मुझे सबसे सच्चे कवि वे लगते हैं जो अपने मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कवितायें लिखते हैं। जैसे राजेश प्रधान जी। अमेरिका के बोस्टन में रहते हैं। वास्तुकार हैं, राजनीति विज्ञानी हैं। लता मंगेशकर के गीत ‘कुछ ऐसी बातें होती हैं’ को सुनते हुए एक बड़ी प्यारी कविता लिखी है उन्होने। आप सबसे साझा कर रहा हूँ- मॉडरेटर
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(Last 2 lines in each para from an old Lata song)
Rajesh Pradhan, July, 2017
रगों में बूँद फिर इतराती चली है
शौक़ की नमी मंद होती चली है
“हाँ, ऐसी भी बातें होती हैं
कुछ ऐसी भी बातें होती हैं”
नसों में ज़ोर है बहुत बाक़ी
आँख की बरसात है अभी बाक़ी
“हाँ, ऐसी भी बातें होती हैं
कुछ ऐसी भी बातें होती हैं”
रगों में दौड़ने की चाहत
आँख से टपकने की आदत
ऊपर नीचे बिखरने का जोश
साँप-सीढ़ी खेलने का ख़ौफ़
“हाँ, ऐसी भी बातें होती हैं
कुछ ऐसी भी बातें होती हैं”
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