युवा शायर सीरीज में आज पेश है अभिषेक शुक्ला की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ======================================================
ग़ज़ल-1
हर्फ़ लफ़्ज़ों की तरफ़ लफ़्ज़ म’आनी की तरफ़
लौट आए सभी किरदार कहानी की तरफ़
होश खो बैठा था मैं ज़र्दी-ए-जाँ से और फिर
इक हवा आई उड़ा ले गई पानी की तरफ़
पहले मिसरे में तुझे सोच लिया हो जिसने
जाना पड़ता है उसे मिसरा-ए-सानी की तरफ़
दिल में इक शख़्स की उम्मीद का मरना था कि बस
धड़कनें खिंचने लगीं मर्सिया-ख़्वानी की तरफ़
चश्म-ए-वीरां को बहरहाल ख़ुशी है इसकी
ख़्वाब राग़िब तो हुए नक़्ल-ए-मकानी की तरफ़
जब फ़िज़ा उसके बदन-रंग की हो जाएगी
ग़ौर से देखेंगे हम अपनी जवानी की तरफ़
हम तो इक उम्र हुई अपनी तरफ़ आ भी चुके
और दिल है कि उसी दुश्मन-ए-जानी की तरफ़
उस से कहना कि धुआँ देखने लायक होगा
आग पहने हुए जाऊँगा मैं पानी की तरफ़
दिल वो दरिया है मिरे सीना-ए-ख़ाली में कि अब
ध्यान जाता ही नहीं जिसकी रवानी की तरफ़
उठने लगती है मिरे जिस्म से इक बू-ए-फ़िराक़
रात देखूँ जो कभी रात की रानी की तरफ़
ग़ज़ल-2
किसी तरह की इबादत रवां नहीं रखूँगा
सनम रखूँगा मैं दिल में ख़ुदा नहीं रखूँगा
तमाम उम्र गुज़ारूँगा आबयारी में
कुछ इस तरह से मैं ख़ुद को हरा नहीं रखूँगा
मैं जम के सोऊँगा आऊँगा ख़्वाब में मिलने
फ़िराक़ में भी कोई रतजगा नहीं रखूँगा
जो आने वाले हों पहले से इत्तेल’आ करें
कि उम्र भर तो मैं ख़ुद को खुला नहीं रखूँगा
बुझाए देती थी ये मेरी धड़कनों के चिराग़
सो मैं भी सीने में अब के हवा नहीं रखूँगा
कुछ एक साँसों कुछ एक धड़कनों के दूरी बस
मैं तुझ से दूर और कोई फ़ासला नहीं रखूँगा
कहेगा तू कि ये हुस्न-ए-तज़ाद है लेकिन
मैं ख़ामोशी के मुक़ाबिल सदा नहीं रखूँगा
ग़ज़ल-3
न जाने कितने उरूज-ओ-ज़वाल बदलेगा
ये इक सितारा अगर अपनी चाल बदलेगा
ब-ग़ौर देख मैं वो बे-नियाज़ वहशी हूँ
ख़ुशी से अपनी जो तेरे मलाल बदलेगा
तू इसके साए में आया था आ के बैठ गया
ये पेड़ हिज्र के मौसम में छाल बदलेगा
कि ख़्वाब कात के उड़ जाती थीं मेरी नींदें
ख़ुदा-ए-शब ने कहा है कि जाल बदलेगा
जो चुप रहूँ तो यही इक जवाब काफ़ी है
जो कुछ कहूँ तो वो अपना सवाल बदलेगा
बिछड़ के उस से यही सोचता हूँ अक्सर मैं
वो किस ख़याल से मेरा ख़याल बदलेगा
कुछ आइनों ने ख़बर दी है मेरे चेहरे को
ग़ुज़रता वक़्त तेरे खद-ओ-खाल बदलेगा
मैं उसके ख़्वाब न उसकी हक़ीक़तों में शुमार
मेरे लिए वो कहाँ चाल-ढाल बदलेगा
ग़ज़ल-4
अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का
क़रीब आए तो देखेंगे हौसला शब का
चली तो आई थी कुछ दूर साथ साथ मिरे
फिर इस के बाद ख़ुदा जाने क्या हुआ शब का
मिरे ख़याल के वहशत-कदे में आते ही
जुनूँ की नोक से फूटा है आबला शब का
सहर की पहली किरन ने उसे बिखेर दिया
मुझे समेटने आया था जब ख़ुदा शब का
ज़मीं पे आ के सितारों ने ये कहा मुझ से
तिरे क़रीब से गुज़रा है क़ाफ़िला शब का
सहर का लम्स मिरी ज़िंदगी बढ़ा देता
मगर गिराँ था बहुत मुझ पे काटना शब का
ग़ज़ल-5
जो सर बुरीद: हुए उन प’ आशकार हूँ मैं
वगरना किस को ख़बर थी कि तेज़ धार हूँ मैं
गुज़र चुका है कि गुज़रेगा कुछ नहीं मालूम
वो एक लम्हा कि अब जिसका इंतज़ार हूँ मैं
बड़ा अजीब है जैसा भी है तिलिस्म-ए-वजूद
कभी कभार नहीं हूँ कभी कभार हूँ मैं
ये क़र्ज़ तुझ से चुकाया न जा सकेगा कभी
तेरे बदन प’ तेरी रूह प’ उधार हूँ मैं
वो जिनको पार उतरना है किस क़दर ख़ुश हैं
कि ऐ चढ़े हुए दरिया! तेरा उतार हूँ मैं
हवा ने जब से तेरी खाक-ए-तन में रक्खा है
कहाँ तो एक नहीं था कहाँ हज़ार हूँ मैं
किसे समेट रहे हैं ये दो जहाँ मिल के?
ये कौन टूट गया किसका इंतशार हूँ मैं ??
तमाम ज़ात को आईना करने वाले सुन
कि रौशनी की तरह तेरे आर पार हूँ मैं
लाजवाब ग़ज़लें……जितना प्यारा शख़्स उतनी ही प्यारी शायरी ।
लाजवाब ग़ज़लें…..जितना प्यारा शख़्स उतनी ही प्यारी शायरी !
बहुत उम्दा
Kise samet rahe hain ye do jahan mil kar
Ye kaun toot gaya kis ka intishar hun maiN…
Dil wo dariya hai mire seena e khali me k ab
Dhyan jaata hi nahi jis ki rawani ki taraf..
Bahut umda ashaar..
Mubarakbad..
अद्भुत कलम के धनी हैं अभिषेक भाई। इस उम्र में इतना रुतबा। आने वाला वक्त बेशक इन्हीं का है।