‘उड़ता पंजाब’ के हल्ले में नागेश कुकनूर की फिल्म ‘धनक’ की चर्चा ही नहीं हुई. आज लेखक रवि बुले की समीक्षा पढ़ते हैं फिल्म ‘धनक’ पर- मॉडरेटर
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—-हैदराबाद ब्लूज (१९९८), इकबाल (२००५) और डोर (२००६) जैसी फिल्में बनाने वाले नागेश कुकुनूर एक बार फिर रंगत में हैं। धनक का अर्थ है, इंद्रधनुष। मगर कहानी के केंद्र में मौजूद छोटू (कृष छाबड़िया) देख नहीं सकता! उसकी बहन परी (हेतल गाडा) सपना देख रही है कि इलाज कराने पर भाई की आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी। दोनों के माता-पिता नहीं हैं। वे चाचा-चाची के पास रहते हैं, जो मुश्किल से घर चला पाते हैं। ऐसे में परी भाई के इलाज के लिए अपने पसंदीदा सितारे शाहरुख खान से मदद मांगती है। उसे लगातार चिट्ठियां लिखती है। मजेदार बात यह कि छोटू शाहरुख के विपरीत सलमान खान का फैन है। भाई-बहन अपने पसंदीदा सितारे को दूसरे से बेहतर बताते हुए हर समय झगड़ते रहते हैं।
जिंदगी में स्मॉल मिलाते जाएं तो लार्ज अपने आप बन जाता है। धनक की कहानी ऐसी ही है। जिंदगी की छोटी-छोटी तस्वीरें मिल कर यहां एक बड़ा फ्रेम तैयार है। जिसमें छोटू और परी की लंबी यात्रा है, जहां जीवन के प्रति सहज विश्वास और दूसरों के लिए स्नेह है। उन्हें भरोसा है जिस लक्ष्य को पाने के लिए निकले हैं अंततः उसे हासिल कर लेंगे। शाहरुख खान जैसलमेर में शूटिंग कर रहा है… यह खबर उन्हें मिलती है तो दोनों घर से भाग जाते हैं। शाहरुख की एक फिल्म का संवाद हैः कहते हैं अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। क्या शाहरुख खान बच्चों को मिलता है? उनकी मदद करता है? फिल्म अंत तक बांधे रखती है।
नागेश ने फिल्म को खूबसूरती से शूट किया है। राजस्थान के रंग फिल्म को आकर्षक बनाते हैं और संगीत अच्छा है। बातूनी और हर बात को बढ़ा-चढ़ा कर बताने वाले कृष के हिस्से में चुटीले संवाद हैं। नेत्रहीन के रूप में उन्होंने बढ़िया अभिनय किया है। वहीं हेतल सचमुच कृष की बड़ी बहन लगती हैं। जो हर कदम पर भाई के साथ है। उसकी जिंदगी में मां और पिता, दोनों के अभाव को पूरा करती।
एक अच्छी फिल्म आपकी भावनाओं में ज्वार-भाटा पैदा करती है। उसमें सच भी होता है और जादू भी। वह हंसाती भी है और रुलाती भी। वह भावुक भी बनाती है और गुस्सा भी दिलाती है। वह छोटों के लिए भी होती है और बड़ों के लिए भी। वह रिश्तों का ताना-बाना भी दिखाती है और दुनियादारी की रस्साकशी भी। धनक ऐसी ही फिल्म है। इसमें तमाम रंग हैं। इंद्रधनुष की तरह। परंतु यह इंद्रधनुष विदेशी सिनेमा का चश्मा पहने और अपने सर्वज्ञानी होने के अहंकार में अंधे हुए लोगों को नहीं दिख सकता। धनक ऐसी फिल्म है जिसे आप बच्चों के दिखाने के लिए सिनेमाघरों में ले जा सकते हैं। आप भी बिना हिचक देख सकते हैं। पैसा तो वसूल होगा ही। फिल्म के कुछ रंग आपकी आंखों में डूब कर साथ चले आएंगे।
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