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मैन इन गॉड्स ऑन लैंड: ‘द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ में पुरुष के तीन चेहरे

 

 

इन दिनों अरुंधति रॉय अपने नए उपन्यास की वजह से चर्चा में हैं. विजय शर्मा जी ने उनके पहले उपन्यास ‘ गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ के पुरुष पात्रों की पड़ताल की है.


 

अरुंधति राय का उपन्यास ‘द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ उपन्यास जेंडर के विषय में है – स्त्री और पुरुष की असमानता के विषय में। इस असमानता के कारण स्त्री को जिस भयंकर स्थिति से गुजरना पडता है, वह जो नरक भोगती है, उस दहशत भरी स्थिति से परिचित कराता है यह उपन्यास। यह उपन्यास है भारत की जाति प्रथा के बारे में – मनुष्य जिसे समान होना चाहिए लेकिन जाति के कारण उच्च और निम्न, स्पर्शीय और अस्पर्शीय में सिकुड़ कर रह जाता है। और कैसे इस हीन प्रथा ने हमारे देश को जकड़ रखा है, हजारों साल से हर पीढ़ी के करोड़ों लोग पशु जैसा, कई बार उससे भी बद्तर जीवन व्यतीत करने को बेबस हैं। यह किताब है प्रेम के बारे में – प्रेम जिसे समाज नियंत्रित करता है, किसे प्रेम किया जाए और किसे नहीं। समाज तय करता है किस प्रेम की अनुमति है और कौन-सा प्रेम अनुमति के योग्य नहीं है, निषिद्ध प्रेम है। यह उपन्यास उस प्रेम के बारे में है जो समाज की लगाई-बनाई सीमाओं को तोड़ता है और सांस लेने के लिए ताजी हवा चाहता है। वह प्रेम जो समाज की संकुचित जंजीरों में नहीं बँधता है। और सब से ऊपर यह उपन्यास है जीवन का एक त्रासद गीत, जीवन जो बहुत खूबसूरत हो सकता है लेकिन जिसे आदमी की हृदयहीनता और संकुचित अंधापन अकथनीय त्रासदी में परिवर्तित कर देता है। इस पुस्तक को नष्ट हुए स्वप्नों की गाथा कहा गया है – यह ऐसी ही गाथा है। उपन्यास के सारे पात्रों के स्वप्न नष्ट हो जाते हैं। अगर विजयी होते हैं तो केवल वही लोग जो निर्दयी हैं। जो क्रूर-कठोर हैं, वे बचे रहते हैं। गिद्धों की तरह दूसरों का माँस नोचने के लिए। गिद्ध मरे हुओं का माँस खा कर जीवित रहते हैं लेकिन ये ऐसे गिद्ध हैं जो जिंदा माँस को नोच कर खाते हैं, जो मनुष्य की कोमल भावनाओं, उसकी संवेदनशीलता और मनुष्य में जो भी अच्छा है, श्रेष्ठ है उसे भकोस जाते हैं।

ऊपर-ऊपर देखें तो यह उपन्यास एक परिवार की कहानी है। एक परिवार की करीब-करीब पाँच पीढ़ियों की, खासतौर पर तीन पीढ़ियों की कहानी है। राहेल, कहानी की अधिकाँश घटनाएँ उसकी आँखों से दीखती हैं और राहेल के परिवार की उसके पहले की पिछली दो पीढ़ियों की कहानी है यह उपन्यास। कहानी का एक बहुत बड़ा हिस्सा केरल के एक छोटे-से गाँव ऐमेनेम में चलता है, और यह सब घटित होता है ऐमेनेम हाउस के इर्द-गिर्द। ऐमेनेम हाउस राहेल, उसके जुड़वाँ भाई एस्था और उनकी काँ अम्मू का पैत्रिक घर है। अम्मू की शादी का भयंकर अंत हुआ है और वह ऐमेनेम लौट आई है। स्पष्ट है वहाँ उसका स्वागत नहीं है} कारण है उसने एक हिन्दू से प्रेम विवाह किया था और अब परिवार की मजबूत परम्परा के विरुद्द तलाक लिया है। उसका परिवार खुद को ‘उच्च जाति’ की ईसाई मानते-समझते हैं। उनके पूर्वज केरला ब्राह्मणों से परिवर्तित हो कर क्रिश्चियन बने थे।

और तब सोफ़ी मोल (मोल का अर्थ बच्ची या बेटी होता है) इंग्लैंड से ऐमेनेम आती है। वह राहेल और एस्था की कजिन है, उनके मामा चाको और उनकी इंग्लिश पत्नी मार्गरेट की एकमात्र बेटी। मार्गरेट ने बेटी के जन्म के तत्काल बाद चाको से तलाक ले लिया था और दूसरी शादी कर ली थी। हालाँकि चाको अभी भी उसके प्रेम में था और उसे अपनी पत्नी कह कर ही संबोधित करता है। जब भी वह उसे पत्नी कहता हर बार वह उसे सुधार कार ‘पूर्व पत्नी’ कहती। जब उसका दूसरा पति मर गया तो चाको ने उसे और नौ साल की सोफ़ी को ऐमेनेम में कुछ समय व्यतीत करने के लिए आमंत्रित किया, ताकि वह सदमे से उबर सके। और इस तरह वे केरल की नदी मीनाचलम के तट पर बने गाँव पहुँचीं।

ऐमेनेम हाउस में इंग्लिश बच्ची और उसकी माँ का आना एक बड़ी घटना है। सात साल के राहेल और एस्था माँ-बेटी को दिए जाने वाले भव्य दिखावटी नाटक में भाग नहीं लेते हैं, दोनों बाहर चले जाते हैं।

एस्था पारिवारिक अचार फ़ैक्ट्री में भटकता है, राहेल वेलुथा के साथ खेलती है। अछूत वेलुथा परिवार का सेवक है और परिवार द्वारा दी गई जमीन पर पास में झोपड़ी में रहता है। स्वागत में अम्मू भी शामिल नहीं है, मन से उसने इसे नकार दिया है। वह राहेल और वेलुथा को खेलते देखती है और उनकी अंतरंगता से बहुत चकित हो जाती है। वेलुथा और अम्मू बचपन से एक-दूसरे को जानते हैं। लेकिन पहली बार युवा के रूप में उनकी नजरें मिलती हैं। उनमें बिजली कौंध जाती है। उन्हें इस बात का भान होता है कि एक नजर ने उनकी जिंदगी सदा के लिए बदल दी है। उस रात बेचैन अम्मू मीनाचलम की ओर जाती है जहाँ वेलूथा उसका इंतजार कर रहा है। रात की शांति और दहशत में वे पहली बार एक होते हैं। सात साल से खुद को नकारती अम्मू तृप्त होती है।

प्रेम की तेरह रातें पार हो जाती हैं। इस बीच में सोफ़ी मोल अपने कजिन्स के साथ मिल कर खेलना और इलाके का अन्वेषण करने लगी है। एक रात बच्चे चुपचाप घर से निकलते हैं और एक छोटी-सी नाव (डोंगी) ले कार निकल पड़ते हैं, दिन की मूसलाधार बारिश के कारण मीनाचलम उफ़ान पर है। नाव उलट जाती है, सोफ़ी तैरना नहीं जानती थी और डूब कर मर जाती है। नदी उसका शरीर बहा ले जाती है। भयभीत राहेल और एस्था उस उजाड़ घर में जा छिपते हैं जिसे वे हिस्ट्री हाउस कहते हैं।

अगली सुबह वेलुथा का पिता ऐमेनेम हाउस आता है और अपने बेटे का अम्मू के साथ माफ़ न किए जाने वाले रिश्ते के विषय में बताता है। अम्मू का परिवार पुलिस में रिपोर्ट करता है कि वेलूथा ने अम्मू का बलात्कार करने का प्रयास किया है। पुलिस वेलुथा को हिस्ट्री हाउस में सोया हुआ पाती है और उस पर बुरी तरह से अत्याचार करती है। बूटों से उसके शरीर को कुचल डालती है, उसकी कई हड्डिया तोड़ डालती हैअ उर आंतरिक अंगों को क्षति पहुँचाती है। यह असरी कार्यवाही राहेल और एस्थर देखते हैं। पुलिस राहेल और एस्था को भी पाती है और वेलुथा पार चार्ज लगाया जाता है कि उसने दोनों बच्चों का अपहरण किया है।

इसी बीच सोफ़ी मोल की लाश एक मछुआरे को मिलती है वह उसे ऐमेनेम हाउस लाता है। पुलिस एस्था से बलपूर्वक कहलवा लेती है कि वेलुथा ने तीनों बच्चों का अपहरण किया था। बच्चों के जीवन में अंधकार फ़ैल जाता है, रोशनी की हर किरण उनसे छिन जाती है।

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अरुन्धति राय स्त्रियों और बच्चों चरित्र चित्रण और उनकी दुनिया के चित्रण में चोटी पर हैं। वह अम्मू, उसकी ऑन्ट बेबी कोचम्मा और उसकी माँ मामाची को अविस्मरणीय बना देती हैं। यहई वे राहेल, एस्था और सोफ़ी मोल, तीनों बच्चों के संदर्भ में करती हैं। खै, यहाँ हमारा ध्यान उनके पुरुष पात्रों पर है और हम उसी पर केंद्रित रहेंगे। यहाँ तीन पुरुष पात्र पापाची, चाको तथा वेलुथा तक ही हम सीमित रहेंगे।

चलिए सबसे पहले पापाची की बात करते हैं। पापाची मामाची के पति, अम्मू-चाको के पिता और राहेल-एस्था के नाना हैं।

पापाची

पितृसत्ता दुनिया भर में एक कालातीत संस्था है। अपने सर्वोत्तम रूप में यह  हितैषी, परोपकारी पुरुष पैदा करता है जो स्त्रियों – अपनी माताओं, पत्नियों, बेटियों, बहनों तथा दूसरी औरतों – का प्रेम करते हैं, उनका आदर करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। और अपने निकृष्टम रूप में यह राक्षस पैदा करता है जो मानते हैं कि उनके लिंग का प्राणी संपूर्ण विश्व का मालिक है। स्त्रियाँ जिन्हें ईश्वर ने कमतर बनाया है के स्वामी हैं। स्त्रियाँ उनके मनोरंजन के लिए बनाई गई हैं, उनके अस्तित्व का केवल और केवल एक उद्देश्य है, पुरुष को खुश करना।

पहली बात जो हमें पापाची के विषय में बताई जाती है वह है उनका अपनी बेटी अम्मू की शिक्षा के प्रति विचार। यह एक बात उनके विषय में बहुत कुछ कह जाती है। वे उन करोड़ों लोगों में सटीक बैठते हैं जिसे पितृसत्ता ने दूसरी श्रेणी के रूप में पैदा किया है।

“अम्मू ने उसी साल स्कूली शिक्षा समाप्त की जिस साल वे दिल्ली में अपने जॉब से रिटायर्ड हुए और ऐमेनेम में लौट आए। पापाची ने इस बात जोर दिया कि लड़की की कॉलेज शिक्षा के लिए खर्च करना गैअजरूरी है। अत: दिल्ली छोड़ कर उनके साथ चले आने के अलावा अम्मू के पास कोई विकल्प न था। ऐमेनेम में एक युवा लड़की के पास करने को बहुत कुछ न था सिवा विवाह प्रस्ताव के इंतजार और घर के कामों में अपनी माँ का हाथ बँटाने के।”

पापाची ने अपने बेटे को शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड भेजा। लेकिन जब बेटी की शिक्षा की बात आई तो उन्हें लगा कि कॉलेज की जरूरत नहीं है। क्या करेगी लड़की कॉलेज शिक्षा का – स्त्री का जन्म जिन कामों के लिए हुआ है उनके लिए कॉलेज शिक्षा की जरूरत नहीं है। रसोपी के काम के लिए इसकी जरूरत नहीं है, न ही किसी अन्य घर काम के लिए। किताब की अभिव्यक्ति में प्रयुक्त पद का प्रयोग करें तो बिस्तर में ‘आदमी की जरूरतों’ की पूर्ति के लिए कॉलेज शिक्षा की आवश्यकता नहीं है न ही बच्चे पैदा कार्ने और उनकी परवरिश के लिए।

टिपिकल पितृसत्ता के पापाची के लिए पत्नी का काम में हाथ बँटाना उनकी गरिमा के खिलाफ़ है। यहाँ तक कि अचार की छोटी फ़ैक्ट्री चलाना भी जिसे उसने दिल्ली से लौटने के बाद घर पर शुरु किया था। एक बार फ़िर यदि किताब के शब्दों को उधार लें तो, ‘‘उन्हें अचार बनाना एक पूर्व सरकारी ऑफ़ीसर के योग्य काम नहीं लगता था।”

ईर्ष्या-जलन ने मामले को और उलझा दिया। अब तक घर-परिवार का जीवन पापची के चरो ओर घूम रहा था। साब लोग उनका मुँह देखते रहते थे। वे परिवार के जीवनदाता थे, सबको अन्न मुहैय्या करान वाले, आर्थिक स्रोत। लेकिन छोटी-सी अचार फ़ैक्ट्री ने सब बदल दिया। अब उनकी पत्नी को उनसे अधिक ध्यान मिल रहा था। और ये वे सहन नहीं कर सकते थे। “अपनी स्थूल काया को बेदाग चमकते सूट में लिए हुए वे लाल मिर्च, ताजी पिसी हल्दी के ढ़ेर के चारों ओर घूमते रहते और खरीदने, तौलने, नमक लगा कर सुखाते नींबू तथा कच्चे आमों को सुखाने का निरीक्षण करती मामाची को देखते रहते।”

और पितृसत्ता द्वारा पुरुषों को थमाया गया अपना आखिरी तीर चलाते। अपना हाथ-पैर चलाते उस स्त्री को चुप कराने के लिए जो खुद को घमंड से उनके बराबर सोचती है। पापची का फ़्रस्ट्रेशन रात्रि में भार्यामर्दन में अभिव्यक्त होता। प्रत्येक रात्रि वे उसे पीतल के फ़ूलदान से मारते। “मारना-पीटना नई बात नहीं थी,” अरुन्धति राय हमें बताती हैं। नई बात थी उसकी आवृति की संख्या।”

मारना-पीटना बराबर चलता रहा अनुमानत: घर की अचार फ़ैक्ट्री की सफ़लता के साथ और उग्र होता गया। यह तभी रुका जब इंग्लैंड में पढ़ने वाला बेटा छुट्टियों में घर आया और उसने हस्तक्षेप किया। ‘घर लौटने के एक सप्ताह बाद उसने स्टडी में पापची को मामची को मारते देखा। चाको कमरे में घुसा, उसने पापची के गुलदान वाले हाथ को पकड़ा और उनकी पीठ के पीछे मरोड़ दिया। “मैं नहीं चाहता कि यह फ़िर कभी हो,” उसने अपने पिता से कहा। “कभी भी।”

पापची जैसे लोग इस तरह के अपमान को आसानी से नहीं पचा पाते हैं। “उस दिन बाकी सारे समय पापची वरामदे में बैठे रहे और सजावटी बागान को घूरते रहे, कोचू मारिया (नौअक्रानी) के लाई खाने की प्लेट को उन्होंने अनदेखा किया। काफ़ी रात गए वे अपनी स्टडी में गए और अपनी प्रिय महोगनी रॉकिंग चेयर निकाल लाए। रास्ते के बीच में उसे रख कर मंकी रिंच से उसका बुरकुस निकाल दिया। उसे उन्होंने चाँदनी में छोड़ दिया, वार्निश विकर और लकड़ी की छिपट्टियों का एक ढ़ेर। उन्होंने मामची को फ़िर कभी नहीं छूआ। लेकिन जब तक जीवित रहे उन्होंने उनसे (मामची) कभी बात भी नहीं की।”

ट्रान्जेक्शनल एनालिसस, आधुनिक मनोविज्ञान की एक शाखा, साफ़्ल और असफ़ल लोगों के बारे में बताती है। एक बात जो वह बताती है वह है कि सफ़ल लोग अपनी जिम्मेदारी स्वयं लेते हैं – अपनी सफ़लता और अपनी असफ़लता दोनों की। वे असफ़लता को खुद पर हावी नहीं होने देते हैं, बल्कि विजयी होने तक और मजबूती के साथ संघर्ष करते हैं। दूसरी ओर असफ़ल लोग पहली बार की असफ़लता में ही हथियार डाल देते हैं। उनका बाकी का जीवन शिकायत करने में बीतता है। शिकायत कि जिंदगी ने उनके साथ कितनी क्रूरता की है, कभी शब्दों में और अधिकतर चुप रह कर। और अपने आस-पास के लोगों पर वे अपना गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन निकालते हैं। इस बात से कुछ लेना-देना नहीं होता है कि इन लोगों का उनकी असफ़लता में कोई हाथ नहीं होता है।

पापची एक टिपीकल असफ़ल व्यक्ति हैं। पापची पूसा संस्थान में कीट-वैज्ञानिक थे। उन्होंने एक नए पतंग का अन्वेषण किया था। “पूरे दिन फ़ील्ड में काम करने के पश्चात जब वे एक रेस्ट हाउस के बरामदे में आराम कर रहे थे तो वह उनकी ड्रिंक में एक पतंग आ पड़ा। जब वे उसे निकाल रहे थी उनका ध्यान तो उन्होंने उसके घने कंलगीदार पिछले पंख को देखा। उन्होंने नजदीक से निरीक्षण किया। बढ़ती उत्तेजना के साथ उन्होंने उसे माउंट किया, नापा। अगले दिन अलकोहल सूखने के लिए उसे कुछ घंटे सूरज की रोशनी में रखा।” उन्होंने पाया कि अब तक विज्ञान में अनजाने एक नए पतंग को उन्होंने खोज निकाला है। वे पहली ट्रेन पाक्ड़ कर दिल्ली पहुँचे और आशा कर रहे थे कि लोगों का ध्यान और ख्याति उन पर बरसेगी। लेकिन इसके स्थान पर “पापची की गहन निराशा के लिए उन्हें बताया गया कि उनका पतंग जाने-पहचाने पतंग की प्रजाति का थोड़ा-सा भिन्न पतंग है।” बारह साल बाद, वैज्ञानिकों की कम्यूनिटी ने अपना निर्णय बदला और निष्कर्ष दिया कि यह सच में एक नए प्रजाति का पतंग था तथा अब तक विज्ञान द्वारा अनजाना था। तब तक पापची रिटायर हो चुके थे। उस समय पापची की जूनियर, जो आदमी संस्थान का एक्टिंग डायरेक्टर था, उसके नाम पर उस पतंग का नाम पड़ा। यह असफ़लता कि जिस पतंग को उन्होंने खोज निकाला था उसका नाम उस आदमी के नाम पर पड़ा, यह पापची के लिए जीवन का सबसे बड़ा हादसा था। और सब पराजित लोगों की भाँति पापची ने इस असफ़लता को अपने जीवन पर न केवल हावी हो जाने दिया बल्कि वही उनका जीवन संचालित करने लगा। जब भी उनका मूड बिगड़ता या वे भयंकर टेम्पर में होते, जो वे तकरीबन सदा होते, सबको पता होता कि कारण पापची का पतंग है।

यह पहली बार नहीं था कि उन्होंने जानबूझ कर, अपना विध्वंसात्माक व्यवहार अपनी पसंददीदा रॉकिंग चेयर को नष्ट करके प्रदर्शित किया था। अम्मू का मार्मिक अनुभव है, जो यहाँ थोड़ा-सा उद्दृत किया जा रहा है। यह उनके भयंकर पावर को दिखाता है।

“ऐसी ही एक रात (पापची द्वारा भयंकर रूप से पीटी जा कर), अपनी माँ के साथ बागीचे की बाड़ में छिपी हुई नौ साल की अम्मू ने खिड़की की रोशनी में पापची की छाया को इस कमरे से उस कमरे में बेचैनी से आते-जाते देखा। पत्नी और बेटी को मार कर जी नहीं भरा था (चाको स्कूल में था), उन्होंने परदे नोंच फ़ेंके, फ़र्नीचर को लात मारी और एक टेबल लैंप पटक कर चकनाचूर कर डाला। एक घंटे बाद बिजली चली गई, मामची के भयभीत अनुरोध को न मानते हुए छोटी अम्मू पिछवाड़े के रोशनदान से सरक कर जान से भी प्यारे अपने नए गमबूट्स बचा लाई। उसने उन्हें पेपरबैग में रखा और वापस सरकते हुए उन्हें ड्राइंगरूम में रख आई, उसी समय अचानक बिजली आ गई।”

‘पापची अपनी महोगनी रॉकिंग चेयर में, खुद को डोलाते हुए चुपचाप अंधेरे में बैठे थे। जब उन्होंने उसे पकड़ा, एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने अपनी हाथीदाँत की मूठ वाली छड़ी के सिरे से उसकी धुनाई की…अम्मू नहीं रोई। जब मारना समाप्त किया तो उन्होंने उससे मामची की सिलाई वाले कबर्ड से गुलाबी कैंची मँगवाई। जब अम्मू देख रही थी, कीट विज्ञानी ने उसके नए गमबूट्स, उसकी माँ की गुलाबी कैंची से कतर डाले। काले रबर की कतरनें फ़र्श पर गिरती रहीं। कैंची खच-खच आवाज करती रही। उसके प्यारे गमबूट्स को पूरी तरह कतरन बनने में दस मिनट लगे। जब रबर की आखरी पट्टी फ़र्श पर गिरी पिता ने उसे ठंड़ी, सपाट आँखों से देखा और रॉकिंग चेयर में डोलते रहे, डोलते रहे, डोलते रहे। रबर के ऐंठे हुए साँपों के समुद्र से घिरे हुए।”

बहुत असरे दुष्त लोगों की तरह ही पापची अपने आस-पास वंचना का जाल बुन कर रखते। “आगंतुकों के साथ बड़ा मधुर व्यवहार करते और अगर कहीं वे गोरे हुए तो उनके सामने बिछ जाने में थोड़ी ही कसर रह जाती। वे अनाथालयों और कोढ़ियों के क्लीनिक को दान देते। वे अपनी कुलीन, उदार, नैतिक आदमी की सार्वजनिक छवि को बनाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करते। लेकिन अपनी पत्नी और बच्चों के साथ होते ही राक्षस, शक्की, दुष्ट चालाक बुली में बदल जाते। वे लोग मार खाते, अपमानित होते और दोस्तों तथा रिश्तेदारों के बीच इतने अच्छे पति और पिता के कारण जलन का कारण बनते।”

अरुन्धति राय के पापची पितृसत्ता के निकृष्टम पुरुष हैं। अगर उनका कोई और आयाम है तो वह हम उपन्यास में नहीं देखते हैं। आदर पाने में असफ़ल रहने पर वे अपने ऊपर निर्भर लोगों को अपनी शक्ति से भयभीत करके इसकी माँग करते हैं। अगर वे उनकी उपस्थिति में काँपते हैं, अगर वे अपने दु:स्वप्नं में उनकी दहशत में चीखते हैं, ठीक है, ठीक यही तो वे चाहते हैं। कुछ और उन्हें इससे ज्यादा संतुष्टी न देगा।

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चाको

चाको पापची का बेटा और उनका वारिस है, लेकिन वह अपने पिता की कॉपी नहीं है। ‘चिप ऑफ़ दि ओल्ड ब्लॉक’ नहीं है। वह एक भिन्न व्यक्ति है जो जिंदगी और लोगों से अपने अनोखे ढ़ंग से संबंध बनाता है। वह पापची की दुनिया से अलग दुनिया में रहता है। असल में अरुन्धति राय के सृजन में कोई भी दो चरित्र एक जैसे नहीं हैं। एस्था औअर राहेल जुड़वाँ हैं और एक-दूसरे के अनुभव साझा करते हैं – अगर एस्था आइअस्क्रीम खाता है तो राहेल को इसका स्वाद मिलता है; अगर वह कोई फ़नी स्वप्न देखता है तो राहेल हँसती है; और अगर राहेल सोचती है तो एस्था को उन बातों को बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन ये दोनों भी समान नहीं हैं बल्कि अपने-अपने तरीके से अनोखे हैं।

चाको ऑक्सफ़ोर्ड में रोड्स स्कॉलर था। जहाँ वह मार्गरेट से मिला जब वह कैफ़े में वेटरस के रूप में काम कर रही थी। उनमें प्यार हुआ और उन्होंने शादी की लेकिन शादी टिकी नहीं। वह उसके बेढंगीपान से थक गई और एक साल के भीतर ही, उसकी बेटी सोफ़ी के जन्म के तुरंत बाद उसने उसे तलाक दे दिया।

चाको केवल शादी में ही असफ़ल नहीं हुआ। अपनी माँ से ली गुई अचार फ़ैक्ट्री चलाने में भी वह असफ़ल रहा। वह अपनी हॉबी – बाल्सवुड से हवाईअजहाज बना कर उड़ाना – में भी असफ़ल रहा। मार्क्सवादी के रूप में भी। अचार फ़ैक्ट्री के कामगरों के प्रति अच्छे मालिक के रूप  में भी चाको सफ़ल न हुआ।

हालाँकि उनका तलाक हो चुका है लेकिन चाको अभी भी मार्गरेट को अपनी पत्नी मानता है, जिसे वह फ़ुर्ति से सुधार कर पूर्व-पत्नी कहती है। वह उसे और बेटी को प्राणों से भी बड़ कर प्यार करता है। मीनाचलम में डूब कर बेटी के मरने से वह टूट गया है।

सोफ़ी की मौत ने उसे अपनी भांजी और भांजे, राहेल तथा एस्था, के प्रति भी पूरी तरह निष्ठुर बना दिया है। वह उन्हें इस त्रासदी का जिम्मेदार मानता है। इसके पहले उनका उससे बड़ा नजदीकी रिश्ता था। वह बच्चों को उसे अंकल नहीं पुकारने देता था और जोर दे कर कहता कि उसे उसके पहले नाम से ही बुलाएँ।

चाको का विरोधाभास उसके संबंधों में भी दीखता। एक पल वह बड़ा दोस्ताना संबंध रख सकता और अगले ही पल पूरी तरह से निर्लिप्त हो सकता है। कह सकता है कि वे उसकी जिम्मेदारी नहीं हैं। हालाँकि उनकी माँ के तलाक के बाद जब वह अपने पैत्रिक घर में लौट आई है तो इस जिम्मेदारी की अपेक्षा उससे की जाती है।

अक्सर जब उनकी माँ उनके प्रति कठोर होती तो वह जुड़वाँ बच्चों के पक्ष में उठ खड़ा होता, लेकिन अगले पल उन्हें नकार सकता था। उदाहरण के लिए, जब वे मार्गरेट और सोफ़ी को लेने कोचीन एयरपोर्ट जा रहे थे, रेलवे क्रॉसिंग पर इंतजार करते हुए अम्मू ने अपने बच्चों से कहा कि वे अपने बेकार के चश्में उतार दें।’ “जैसे तुम इनसे व्यवहार करती हो वह फ़ासिस्ट तरीका है,” चाको ने कहा। “भगवान के लिए सब बच्चों के कुछ अधिकार हैं!” अम्मू की प्रतिक्रिया, “बच्चों के मसीहा बनना बंद करो!…तुम उनकी कोई चिंता नहीं करते हो। या मेरी।” चाको ने तुरंत कहा, “मैं करू? क्या वे मेरी जिम्मेदारी हैं?”

चाको खटाक से कहता है कि अम्मू, एस्था और राहेल उसके गले में पड़े हुए पत्थर हैं।  एक कथन जो सबके लिए, खुद चाको और सोफ़ी मोल के लिए, खासकर जब आगे चल कर अम्मू के खुद का कथन – एस्था और राहेल मेरे गले में पड़े पत्थर हैं – जुड़ जाता है।

चाको खूब पढ़ाकू है, ‘चाको का कमरा फ़र्श से लेकर छत तक किताबों से अँटा पड़ा था। उसने उन्हें पढ़ा था और वह उनसे बात-बेबात लंबे पैसेज कोट करता। या कम-से-कम ऐसे कथन जिन्हें कोई नहीं समझता है।”

शायद उसके पढ़ने ने, कुछ हिस्सा अवश्य, उसे जीवन के प्रति विस्तृत नजरिया दिया है। सिर मुंडे हिन्दू तीर्थयात्रियों से भरी बस को देख कर बेबी कोचम्मा, अधेड़ क्वाँरी ऑन्ट कहती है, मैं तुम्हें कहे देती हूँ, ये हिन्दू…इन्हें प्राइवेसी की कोई समझ नहीं है।

चाको तुरंत वयंग्य से कहता है: “इनके सींग और धारीदार चमड़ी होती है…और मैंने सुना है कि इनके बच्चे अंडों से निकलते हैं।”

हालाँकि वह कामगरों के अधिकारों की बात करता है, लेकिन अपनी फ़ैक्ट्री की स्त्री मजदूरों को अपनी सैक्सुअल पूर्ति के लिए प्रयोग करता है। वह यह लगातार करता है और उसकी माँ, मामची ने बाहर की ओर से उसके कमरे में एक दरवाजा बनवा दिया है, ताकि वह अपनी जरूरत, जिसे मामची ‘पुरुष की आवश्यकताएँ’ कहती है, पूरी कर सके। बाहर दरवाजा बनवा दिया ताकि उन्हें घर के भीतर से न जाना पड़े।

उसके द्वारा की गई मार्गरेट की पर्शंसा गुलामी की सीमा छूती है, वह यह जानता है लेकिन इसके विषय में कुछ करने में असमर्थ है।

चाको में अरुन्धति राय नई और पुरानी, अच्छी और बुरी, पूँजीवादी और क्म्युनिस्ट, सामंती और प्रजातांत्ररिक, स्वतंत्र और कभी गुलाम, दो दुनिया के बीच चीरे हुए आदमी को प्रस्तुत करती हैं। उसके विरोधाभास उसे वह सब कुछ अच्छा करने सेरोकत हैं जो वह कर सकता था, जिनकी उसमें क्षमता है।

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वेलुथा

वेलुथा शायद अरुन्धति राय के ‘द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ में सबसे खूबसूरत व्यक्ति है। बुद्धिमान, संवेदनशील, सृजनात्मक, स्रोतपूर्ण, बेधक, स्वामीभक्त, दयालू, खिलवाड़ी, प्रतिबद्ध, शारीरिक रूप से आकर्षक। वह राहेल और एस्था का सबसे अच्छा दोस्त है, एक लघु-काल, मात्र १४ दिनों के लिए उनकी माँ अम्मू का सीक्रेट प्रेमी, जिसे वह बचपन से जानता है।

दुर्भाग्य से वह अछूत पैदा हुआ है, ऐसे समाज में जो अछूतों को मनुष्य नहीं मानता है। वेलुथा के लिए ही किताब का शीर्षक है – वह छोटी-छोटी चीजों का देवता है। लेकिन असल में वह कई मायनों में छोटे लोगों के बीच बहुत बड़ा है। वह हमें गलिवर इन लिलिपुट की याद दिलाता है। ठीक जैसे लिलिपुट के लोग गलिवर को नष्ट करना चाहते हैं क्योंकि वह उन्हें उनके बौनेपन की याद दिलाता है, ठीक वैसे ही वेलुथा को लोग नष्ट करते हैं। फ़र्क यही है कि गलिवार निकल भागा जबकि वेलुथा अपने बढ़प्पन को अपने जीवन से चुकाता है।

उसके नाम का अर्थ है सफ़ेद, लेकिन वह बहुत काला है। ऐमेनेम परिवार ने बहुत पहले ही उसकी उसकी प्रतिभा को पहचान लिया था – उसका पिता इस परिवार का आश्रित है और उनके द्वारा दी गई जमीन पर झोपड़ी बना कर रहता है। उन लोगों ने वेलुथा को स्कूल भेजा। वक्त के साथ वह एक बहुत अच्छा कारपेंटर और मैकेनिक बना। अचूक, निभ्रान्त आँखों और फ़ुर्तीले हाथों वाला। वह स्वाभाविक आत्मविश्वास के साथ बड़ा हुआ, जो ‘परवन’ में स्वीकार्य नहीं है – परवन ताड़ी उतारने वाले समुदाय के लोगों को कहते हैं। उन्हें समाज में निम्नतम स्तर का माना जाता है। वेलुथा जानता है कि कैसे प्रेम किया जाता है और कैसे नि:स्वार्थ भाव से दिया जाता है। और अपने इन गुणों की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ती है।

वह अचार फ़ैक्ट्री में बहुत काम मजदूरी पार काम करता है। कारण उसका पिता ऐमेनेम हाउस के लिए एक गुलाम की तरह था। दूसरा कारण था यदि उसे अधिक मजदूरी दी गई तो ‘उच्च जाति, स्पर्शीय’ कामगर चिढ़ जाएँगे। ये वर्कर विश्वास करते थे कि उसे निम्न जाति का होने के कारण कम मजदूरी मिलनी चाहिए।

जब अम्मू के साथ उसके अफ़ेयर का पता चलता है तो मामची उसके मुँह पार थूकती है और बेबी कोचम्मा पुलिस स्टेशन जाती है। वहाँ वह उस पर एस्था और राहेल के अपहरण और अम्मू के बलात्कार का झूठा आरोप लगाती है। वाह भली-भाँति जानती है कि उसने यह सब नहीं किया है, लेकिन विश्वास करती है कि अपनी हद पार करने की उसके लिए यही सजा है। ऐमेनेम हाउस के पास एक उजाड़ घर में पुलिस उसे पाती है जहाँ बच्चे खेला करते थे। पुलिस उसे बुरी तरह सताती है। जब वे उसे खतम कर देते है, ‘उसकी खोपड़ी तीन जगहों पर टूट गई थी। उसकी नाक और गाल की दोनों हड्डियाँ चू-चूर कर दी गई थीं, चेहरा पहचान के बाहर भुर्ता बना दिया गया था। प्रहार ने उसके ऊपरी होंठ को खोल दिया था और उसके छ: दाँट टूट गए थे, उसकी खूबसूरत मुस्कान को कुरूपता में परिवर्तित करते हुए तीन निचले होंठ में घुस गए थे।  उसकी चार पसलियाँ चूर-चूर हो अगी थीं, एक उसके बाँए फ़ेफ़ड़े में घुस गई थी, जिसके कारण उसके मुँह से खून निकल रहा था। उसका खून चमकता लाल था। ताजा, झाग भरा। उसकी निचली आँत फ़ट गई थी और भीतर-भीतर रिस रही थी, पेट के गड्ढे में रक्त जमा हो रहा था। उसकी रीढ़ दो जगह नष्ट हुई थी, शिराघात ने उसकी दाहिनी बाँह लकवाग्रस्त कर दी थी और उसका अपने मूत्राशय तथा मलाशय पर नियंतर्ण समाप्त हो गया था। दोनों ह्जुटने बिखर गए थे”

जरूरत के समय वेलुथा को सबने छोड़ दिया, यहाँ तक कि उसकी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी, जिसका वह अर्जिस्टर मेम्बर था और चाको खुद को मार्क्सवादी मानता था। एकमात्र जो उसके साथ खड़ा रहा वह थी अम्मू। उस अछूत के साथ अफ़ेयर का पता चलते ही जिस अम्मू के शब्दों का कोई मोल न था।  जुड़वाँ बच्चे उसे बहुत प्यार करते थे और उसके साथ खड़ा होना चाहते थे लेकिन शैतानी चालाकी से डरा-धमका कर लाचार उन बच्चों से इस बात की तक्सीद करवा ली गई कि वेलुथा ने ही उनका अपहरण किया था। एस्था यह करता है। पुलिस स्टेशन में अपने खून के चहबच्चे में डूबा वेलुथा एस्था को अपनी मरती मुस्कान देता है। औअर एस्था जिंदगी भर के लिए चुप्पी के पीछे चला जाता है।

अरुन्धति राय वेलुथा के रूप में हमें एक ऐसा मनुष्य देती है जो खूबसूरत है, तेज है, आत्मविश्वासी है और है एक स्वातंत्र इंसान। एक ऐसा इंसान जो संवेदनशील है, जो प्यार लेना और देना जानता है। ऐसा आदमी जैसा एक आदमी को होना चाहिए। और जैसा कि ऐसे लोगों के साथ होता है, वह समाज द्वारा अपनी नियति  – सताना और मृत्यु को प्राप्त होता है।

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अरुन्धति राय के पुरुष पात्रों के चित्रण में जो महत्वपूर्ण है वह यह नहीं कि वे पुरुष रचनाकारों से भिन्न हैं। वह अपने तीव्र और सघन अवलोकन-निरीक्षण में विशिष्ट हैं। उनकी गहन संवेदनात्मकता, उनकी जेनुइन आदमी के लिए मजबूत सहानुभूति और विस्तृत विवेचन की कुशलता उन्हें दूसरों से अलग करती है। अगर हम उनके उपन्यास में नारीवादी गुस्सा खोजेंगे तो हमे निराश होना होगा। उनके पुरुष पात्र वे ही हैं जिन्हें हम नित-प्रतिदिन अपने आस-पास देखते हैं। उन्हीं के बीच में वेलुथा जैसे आश्चर्यजनक रूप से खूबसूरत लोग भी हैं। यह“ चाको जैसे भ्रमित भी हैं और यहीं पापची जैसे राक्षस भी हैं।

‘द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ हमें बताता है कि गॉड्स ऑन लैंड के पुरुष (और स्त्रियाँ) वैसे ही है जैसे दूसरे स्थानों के पुरुष (और स्त्रियाँ) हैं। थोड़े-बहुत अंतर के साथ आदमी की प्रकृति सार्वभौमिक है।

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डॉ. विजय शर्मा, ३२६, न्यू सीतारामडेरा, एग्रिको, जमशेदपुर – ८३१००९

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  1. nice article thanks for a + thought in this post

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