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शहर  में  इक  शोर  है और कोई  सदा नहीं

 

आज महान शायर जौन एलिया की जयंती है। इस मौक़े पर पढ़िए यह पेशकश, प्रस्तुति है शायर सुहैब अहमद फ़ारूक़ी की-

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कोई नहीं  यहाँ ख़मोश, कोई पुकारता नहीं

शह्र  में  इक  शोर  है और कोई  सदा नहीं

नाम ही  नाम  चार  सू,  इक  हुजूम  रूबरू

कोई तो हो मिरे सिवा, कोई मिरे सिवा नहीं

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हज़रात उपरोक्त अशआर हज़रत #जॉन_एलिया  के हैं जिनका आज हैप्पी बड्डे है। जो अमरोहा, हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे।  ख़ाकसार का वतन अमरोहा से सिर्फ बीस किलोमीटर पर है। कहने का मतलब यह है कि मेरे घर से दिल्ली का रास्ता अमरोहे से होकर जाता है। जौन साहब पैदायशी मुसलमान थे, पैदायशी शिया थे।  थे तो थे। भला पैदायश पर किसी का ज़ोर चलता है? हां पैदा होकर उन्होंने आठ बरस की कमसिनी में ही पहले जो दो ज़रूरी काम किए, वो थे इश्क़ करना  और शे’र कहना। वो अलग बात कि उनका पहला इश्क़ सिर्फ अमरूद की कीमत पर बिक गया था। लेकिन उस नामालूम नाबालिग़ बेवफ़ा माशूका के उस बिके हुए इश्क़ की कीमत पर ही  हमें जौन जैसा बलीग़ और पाएदार शायर  मुयस्सर हुआ।  फिर बड़े होकर जौन ने पैदाइशी पहचान वाली सोच से अलग कम्युनिस्ट विचारधारा को अपनाया और सैंतालीस के धार्मिक बंटवारे का विरोध किया और इस पूरे मूवमेंट को अलीगढ़ के लौडों की शरारत क़रार दिया था। अपने पूरे ख़ानवादे के हिजरत करने के बावजूद कामरेड जौन एलिया हिंदोस्तान में ही रहे। लेकिन बचपन के नाकाम इश्क़ की तरह एक बार उनको फिर  ख़ुद से शिकस्त खानी पड़ी और बंटवारे के पूरे दस साल बाद पाकिस्तानी बनने पर मजबूर होना पड़ा। मगर उनकी जीत हार में थी। पाकिस्तान पहुंचकर उनको हिंदोस्तानी जो होना था। आह !उनकी बेबसी उनकी डायरी में छलकती है। बानगी देखिए:-

💐 आज मैं अपने नज्दे-नवाज़ां से अपने मिस्रो-ओ-कनआं अपने तातार-ओ-ख़ुतन अपने वतन से न जाने कब तक के लिए विदाअ’ हो रहा हूँ।

💐 मेरे जाने की तैयारियाँ मुकम्मल हो चुकी हैं। शबनम ओ क़मर मेरे  साथ मसरूफ़ हैं। हम एक दूसरे से बहुत आहिस्ता से बोलते हैं अगर आवाज़ ज़रा बुलंद कर दें तो शिद्दत-ए-ग़म से आवाज़ भर्रा जाएगी।

💐 आह मैं अम्माँ की क़ब्र के क़रीब से गुज़र रहा हूँ।

💐 मेरी रिवायात मुर्दा होती जा रही हैं। मेरी शख़्सियत की तारीख़ का शीराज़ा मुंतशिर हुआ जा रहा है।

💐 आह मेरा  प्यारा  हिंदुस्तान!

 💐मैं पाकिस्तान आ कर हिन्दुस्तानी हो गया।

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यह है  इक  जब्र, इत्तफ़ाक़ नहीं

#जौन होना  कोई  मज़ाक़ नहीं

(जब्र=coercion, अत्याचार)

یہ  ہے  اک  جبر،  اتفاق   نہیں

#جون ہونا کوئی مذاق  نہیں

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तो साहबान ! आज सय्यद हुसैन जौन असग़र नक़वी अमरोहवी साहब का हैप्पी बड्डे है।

सय्यद हुसैन जौन असग़र नक़वी उर्फ़ #जौन_एलिया इतना बड़ा नाम  एक बड़े शाइर का ही होना चाहिए। वैसे नाम में क्या रक्खा है। बस सबकी जान होना चाहिए। उसका एहतराम होना चाहिए।

मेरी और मेरे जैसों की जान, जौन एलिया ऐसा  एक शाइर है जिसका होना एक एहतराम है महज़ इत्तफ़ाक़ और मज़ाक़ नहीं है । उनकी शाइरी एक ऐलान है हुसैनियत का,  जो हर जब्र के ख़िलाफ़ उठती है। ज़िक्र जब हुसैनियत का आया है तो बताता चलूं कि ‘जौन’ हज़रत हुसैन के ग़ुलाम थे और हुसैनियत वह शै है जिसमें हक़ और हक़ की बात कहने के लिए किसी की बैयत की, किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं। यही जौन की शाइरी है जिसको  जौनियत भी कहते हैं। इस जौनियत की ज़िंदगी अलग ही है। आम ज़िंदगी जिसको आम लोग जीना कहते हैं उसके बाद जौनियत शुरू होती है। आम मुहब्बत में मिलन से मुराद बस अपने मेहबूब यानी अपने मतलूब पर पहुंचना है। यह है आम मुहब्बत की लज़्ज़त। लेकिन हज़रात जौनियत वाली मुहब्बत में इन छोटी मोटी दुनियावी लज़्ज़तों का कोई दख्ल नहीं। जॉन की मुहब्बत वाली लज़्ज़त  तमामतर बर्बादियों के बाद मिलती है नहीं समझे?

है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त वर्ना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं

क्या  इजाज़त  है  एक  बात  कहूँ वो मगर ख़ैर कोई बात नहीं

       जैसा कि आप को बता दिया है कि जौन एक ग़ुलाम का नाम था जो हज़रत हुसैन की ग़ुलामी में थे और  ग़ुलामी और बर्बादी को जश्न के लिहाज़ से मनाने वाले बहुत से सुख़न शनास लोग मुर्शिद जौन की शाइरी के ग़ुलाम हैं।  इस ग़ुलामी का लिहाज़ कीजिएगा। नहीं तो अली के वंशज एलिया यानी जौन एलिया ख़ुद लिहाज़ करवा लेंगे।

मैं जो हूँ ‘जौन-एलिया’ हूँ जनाब

इस का बेहद लिहाज़ कीजिएगा

अब शायद जौन एलिया का ‘होना’ समझ में आ चुका होगा।

अब भी नहीं समझ में आया तो मैं यूँ तो नहीं कहूंगा कि आपको  ख़ुदा समझे। जौनियत को और ज़ियादा समझने के लिए आप ये अशआर देखिए और जौनियत समझिए:-

जो  हुआ  जौन  वो  हुआ  भी  नहीं

यानी जो कुछ भी था वो था भी नहीं

जानिए  मैं  चला  गया  हूँ  कहाँ

मैं तो ख़ुद से कहीं गया भी नहीं

दुआओं में याद रखिएगा।

#jaunelia #Jaun_Elia

جون #ایلیا

#جون_ایلیا

جو ہوا جونؔ وہ ہوا بھی نہیں

یعنی جو کچھ بھی تھا وہ تھا بھی نہیں

جانیے میں چلا گیا ہوں کہاں

میں تو خود سے کہیں گیا بھی نہیں

Some excerpts from the diary ‘ Mera Afasana Mera Tarana’ of the legend Jaun Eliya :-

#happybirthday My #Jaun

💐  Today, I have been saying goodbye to my homeland, my Najd, my Canaan, my Khutan, don’t know how long.  {Najd is an old beautiful city in Iraq. Tales of ‘Laila-Majnu’ are famous in the desert of this area. Canaan is a city in Egypt, where Prophet Joseph was born.  Khutan is a district in Tartary region of Turkmenistan. It is famous for musc/musk.These important landmarks are mentioned often as adjective in fiction of middle-east/Urdu.}

💐  Preparations for my departure have been completed. Shabnam and Qamar are busy along with me. We speak very gently to each other, if voice would raise a little bit, then it will be filled with  severity of the grief.

💐  Alas! I am passing near the grave of the mother.

💐  My traditions are dying. The Chronicle of my personality is being scattered. {Sheeraaza- binding thread of a book}

💐  Alas! India, my love.

💐 Coming after Pakistan I became an Indian.

💐 آج  میں اپنے نجد نوازاں اپنے مصرو کنعاں اپنے تاتار و ختن اپنے وطن سے نہ جانے کب تک کے لئے وداع  ہو رہاہوں۔

 💐 میرے جانے کی تیاریاں مکمل ہو چکی ہیں شبنم و قمر میرے ساتھ مصروف ہیں ہم ایک دوسرے سے بہت آہستہ سے بولتے ہیں اگر آو ازذرا بلند کردیں تو شدت ِ غم سے آواز بھر ا جائے گی۔

💐 آہ میں اما ں کی قبر کے قریب سے گزررہاہوں ۔

💐 میری روایات مردہ ہوتی جارہی ہیں میر ی شخصیت کی تاریخ کا شیرازہ منتشر ہوا جا رہا ہے۔

💐 آہ میرا پیارا ہندوستان!

💐 میں پاکستان آکر ہندوستانی ہو گیا ۔

 
      

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