युवा लेखिका प्रकृति करगेती लेखन में नए नए प्रयोग करती हैं। कहाविता ऐसा ही एक प्रयोग है। आज उनकी कुछ कहाविताएं पढ़िये- मौडरेटर
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चेकमेट
लड़का और लड़की, शतरंज के खेल में मिले। लड़का, दिलोदिमाग हारता गया। लड़की खेलती गयी। खेलते खेलते लड़का मारा गया। लड़की ने आंखिरी चाल चली और कहा ‘चेकमेट’। लड़का अंतिम सांस लेते हुए बोला ‘पर बात तो सोलमेट ढूंढने की हुई थी।
चुल्लू भर पानी
आजकल पानी की कमी चल रही है। पानी न जाने कब आये। मेरी माँ ने आवाज़ लगाई ‘ पानी आ जायेगा, पर तू एक बार पानी की टंकी में कितना पानी है , देख आ। ‘
मैं छत में गयी और देख आयी पानी में अपनी ही सूरत। वो चुल्लू भर पानी था।
फुल्के
सुशीला ने रोटियाँ पकाई। फुल्के बने सभी रोटियों के। वो घर आया तो दोनों ने साथ खाना खाया। खाकर दोनों सो गए साथ । क्योंकि जिस घर में फुल्के बनते हैं, वहाँ कंडोम लगाए नही फुलाये जाते हैं। उसी घर में इसे रेप नहीं कहते।
गली की कुतिया
वो सीधे रास्ते जा रही थी। लेकिन वो टेढ़े रास्ते आया। उसे देख, उसे परखा। बाकी भी देख, सुन, समझ और शायद परख बजी रहे थे। पर उसने, उसे सूंघ भी लिया। वो गली की कुतिया थी।
रियलिटी चेक
मेघा ने उसके कच्छे धोये। सुखाने से पहले झटकाये कई बार। झटककर जो छींटें उस पर पड़े, उन छींटों ने जवाब दिया। “रियलिटी चेक, रियलिटी चेक, रियलिटी चेक”। यूँ तो कच्छे धोना कोई बुरी बात नहीं थी। पर सवाल था कि ” वो कितनी बड़ी फेमिनिस्ट है।