11 को लोकनायक और महानयक दोनों का जन्मदिन पड़ता है. लोकनायक धीरे धीरे दूसरी आजादी के झूठ की तरह हमारी स्मृतियों से मिटते गए लेकिन महानायक का कद बढ़ता गया. बहरहाल, इस विडम्बना पर पत्रकार, कवि अनुराग अन्वेषी ने यह व्यंग्य लिखा है. पढियेगा- मॉडरेटर.
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11 अक्टूबर की बिग पार्टी का हैंगओवर उतरा भी नहीं था कि बिग बी को जूनियर बी ने उठा दिया। एक बुड्ढा मिलने आया है आपसे। खुद को सत्तर के दशक का हीरो बता रहा है – जूनियर बी ने कहा था। बिग बी चौंके कि अरे, अभी तो रात में मिले थे दिलीप साहेब…फिर इतनी सुबह-सुबह क्यों आए भला। इस सवाल से जूझते हुए बिग बी ने तुरंत जूनियर को झाड़ लगाई, यह कोई तरीका है दिलीप साहेब के लिए ऐसा बोलने का? जूनियर बी ने कहा, अरे पापा। दिलीप अंकल को नहीं पहचानूंगा क्या। ये बुड्ढा अपना नाम जेपी बताता है।
अब चौंकने की बारी बिग बी की थी। दिमाग पर खूब जोर डाला कि ये जेपी कौन है? जब नहीं याद आया तो चल पड़े जलसा के आराध्या हॉल में, जहां जेपी को बैठाया गया था। पहचाना नहीं लेकिन कुशल कलाकार की तरह मुस्कुराते हुए पूछा, अरे आप! कैसे हैं? इतनी सुबह-सुबह इधर आना कैसे हुआ?
जेपी : शुक्र है कि तुमने मुझे पहचान लिया, तुम्हारे बेटे ने तो मुझे पहचाना भी नहीं।
बिग बी : अरे जनाब, ये नई पीढ़ी के बच्चे… खैर जाने दें, उनकी ओर से मैं क्षमाप्रार्थी हूं। और दरअसल क्षमाप्रार्थी तो मुझे ही होना चाहिए न कि इतनी समझ भी मैं उसमें पैदा नहीं कर सका जैसा मेरे पिता ने मेरे भीतर कर दिया था। अरे हां, आप बताएं, इधर कैसे आना हुआ।
जेपी : जब मैं यहां के लिए चला था तो सोच रहा था कि कोई मुझे घुसने भी देगा भला? वो तो शुक्र है आपके उस बूढ़े गार्ड का। उसने मुझे पहचान लिया। राममेहर… हां यही नाम बताया था उसने। और देखिए उसकी श्रद्धा कि उसने मेरे पांव छुए। बताया कि 74 के छात्र आंदोलन में वह मेरे साथ था, बिहार के किसी छोटे इलाके के छात्रों की अगुवाई करता था।
बिग बी की आंखों में चमक आ गई, यह सोचकर कि बातों ही बातों में मैंने इन्हें पहचान लिया और इन्हें पता भी नहीं चलने दिया कि पहचान नहीं पाया था। उनकी आवाज में और अधिक मिठास घुल चुकी थी। कहा – अरे बाबूजी, भला आपको कौन नहीं पहचानेगा? आखिर आप लोकनायक रहे हैं।
जेपी : यही तो मैं भी पूछने चला आया कि आखिर इस लोकनायक के जन्मदिन को भूल लोग सिर्फ महानायक के जन्मदिन में डूबे क्यों रहे?
बिग बी : मतलब? अरे हांsss, कल आपका भी तो जन्मदिन था।
जेपी : देखो, मुझे घुमा-फिरा कर पूछने की आदत न पहले थी, न अब है। कैसे मैनेज करते हो यह सब कि हर तरफ तुम्हारे ही जयकारे लगते हैं, तुम्हारी ही धूम मची होती है।
बिग बी : देखिए बाबूजी, उम्र में तो आप हमारे बाप लगते हो, मगर नाम हमारा भी है शहंशाह। मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता, पर सच है कि पैसा आज भी फेंकता हूं। बस्स, यहीं चल जाता है हमारा जादू कि सत्तर के दशक का लोकनायक भले लोगों को याद न रहे पर बहत्तर का होकर भी महानायक याद रह जाता है।
जेपी : …पर वह जो भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकी थी मैंने, जिस सुनहरे देश के सपने देखे थे मैंने, लड़ने का जो तरीका सिखाया था मैंने… संपूर्ण क्रांति…क्या वो सब के सब बेकार थे?
बिग बी : ऐसे कमजोर न पड़ें बाबूजी। देखिए, आपके आदर्शों को हमने अपने जीवन में उतारा है। आपके खेमे से पैदा हुए नीतीश, लालू, सुशील मोदी… सब के सब तो आपके ही चेले हैं। सबकी मंजिल वही है – कांग्रेस की सत्ता उखाड़ फेंकना। हां, यह अलग बात है कि सबके रास्ते अलग-अलग हैं। कोई साथ रहकर जड़ में मट्ठा डालने का काम कर रहा है तो कोई बड़ी मछली का शिकार करने के तरीके से फांस को कभी ढील दे रहा है तो कभी खींच रहा है। सब अपनी बारी का धैर्य से इंतजार कर रहे हैं।
जेपी को गहरे सोच में डूबा देख बिग बी ने कहना जारी रखा – और मैं…मैं तो फिल्मों के जरिए आपकी संपूर्ण क्रांति को जगाए रखा हूं। मेरी फिल्मों में आप अपने सातों क्रांति का रस देख सकते हैं।
जेपी के चेहरे पर न हताशा दिख रही थी न क्षोभ। वह तटस्थ भाव से उठे और बाहर की ओर चल दिए। बिग बी ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने इशारे से उन्हें रोक दिया और सिर्फ इतना ही कहा : मैं जानता हूं कि तुम जहां खड़े होते हो लाइन वहीं से शुरू हो जाती है, पर तुम्हारे पीछे खड़े लोगों को यह सोचने की जरूरत है कि आखिर वह लाइन जाती कहां है? इतना कहकर जेपी तेज कदमों से बाहर की ओर निकल गए।
मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। सपना देख रहा था। मेरी नींद तो टूट गई, पर सच बताना आपकी नींद कब टूटेगी?
लेखक संपर्क: anuraganveshi@gmail.com
बहुत खूब। कुछ वइसे ही जैसे 2 अक्टूबर को हम शास्त्री जी को भूल जाते हैं गांधी जी के सामने।
लो, पढनेवाले को पता भी न चला , उससे कितना-कुछ कह दिया गया. बधाई
झकझोरने वाला.
सटीक.