1.
एक तरफ हिंदी के बड़े प्रकाशक यह कहते हैं कि हिंदी में कविता की किताबें नहीं बिकती हैं. दूसरी तरफ, हिंदी के नए-नए प्रकाशक कविता की किताब बड़े प्यार से छापते हैं. अभी हाल में ही Anybook प्रकाशन ने जौन इलिया का दीवान छापा है. मेरे हाथ में फिलहाल copper coin प्रकाशन से प्रकाशित विनोद भारद्वाज का कविता संग्रह ‘होशियारपुर’ है. विनोद जी हिंदी में सिनेमा पर बेहतरीन लिखने वाले विद्वानों में रहे हैं. लेकिन उन्होंने लेखन की शुरुआत कविताओं से ही की थी. बहुत दिनों बाद उनकी सम्पूर्ण कविताएँ एक जिल्द में आई हैं. उसी संग्रह से कुछ कविताएँ- मॉडरेटर

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1.
उदास आँखें
जब तुम्हारी उदास आँखों को
देखता हूँ
तो लगता है कि आज ईश्वर को किसी ने
परेशान किया है
जब तुम्हारी उदास आँखों को
देखता हूँ
तो अमृत के किसी हौज में
कोई कंकड़ कहीं से उछलता है
आकर गिरता है.
तुम्हारी उदास आँखों में
दुनिया भर की सुन्दरता का दर्द है
भय है
नजाकत है तुम्हारी उदास आँखों में
तुम रोने के बाद
आईने में जब देखती हो
तो माफ़ कर देती हो इस दुनिया को
तुम चुपचाप एक कोने में
सिमटकर बैठ जाती हो
जब तुम्हारी उदास आँखों को देखता हूँ
डरता हूँ
काँपता हूँ
फिर ईश्वर की तरह चाहता हूँ
इन उदास आँखों को
इन आँखों के पीछे
कई सारी आँखें हैं
क्षण भर के लिए उदास
क्षण भर के लिए बहुत पास
इन उदास आँखों को देखता हूँ
तो लगता है कि
ईश्वर को किसी ने गहरी नींद से
जगाया है
कि देखो दुनिया कितनी उदास हो चुकी है
२.
आंच
मेरी आँखों में आग है
तुमने बहुत ख़ामोशी में कहा
इसकी तेज आंच
कहीं तुमको तपस्वी न बना दे
3.
सच्चाई
एक ख़ूबसूरत-सी ख़ामोशी में तुमने
कहा
मेरी आँखों में ढेर सारी सच्चाईयां हैं
तुम अपनी आँखों से ताकत का नशा
और झूठ के परदे उतारो
तो वे चमक जाएँगी
4.
छलांग
तुम कह रहे हो
तुमने उससे सचमुच प्रेम किया
नेरुदा की प्रेम कविताएँ उसे सुनाई
केदारनाथ सिंह की कविताएँ भी उसे सुनाते थे
फिर वह पीड़िता कैसे बन गई तुम्हारी
नहीं सर, आपसे मैं सहमत हूँ
यह धरती पीड़िताओं से भरी पड़ी है
मैं भ उनके लिए लड़ता रहा हूँ
पर आप एक बार सोचिये तो सही
इस धरती पर क्या कोई पीड़ित नहीं हो सकता है?
यह कहते कहते उसने छलांग लगा दी
ठंढ की उस अजीब रात में
उसका लाल मफलर अँधेरे में उड़ता रहा.
५.
ठंढ
इस बार ठंढ में
एक इच्छा है
शकरकांड खाने की
आग में उसे तपता हुआ देखने की
घर जाने की.
प्रकाशक- copper coin,
www.coppercoin.co.in
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा – 2459 में दिया जाएगा
धन्यवाद
कमाल की प्रेम कविताएँ… नहीं तो प्रेम कविताओं में प्रेम कहाँ है यह अक्सर ढूँढ़ते ही रह जाना पड़ता है।
प्रेम की अदभुत अभिव्यक्ति..विनोद जी अपने समकालीनों में अलग है .