समकालीन हिंदी कविता की एक मुश्किल यह है कि वह ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने के प्रयास में अधिक रहती है, लेकिन कुछ कवि ‘करेक्ट’ होने के लिए भी लिखते हैं, मनुष्यता के इतिहास में करेक्ट होने के लिए. छत्तीसगढ़ के सुकमा में हाल की हत्याओं के बाद प्रियदर्शन की यह कविता …
Read More »के. विक्रम सिंह हमारी स्मृतियों में बने रहेंगे
के. विक्रम सिंह साहित्य और सिनेमा के बीच सेतु की तरह थे. ‘उन्होंने ‘तर्पण’ जैसी फिल्म बनाई, ‘जनसत्ता’ और ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में स्तम्भ लिखे. कल उनका निधन हो गया. आज ‘जनसत्ता’ में उनको बहुत आत्मीयता से याद किया है प्रियदर्शन ने. आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ- जानकी पुल. ================================================================= …
Read More »आगबबूला और झागबबूला
विनोद खेतान की किताब ‘उम्र से लंबी सड़कों पर’ की समीक्षा कुछ दिनों पहले प्रियदर्शन ने लिखी थी, जिसके बहाने उन्होंने गुलजार का गीतकार के रूप में एक मूल्यांकन भी करने की कोशिश की थी. उसका एक प्रतिवाद कल ‘जनसत्ता’ में निर्मला गर्ग का छपा था. यह प्रियदर्शन का जवाब …
Read More »यह उम्मीद है जो हमें बचाए रखती है
प्रियदर्शन मूलतः कवि हैं और हाल के दिनों में कविता में जितने प्रयोग उन्होंने किए हैं शायद ही किसी समकालीन कवि ने किए हों. प्रचार-प्रसार से दूर रहने वाले इस कवि की कुछ नई कविताएँ मनोभावों को लेकर हैं. आपके लिए- जानकी पुल. ======================================= कुछ मनोभाव प्रेम और घृणा प्रेम …
Read More »‘उम्र से लंबी सड़कों पर’ गुलजार
गुलजार के गीतों पर केंद्रित विनोद खेतान की पुस्तक आई है ‘उम्र से लंबी सड़कों पर’. इस पुस्तक के बहाने गुलजार के गीतों पर प्रियदर्शन का एक सधा हुआ लेख- जानकी पुल. ============================================= क्या फिल्मी गीतों को हम कविता या कला की श्रेणी में रख सकते हैं? प्रचलित तर्क कहता है …
Read More »कान्हा में कविता और कंगाली में कवि
‘कान्हा में कविता’ प्रसंग में वरिष्ठ लेखक-कवि-पत्रकार प्रियदर्शन का यह लेख कुछ अधिक व्यापक संदर्भों में इस पूरे प्रसंग को देखने की मांग करता है- जानकी पुल. =========================================== पिछले दिनों हिंदी के एक प्रकाशन गृह शिल्पायन ने कान्हा के अभयारण्य में एक बड़ा कवि सम्मेलन या सम्मिलन किया। इस आयोजन …
Read More »पैसे भले कुछ बढ़ गए हों मनुष्यता कुछ घट गई है
प्रियदर्शन मेरे प्रिय कवि हैं. शायद इसलिए कि उनकी कविता अक्सर हमारे साधारण जीवन के इर्द-गिर्द से अपने विषय उठाती है, उसको बयान करती है. सादगी के वैभव के इस कवि की कविताओं में अक्सर मैं अपनी आवाज पाने लगता हूं. जैसे यह कविता- प्रभात रंजन ======================x===============x======================== पैसे एक बहुत …
Read More »राग और विराग से बनी प्रभाष परम्परा
प्रभाष जोशी की 75 वीं जयंती पर यशस्वी पत्रकार प्रियदर्शन का यह आलेख उस परंपरा की बात करता है जिसने हिंदी पत्रकारिता में बहुत से ‘एकलव्यों’ को प्रेरित किया. उन्होंने जनसत्ता नामक एक अखबार की शुरुआत की जो अपने आप में एक परंपरा बन गई, सच्चाई और विवेक की परंपरा- …
Read More »यह सिर्फ एक शख्स के जाने का शोक नहीं था
अरुण प्रकाश को याद करते हुए यह कविता हमारे दौर के महत्वपूर्ण कवि प्रियदर्शन ने लिखी है. प्रियदर्शन की यह कविता केवल अरुण प्रकाश को श्रद्धांजलि ही नहीं है दिल्ली के ठंढे पड़ते साहित्यिक माहौल को भी एक तरह से श्रद्धांजलि है. कविता को पढकर मैं तो बहुत देर तक …
Read More »हिंदी के गौरव का सवाल गौरव सोलंकी के सवाल से कहीं ज़्यादा बड़ा है
ज्ञानपीठ-गौरव प्रकरण ने हिंदी के कुछ बुनियादी संकटों की ओर इशारा किया है. लेखक-प्रकाशक संबंध, लेखकों की गरिमा, पुरस्कार की महिमा को लेकर कई लेख लिखे गए. आज प्रसिद्ध कवि-लेखक-पत्रकार प्रियदर्शन का यह लेख इस पूरे प्रकरण को व्यापक परिदृश्य में देखे जाने का आग्रह करता है- जानकी पुल. ——————————————————————————- …
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