युवा कवि नीरज शुक्ल की कुछ नई कविताएँ पढ़ी तो उनमें मुझे ताजगी महसूस हुई. आपसे साझा कर रहा हूं- प्रभात रंजन
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विस्मृति
तुम्हारी स्मृतियों में कहीं गुम हो गया हूँ मै
जो तुम्हे तकरीबन याद नहीं
उस एक दुनिया का
नागरिक हूँ
तुम्हारी खोयी हुयी पेंसिलों, आलपिनों,रबर के टुकड़ों,
नेल पालिश की रिक्त शीशियों के बीच
बस गया हूँ
झाड़ी में तुम्हारी गुम हुई गेंद
अब मिल गयी है मुझे
रख दी है मैंने
धो पोंछ कर सम्हाल कर
दिन भर सहेजता हूँ
तुम्हारा कटा हुआ नाखून
रखता हूँ इधर मिलता है उधर
तुम्हारी हेयरबैंड पर
झूलता हूँ झूला
आलपिनो पर सूखते है कपडे मेरे
लेता हूँ करवटें तुम्हारी रुमाल पर
जिन रास्तों से तुम मेमने की तरह आती थी
उन्ही पर भटकता हूँ आवारा
घुमड़ती है यहाँ तुम्हारे साँसों की गर्म हवा
बरसता है जोर जोर से जल
खेलता हूँ भीगता हूँ
तुम्हारे खोये पेन बॉक्स में
नहीं तो रहता हूँ छिपा
पुकारती है यहाँ चिड़िया मुझे
नींद से जगाते हैं तिनके
स्वप्न में तैरते हैं टूटे पत्ते साथ साथ
तितलियाँ दौड़ाती हैं खूब
अपने पीछे मुझे
ये तुम्हारी छोड़ी हुयी दुनिया का हवाला है
जहाँ बाकी है तुम्हारे होने की गमक
तुम्हारी चीजों के निशाँ
और तुम्हारी स्मृतियों के गर्भ में
किसी अजन्मे बीज की तरह
गुम हो गया हूँ मै.
असफलताएं
रहता हूँ जहाँ
मच्छरों, छिपकलियों और चूहों की तरह
घेरे रहती हैं मेरी असफलताएं मुझे
डालता हूँ जूतों में पैर तो
फुदक कर आ जाती है सामने कोई एक
बदलता हूँ करवट तो
चुभता है किसी का डंक
कानों में इनकी भिन भिन से मानो
सूख गया है आत्मा का संगीत
झाड़ता हूँ कमीज
की कहीं कुतर न दिया हो किसी ने
कंधे पे काढ़ा फूल
बटुए में हर रोज सम्हालता हूँ प्रेमपत्र
करता हूँ जतन कि
न पहुंचे इन तक उन विषधर के दांत
जितना भागता हूँ
घिरता जाता हूँ मैं निहत्था
अपरिचय
आपको बाइफ़ेस जानता हूँ
पर नाम याद नहीं आ रहा
कहीं मिले होंगे जरूर
रेल बस या मेले में
सब्जी या जूते खरीदते
हो गया होगा आमना सामना
लेटर बाक्स में चिट्ठी डालकर मुड़े होंगे आप
तो टकरा गए होंगे मेरे कंधे से
हो सकता है फेसबुक पर हम मित्र ही हों
या रिक्शे से उतर कर आपने पूछा हो
कही जाने का रास्ता
नहीं तो अपने गुम हुए पिता की फोटो दिखा कर
पूछा हो उनकी बाबत
आप सर्कस के बाजीगर, नेता या टीवी कलाकार तो लगते नहीं
आप कवि होंगे शायद
किसी कविता के साथ देखी होगी तस्वीर आपकी
जो बची रही दिमाग में
थोड़ी थोड़ी
इसमें शक नहीं
खुशी हुई आपसे मिल कर
पर आपके पहचाने चेहरे को
नहीं दे पा रहा हूँ नाम कोई
दो टूक
(अदम गोंडवी साहब की पहली पुण्यतिथि पर )
जिनके कट्टा उनकी सत्ता
ये फेंटे सत्ते पे सत्ता
सत्ता की छत्ता में देखो
ये घुमड़े मदमत्ता
हाथ में साधे छूरी चाकू
मुंह में चांपे पान का पत्ता
संसद में भरें कुलांचे
भये इकठ्ठा सारे लत्ता
जनता के दुःख सुख खट्टा मिट्ठा
मुद्दे हो गए दही और मट्ठा
कान में लुकड़ी डाल के
सोयें मुलुक के करता धरता
जो चाहे वो बहे बिलाए
इनको तो बस
कोई फरक नहीं अलबत्ता
अच्छी कवितायें हैं …बधाई