उनके लिए साहित्य मिशन था प्रोफेशन नहीं

आज आधुनिक हिंदी-साहित्य के निर्माताओं में अग्रगण्य शिवपूजन सहाय की ग्रंथावली का लोकार्पण है. शिवपूजन सहाय हिंदी के वैसे लेखक-संपादक थे जिनके लिए साहित्य मिशन था प्रोफेशन नहीं. ऐसे विभूति की रचनाओं से गुज़रना हिंदी साहित्य के उस दौर से गुज़रना है जिस युग में हिंदी के क्लैसिक्स लिखे जा …

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कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है

अदम गोंडवी की ग़ज़लों ने एक ज़माने में काफी शोहरत पाई थी. उस दौर की फिर याद इसलिए आ गई क्योंकि वाणी प्रकाशन ने उनकी शायरी की नई जिल्द छापी है ‘समय से मुठभेड़’ के नाम से. हालांकि इनमें ज़्यादातर गज़लें उनके पहले संग्रह ‘धरती की सतह पर’ से ही …

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क्या सचमुच युवा लेखक मुँह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ है?

प्रतिष्ठित पत्रिका ‘कथन’ के नए अंक में परिचर्चा प्रकाशित हुई है नए कहानी आंदोलन की आवश्यकता को लेकर. इसके साथ प्रसिद्ध लेखक रमेश उपाध्याय जी का साक्षात्कार भी प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सम्पादकीय के हवाले से कहा है कि आज का युवा लेखक मुँह में …

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उसका धन था स्वाधीन कलम

‘युवा संवाद‘ पत्रिका का नया अंक जनकवियों की जन-शताब्दी पर केंद्रित है. इस अंक का संपादन अशोक कुमार पांडे जी ने किया है. इस अंक में कवि गोपाल सिंह नेपाली पर मेरा यह लेख प्रकाशित हुआ है- प्रभात रंजन. ११ अगस्त १९११ को बिहार में नेपाल की सीमा पर बसे …

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जयप्रकाश नारायण की एक दुर्लभ कहानी ‘दूज का चाँद’

कुछ महीने पहले हमने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कहानी ‘टामी पीर’ को आप तक पहुँचाई थी. बाद में प्रो. मंगलमूर्ति जी से यह पता चला कि जेपी ने एक और कहानी लिखी थी ‘दूज का चाँद’. वास्तव में, ‘हिमालय’ में प्रकाशित यह कहानी उनकी पहली कहानी थी जो उन्होंने हिंदी …

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विस्‍मृति के गर्त में अकेले जा रहे हैं हम

कवि-आलोचक और ललित कला अकादमी के अध्‍यक्ष सुप्रसिद्धअशोक वाजपेयी आज सत्तर साल के हो गए. इस अवसर पर उनसे प्रसिद्ध पत्रकार-संस्कृतिकर्मी अजित राय ने उनसे कुछ खरी-खरी बातें कीं. प्रस्तुत है आपके लिए- जानकी पुल. 16 जनवरी 2011 को आप 70 साल के हो रहे हैं। लगभग 50 साल की …

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बग़ैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में

पीयूष दईया की कविताओं को किसी परंपरा में नहीं रखा जा सकता. लेकिन उनमें परंपरा का गहरा बोध है. उनकी कविताओं में गहरी दार्शनिकता होती है, जीवन-जगत की तत्वमीमांसा, लगाव का अ-लगाव. पिता की मृत्यु पर लिखी उनकी इस कविता-श्रृंखला को हम आपके साथ साझा करने से स्वयं को रोक …

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तोहरे बर्फी ले मीठ मोर लबाही मितवा!

लोक-गायक बालेश्वर के निधन को लेकर ज्ञानपीठ वाले सुशील सिद्धार्थ से चर्चा हो रही थी तो उन्होंने बताया कि दयानंद पांडे ने उनके ऊपर उपन्यास लिखा था ‘लोक कवि अब गाते नहीं’. बाद में जब युवा कवि-आलोचक-संपादक सत्यानन्द निरुपम से चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि यह उपन्यास उनके पास …

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सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो: स्वामी विवेकानंद की कविताएँ

आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है. प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ- ================================== समाधि सूर्य भी नहीं है, ज्योति-सुन्दर शशांक नहीं, छाया सा व्योम में यह विश्व नज़र आता है. मनोआकाश अस्फुट, भासमान विश्व वहां अहंकार-स्रोत ही में तिरता डूब जाता है. धीरे-धीरे छायादल लय में समाया जब धारा निज अहंकार …

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यह अघोषित आपातकाल का समय है

कुछ लेखक ऐसे होते हैं जिनके पुरस्कृत होने से पुरस्कारों की विश्वसनीयता बनी रहती है. ऐसे ही  लेखक उदय प्रकाश से दिनेश कुमार की बातचीत आप हिन्दी के साहित्यिक सत्ता केन्द्रों के प्रति आक्रामक रहे हैं। साहित्यिक पुरस्कारों में इनकी अहम भूमिका होती है। बावजूद इसके आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार …

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