वक लेनी पड़ी. इस तरह मैं जमुनिया वाली का पड़ौसी बन गया.
एक दिन जमुनिया वाली ने मुझसे कहा-
“ क्यों बाबू, हमेशा मोंगे मोंगे से रहते हो ! कुछ बातचीत क्यों नहीं करते?”
“ किससे करूँ ? आदमी सब खेत खलिहान चले जाते हैं.”
“ औरतों से बातें करने में शरम आती है क्या?.मैं तो बातें न करूं तो तबीयत बिगड़ जाती है.”
“पर औरतों से क्या बात करूँ?
“ हाँ, औरतों से तो एक ही बात की जा सकती है – आई लव यू.और तो औरतें किसी काम की हैं नहीं.”
मैं कुछ और कहूँ इसके पहले ही वह घड़ा उठाकर हैंडपंप पर पानी लेने चली गयी. मैं कुछ देर तक सशंकित रहा कि लोग सही कह रहे थे, जमुनिया वाली मुझे फाँस लेगी.लेकिन वह कह तो सही रही थी. मर्द लोग औरत से “एक” ही बात क्यों करते हैं और औरत के बारे में भी “एक” ही बात क्यों करते हैं.क्या औरत कमर के नीचे देह के अतिरिक्त कुछ नहीं होती?
धीरे धीरे मेरी आशंका और उसका संकोच टूटता गया. मैं उससे बातें करने लगा. भीकम का भूत मेरे सिर से उतर गया था. मेरे पड़ौस में उसीका घर था. रामरज चुप ही रहता था. बातें करने के लिए वही थी. उस से भी न बोलो बताओ तो दिमाग में सन्नाटा पसर जाता था. वह थी भी बहुत वाक्पटु और अंगूठा छाप होने पर भी अपने मनोभावों को व्यक्त करने में सक्षम. कभी कभी वह मुझसे पूछ लेती-
‘ बाबू, खाना बन गया. अरे, आज मत बनाओ, मेरे यहाँ खा लो.आज मैनें कटहल बनाया है.’
मैं अक्सर कह देता- अभी भूख नहीं है. शाम को ही बनाकर खाऊँगा.
“ ये बहाना है बाबू, मैं सब जानती हूँ. पढ़े लिखे हो, जात पांत नहीं मानते.पर ऊंची जात के हो न इसलिए नीची जात वाली औरत के हाथ का बना नहीं खाओगे. हाँ, उसके साथ सो लोगे.”
“ कैसी गंदी बातें सूझती हैं तुम्हें.” मैनें गुस्से में कहा. तो वह मेरे और अपने आंगन के बीच वाली पट्टीपर आकर बैठ गई. मैं दरवाजे पर उकडूं बैठा धूप ताप रहा था. तुंनककर बोली-
“ औरत ने सच बोल दिया तो गंदी बात हो गई. और मर्द गंदा काम करें तो परोपकार हो जाए. हाँ, बाबू, हो तो तुम भी मर्द ही, पढने लिखने से मर्द औरत थोड़े न बन जाता है.”
“ भौजी,तुम तो नाराज हो गईं”
“ तुमसे क्या नाराज होऊंगी ? तुम ब्याहे गए न बराते गए, तुम तो अभी लिलोर नटवा हो” हंसकर बोली……….
“ कल तुम्हारे घर भीकम आया था. क्या कह रहा था?’
“ कुछ नहीं, कल पिपरिया गया था, कुछ सामान मैनें भी बुलवाया था. वही लेके आया था.”
“ बस, इतनी सी बात के लिए आया और सामान रखकर चला गया. मैंने कहा था न कि हो तो तुम भी मर्द ही. इसलिए जब कोई औरत के बारे में ऐसा वैसा बोलेगा तो तुम्हें भी मज़ा आएगा न !”
“ नहीं भौजी, मैनें उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया.”
“ कोई बात नहीं, अब ध्यान से सुन लो. वो यही न कह रहा था कि जमुनिया वाली अपने दूसरे खसम को पिपरिया में ही छोड़ आई है. इसका किसी मर्द से मन नहीं भरता.”
“हाँ, ऐसा ही कह रहा था.” मैनें स्वीकार किया
“ हाँ, मैं छोड़ आई. बताऊँ क्यों? सुनोगे.”
“ नहीं भौजी, मुझे नहीं सुनना. ये तुम्हारा निजी मामला है.”
“ जब तुम्हें पता हो गया कि मैं नैनपुर वाले दूसरे खसम को छोड़ आई हूँ, तो बात निजी कहाँ रह गयी? फिर तुम तो मेरे लाला हो, सुनना ही पड़ेगा.”
हाँ, नैनपुर वाला मेरा दूसरा मानुस था. उसने मेरे बाप को सेठ का क़र्ज़ चुकाने के लिए रुपए दिए थे सो मेरे बाप ने मुझे उसके हाथों सौंप दिया.उसके पहली बीबी उसे छोडकर किसी और के साथ भाग गई थी. जब कोई औरत अपने घरवाले को छोड़कर किसी और के साथ चली जाती है तो भी औरत बदचलन होती है और मर्द किसी औरत को घर से मारपीट कर निकाल दे तो भी औरत गलत होती है. मर्द कभी गलत या बदचलन नहीं होते! नैनपुर में मोहल्ले की औरतें मुझसे यही कहतीं थीं की पहली वाली कितनी दुष्ट थी जो इतने सीधे सादे आदमी को छोड़कर चली गई .
“ठीक है भौजी, वो चली गई होगी अपने यार के साथ. तुम क्यों चली आईं?”
“ नैनपुर वाला,जंगल के ठेकेदार के यहाँ काम करता था. एक रात वो अपने सेठ के लड़के को लेकर घर आया. लड़का मेरे घर की टूटी सी खाट पर आकर बैठ गया. मुझे देखकर झेंपता हुआ सा मुस्कुराया.मुझे अचरज हुआ कि इतने बड़े सेठ का पढ़ा लिखा लड़का जो कार में घूमता है,खूब बड़े मकान में रहता है,हमारी झोपड़ी में कैसे आगया? नैनपुर वाला बोला-
“ ये बड़ा अच्छा लड़का है. ऊँच-नीच,जात- पांत नहीं मानता. सेठ है पर गरीबों का हितू है”
“चाय बना दूं” मैंने पूछा
“ नहीं, मैं चाय नहीं पीता”
कुछ देर तक वे दोनों जंगल के कारोबार की बातें करते रहे. फिर मेरा घरवाला मुझसे बोला-
“ मैं अभी आता हूँ. सेठ से लड़के बारे में कुछ बात करना है. तब तक ये यहीं बैठेगा.इसका ध्यान रखना.”
मेरा दिल धड़क उठा.
“क्यों ?” मैंने पूछा
“अरे भोंदू लाला, लड़कियों – औरतों का दिल बात बात पर धडकने लगता है .
“फिर क्या हुआ ?”
“मैंने उससे पूछा , खाना बना दूं “
“नहीं ,मुझे भूख नहीं है “ वह मुझे घूर रहा था. उसकी आँखों से लार टपक रही थी.
वह उठा और मेरे करीब आ गया. मैं डर गई . झोपड़ी में दूसरा कमरा तो था नहीं कि उसमें चली जाती और कुंडी चढ़ा लेती.
वह मेरे अंगों से खेलने लगा.
“फिर” मैं भी सुनकर काँप गया
“फिर क्या ? मैं कोई रंडी हूँ क्या? नैनपुर वाले से इसलिए शादी की थी क्या? मैंने उसे बार बार बरजा,पर जब उसे ज्यादा ही गर्मी चढ़ गयी तो मैनें उठाया सिल बट्टा और दे मारा उसके सिर पर . बैठ गया माथा पकड़कर !और मैं नैनपुर वाले के घर लौटने से पहले ही घर से निकली . एक ट्रक वाले को रोका और आ गई अपने गाँव जमुनिया .”
“सेठ के लड़के ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई?”
“ हूँ….. रिपोर्ट लिखाएगा! बड़े लोग बदनामी से बहुत डरते हैं. वे सारे पाप लुक छुपकर ही करते हैं.”
“नैनपुर वाला ,तुम्हें मनाने नहीं आया ?”
“ क्यों आता? औरत को जो मर्द प्यार करता है वही उसे मना सकता है! उसे क्या मुझसे नेहा था. कोई दूसरी औरत ले आएगा . वो तो सेठ का आदमी है .”
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रामरज भला और शांत चित्त का आदमी है. उम्र 45 के आसपास है .वैसे तो 45 की उम्र कुछ ज्यादा नहीं होती पर दमा की बीमारी के चलते असमय बूढ़ा हो गया है. उसकी घरवाली चार साल पहले सर्प दंश से मर गई थी. दो बच्चे छोड़ गई – एक लड़की आठ साल की और लड़का चार साल का.. अब समस्या थी कि बच्चों की देखभाल कैसे हो? सो उसने दूसरी शादी का विचार किया.
औरत की तलाश का जिम्मा दिया गया भीकम नाई को. रामरज अच्छा खाता पीता किसान था और उससे मोटी इनाम मिलने की उम्मीद थी इसलिए भीकम नाई युद्धस्तर पर अपने मिशन में जुट गया.
उसने जल्दी पता कर लिया कि करीबी गाँव जमुनिया में एक औरत है जो अपने नैनपुर वाले दूसरे पति को छोडकर आ गयी है.
“ मैं अब तीसरी बार किसी मर्द के साथ नहीं रहना चाहती थी. पर औरत की मुश्किल ये है कि एक उम्र के बाद उसे माँ बाप भी नहीं रख पाते. जब माँ बाप सयाने हो जाते हैं तो भाई भौजाइयों की चलने लगती है. भाई तो थोड़ा बहुत राखी बंधवाने की लाज रख भी लें,पर भौजाइयों को काहे की पीरा. कितने ही कंडे थापो, लोग तो यही कहते हैं कि बैठे बैठे खा रही है . और फिर लाला, तुम्हारे जैसे रंडुआ किसी को रंडापा चैन से काटने दें तब न ? गाँव भर के आवारा छैल छ्बीलों से बचके रहना कोई आसान है क्या. सब को लगता है – दो को छोड़ दिया तो अब तीसरे हमीं हैं !”
और इस तरह जमुनिया वाली को उसके माँ बाप और भाइयों ने भीकम के माध्यम से रामरज के घर बैठा दिया. उन्हें तसल्ली हुई कि इस बार रामरज जैसा जात बिरादरी में जाना माना दामाद मिल गया है .
जमुनिया वाली रामरज के घर में आकर पूरी मालिक बन गयी. उसने रामरज की खेती बाड़ी का काम भी सम्हाल लिया. रामरज उसे पाकर धन्य हो गया. उसे सबसे बड़ी खुशी यह थी कि जमुनिया वाली उसके बच्चों से खूब हिलमिल गई थी. ऐसा लगता नहीं था कि ये बच्चे उसकी कोख से नहीं हैं. शायद, उसका प्रतीक्षित मातृत्व इन प्यारे से दो बच्चों को पाकर तृप्त हो गया था. हर बात में ऐब निकालने में माहिर गाँव की औरतें भी जमुनिया वाली की इस मामले में तारीफ करते थीं.
एक दिन वह मुझसे बोली-
“मेरी उम्र 23 की है और मेरी बिटिया 8 की. देखा लाला,मैं 15 साल में माँ बन गई.” वह हंसी और मैं भी हंस दिया .
इस तरह हम दोनों का बतियाना और फिर बात बेबात हँस पड़ना, गाँव के लोगों को चुभता था. भीकम ने तो आदत के मुताबिक किस्सा गढ़ना शुरू भी कर दिया था. पर मैं था सरकारी बाबू. मेरा उठाना बैठना तहसीलदार और दरोगा के साथ भी था. सो, गाँव वालों की हिम्मत मेरे सामने कुछ कहने सुनने की नहीं होती थी.
“ सुनो,भौजी, लोग हमें बदनाम कर देंगे”
“लाला, बेफिकर रहो. गाँव में सभी औरतों के बारे में किस्से चलते हैं. लोगों को दूसरे की औरत के बारे में पता रहता है ,बस अपनी औरत के बारे में पता नहीं रहता. औरतों के बारे में झूठी सच्ची बातें करना मर्दों का शौक है .”
“पर रामरज के कानों में ये बातें पड़ गईं तो”
“रामरज देवता है, उसका मन ऐसी बातों में नहीं रमता.वह तो अपने बच्चों पर जान छिड़कता है और बच्चों की महतारी को याद करता है. कहता है वह बहुत सुंदर थी.”
“सुंदर तो तुम भी कम नहीं हो”
“ हूँ……. तुम्हें लगती हूँगी, पर पहले प्यार की बात ही और है. तुम क्या जानो, ब्रह्मचारी जी !”
सच में रामरज देवता था. बहुत कम बोलने वाला.बोलता भी तो अच्छी बात करता. परनिंदा,छलकपट,गाँव की उठापटक में रूचि नहीं थी उसकी. ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था पर सत्संगी था इसलिए उसे बहुत से दोहे,कवित्त, सवैया,पद याद थे. कभी आग्रह करो तो गाकर सुनाता भी था.लेकिन दमा के कारण जल्दी ही थक जाता. वह अपने स्वास्थ्य को लेकर दुखी रहता था. कहता था- हे भगवान, मुझे अभी मत उठाना. बिटिया बड़ी हो जाए , अपने घर चली जाए, तब तक जिन्दा रखना. मेरी किस्मत अच्छी है कि मुझे जमुनिया वाली मिल गई सो मेरे बच्चे ठीक से पल गए. पर जमुनिया वाली को मुझसे क्या सुख मिला. उसकी उमर ही क्या है? पर गरीबनी मुझ बूढ़े बीमार के साथ बंध गई !
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“क्यों भौजी, बिजौरी वाले को तुमने छोड़ा या उसने तुमको छोड़ा?”
“ लाला, तुमको बड़ा मज़ा आता है दूसरे की ज़िन्दगी में झाँकने में. मैंने तो कभी नहीं पूछा कि तुमने कुछ किया कि अभी तक बस एसई हो ?”
“ मैं इसलिए पूछ रहा हूँ कि तुम्हारी ज़िंदगी पर एक कहानी लिख दूं और फिर उस पर सिनेमा बना दूं ”
“तुम्हें भी औरत में फायदा दिख गया.” मुझे उसका यह कथन भीतर तक भेद गया. मैंने कहा- “ रहने दो, मुझे नहीं जानना”
“ पर मैं तो तुम्हें सुनाऊंगी. नहीं तो तुम भीकम से सुन लोगे. “
“ मैं तब 15 साल की थी. मेरा विवाह बिजौरी वाले से फेरे पड़कर हुआ था. विवाह की जैसी ख़ुशी सब लड़कियों को होती है,मुझे भी हुई थी. पर जल्दी ही सब ख़ुशी माटी में मिल गई”
“क्या हुआ”
“एकाध साल तो उसने मुझे खूब अच्छे से रखा.खूब प्यार करता था मुझे . बिजौरी में उसकी चाय की दूकान थी. मैं दूकान में उसकी मदद भी करती थी. पानी लाती,भट्टी जलाती. दूकान से बहुत ज्यादा आमदनी नहीं थी. घर खर्च मुश्किल से चलता था. पर मुझे इसकी कोई शिकायत नहीं थी. वह अच्छा आदमी था. दिल का भला.”
“यही तो मुझे समझ नहीं आता कि उसे अच्छा भी कहती हो और छोड़ भी दिया.”
“मर्दों को बुरा बनने में देर नहीं लगती. तुम भी अच्छे बने फिरते हो, मौका मिलेगा तो कुछ नहीं छोड़ोगे ?” कहकर वह खिलखिला दी. उसकी हँसी में तीखापन भी था और मिठास भी याने खटमिट्ठी हँसी ! मैं कुछ नहीं बोला .
“एक मास्टर रोज घंसोर से आता था. चाय पीने हमारी दूकान पर भी आता था. लोग कहते थे कि वो गणित में बहुत होशियार है . गाँव में सट्टा कोई नहीं जानता था पर उसने सबको सट्टा सिखा दिया. और ऊपर से जा सत्यानाशी सरकार ने बिजौरी में शराब का ठेका खोल दिया. बस मेरे आदमी की दुनिया बदल गई. सट्टा और शराब ने उसे जानवर बना दिया.
“तुमने समझाया नहीं”
“औरत के समझाने से मर्द समझते नहीं हैं,भड़कते हैं.औरतों पर मूर्ख होने छाप लगी है न ? मैंने उसे रोका तो उसने मेरे हाथ पांव तोड़ दिए. चार छै बार कुट पिट ली . कहाँ तक पिटती. सट्टा में जीतता कम और हारता ज्यादा था. धीरे धीरे क़र्ज़ बढ़ गया सो सारी गुस्सा मुझ पर निकालता.शराब पीकर आता और मुझे रुई सा धुनक देता और फिर थोड़ी देर बाद प्यार जताने लगता. मेरे भाई को जब पता लगा तो वो मुझे जमुनिया लिवा लाया.”
“फिर तुम वापिस नहीं गईं?”
“वो फिर लेने आया ही नहीं?
“क्यों”
“उसकी खबर आती थी कि जैसे गई है, वैसे ही आ जाए. मर्द की ऐंठ और उस पर दारू की अकड़”
“तो तुम एक बार चली जातीं !”
“पिटने और पिटकर साथ सो जाने के लिए ?”
“तुम्हारे भाइयों ने कोशिश नहीं की ?”
“भाइयों ने कहा कि वे अपनी बहन को इस तरह पिटते नहीं देख सकते. वो दारू और सट्टा छोड़ दे तो हम तुम्हें पहुंचा देंगे . अब मैं ठहरी औरत, मायके में बाप और भाइयों की गुलाम और ससुराल में पति की गुलाम. औरत की नकेल मर्दों के हाथ में .”
“याने कहानी ख़तम?”
“ऐसे कैसे खतम.जब तक औरत के पास जवानी तब तक कहानी . जब तीन साल बीत गए और बिजौरी वाला नहीं आया तो हमारे बाप ने हमें नैनपुर वाले के हवाले कर दिया बदले मैं नैनपुर वाले ने बाप को सेठ का क़र्ज़ चुकाने रुपए दे दिए. वैसे बिजौरी वाला अच्छा था. सट्टा और दारु की लत ने थोड़ा बिगाड़ दिया था. हो सकता है मैं साथ रहती तो सुधर भी जाता. आखिर वह मेरा व्याहता था.”
“तुम्हें उसकी याद नहीं आती”
“आती है.” और उसका गला रुंध गया. तभी उसकी बेटी ने आवाज़ दी- मम्मी, मुझे भूख लगी है. और झट से उठकर चली गई.
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जमुनिया वाली सुबह तड़के उठ जाती. गाय – भेंस को सानी देती, गोबर साफ़ करती, पानी लेने हैण्ड पंप पर जाती, खाना बनाती, कपड़े धोती,अनाज की छाना बीनी करती…….. क्या नहीं करती? एक देहाती किसान की औरत के सारे काम करती पर हमेशा हँसती और गुनगनाती. लोगों ने उसे उदास कम ही देखा . हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर. अगर किसी के यहाँ कोई औरत या बच्चा बीमार हो जाए या किसी के यहाँ होना बियाना हो तो तुरंत पहुँच जाती. हिरनी सी चंचल पर अगर किसी ने उल्टा पुल्टा बोल दिया तो सिंहनी सी आक्रामक. एक दिन नारायण महाराज ने कह दिया-
“क्यों जमुनिया वाली, गुड़ के लड्डू कब तक खिलाओगी? बहुत दिन हो गए रामरज के साथ रहते?”
बस क्या था बिफर उठी वह. गालियाँ देते हुए बोली-
“गुड़ के लड्डू खाने का इतना ही शौक है तो अपनी महतारी से कह जाके कि तेरा जैसा एक और बागड़बिल्ला पैदा कर दे” नारायण महाराज की बोलती बंद और बाकी सुनने वाले हें हें करने लगे . पर उस रोज़ जमुनिया वाली घर आकर बहुत देर तक रोती रही.
गाँव से 5-6 किलोमीटर दूर नर्मदा तट पर मकर संक्रांति का मेला भर रहा है. मेला याने गाँव की एकरस जिन्दगी में आनंद उमंग का संचार करने वाला महापर्व! बूढ़े,जवान,औरत,बच्चे सब चले जा रहें हैं मेले की ओर . जमुनिया वाली ने मुझसे कहा-
“लाला, मेला चलते हो ?”
“नहीं, मेरा मन नहीं है .” मुझे पता था कि वह मजाक में ही कह रही है.
“ तुम तो घर घुसा हो. इसीलिए अभी तक कोई मिली नहीं. मेले में चलो तो कोई मिल ही जाएगी”
“तुम अकेले जा रही हो ?”
किशन को बुखार है. सो घर पर अपने दद्दा के पास रहेगा और जानकी अपनी सहेलियों के साथ चली गयी है. मैं अपनी गुइयों के साथ जा रही हूँ. तुम्हारे लिए बुड्ढी के बाल ला दूंगी.”
शाम हो गई थी. लोग लुगाइयां मेले से लौटने लगे थे.अभी जमुनिया वाली नहीं आई थी. रामरज चिंतित था कि देर हो रही है और किशन माँ के लिए रो रहा है .मैं चाय बनाने के लिए स्टोव्ह जला ही रहा था कि भीकम आया और बोला-
“देखा बाबू, जमुनिया वाली का कमाल!”
“क्या कर दिया”
“धोबन दाई ने अभी आकर बताया कि मेले में जमुनिया वाली को बिजौरी वाला मिल गया . न जाने उनकी बीच कैसी खिचड़ी पकने लगी. शाम को लौटते समय वो जमुनिया वाली के पीछे पीछे लग गया. थोड़ा सा अँधेरा होते ही वे दोनों कहीं छुप गए.धोबन दाई ने दो चार आवाजें दीं फिर देर न हो जाए इस डर से जल्दी आ गई. अब बोलो, बाबू,आप कहते हो वो ख़राब औरत नहीं है!”
मैंने और कुछ सुनना समझना नहीं चाहा. मन को धक्का लगा .सोचा यह झूठ भी हो सकता है . गाँव में धोबन दाई के बनिया दादा से इश्क की चर्चा बहुत चलती है. हो सकता है धोबन दाई अपनी बदनामी ढकने के लिए ये नया किस्सा गढ़ रही हो? भीकम बहुत उत्साहित था . उसके हाथ एक नया समाचार आ गया था. सो गाँव भर को सुनांने चल दिया.
एकाध घंटे बाद ,जब अँधेरा हो चुका था, जमुनिया वाली आई.रामरज आंगन में खाट पर पड़ा खांस रहा था. उसने कठोर स्वर में पूछा-
“इतनी देर कहाँ लगा दी?”
“……………………….” वह कुछ नहीं बोली
“धोबन दाई बाबू से कुछ कह रही थी?”
“……………………….” वह कुछ नहीं बोली
तभी किशन दौड़ता हुआ आया और उसके पैरों से लिपटकर रोने लगा. उसने किशन को गोद में उठाया और भीतर चली गई.
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पुनश्च-
“क्यों जमुनिया वाली, बस आख़िरी बात तुमसे पूछ रहा हूँ. उस रोज़ क्या हुआ था , मकर संक्रांति के मेले से लौटते हुए ?”
“ लाला, आखिर तुम भी हो तो मर्द ही. औरतों के बारे में जानने की ललक तुम्हें भी खूब है ! क्या करोगे जानकर ? “
“कहानी पूरी करना है, अभी अटकी हुई है .”
“उस दिन मेले में बिजौरी वाला मिल गया था . वो भी मेले घूमने आया था. पर मैं उसकी बातों से समझ गई थी कि मेले के बहाने वो मुझसे ही मिलने आया था.”
“मतलब तुम अभी भी उसके दिल में हो?”
“क्यों नहीं, वो मेरा व्याहता पति है. और फिर उसने किसी को अभी रखा भी नहीं है ?”
“क्यों,तुम्हारी आस में ?”
“हूँ….. कौन रहेगी उसके साथ, अभी भी दारू और सट्टा में लगा रहता है”
“क्या कह रहा था?”
“ वापिस चलने कह रहा था . बोला- अब नहीं पीटूंगा. अच्छे से रखूंगा.” और फिर वही मर्दों वाली बातें- मैं तुम्हें खूब चाहता हूँ, मैं तुम्हें खूब याद करता हूँ.
“ये तो तुम भी कहती थीं कि वो सच में तुम्हें खूब प्यार करता था.”
“हाँ,करता था, उस दिन भी प्यार करने हो रहा था!
“ धोबन दाई ……………?
“तो ……. क्या हुआ ? आखिर वो मेरा व्याहता पति है. कितनी बार उसके साथ सोई हूँ .मन और शरीर तो मेरे भी है ,लाला !
“फिर तुम उसके साथ गईं क्यों नहीं ?
“औरत को प्यार करने तो हर मर्द एक टांग पर खड़ा रहता है. पर रामरज औरत की इज्जत करता है. और फिर उसने मुझे अपने बच्चे सौंप दिए हैं . रामरज को छोड़ भी दूँ , किशन और जानकी को कहाँ छोड़ूँ ? “
तभी रामरज ने आवाज दी – जानकी को स्कूल जाना है.उसे खाना दे दो .
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नरेश जैन ,
86/3, नेहरू वार्ड, मेन रोड ,
ग़ोटेगाँव – 487118
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मो. 9584624762
ई.मेल. j.naresh1950@gmail.com
Another thing I’ve noticed is the fact that for many people, less-than-perfect credit is the results of circumstances beyond their control. As an example they may happen to be saddled with illness and as a consequence they have higher bills for collections. It would be due to a work loss and the inability to work. Sometimes divorce process can send the funds in a downward direction. Thank you for sharing your opinions on this blog site.