भाषा के मसले पर वर्ष 2013 की शुरूआत बड़ी विस्फोटक रही। कोठारी कमेटी की सिफारिशों के अनुसार वर्ष 1979 से चली आ रही सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय भाषाओं को इस वर्ष के शुरू में लगभग बाहर का रास्ता दिखा दिया था । तसल्ली की बात यह है कि इस मसले पर भारतीय भाषाओं के पक्ष में पूरा देश उठ खड़ा हुआ और सरकार को पुरानी स्थिति पर लौटना पड़ा । इस पूरी बहस में बार-बार दौलत सिंह कोठारी का नाम सामने आया । 6 जुलाई को उनके जन्मदिवस पर स्मृति लेख- शिक्षाविद प्रेमपाल शर्मा का एक विचारोत्तेजक लेख।
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एकवैज्ञानिक, शिक्षाविद, भारतीय भाषाओं के संरक्षकव आध्यात्मिक चिंतक के रूप में डॉ. दौलत सिंह कोठारी अद्वितीय हैं । फिर भी डॉ. कोठारी के योगदान का सम्यक मूल्यांकन होना अभी बाकी है । शिक्षा आयोग (1964-66), सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए गठित कोठारी समिति, रक्षा विशेषज्ञ एवं विश्वविद्यालय आयोग और अकादमिकक्षेत्रों में प्रो. दौलत सिंह कोठारी के योगदान को उस रूप में नहीं पहचाना गया जिसके कि वे हकदार हैं । स्वतंत्र भारत के निर्माण जिसमें विज्ञान नीति, रक्षा नीति और विशेषरूप से शिक्षा नीति शामिल हैं, को रूपदेने में प्रो. कोठारी का अप्रतिम योगदान है । 2006 मेंउनकी जन्मशती थी लेकिन शायद ही किसी ने सुना होगा । जयपुर से निकलने वाली पत्रिका अनौपचारिक (संपादक : रमेशथानवी) ने एक पूरा अंक जरूर उन पर निकाला था । वरना छिट-पुट एक दो लेखों के अलावा बहुत कम उनके बारे में पढ़ने-सुनने को मिला ।
पहलेसंक्षेप में डॉ. कोठारी का परिचय : – जन्म1906 उदयपुर, राजस्थान में और मृत्यु 1993 में । गरीब सामान्य परिवार । मेवाड़ के महाराणा की छात्रवृत्ति से आगे पढ़े । 1940 में 34 वर्ष की आयुमें दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त । इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने-माने भौतिकशास्त्री मेघनाथ साहा के विद्यार्थी रहे । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लार्ड रदरफोर्ड के साथ पीएच.डी. पूरी की । लार्ड रदरफोर्ड ने दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्कालीन वाइस चांसलर सर मॉरिस ग्वायर को लिखा था कि ‘मैं बिना हिचकिचाहट कोठारी को कैम्ब्रिजविश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त करना चाहता हूँ परंतु यह नौजवान पढ़ाई पूरी करके तुरंत देश लौटना चाहता है ।’
भारतके प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को विज्ञान नीति बनाने में जिन लोगों ने सहयोग दिया उनमें डॉ. कोठारी, होमी भाभा, डॉ. मेघनाथसाहा और सी.वी. रमन थे । डॉ. कोठारी रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे । 1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां वे दस वर्ष तक रहे । डा. कोठारी ने यू.जी.सी. के अपने कार्यकाल में शिक्षकों की क्षमता,
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