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फिल्म समीक्षा

फ़ानूस और मशाल की फ़िल्म कारीगरी

आज पढिए संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज़ ‘हीरामंडी’ पर जाने माने पत्रकार-चित्रकार रवींद्र व्यास की सम्यक् टिप्पणी। रवींद्र जी ने देर से लिखा है लेकिन दुरुस्त लिखा है- =========================== फ़ानूस और मशाल! नमाज़ गूंजती है। शुरुआत होते ही अंधेरे में एक ख़ूबसूरत फ़ानूस चमकता है। काली-भूरी पहाड़ी पर जैसे …

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धीमे-धीमे चले री पुरवइया, पूछे कहाँ छूटी है तू चिरइया

फ़िल्म लापता लेडीज़ पर यह टिप्पणी लिखी है युवा लेखिका विमलेश शर्मा ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ====================== भारतीय कथा-साहित्य में रवीन्द्रनाथ टैगोर से लेकर सत्यजीत रॉय तक के कथानकों-फिल्मांकन में नायिकाओं की अदला-बदली का उल्लेख है; परन्तु किरण रॉव लापता लेडिज में दुलहिनों की अदला-बदली का जो तार्किक-मार्मिक …

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रोमांस की केमिस्ट्री मर्डर की मिस्ट्री: मेरी क्रिसमस

इस बार पंद्रह जनवरी को मैं श्रीराम राघवन की फ़िल्म ‘मेरी क्रिसमस’ देखने गया था। थ्रिलर विधा के मास्टर हैं। उनकी फ़िल्में ‘जॉनी गद्दार’ और ‘अंधाधुन’ बहुत पसंद आई थीं। यह फ़िल्म भी बहुत अच्छी लगी। ख़ासकर ऐसा क्लाइमेक्स तो सोचा भी नहीं था। लेकिन हॉल में इस फ़िल्म को …

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‘अन्नापूर्णी’ फ़िल्म में ऐसा क्या है?

तमिल फ़िल्म ‘अन्नापूर्णी’ को सिनेमाघरों से हटा दिया गया, नेटफ़्लिक्स से हटा दिया गया। आख़िर क्या है इस फ़िल्म में? प्रज्ञा मिश्रा ने इसी पर लिखा है- ================================ तमिल फिल्म है “अन्नापूर्णी ” जो बीते एक दिसंबर को सिनेमा घरों में रिलीज हुई और चुपचाप उतर भी गयी और फिर २९ दिसंबर …

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पहले प्रेम की दारुण मनोहारी वेदना का आख्यान : ‘कॉल मी बाई योर नेम’ और ‘कोबाल्ट ब्लू’

हाल में आई फ़िल्म ‘कोबाल्ट ब्लू’ और तक़रीबन पाँच साल पुरानी फ़िल्म ‘कॉल मी बाई योर नेम’ पर यह टिप्पणी युवा लेखिका और बेहद संवेदनशील फ़िल्म समीक्षक सुदीप्ति ने लिखी है। सुदीप्ति फ़िल्मों पर शानदार लिखती हैं लेकिन शिकायत यह है कि कम लिखती हैं। फ़िलहाल यह टिप्पणी पढ़िए- =================== …

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कोबाल्ट ब्लू : लेबलिंग से पूरी तरह से गुरेज

नेटफलिक्स पर एक फिल्म है ‘कोबाल्ट ब्लू’, इसकी बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है किंशुक गुप्ता ने। किंशुक गुप्ता मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ लेखन से कई वर्षों से जुड़े हुए हैं। अंग्रेज़ी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कविताएँ और कहानियाँ प्रकाशित। द हिंदू, द हिंदुस्तान टाइम्स, द …

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  ‘सरदार उधम’ : एक क्रांतिकारी को विवेक सम्मत श्रद्धा–सुमन

आजकल ‘सरदार उधम’ फ़िल्म की बड़ी चर्चा है। इसी फ़िल्म पर यह विस्तृत टिप्पणी लिखी है मनोज मल्हार ने, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं। आप भी पढ़िए- ========================= सरकारें अक्सर अपनी विचारधारा के अनुरूप कला , संस्कृति और सिनेमा को प्रोत्साहित करती है. कांग्रेस की सरकारें पहले धर्मनिरपेक्षता …

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हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है!

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पंचलैट’ पर बनी फ़िल्म के ऊपर यह टिप्पणी की है साक़िब अहमद ने। साक़िब किशनगंज में रहते हैं और पुस्तकालय अभियान से जुड़े हैं। आप भी पढ़ सकते हैं- ====================== (पंचलैट के सिनेमाई प्रस्तुतिकरण की मुश्किलें और दुश्वारियां) क्या हर रचनात्मकता को कलात्मकता मान लेना चाहिए? …

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सुंदरता का दारुण दुख: इज लव एनफ सर?

आजकल फ़िल्म देखने के इतने माध्यम हो गए हैं कि कई बार अच्छी फ़िल्मों का पता ही नहीं चलता। ‘इज लव एनफ सर’ भी एक ऐसी ही फ़िल्म है। नेटफ़्लिक्स पर मौजूद इस फ़िल्म के बारे में मुझे पता भी नहीं चला होता अगर सुदीप्ति की लिखी यह टीप नहीं …

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सोशल मीडिया की असलियत बताने वाली फ़िल्म है ‘द सोशल डिलेमा’

प्रज्ञा मिश्रा ब्रिटेन में रहती हैं और समय-समाज से जुड़े मुद्दों को लेकर जानकी पुल पर नियमित लिखती हैं। उनकी यह टिप्पणी जेफ़ ओरलोवसकी निर्देशित डोक्यूड्रामा ‘सोशल डिलेमा’ पर है। आप भी पढ़िए- ============= पिछले कुछ सालों में न जाने कितनी बार यह बात कही और सुनी गयी है कि …

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