Home / Featured / रूसी भाषा के लेखक सिर्गेइ नोसव की कहानी ‘अच्छी चीज़’

रूसी भाषा के लेखक सिर्गेइ नोसव की कहानी ‘अच्छी चीज़’

 सिर्गेइ नोसव की इस कहानी का अनुवाद किया है रूसी भाषा की विदुषी प्रोफ़ेसर और अनुवादिक आ. चारुमति रामदास  ने- मॉडरेटर

===============

अच्छी चीज़

लेखक: सिर्गेइ नोसव

अनुवाद : आ. चारुमति रामदास

 

“ ये बड़ी देर चलेगा,” पेत्या ने कहा. “ऐह, उनका ट्रैफ़िक सिग्नल भी काम नहीं कर रहा है.”

“ठीक है,” ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने ओवरकोट की ऊपर वाली बटन बन्द करते हुए कहा, “मैं पैदल ज़्यादा जल्दी पहुँच जाऊँगा. यहीं पास में ही है.”

“जैसा चाहो.”

चाहता तो नहीं था. बाहर बेहद चिपचिपा था, गीला, गन्दा. विन्डशील्ड पर भारी-भारी गोले गिर रहे थे जो निश्चित ही बर्फ के फाहे नहीं थे. ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने फिर से बटन खोल दी, कार के भीतर गर्माहट थी, वह बाहर नहीं निकला. आज उसे लेख के लिए पैसे मिले थे, जो बसन्त के मौसम में “सम्मेलन की कार्यवाही” में छपा था, – उसे मानधन पाने की कोई उम्मीद नहीं थी. मेट्रो में बैठकर अपने उनींदे मोहल्ले में चला जाता, मगर अपने सहलेखक, ग्रेज्युएट स्टूडेन्ट पेत्या के प्रस्ताव से इनकार न कर सका, जो अपनी फोर्ड में शॉपिंग-सेन्टर जा रहा था. मानधन प्राप्त होने के बाद भी ल्येव लाव्रेन्तेविच  का ‘मूड’ बहुत ख़राब था. सच कहा जाए, तो उसकी बीबी किसी उपहार के काबिल ही नहीं थी – दो दिन से वे लड़ पड़े हैं. कम से कम आज तो समझौता करने का उसका इरादा नहीं है, और, हो सकता है, कि आज कोई गिफ्ट ख़रीदना कुछ बेईमानी-सी होगी – कम से कम उसकी अपनी नज़र में. ऊपर से, अभी वक्त है. नए साल में अभी तीन दिन हैं…

“तुम कितने साल के हो, पेत्या? पच्चीस?”

“चौबीस.”

“तीस साल की उम्र तक मज़े से बिना शादी किए रह सकते हो. कम से कम तीस साल तक तो रह ही सकते हो.”

चाँदी जैसे चमकीले ओवरकोट में एक लड़की कारों के पास छोटी-छोटी पत्रिकाएँ ला रही थी. ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कार का शीशा नीचे गिरा दिया. जानी-पहचानी सेवाओं का इश्तेहार था. “पहचान के लिए!” – ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने शीर्षक पढ़ा. बिल्कुल “टोस्ट” जैसा लग रहा है. कवर पे भरे-भरे वक्षस्थल, भूरे बालों वाली टॉपलेस लड़की, मुस्कुराते हुए शैम्पेन का जाम उठा रही थी. हो सकता है, कि उनके यहाँ भी क्रिसमस की ‘सेल’ चल रही हो?

“यहाँ हमेशा बाँटते रहते हैं,” पेत्या ने स्टीयरिंग पर ठोढ़ी रखकर कहा, “मुझे कल भी इस चौराहे पर दिए थे, और परसों भी…काफ़ी प्रतियाँ निकालते हैं.”

माँ कसम! कितने हैं इसमें! ल्येव लाव्रेन्तेविच  उसकी क्वालिटी से हैरान होकर पन्ने पलटने लगा. कई सारे फोटो थे, कुछ माचिस की डिबिया के लेबल के आकार के, कुछ बड़े – हर पृष्ठ पर दस-दस – ल्येव लाव्रेन्तेविच  की आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा. और ये है एक इश्तेहार.

“प्रति घण्टा उच्च आय हेतु लड़कियाँ आमंत्रित की जाती हैं”, ल्येव लाव्रेन्तेविच ज़ोर से पढ़ता है. “साक्षात्कार के लिए आने वाली हर लड़की को भेंट स्वरूप एक हज़ार रूबल्स प्राप्त होंगे, जिसका साक्षात्कार के परिणाम से कोई संबंध नहीं है”. नहीं, क्या कर रहे हैं! कैसे फुसला रहे हैं!

“बेहतर है कि आप तस्वीरों के नीचे लिखी इबारतें पढें. ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा जानकारी मिलेगी.”

“भूरे बालों वाली आकर्षक लड़की अमीर मर्दों को आमंत्रित करती है…” ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने सरसरी नज़र से पढ़ा. “जोशीली लड़की ख़ुशी के पल देगी…”, “दो प्यारी बिल्लियाँ बेपनाह कल्पनाओं के साथ दिलदार मेहमान का इंतज़ार कर रही हैं…”

दूसरी जगह खोला.

“एक्सेसरीज़के साथ आऊँगी. सहेली के साथ आ सकती हूँ”… “बल-प्रयोग को छोड़कर हर चीज़”…”सबूत मिटाने की गारंटी”…

“ये आप BDSM पढ़ रहे हैं…एक्ज़ोटिक पन्ने.”

“जिओ और सीखो,” ल्येव लाव्रेन्तेविच  बुदबुदाया. “इन्सानियत नीचे-नीचे जा रही है. कब की जा चुकी है. मैं ये शब्द जानता भी नहीं हूँ. ये ‘फैस्टिनाडो’ क्या है?”

“मालूम नहीं.”

“पोनी-प्ले?”

“नाम से ऐसा लगता है…कोई घोड़े का रोल कर रहा है.”

“मान लेते हैं,” ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने सहमति दर्शाई. ”बॉन्डेज”. मुझे पता है कि बॉन्डेज क्या होता है.”

“सुनिए, आपको कैसे पता होगा? आप “बॉन्डेज” में कुछ उलझ गए हैं…”फ्लॅगेलेशन – ये क्या है?”

“मुझे डर है, कहीं पिटाई तो नहीं…”

“फ्लॅगेलेन्ट्स…” ल्येव लाव्रेन्तेविच  को याद आया. “मध्य-युग में होते थे ऐसे…अपने आप को कोड़े मारने वाले…पापों के लिए ख़ुद को सज़ा देते थे…”

“वो वाले धार्मिक कल्पनाओं से हैं…”

एक फोटो में कपड़े पहनी हुई लड़की थी. सैद्धांतिक रूप से कपड़ों में थी – पूरी और शराफ़त से, काली चमडी वाली बदहवास कामुक नहीं. स्वेटर में थी. स्वेटर की कॉलर ठोढी तक गर्दन को ढाँके हुए थी.

“ ‘पोर्काथेरपी’ – ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने घोषणा की, “छुटकारा पाइए अवसाद से, अपराध-बोध की भावना से, मानसिक बेचैनी से. बगैर सेक्स के”. नहीं, कैसा लग रहा है? क्या कोई “बगैर सेक्स” के जा सकता है?”

“सब कुछ मुमकिन है. आप इसे घर ले जाइये, बीबी के साथ चर्चा कीजिए.”

“हा-हा,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने पूरे हफ़्ते में पहली बार मुस्कुरा कर कहा.

और क्या? अगर पपडियाँ हटाने और भूसा छीलने में कोई उपचारात्मक अर्थ होता, तो सारे पति तंदुरुस्त, जोश से भरपूर और मानसिक रूप से संतुलित रहते. क्या उसे कोई हथौड़ा उपहार में दूँ, बड़ा सा हथौड़ा,  बदलने वाले मॉड्यूल का, या जैसे, गोल-आरी? या फिर जिग्सा? समझेगी नहीं. बुरा मान जाएगी.

सबसे ज़्यादा बेसब्र लोगों ने हॉर्न बजाना शुरू कर दिया.

“लो,” पेत्या ने कहा, “हो गया शुरू पागलखाना.”

“पेत्या, हम कब से पागलखाने में रह रहे हैं! पूरी दुनिया – पागलखाना है, फूहडपन के लिए माफ़ करना! तुम ज़रा आने-जाने वालों के चेहरों पर नज़र डालो, कैसे ईडियट्स जैसे हैं!…सड़क पर चलने में डर लगता है, जिसकी ओर देखो, वही तुम्हारे कंधे को काट लेगा!…नहीं, देखो, ये कैसा लगता है? – भूतपूर्व बीबी के नए दूल्हे के कुल्हाडी से टुकडे कर दिए और खा गया!…खा गया!…इन्सान को खा जाना!…और जब पॉलिक्लीनिक में आते हो – बीमारी की छुट्टी के लिए!… बेहतर है घर में ही लटक जाना!…ऊपर से ये…लगातार गर्म होता मौसम!…थैंक्स, सैर के लिए. ज़्यादा सही है, यहाँ तक छोड़ने के लिए. ख़ुदा ने चाहा, तो इससे भी निकल लेंगे.

उसने पेत्या से हाथ मिलाया, कार का दरवाज़ा खोला.

“ले लीजिए, ले लीजिए, मेरे पास ऐसे कम से कम पाँच हैं…”

“रहने दो, पेत्या, छह हो जाएंगे…”

“अच्छा, तो कलश (यहाँ कलश के आकार के डस्ट-बिन से तात्पर्य है – अनु.) में फेंक दीजिए.”

मैगज़ीन ली और कार से बाहर आया. ठण्डा कीचड़ जूतों में घुस रहा था. किनारे तक पहुँचने के लिए जैसे इस समंदर को पार करना था. वह चल नहीं, बल्कि भाग रहा था, रूकी हुई विदेशी कारों के बीच से रास्ता बनाते हुए. कोशिश कर रहा था कि हल्का भूरा ओवरकोट गंदे मड-गार्डों को न छुए. पैरों के नीचे मच्-मच् हो रही थी, पैरों के नीचे से फ़व्वारे उछल रहे थे.

फुटपाथ पास ही था, जब वह एक अपंग की व्हील-चेयर से टकराते-टकराते बचा : मुश्किल से स्वयम् को बचाते हुए, एक लंगडा इस अथाह कीचड़ की ओर ध्यान न देते हुए तेज़ी से चला जा रहा था, और चालकों से भीख माँग रहा था.

बर्फ के छोटे से टीले के बचे-खुचे अनपिघले अवशेषों को पार करके (शुक्र है कि पैर हैं), ल्येव लाव्रेन्तेविच  फुटपाथ पर पहुँच गया; यहाँ अपेक्षाकृत सूखा था. अपने आप को लोगों के रेले के हवाले करने से पहले वह मुड़ा : एक मनहूस दृश्य. दिमाग़ में ख़तरनाक शब्द “सेक्स्टिलियन” हथौड़े बजा रहा था. सेक्स्टिलियन, मतलब “बहुत ज़्यादा”, वह ख़ुद भी नहीं जानता था कि कितना. आँखों से पेत्या की कार नहीं ढूँढ पाया, जिसे अभी-अभी छोड़कर आया था. दोनों दिशाओं में और ट्राम की पटरियों पर भी लोग खड़े थे. ‘उसे कार की ज़रूरत ही क्या है?’ – ग्रेजुएट स्टूडेन्ट के बारे में ख़याल आया. ‘वह उसका गुलाम है, गुलाम.’

और ये रहा कलश. ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने गुज़रते हुए उसकी ओर “परिचय के लिए” फेंक दिया. वह उसमें गिर गया.

कलशों की नई पीढ़ी को इस इबारत से सुशोभित किया गया है : “अपने शहर से प्यार करो!”

और अगर ल्येव लाव्रेन्तेविच, चुनौती को स्वीकार करके, उसी तरह से जवाब देता, कि हाँ, अपने शहर से प्यार करता है और उसे गन्दा नहीं करता, तो ताज्जुब है, इस स्वीकारोक्ति से किस वस्तु को सुशोभित करना उचित होता? क्या फिर से कलश?

“अपने शहर से प्यार करता हूँ” – कलश पर?

कुछ लोग क्रिसमस-ट्रीज़ लेकर जा रहे थे. घर में कृत्रिम क्रिसमस ट्री है. सजाने का मन हो तो सजाए. अगर किसी ने कनखियों से देखा होगा, किसी ने कान लगाकर सुना होगा, कि बहस किस बात से शुरू होती है, तो यकीन नहीं करता, कि ये संभव है – फूहड़पन! – जैसा कि इस बार हुआ : इस कारण को बेवकूफ़ी से समझाने के कारण कि ल्येव लव्रेन्तेविच को अपनी गर्दन की गोलाई की नाप क्यों नहीं मालूम है. वह ख़ुद तो अच्छी तरह जानती है, कि ल्येव लाव्रेन्तेविच  की गर्दन की गोलाई कितनी है, मगर, वह अपने आप से पूछता है, देखिए, उसे इस बात को जानने की ज़रूरत क्या है, जब कि उसके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है. अपने आप पर ध्यान न देना, बीबियों की राय में, उस पर और ज़्यादा ध्यान न देने जैसा है, और उसकी राय में यह साफ़-साफ़ स्वार्थीपन है, – पन्द्रह साल के सुखी विवाहित जीवन के संचित सभी अपमानों को याद न रखना कैसे संभव है?…गर्दन का यहाँ क्या काम है? शायद टाई वाली कमीज़ प्रेज़ेन्ट करना चाहती थी; करने दो, अच्छा है, बढ़िया है – वह उसी टाई से लटक जाएगा! हालाँकि तरीका घिसा-पिटा है, मगर सफ़लता की पूरी-पूरी ग्यारंटी है!

कितना समय गुज़र गया – पता ही नहीं चला (शायद, करीब पाँच मिनट) – ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने स्वयम् को एक ट्रेड-सेन्टर में पाया. प्रचुरता के साम्राज्य में हर छोटी-मोटी चीज़, हर बेकार की चीज़ ल्येव लाव्रेन्तेविच  से उलझने की – दूरदृष्टि से उसकी बीबी पर हावी होने की कोशिश कर रही थी. और वह, शो-केसेस के, शेल्फों के, काउन्टर्स के पास से गुज़रता हुआ, समझ रहा था, कि वह यहाँ, इस प्रचुरता के उत्सव में, फ़ालतू है – कम से कम आज. आज कोई भी चीज़ ल्येव लाव्रेन्तेविच  को लुभा नहीं सकती थी – न तौलिए का स्टैण्ड, न टॉयलेट-पेपर होल्डर, न उपयोगी वस्तुएँ रखने के लिए डिब्बे. ना तो तकिए के गिलाफ़, ना बेसिन धोने के ब्रश, ना लैम्पशेड्स, ना ही पैरों को रखने वाले स्टूलस. ना परदों के कन्ट्रोलर्स, ना माँस काटने की कुल्हाड़ी, ना सेल्मन काटने का चाकू, ना लहसुन-प्रेस, ना मसालेदान, ना बॉक्स-पार्टीशन्स, ना बिल्लियों के लिए खिलौने, ना किताबों के लिए बॉक्सेस, ना ही बॉक्सेस के लिए किताबें…

ना लेटर-होल्डर्स. ना पॉलिस्टर की थैलियाँ. ना ही एक्स्प्रेसो-कॉफी के लिए कप-सॉसर्स…

प्रवेश कक्ष के लिए कोई तस्वीर भी नहीं. भारी स्ट्रोक्स से बनाई गई पेन्टिंग्स. मूल तस्वीर का सम्पूर्ण प्रभाव.

हर चीज़ ल्येव लाव्रेन्तेविच को गुस्सा दिला रही थी, मगर सबसे ज़्यादा गुस्सा मॉडेल्स पर आ रहा था. पिछले कुछ समय से मॉडेल्स उसे बेहद गुस्सा दिला रहे थे. हर तरह के मॉडेल्स. बेसिर के, मिसाल के तौर पर, – जब बेसिरे मॉडेल्स का फ़ैशन था. मगर सिर वालों से भी चिढ़ होती थी – चेहरे की बनावट चाहे जैसी भी हो. चिकने चेहरे, बिना आँख-कान के, बिना नाक-मुँह के, जिनका सिर शुतुरमुर्ग के अण्डे जैसा हो; या एलियन्स के थोबड़ों जैसा ; या, मिसाल के तौर पर, जान बूझ कर बिगाड़े गए इन्सानी चेहरे जैसा – माइक्रो और मॅक्रोस्तर पर; या फिर इसके विपरीत, किसी हायपर रीयल तरीके से बनाए हुए, जब माथे की झुर्रियाँ भी दिखाई दे रही हों, और ठोढ़ी का डिम्पल भी, और जब इस अमानवीय वस्तु को सेल्समैन- कन्सल्टेन्ट समझने की भूल कर बैठते हो. पहले वे ऐसे नहीं हुआ करते थे, पहले वे बिना किसी दिखावे के होते थे. इसीलिए ल्येव लाव्रेन्तेविच उनसे नफ़रत करता था – दिखावे के लिए! पुतलों की ओर देखते हुए ल्येव लव्रेन्तेविच इन्सान के बारे में सोचे बगैर नहीं रह सका. क्या पुतले की ओर देखते हुए इन्सानी कौम से भरोसा टूट सकता है, क्योंकि पुतले को इन्सान से मिलता-जुलता ही तो बनाया गया है? ल्येव लाव्रेन्तेविच को याद आया, कि कैसे कोई टी.वी. में सभी पुतलों के प्रमुख गुण समझा रहा था, जिनमें प्रमुख हैं हमेशा कार्यक्षम रहने की उनकी योग्यता, उनकी, अनावृत अवस्था में, अलैंगिकता. मतलब, सिद्धांत रूप से, चाहे जो भी हो जाए, पुतला किसी भी इन्सान को उकसाने के लिए तत्पर नहीं होता (सिवाय, बेशक, खरीदारी के). मगर, पहली बात, उसकी कार्यक्षमता को कैसे समझा जाए – हो सकता है, ऐसे भी लोग हों, जिनके लिए पुतले का मुख्य काम अनिवार्य रूप से हैंगर होना नहीं है, और, दूसरी बात, ल्येव लाव्रेन्तेविच का उदाहरण लें : अगर, उस टी.वी. वाले जीनियस के अनुसार पुतला तीव्र भावनाएँ उत्पन्न करने में अक्षम है, तो ल्येव लाव्रेन्तेविच का दिल क्यों चाहता है कि उसके थोबड़े पे झापड़ मारे? किसी भी पुतले को, चलिए मान लेते हैं, हर पुतले को नहीं, बल्कि किसी ख़ास पुतले को, जैसे – ये, जो खड़ा है बरगंडी टी-शर्ट और क्लब-सिल्क जैकेट में और जिसकी पलकें भी हैं, मगर नज़र लगभग सार्थक है, या इससे भी बदतर : आदर्श है? ल्येव लव्रेन्तेविच ने मुट्ठियाँ भींच लीं, मगर अपने आपको रोक लिया, पुतले के थोबड़े पे झापड़ नहीं मारा. दूर हट गया. बिना कुछ ख़रीदे बाहर आ गया.

ट्रॅफ़िक जॅम धीरे-धीरे कम हो रहा था.

“अपनी बवासीर भूल जाओ!” – एक भड़कीला पोस्टर बुला रहा था.

“क्लिनिकल केस,” ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने यंत्रवत् क्लिनिक का पता पढ़कर अपने आप से कहा. वैसे वह इश्तेहारों के मजमून पढ़ने से अपने आपको रोकता था. मगर हर बार ऐसा नहीं हो पाता था.

“बवासीर” के पास नौजवानों की एक गंन्दी-सन्दी टोली खड़ी थी, उनमें से एक बड़े जोश से गिटार पर हाथ मारे जा रहा था और घिनौने ढंग से रेंक रहा था, और उसकी सहेली भी ये सोचकर, कि वह गा रहा है और इस गाने को इनाम मिलना ही चाहिए, टोपी फैलाकर आने-जाने वालों के पास जा रही थी. ल्येव लाव्रेन्तेविच  के पास भी भागकर आई, मगर उसके चेहरे का दृढ़ भाव “नहीं दूँगा”  पढ़कर फ़ौरन दूर हट गई. वाकई में ल्येव लाव्रेन्तेविच  के चेहरे से कुछ अधिक ही क्लिष्ट भाव प्रकट हो रहा था : “पहले बजाना और गाना सीखो, और बाद में, अंगूठा चूसने वालों, पब्लिक में आओ!” बगल से गुज़र गया, शैतानियत का भाव लिए. क्यों, ये ऐसे क्यों हैं? ल्येव लाव्रेन्तेविच  भी चार तार बजाना जानता है, और इस लड़के से बुरा नहीं बजाता, मगर वह क्यों, किन्हीं भी परिस्थितियों में अपनी साधारण योग्यता को किसी के भी मत्थे नहीं मारता – वो भी रिश्वत की ख़ातिर!? अगर असंभाव्य को भी मान लें और  कल्पना करें, कि ल्येव लाव्रेन्तेविच  भीख माँग रहा है (समझ लो, दुर्भाग्यपूर्ण ज़रूरत के कारण, या मार डाले जाने के भय से), तो ये होगा (जो, बेशक, कभी नहीं होगा) भिखारी, चीथड़ों में, बिना जूतों के, नम्र ल्येव लव्रेन्तेविच, ईमानदारी से गंदी सिमेन्ट पर बैठा हुआ, अपने सामने मुड़ी-तुड़ी कैप रखे – मगर बगैर गिटार के! बिना गानों के! बिना फूहड़ नकलचियों के!

और ये “अपनी बवासीर भूल जाओ” क्या है? कोई उसे क्यों भूल जाए, जबकि वो मौजूद है? कैसे भूलें – पर्स, या छतरी की तरह?…और ये, ज़ोर देता हुआ, बेवकूफ़ीभरा “अपनी”!…अपनी भूल जाओ, और औरों की बवासीर भूलने की ज़रूरत नहीं है?

उसे महसूस हुआ, कि, अगर वह थोड़ी-सी पीता नहीं है, तो टूट जाएगा.

ल्येव लाव्रेन्तेविच  अंडरपास पर नहीं उतरा, जो मेट्रो स्टेशन तक जाता था, बल्कि, करीब दो सौ कदम चलकर, कम आबादी वाली टी-लेन में मुड़ गया. वहाँ नीचे, सेलार में, पिछले साल की शरद ऋतु से “एल्ब्रूस” नामक ‘ग्लास-हाउस’ खुला था, मगर जो पुरानी यादों के कारण “कटलेट-हाउस” के नाम से ही ज़्यादा जाना जाता था.

तहखाने का नाम “एल्ब्रूस” क्यों है, इसकी कोई अन्य वजह न सूझने के कारण ल्येव लाव्रेन्तेविच  ने सोचा कि एल्ब्रूस – मालिक का नाम है.

भीतर जाते हुए पचास की कल्पना की; काउन्टर पर सौ के बारे सोचा और तय किया : डेढ़ सौ. उसे छोटी-सी सुराही में दी गई. टोमॅटो-जूस का गिलास लिया. कुछ खाने का मन नहीं था, तीन दिन से भूख नहीं थी.

बैठा, जाम भरा, ख़यालों में चार हिस्सों में बाँटते हुए. जल्दी मचाने की ज़रूरत नहीं है. महसूस करते हुए, समझदारी से, सलीके से. पी गया, टॉमेटो-जूस गटका, थोड़ा-थोड़ा दो बार. बगल वाली मेज़ पर दो लोग बैठे थे, बियर पी रहे थे, प्लेट में सूखे घोंघो का ढेर लगा था. ल्येव लाव्रेन्तेविच ये कचरा बर्दाश्त नहीं कर पाता था.

जब से “कटलेट-हाउस” “ग्लास-हाउस” बना था, यहाँ कटलेट्स बेचना बंद कर दिया गया था.

सिगरेट पी.

म्युज़िक, खैरियत है, नहीं था.

मगर बगल वाली मेज़ पर बैठे लोगों की बातों के मुकाबले में म्यूज़िक सुनना ज़्यादा अच्छा होता. उनमें से एक दूसरे को अपना कुलनाम बदलने के लिए मना रहा था. “कव्न्युकोव, बदल दो, तुझे वैसे भी गव्न्युकोव (गव्न्युकोव शब्द का अर्थ है – मूर्ख – अनु.) ही समझते हैं!” (ये, कि वो कव्न्युकोव है, लेव लाव्रेन्तेविच  सुन कर नहीं, बल्कि वाक्य के संदर्भ से समझा.) दूसरे ने पहले वाले को जवाब दिया कि वह गव्न्युकोव ही है, ये तो उसके दादा ने युद्ध से पहले गव्न्युकोव को कव्न्युकोव में बदल दिया, जबकि सही कुलनाम है गव्न्युकोव, और वो, याने कव्न्युकोव कभी भी अपना कुलनाम बदल कर एडमिरालव, या वीशेगोर्स्की नहीं रखेगा, और अगर बदलेगा भी, तो वापस गव्न्युकोव में बदलेगा, क्योंकि असली कुलनाम, सही है, और उसका सम्मान करना चाहिए. उसने कई बार अपने वाक्यों में सर्वनाम “हम” का प्रयोग किया, मगर बोलकर समझाने में मुश्किल हो रही थी : “हम – कन्युकोव” या “हम – गन्युकोव”. आख़िरकार वो वाक्य गूंजा, जो, सोच सकते हैं, कि असाधारण कुलनाम वाले व्यक्ति के लिए आदर्श वाक्य था, जिसे लेकर वह आत्मविश्वास से ज़िंदगी में आगे बढ़ रहा था, भाग्य को चुनौती देते हुए : “गव्न्युकोव अनेक हैं, मगर गव्न्युकोव सिर्फ एक है”. (हो सकता है, उसने कहा हो “कव्न्युकोव एक है” – एक शैतान.)

क्या बकवास है?….इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?…ल्येव लाव्रेन्तेविच  अपने आप ही गुस्सा हो गया. अगर ये ऐसा ही चलता रहा, तो उसे बस उल्टी आ जाएगी.

वोद्का, वाकई में ठीक-ठाक थी, मगर टोमॅटो जूस भी उसे अच्छा नहीं लगा. नमक ही नहीं है. मगर उसने ख़ुद नमक नहीं डाला – जानबूझकर. कहते हैं, कि टोमॅटो जूस को अगर नमक डाल कर उबाला जाए तो वह लीवर को नुक्सान पहुँचाता है.

कव्न्युकोव-गव्न्युकोव पर इस बात से भी गुस्सा आ रहा था, कि ल्येव लाव्रेन्तेविच  को हमेशा अपने नाम और पिता के नाम पर गर्व था. गव्न्युकोव में ऐसी कौन सी ख़ूबसूरती है, जब, अगर वाकई में कोई ख़ूबसूरती है, तो वह, बेशक ल्येव लाव्रेन्तेविच में है? गज़ब का ध्वनि संयोजन है, सूक्ष्म अनुप्रास, ध्वनियों की लहरों का शीघ्र उतार-चढ़ाव : ल्येव, लाव. ल्येव, लाव, आय लव यू. ल्येव. आय लव यू, लाव, आय लव यू, लाव्रेन्तेविच. औरतों ने उससे कभी भी ऐसा नहीं कहा था. अफ़सोस.

ज़िंदगी, अगर ईमानदारी से कहा जाए, तो बुरी रही.

और ज़िंदगी हमेशा ही बुरी होती है.

जैसे ताश का घर.

और वोद्का डाली.

शुक्रिया माँ-बाप का. नाम रखा ल्येव. इससे अच्छा कुछ और सोच ही नहीं सकते.

माँ-बाप के नाम. जूस पी लिया.

कुलनाम इतना रास नहीं आया. अपने आप में तो ठीक-ठाक है, मगर नाम के साथ – बात नहीं बनती. ल्येव कमारोव. अर्थ की दृष्टि से विफ़ल. (कमारोव, कमार शब्द से बना है जिसका अर्थ है मच्छर, जबकि ल्येव का मतलब है – सिंह – अनु.)  कोई एक ही होना चाहिए था – या तो ल्येव या कमार. कुलनाम  कमारोव ने ल्येव लाव्रेन्तेविच के अस्तित्व में बचपन से ही ज़हर भर दिया था. और यदि वह गव्न्युकोव होता तो? ल्येव गव्न्युकोव…कल्पना ही भयानक है.

अब वे पॉलिटिक्स के बारे में चर्चा कर रहे थे.

“देख लेना, गव्न्युकोव, पहले अलग होगा स्कॉटलैण्ड. फिर – वेल्स.”

“सबसे पहले इंग्लैण्ड अलग होगा,” बगल वाली मेज़ पर गव्न्युकोव भविष्यवाणी कर रहा है. “स्कॉटलैण्ड और वेल्स रह जाएँगे बिना इंग्लैण्ड के.”

“अरे नहीं, इंग्लैण्ड-विंग्लैण्ड कुछ नहीं है, गव्न्युकोव, ग्रेट ब्रिटेन की सीमा में एक अनाम प्रदेश है…”

बस हो गया.

दोनों को मार डालता.

एक ‘बेघर’ जैसा दद्दू भीतर आया. चेहरा जैसे जाना पहचाना है, ल्येव लाव्रेन्तेविच उससे निश्चित ही कहीं मिल चुका है. ये देखते हुए, कि उसने हाथ में क्या पकड़ा है, उसके हाथ में तो है “पहचान के लिए”, लगता है कि दद्दू मुफ़्त वाली मैगज़ीन को बेच रहा है. हालात का जायज़ा लेकर, वह उन दोनों की ओर बढ़ा.

“बीस रूबल्स में लीजिए,” गव्न्युकोव से बोला, “देखिए, कैसी खानदानी हैं. एक से बढ़कर एक…”

“भाग जा,” गव्न्युकोव ने कहा. “तू ख़ुद ही खानदानी है.”

“अच्छा लगता है देखकर,” दद्दू गव्न्युकोव के दोस्त से मुख़ातिब हुआ. “कम से कम दस ही दीजिए.”

दद्दू की नज़ाकत का आकलन करना ही था: दस रूबल वो रकम थी जो कोई भी भिखारी बिना कुछ सोचे माँग सकता था, दद्दू तो ख़ुद को व्यापारी के रूप में पेश कर रहा था; ल्येव लाव्रेन्तेविच ने आकलन किया.

“फूट ले,” गव्न्युकोव के दोस्त ने सलाह दी.

दद्दू ल्येव लाव्रेन्तेविच की तरफ़ आने ही वाला था, मगर उससे नज़र मिलाते ही वह मानो अपनी जगह पर जम गया, जैसे कुछ याद कर रहा हो, फिर घबरा कर मुड़ गया और दरवाज़े की ओर भागा.

“रुक जाओ!” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने हुक्म दिया; उसने सौ रूबल्स का नोट निकाला और दद्दू को दिखाया. मगर ये देखकर कि दद्दू अपनी जगह पर खड़ा ही है, वह ख़ुद उसके पास गया.

उसने ये मानवप्रेम की ख़ातिर नहीं, बल्कि गव्न्युकोव और उसके मित्र को नीचा दिखाने के लिए किया.

“तुम्हें, चचा!” दद्दू की तरफ़ बढ़ा दिया.

“मदद के तौर पर.”

दद्दू ‘आह-ओह’ करने लगा, एहसान के कुछ दयनीय शब्द बुदबुदाए. गरिमा और सैद्धांतिकता से वह अपरिचित नहीं था : वह मैगज़ीन गड़ाकर ल्येव लाव्रेन्तेविच से उसे लेने की ज़िद कर रहा था, मगर ल्येव लाव्रेन्तेविच “पहचान के लिए” को अपने से दूर हटा रहा था. “बस कीजिए,” उसने समझौते भरी चिड़चिड़ाहट से फुसफुसाते हुए दद्दू से कहा, “मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है, किसी को बेच दीजिए…” “नहीं! …इतना पैसा दिया है…” दद्दू हौले से बुदबुदाया, “नहीं, नहीं, नहीं…आपको ज़्यादा ज़रूरत है, आप जवान हैं…”

‘हो सकता है, कि फैकल्टी में काम करता था?’ फूले-फूले पीले चेहरे को ग़ौर से देखते हुए ल्येव लाव्रेन्तेविच याद करने की कोशिश कर रहा था. कुछ भी हो सकता है. आदमी गिर गया है.

दद्दू ने चालाकी से “पहचान के लिए” को बीचों बीच मोड़कर ल्येव लाव्रेन्तेविच की जेब में घुसा दिया, इसके बाद वह फ़ौरन बाहर निकल गया.

ल्येव लाव्रेन्तेविच आत्मसंतोष के भाव से, जो उसके लिए स्वाभाविक नहीं था, अपनी मेज़ पर आया. उसने तीसरा पैग भरा. सोचने लगा. कहीं ये नमूना ही तो पंद्रह साल पहले प्रबंधन सिद्धांत के मूलतत्व नहीं पढ़ाता था?

“एह, तू ईडियट है!” कव्न्युकोव-गव्न्युकोव की आवाज़ आई (ऊँची आवाज़). “अरे इन्हें तो चौराहों पर मुफ़्त में बाँटते फिरते हैं, जितने चाहो ले लो!”

“सबको नहीं देते,” गव्न्युकोव के दोस्त ने कहा. “सिर्फ विदेशी कारों के ड्राइवर्स को. पैदल चलने वालों को नहीं देते. और बेघर लोगों को भी नहीं देते.”

“बेघर लोगों को ही देते हैं. तुम्हारे ख़याल में ये कौन था? बेघर नहीं?..बेघर लोगों को देते हैं, ताकि वे इस जैसे ईडियट्स को बेचें. बेघर बेचता है, और पैसे आपस में बाँट लेते हैं. सुन रहे हो, ईडियट! तुझे पता है, ईडियट, कैसा ईडियट है तू? और तू भी ईडियट है!”

अपमान. न सिर्फ ग़लीज़ बौछारों के लहज़े ने, और लहज़े ने भी ल्येव लाव्रेन्तेविच को इतना अपमानित नहीं किया, जितना इस हास्यास्पद विश्वास ने, कि वह सेक्स-सर्विसेस का फ्री-केटेलॉग ख़रीदने में सक्षम है. मगर लहज़ा भी! – लहज़ा अपने आप में ही अपमानजनक था.

‘हमने ‘ब्रदरहुड’ के लिए नहीं पी है.’

ये कहकर ल्येव लाव्रेन्तेविच ने आख़िरकार तीसरा पैग टकराया, जैसे ये दिखा रहा हो, कि वह अपने आप में मस्त है. सुराही में चौथे पैग के लिए अभी वोद्का शेष थी.

‘तुम्हारे साथ तो मैं कभी न सिर्फ ‘ब्रदरहुड’ के लिए पिऊँगा, बल्कि तुम्हारी बगल वाला टॉयलेट भी इस्तेमाल नहीं करूँगा!’

कमीना कहीं का! मगर, ठहरो. ल्येव लाव्रेन्तेविच ने जेब से मैगज़ीन निकाली, उसे मेज़ पर रखा, और एक इज़्ज़तदार आदमी की तरह आराम से पन्ने पलटने लगा, जो यह जानता है, कि उसने क्या हासिल किया है और किसलिए.

“देख, देख रहा है.”

“घर में काटकर दीवार पर लटकाएगा.”

“ईडियट, मैग्निफाइंग ग्लास ख़रीद ले!”

शान्ति से! ल्येव लाव्रेन्तेविच ने मोबाइल निकाला और इस काम को यथासंभव महत्व देते हुए, उसे मैगज़ीन की बगल में रखा. सुराही से जाम में बची हुई वोद्का डाली. पन्ना पलटा. दूसरा. कपड़े पहनी लड़की को देखा, उसी को. पीने ही वाला था – हाथ जाम की तरफ़ बढ़ा, मगर – रुक गया! – मोबाइल उठाया, जाम नहीं.

उसने कपड़े पहनी लड़की को क्यों चुना? कहीं इसलिए तो नहीं कि वह ख़ुद कपड़ों में था?

“देख, नंबर लगा रहा है.”

रिसीवर:

“हैलो.”

“नमस्ते!” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने स्पष्ट और ज़ोर से कहा. “क्या हाल है?”

“क्या हम मिल चुके हैं?”

“केटेलॉग देख रहा हूँ…प्रस्तावों को देख रहा हूँ.”

“क्या ख़ुशी पाना चाहते हैं? या फिर? ख़ुशी या संतोष?”

दार्शनिक सवाल है. ल्येव लाव्रेन्तेविच बारीकियों में नहीं गया. गव्न्युकोवों को ये दिखाना अच्छा रहेगा, कि उसका हर शौक आराम से पूरा हो जाता है.

“जो चाहिए,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कहा.”मतलब कि ये भी और वो भी! इस समय मुझे उसीकी ज़रूरत है. और और भी कई चीज़ें, आप मेरी बात समझ रही हैं. मेरे पास काफ़ी आइडियाज़ हैं. वैसे, धन्यवाद.”

बेकार ही में “धन्यवाद” कहा. “धन्यवाद” किसलिए? और ये “वैसे, धन्यवाद” किसलिए? उसे अपने आप को पब्लिक के सामने सक्रिय व्यक्ति की तरह, अमीर मर्द की तरह दिखाने की ज़रूरत महसूस हुई.

“आपको अफ़सोस नहीं होगा,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कहा.

अंतराल कुछ सेकंड चला, ज़ाहिर है, ल्येव लाव्रेन्तेविच के सुझावों का बारीकी से विश्लेषण किया जा रहा था.

“तुम्हें भी अफ़सोस नहीं होगा…पेन उठाओ और पता लिखो.”

ल्येव लाव्रेन्तेविच ने पेन लिया और टिश्यू-पेपर पर पता लिखने लगा – बेहद लापरवाही से, सिर्फ दिखाने के लिए.

दूर नहीं है, कहीं पास ही में है. जिससे ल्येव लाव्रेन्तेविच को बातचीत को ज़्यादा सटीक बनाने में मदद मिली:

“ये, जहाँ जूतों की दुकान है?”

“उसके दूसरी ओर. मेडिकल स्टोर की बगल में. आँगन से प्रवेश है.”

“मेडिकल स्टोर की बगल में,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने दुहराया. ”और मैं, बस नुक्कड़ पर ही हूँ…” उसने बताया कि कौन से नुक्कड़ पर है, और सुना:

“बढ़िया. तेरी ‘लेडी’ बिल्कुल ‘फ्री’ है. और बेसब्री से इंतज़ार कर रही है.”

“मिलते हैं,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कहा.

मोबाइल रख लिया. आख़िरी पैग पी लिया. करने दो इंतज़ार.

उठा और दरवाज़े की तरफ़ चला. अगर गव्न्युकोव लोग ख़ामोश ही रहते, तो वह दरवाज़े से उनसे कहता “फिर मिलेंगे”. मगर पहले गव्न्युकोव से ही नहीं रहा गया:

“सौ डॉलर्स, हाँ?”

“सौ यूरो,” और बिना मुड़े बाहर निकल गया.

रास्ते पर आकर सोचा कि “दो सौ” कहना चाहिए था.

अचानक हल्की सी ख़ुशी की लहर दौड़ गई और तभी शरीर में जानी-पहचानी ठण्डक महसूस हुई : अभी भी ठण्ड है.

ओवरकोट की ऊपरी बटन बन्द करते हुए वह सोच रहा था, कि नेकटाई खरीदने के लिए गर्दन की गोलाई को जानना ज़रूरी नहीं है. हो सकता है, बात तब नेकटाई की न हो रही हो. गिफ्ट में तो उसे नेकटाई मुश्किल से मिलने से रही. ज़िंदगी चल रही है.

दो तरह की संभावनाएँ हो सकती थीं : मेट्रो में बैठकर घर चला जाए (घर पर उसे कल अधूरी रह गई बिचले तल्ले की सफ़ाई करनी थी…) या फिर गव्न्युकोवों के बगैर किसी महत्वपूर्ण जगह पर जाए, इस तरह, कि बीबी के सामने एक बेहद बेफिक्र अंदाज़ में पेश हो सके. दूसरे प्लान के फ़ायदों के बारे में सोचते हुए, ल्येव लाव्रेन्तेविच “हकलाहट का इलाज” वाले बैनर तक पहुँचा और रुक गया. उसे विश्वास की नहीं हो रहा था कि यहाँ वाकई में हकलाहट का इलाज होता है. और हकलाहट का सैद्धांतिक रूप से इलाज किया जा सकता है, ये बात उसे काफ़ी संशयास्पद प्रतीत हुई. झूठ बोलते हैं. शायद झूठ बोल रहे हैं.

ग़नीमत है, कि वह हकलाता नहीं है.

चारों ओर नज़र दौड़ाई.

गव्न्युकोव अपने दोस्त के साथ पीछे-पीछे आ रहा था.

उनके बीच करीब 100 मीटर्स का फ़ासला था, वे अभी-अभी तहखाने से निकले थे. “एल्ब्रूस” से. उन्हें और क्या चाहिए? वे ल्येव लाव्रेन्तेविच के पीछे-पीछे क्यों आ रहे हैं? अपनी बियर पी लेते. ल्येव लाव्रेन्तेविच को शक हुआ कि उनके इरादे अच्छे नहीं हैं. सुनसान गली. हो सकता है, उन्होंने सोचा हो, कि उसके पास बहुत सारे पैसे हैं? या मोबाइल छीनना चाहते हैं? महीना भर पहले किसी छोटे-मोटे चोर ने ल्येव लाव्रेन्तेविच के चौदह साल के भतीजे का मोबाइल छीन लिया; वह अपनी हिफ़ाज़त न कर सका. ल्येव लाव्रेन्तेविच ऐसा नहीं होने देगा.

दाएँ हाथ पर गार्डन-स्क्वेयर था; दो लालटेनें बेकार ही स्क्वेयर को प्रकाशित कर रही थीं, जो किसी अन्य मौसम में नर्सरी थी. अभी तो ठण्डे कीचड़ ने गार्डन और चौक दोनों को लबालब भर दिया है, इस सबके बीच जैसे जानबूझ कर एक धातु-प्लास्टिक की संरचना खड़ी है, अगर बर्फ हो तो बैठ-बैठकर फिसलने के लिए. ल्येव लाव्रेन्तेविच ने तेज़ कदमों से निडरता से गार्डन वाला क्षेत्र पार किया और काफ़ी चहल-पहल भरी एम-स्ट्रीट पर आया.

इस बात का यकीन करने पर कि उसका पीछा नहीं हो रहा है, ल्येव लाव्रेन्तेविच शहर के सेन्टर की ओर चल पड़ा. गाड़ियों का आवागमन पूरी तरह फिर से शुरू हो गया था, और इससे कीचड़ उड़ने का ख़तरा था. दो-एक बार उछल कर दूर हटना पड़ा. दूसरे आने-जाने वाले, घरों के नज़दीक-नज़दीक से चल रहे थे. ल्येव लाव्रेन्तेविच घर के पास गया और उसे देखा.

उसने उसे देख लिया – दद्दू कलश के अंदर पड़ी हुई चीज़ों का जायज़ा ले रहा था. मुझे यकीन है. वह ठीक उसी को ढूँढ रहा है. व्यस्तता से कलश में हाथ डालकर ढूँढ़ रहा है. क्या सौ रूबल्स उसके लिए कम हैं? ये क्या है? – चाहे जितना भी दो, कलश में ही घुसेगा?

ल्येव लाव्रेन्तेविच को फ़ौरन अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, एक पल ऐसा था, जब उसे लगा कि उससे गलती हो गई है, ये कोई और है. नहीं, वही था. अफ़सोस, वही था. पुराना परिचित.

दुखी हो गया. ऐसी उदासी छा गई!…मगर उदासी के पीछे एक और उदासी चलती है. ल्येव लाव्रेन्तेविच बिना इधर-उधर देखे वहाँ से गुज़र गया, – जैसे ही वह घर के नुक्कड़ से मुड़ा, उसे याद आ गया, कि इस दद्दू से कब और कहाँ मिला था – इससे पहले.

कलश के पास! सिर्फ दूसरे!…

बिल्कुल अभी-अभी!

ल्येव लाव्रेन्तेविच की आँखों के सामने तस्वीर घूम गई : वह उस घिनौनी, चमकीली मैगज़ीन को कलश में फेंकता है, और कलश की बगल में दद्दू खड़ा है – बेघर जैसा! ये बिल्कुल वो ही है! आख़िरकार, याद आ ही गया!…

हाँ, ये अभी-अभी ही तो हुआ था, दो घण्टे भी नहीं बीते!

मगर ऐसा लगा था, कि बहुत पहले कहीं मिल चुके हैं…डिपार्टमेन्ट में…फैकल्टी में…

छि: छि: – हाँ, कलश के पास!

इसका क्या मतलब हुआ? मतलब ये हुआ, कि सेक्स-सर्विसेज़ वाली मुफ़्त मैगज़ीन, जिसे ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कलश में फेंक दिया था, उसे दद्दू ने कलश से निकाल लिया? और फिर कलश से निकाली हुई मैगज़ीन को ल्येव लाव्रेन्तेविच के गले वापस मढ़ दिया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो?… और ल्येव लाव्रेन्तेविच ने उसे ले लिया?…कलश से निकली मैगज़ीन को!… जिसे ख़ुद ही इस कलश में फेंका था!…

ये – “गले मढ़ दिया” – क्यों? क्या ल्येव लाव्रेन्नतेविच ने ख़ुद ही पहल करके दद्दू को नहीं बुलाया था? ख़ुद ही ने? क्या ख़ुद ही उसे वो नासपीटे सौ रूबल्स नहीं पेश किए थे? यही तो बात है, कि ख़ुद ही ने ये किया था!

इसे इस तरह भी देख सकते हैं : दद्दू को सौ रूबल्स की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह पैसे होते हुए भी कलश खंगालता रहता है, ये बहुत महत्वपूर्ण बात है, क्योंकि उस हाल में सौ रूबल्स बिल्कुल रिश्वत नहीं है और प्रायोजित इनाम नहीं है, बल्कि वाकई में कीमत है. कीमत उसकी, जिसके लिए दद्दू उसे प्राप्त करना चाहता था – मुफ़्त की मैगज़ीन के लिए! सेक्स-सर्विसेस वाली. जिसे कलश से निकाला गया था.

मतलब, गव्न्युकोव सही है : ल्येव लाव्रेन्तेविच ने सौ रूबल्स देकर मुफ़्त वाली मैगज़ीन खरीदी.

मतलब, गव्न्युकोव सही है : ल्येव लाव्रेन्तेविच ईडियट है!

और ये तब, जब गव्न्युकोव नहीं जानता था, कि मैगज़ीन कहाँ से आई है – कि उसे नहीं मालूम था, कि कलश से आई है!…और ये, कि ख़ुद ल्येव लाव्रेन्तेविच ने ही उसे कलश में फेंका था!… नहीं जानता था!…और अगर जानता होता, तो?

नहीं, ल्येव लाव्रेन्तेविच कितना बड़ा ईडियट है, गव्न्युकोव को पता ही नहीं है!

ये बहुत बड़ा धक्का था. पैरों के नीचे ज़मीन खिसक गई. ल्येव लाव्रेन्तेविच सोच रहा था : ये तुम मेरे साथ कर क्या रहे हो ददुआ? ये तो ठीक है कि मैं अपने आप का भी वैसा ही आलोचक हूँ, जितना दुनिया का. मगर कोई और आदमी? कोई और आदमी, जिसके पास कोई नैतिक आधार नहीं है, उसका आधार तो बिल्कुल ही खो जाएगा (बात हो रही है नैतिकता की), इन्सानियत से विश्वास उठ जाएगा, दिमाग़ में उपजे हर ख़याल को पूरा करने की इजाज़त देते हुए – क्या ये पाप नहीं होगा?

सोचना पड़ेगा, 150 ग्राम वोद्का दिमाग़ के लिए बेहतरीन खुराक है, जब वह सबसे अच्छी तरह से सोच सकता है.

ल्येव लाव्रेन्तेविच रुक गया.

एक और शहरी पागल पानी में इस तरह साइकल पर जा रहा था जैसे सूखी ज़मीन पर जा रहा हो; कोई और दुकान से भाले की तरह खूब लम्बा बेसबोर्ड उठाए निकला; ‘टो-ट्रक’ तेज़ी से गलत पार्क की गई “नाइन” (VAZ- 2109) कार को उठाने के लिए आगे बढ़ा, – मगर ल्येव लाव्रेन्तेविच को चैन नहीं था, वह अपनी जगह पर खड़ा रहा, बिना हिले-डुले – गलतियों और भूलों का हिसाब करते हुए.

बहुत सारी गलतियाँ हुई हैं, शुरुआत हुई पैदा होने से. और ये, कि शादी की. और ये, कि पेत्या की बात मान ली, कार में बैठने का लालच करके बीबी के लिए गिफ्ट लाने चल पड़ा (और फिर, ख़रीदा भी नहीं!…), और ये कि सेक्स-सेवाओं की मैगज़ीन कलश में फेंकने को तैयार हो गया, और ये, कि उसे फिर से हासिल भी कर लिया…सौ रूबल्स में…मगर यही सब कुछ नहीं है! ये, कि उसने उस “कपड़े पहनी” लड़की को फोन किया, ये भी गलती ही थी! और ये सबसे ख़तरनाक गलती थी!

पसीने की पाइप जैसी ड्रेन पाइप को देखते हुए, उसे इस अंतिम गलती की गंभीरता का एहसास हुआ.

उसका मोबाइल रोशनी फेंक रहा है. वह डाटा-बेस में फँस गया है. अब उसे ढूँढ़ना आसान है. वाकई में, ढूँढेंगे, ज़रूर ढूँढेंगे. ख़ुद ही फोन किया और नहीं आया. सेक्स-बिज़नेस बेईमानी को माफ़ नहीं करता. असल में, उसने फोनवाले बदमाश जैसा काम किया है : एक बोगस-ऑर्डर दिया (या, असल में उसे क्या कहते हैं?), सिर्फ इससे मज़ाक करने की इजाज़त नहीं है. हो सकता है, कि ल्येव लाव्रेन्तेविच की शीघ्र विज़िट के ख़याल से उसने किसी अन्य क्लाएण्ट को इनकार कर दिया हो, परिणाम स्वरूप ल्येव लाव्रेन्तेविच नुकसान का, हानि का कारण बना है – नैतिक और वित्तीय हानि का. नैतिक से भी ज़्यादा – वित्तीय हानि का. उसे फ़ोन करेंगे और पूछेंगे कि वह कहाँ है. और कहेंगे कि मार्केट को जवाब देना ज़रूरी है. चाहे जो भी हो, उससे दूर नहीं हटेंगे. उसे फ़ोन करते रहेंगे और ख़ास तरह की सेवाओं का प्रस्ताव रखेंगे. रात को भी. नहीं, रात ही में. जब वह बीबी के साथ एक बिस्तर में सोया होगा (या नहीं सोया होगा). जिसके लिए आज उसने गिफ्ट नहीं खरीदा था.

चौराहे से एक के बाद एक बर्फ़ हटाने वाली मशीनें गुज़र रही थीं. किसलिए – अगर बर्फ के ढेर पिघल चुके हैं?

एक उपाय है – ऑर्डर कैन्सल कर दिया जाए. फ़ौरन. इससे पहले कि वहाँ से उसे फ़ोन करें.

उनके फ़ोन का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है.

और उसने फ़ोन किया – कैन्सल करने के लिए.

“ये – फिर से मैं हूँ,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कहा.

“हम कहाँ घूम रहे हैं?”

“अफ़सोस, परिस्थितियाँ बदल गई हैं. मैं नहीं आ सकूँगा.”

“ ये ‘नहीं आ सकूँगा’ का क्या मतलब है? कहीं पास ही में घूम रहे हो, और अचानक “नहीं आ सकूँगा?” ये क्या बात है. आ जाइए, पछताएँगे नहीं. हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा. मैं इंतज़ार कर रही हूँ. आइए, आ जाइए.”

“क्या आप वाकई में डिप्रेशन से छुटकारा दिलाती हैं?” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने पूछा, क्योंकि उसे वाकई में जवाब में दिलचस्पी थी.

“और गुनाह के एहसास से भी. और अप्रिय अनुभवों से.”

“हो जाता है?”

“और नहीं तो क्या!”

“माफ़ कीजिए : मैं विश्वास नहीं करता. किसी पर भी विश्वास नहीं करता, और ख़ास तौर से आप पर.”

“प्यारे, इसे अपने आप पर आज़माना पड़ता है, महसूस करना पड़ता है, और तभी – “विश्वास करता हूँ, नहीं करता” कहो.  मैं उच्च श्रेणी की चिकित्सक हूँ. और आख़िर, मैं ग्यारंटी के साथ काम करती हूँ.”

“मगर सेक्स के बगैर,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने उसे रोकने की कोशिश की.

“सिर्फ इतना मत कहो, कि तुम्हें सेक्स चाहिए. मेरे चन्दा, तुम्हें संवाद की ज़रूरत है, न कि सेक्स की. मुझे मालूम है, कि मेरा किससे पाला पड़ा है.”

“और, ग्यारंटी क्या है, ताज्जुब है? (और असल में: क्या, ताज्जुब है, ग्यारंटी है?)”

“एक सेशन के बाद, आत्महत्या एक महीने के लिए स्थगित हो जाएगी.”

बात में दम था.

“कम्बख़्त,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने ग्यारंटी का मूल्यांकन किया. और सुना:

“चलो, फोन पर बात करना काफ़ी है. पता याद दिलाती हूँ.”

याद दिलाया.

आख़िर क्यों नहीं? उससे बातें करना भी दिलचस्प है. नये-नये अनुभव…

…दरवाज़ा खोला एक अलमारी ने – चौड़े कंधे, चौड़ी हड्डियाँ, और उसकी आँखें भी बेहद चौड़ी थीं. दाढ़ी बेहद चिकनी थी.

नज़रों से ल्येव लाव्रेन्तेविच को तौलते हुए उसने ज़ोर से कहा:

“तुम्हारा!” – और किचन में चला गया.

वह कमरे से बाहर आई – ल्येव लाव्रेन्तेविच ने देखकर पहचान लिया कि “कपड़े पहनी हुई” लड़की है – करीब पैंतीस – चालीस साल की भरी-पूरी औरत, होंठ रंगे हुए, बॉबकट हेयर स्टाइल : “कपड़े पहनी हुई” लड़की रसीले-नीले रंग के ट्रैक सूट में थी और वह किसी बड़े खेल की अनुभवी खिलाड़ी की तरह लग रही थी – मध्यम श्रेणी के पूर्व वेटलिफ्टर से कुछ अधिक.

“तो, हमारी समस्या क्या है?”

“मतलब?”

“किसी बात का पछतावा? किसी काम के अधूरा रह जाने की भावना? अपनी कमी की वजह से मानसिक कष्ट? नहीं? ओवरकोट, मेहेरबानी से, यहाँ. आपके ओवरकोट का हुक क्या उखड़ गया है? सिया क्यों नहीं है? बीबी है?”

“वैसे, हाँ,” ओवरकोट को ऊपर वाली बटन के छेद से लटका कर ल्येव लाव्रेन्तेविच बुदबुदाया.

इंटरव्यू जारी रहा:

“मैं डिप्रेशन का कारण जानना चाहता हूँ. कौन सी चीज़ ठीक नहीं है?

“मुझे हर चीज़ ठीक लगती है…मगर न जाने क्यों हर चीज़ वैसी नहीं है…कुछ सही नहीं है…”

“अपराध भावना?”

“नहीं, अपराध की कोई भावना नहीं है…मैंने किसी के भी प्रति कोई गुनाह नहीं किया है…”

“मगर बेशक. अपने मुकाबले में दुनिया से ज़्यादा शिकायतें हैं. हर बात के लिए हम मानवता को दोषी मानते हैं.”

“आम तौर से मेरे मन में मानवता के प्रति कोई ख़ास शिकायत नहीं है, उसके कुछ अलग-अलग प्रतिनिधियों के प्रति हैं, और बड़ी शिकायतें हैं…मगर दूसरी तरफ़ से, आप मानेंगी, कि किसी लिहाज़ से हमारी मानवता …ओय,ओय…”

“मानवता – ओय, मगर आप – हुर्रे.”

“हुर्रे ही तो नहीं है. अगर हुर्रे होता, तो मैं आपसे बात नहीं कर रहा होता.”

“क्या पी रहे थे?”

“वोद्का…थोड़ी सी.”

“तीन हज़ार,” कपड़े पहनी औरत ने कहा.

उसे मालूम था, कि महँगा ही होगा. पीछे हटने के लिए अब देर हो चुकी थी. पैसे निकाले, उसने नोटों को स्पोर्ट्स पैन्ट की जेब में छुपा लिया.

“मुझे मैडम कहोगे.”

“तेज़ है”, ल्येव लाव्रेन्तेविच ने सोचा.

वह मानवता के दोषों पर कुछ और दार्शनिकता बघारना चाहता था, मगर मैडम ने पूछा:

“कॉफ़ी?”

“हाँ, एक कप कॉफ़ी, अगर संभव हो तो.”

“और ये किसने कहा, कि संभव है? मैंने पूछा, चाहिए या नहीं चाहिए, और संभव है या असंभव, इसका फ़ैसला करने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है, समझ गए, ईडियट? आँखें क्यों निकाल रहे हो? अटेन्शन! मार्च करते हुए कमरे में जाओ!”

ल्येव लाव्रेन्तेविच के पैर अपने आप मुड़ गए, जैसा उसे आदेश दिया गया था, और फ़ौजी चाल से कमरे में ले गए. ल्येव लाव्रेन्तेविच ने सिर को थोड़ा सा झुकाया था, ताकि देहलीज़ से न टकराए. या सिर पे कोई चोट न लगे.

उसकी आँख़ों के आगे अँधेरा छाने लगा – या तो डर के मारे, या कुछ बुरा होने के एहसास से, या तो कुछ समझ न पाने से, कि कहीं कुछ ठीक नहीं है. मगर वह ग़ौर कर सका : कमरे जैसा ही कमरा – फर्श पर एक लैम्प, लापरवाही से समेटा गया बिस्तर, मेज़, मेज़ पर गन्दा मेज़पोश, एक प्लेट, प्लेट में केले के बचे-खुचे टुकड़े. पीड़ा पहुँचाने के औज़ार नज़र नहीं आए. साधारण कमरा.

“तुम शायद सोच रहे होगे, कि मैं चुटकुले सुनाकर मज़ाक करने वाली हूँ? मैं दिखाऊँगी तुम्हें चुटकुले! दीवार के पास तख़्ता है – तख़्ता उठाओ!”

उठाया.

“उसका सिरा पलंग पर रखो! ये वाला नहीं, बल्कि वो, बेवकूफ़! और ये सिरा यहाँ लगाओ, अलमारी की टाँग में! जल्दी, मूरख!”

ल्येव लाव्रेन्तेविच ने जल्दी-जल्दी आदेश का पालन किया.

“तू, घनचक्कर, जूते पहनकर अंदर आ गया? पता नहीं है, जूते कहाँ उतारते हैं? हो सकता है, तुझसे फर्श धुलवाऊँ? जल्दी!…खड़े क्यों हो? अब आ ही गए हो तो यहाँ उतारो!…पतलून उतारो! जैकेट रहने दो…

ल्येव लाव्रेन्तेविच कुछ बुदबुदाया असमानता के बारे में, इस लिहाज़ से नहीं, कि पतलून की अनुपस्थिति में जैकेट रहने देना सरासर असमानता है, बल्कि इस लिहाज़ से कि एकता होनी चाहिए, जब एक पतलून में है, और दूसरा बगैर पतलून के…

अब तो मैडम पूरी तरह बिफ़र गई:

“तू, केंचुए, क्या मुझे कपड़े उतारने को कह रहा है? तेरी हिम्मत कैसे हुए मुँह खोलने की? सुनो, बेवकूफ़, अगर कुछ कहना चाहते हो, तो पहले बोलो : मैडम, मुझे कहने की इजाज़त दीजिए, और तुझे कहना चाहिए या नहीं कहना चाहिए, इसका फैसला मैं करूँगी!… ये ईडियट की तरह क्या देख रहा है? कमीने, तू पतलून उतारेगा या नहीं? तीन तक गिनूँगी! एक…दो…”

पता नहीं, कि तीन कहते ही क्या हुआ (हो सकता है, वो चौड़े कंधों वाला उछल कर प्रकट हो गया हो…), मगर ल्येव लाव्रेन्तेविच अपनी मैडम को चेतावनी देने में सफ़ल हो गया – पतलून अंतर्वस्त्रों समेत नीचे फिसल गई.

“मुँह के बल तख़्ते पर लेट जाओ!” –  मैडम ने आज्ञा दी.

लेट गया. बिना आदेश के भी वह लेट जाता.

“छड़ी? चाबुक? रूलर? बाँस? फ़ौजी का बेल्ट?”

वह समझ रहा था, कि उसे इनमें से एक चुनने के लिए कहा जा रहा है, मगर किसी एक को चुनने में वह असमर्थ था. वह कहना चाहता था : रुकिए, मैं परपीड़क नहीं हूँ, मुझे इनमें से किसी की भी ज़रूरत नहीं है, मैं सिर्फ बातचीत करना चाहता था…मगर उसकी ज़ुबान जैसे गूँगी हो गई, ल्येव लाव्रेन्तेविच कुछ भी न कह सका.

“ मैं छड़ी की सिफ़ारिश करती हूँ. ताज़ी. बिना इस्तेमाल की हुई.”

सुना : वह बाल्टी को दूसरी जगह पर रख रही है (कमरे में घुसते हुए उसका ध्यान बाल्टी की ओर नहीं गया था). कहीं बाल्टी में छड़ियाँ तो नहीं हैं?

उसे तो बचपन में कभी मार नहीं पड़ी थी, दूसरी कक्षा में भी, जब उसने दादा के पासपोर्ट पर न जाने क्यों डाक टिकट चिपका दिए थे…

मगर ‘ब्लैक एण्ड व्हाइट’ में साफ़-साफ़ लिखा हुआ था : “पोर्कोथेरपी” – उसने ख़ुद ही तो पढ़ा था! अब हैरानी की क्या बात है?! या तो तुम्हारा हर चीज़ से इस कदर भरोसा उठ गया है, कि छपे हुए अक्षर पर भी विश्वास नहीं है?…

हवा में सीटी-सी बजी, और उसे जैसे जला दिया हो.

“आह!”

“अच्छा लग रहा है? मैं बताती हूँ तुझे कि डिप्रेशन क्या होता है!”

 “आह!”

“मैं तुझे बताती हूँ कि घमण्ड कैसे चूर होता है!”

“आह!”

“मैं तुम्हें बताती हूँ…”

मगर इससे पहले कि उसे चौथी बार मार पड़ती, ल्येव लाव्रेन्तेविच चिल्लाया, जैसे किसी को मदद के लिए बुला रहा हो:

“आSSSSSSSSSSS!”

जवाब में आई एक गरजती हुई और तीखी चीख, जो ज़ाहिर है मैडम की नहीं थी.

“कमीने!” अत्याचारी औरत ने कहा.

उसने सिर को ज़रा सा मोड़ा तो दीवार पर कोई गोल-गोल चीज़ देखी – सॉस-पैन जैसी और इस चीज़ पर चीख़ मारने वाला कोई प्राणी घूम रहा था.

“बैरोमीटर,” मैडम ने सोचा कि समझाना संभव है. “तीखी आवाज़ होते ही बन्दर बाहर उछलता है. अगर ताली बजाओ या चिल्लाओ, जैसा अभी तुमने किया था. ये मेरे पति ने उपहार में दिया है.”

इस समय उसकी आवाज़ ज़रा भी हुकूमत भरी नहीं थी, बल्कि सिर्फ ऊँची आवाज़ थी, जिससे बन्दर उसके शब्दों को न दबा दे. ल्येव लाव्रेन्तेविच को मैडम की आवाज़ में कुछ नज़ाकत भी महसूस हुई, मगर, हो सकता है, कि ये सिर्फ एहसास हो, मगर पता कैसे चले, कैसे पता चले…

बन्दर ख़ामोश हो गया.

“मैडम…आप शादी-शुदा हैं?”

हो सकता है, वह समझ गई, कि कमज़ोर पड़ रही है, और, अपनी इच्छा शक्ति को मुट्ठी में इकट्ठा करके, फिर से चिंघाड़ने लगी.

“मैं तुझे दिखाती हूँ शादी-शुदा!…मैं तुझे दिखाती हूँ, कि पारिवारिक बंधन क्या होता है!…मैं तुझे दिखाती हूँ, कि बीबी से बेवफ़ाई क्या होती है!…:

वह कहना चाहता था कि वह बीबी से बेवफ़ाई नहीं करता, सिर्फ अभी, इस बात को छोड़कर, अगर इसे बेवफ़ाई कहा जाए तो, – मगर नहीं , बिल्कुल नहीं, क्योंकि उसने कहा था : “सेक्स के बगैर”! उसे समझाना चाहिए…मगर कैसे समझाए, जब :

“ये ले!…ये ले!…ये ले!…”

“बस!” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने विनती की, इस डर से कि कहीं बन्दर को न डरा दे. “काफ़ी हो गया!”

“ख़ामोश!…तुझे तो अभी बीस ताज़ी छड़ियाँ भी नहीं पड़ी हैं!…ले!…ले!…ले!..नहीं, आपने ऐसा देखा है, उसने सोचा कि मैं मुफ़्त में ही पैसे लेती हूँ?! मैं तुझे दिखाती हूँ ‘काफ़ी हो गया’!…मैं तुझे दिखाती हूँ ‘काफ़ी हो गया’!…ये ले, कमीने! ये ले, कमीने!…सुइसाइड, कहता है!…ज़िंदगी से शिकायत, कहता है…शिष्टाचार का पतन, बूढ़ा खूसट, कहता है!…और तूने वोट किसे दिया था, कमीने?…मैं तुझे सिखाऊँगी, कि किसे वोट देना है!…मैं तुझे वोटिंग में नहीं जाना सिखाऊँगी!…मैं तुझे दिखाऊँगी शिष्टाचार का पतन!…मैं तुझे सिखाऊँगी इन्सानियत से प्यार करना!…”

“मैSSSSडम!” ल्येव लाक्रेन्तेविच कराहा और ओय-ओय, ई—ई करने लगा; ये आख़िरी चाबुक था.

शक्तिहीन होकर मैडम धम् से कुर्सी में धँस गई. वह धीरे से तख़्ते से नीचे सरका, डरते हुए कि उसे रोक न दिया जाए. फ़ौरन अंतर्वस्त्र, पतलून पहन लिए. बेल्ट कस लिया.

“मुझे तो कभी कोने में भी खड़ा नहीं किया गया,” ल्येव लाव्रेन्तेविच ने कहा और सिसकियाँ लेने लगा.

“बेकार ही ऐसा नहीं किया.”

बिना किसी नफ़रत के उसने कहा. इन्सान की तरह. सुन रहा था कि वह गहरी-गहरी साँसे ले रही है. फिर भी एक नज़र उस पर डाल ही दी : मोटी, मोटे-मोटे हाथ – बाप रे! सोचा : ये तो अच्छा हुआ कि बगैर सेक्स के कहा था.

“मैंने ‘मसाजिस्ट’ की ट्रेनिंग ली थी. मगर अब तो ये मसाजिस्ट इतने ढेर सारे हो गए हैं. दूसरी ट्रेनिंग लेनी पड़ी – साइको-थेरापिस्ट की. कॉफी पियेंगे?”

“नहीं, नहीं, धन्यवाद.”

“सेशन ख़त्म हुआ. आपकी ख़ातिर कर सकती हूँ.”

“धन्यवाद, मैं जाऊँगा.”

“तबियत थोड़ी बिगड़ेगी, माफ़ी चाहती हूँ.” और दरवाज़े में: “स्थायी कस्टमर्स को दस प्रतिशत की छूट मिलती है.”

बाहर हवा में ताज़गी थी, ठण्डक थी. उसने ऊपर से गिरती हुई चीज़ को देखने के लिए सिर उठाया – इस बार बर्फ गिर रही थी. पैदल यात्री ख़ुश थे और भले लग रहे थे. उसके चारों ओर की हर चीज़ वैसी नहीं थी, जैसी कुछ देर पहले थी. हर चीज़ ज़्यादा बेहतर और ज़्यादा साफ़ थी. उसके भीतर भी कुछ असाधारण रूप से अद्भुत जैसा था, ऐसा लग रहा था, कि रोशनी हो गई है, और सीने में इतना हल्कापन था, कि बस उड़ ही जाओ. सबको माफ़ करता हूँ और मुझे भी माफ़ कीजिए. ज़ोर की भूख लग आई थी. मेट्रो के लिए और सॉसेज-रोल्स के लिए पैसे पर्याप्त थे. पहले सॉसेज-रोल्स, और फिर मेट्रो में. घर, घर!…कोई बात नहीं. कल उधार ले लेगा. उसके लिए बन्दर वाला बैरोमीटर खरीदेगा. अच्छी चीज़ है.

*********

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

ज्योति शर्मा की नई कविताएँ

आज पढ़िए ज्योति शर्मा की कविताएँ । इन कविताओं में स्त्री-मन का विद्रोह भीतर ही …

6 comments

  1. मैं इस कहानी का अनुवाद करता तो ऐसे करता। मेरा अनुवाद एकदम समझ में आता है क्योंकि वह शाब्दिक अनुवाद नहीं है। मैंने सिर्फ़ ज़रा से हिस्से का अनुवाद किया है ताकि अनुवाद की गुणवत्ता पर चर्चा हो सके।
    रूसी भाषा के लेखक सिर्गेय नोसफ़ की कहानी ‘अच्छी चीज़

    — ये बत्ती क्या अभी देर तक लाल रहेगी ? — पेत्या ने कहा — अरे, यह लालबत्ती तो ख़राब लग रही है।

    — चलो, कोई बात नहीं — लेफ़ लफ़्रेन्तिविच ने अपने ओवरकोट का ऊपर वाला बटन बन्द करते हुए जवाब दिया — वह जगह पास में ही है। मैं पैदल ही चला जाऊँगा। बल्कि कुछ पहले ही पहुँच जाऊँगा।

    — ठीक है, जैसा आप चाहें।

    हालाँकि लेफ़ लफ़्रेन्तिविच वहाँ पैदल नहीं जाना चाहते थे। बाहर मौसम बेहद ख़राब था। सड़क गीली थी और उसके गीले होने की वजह से चारों तरफ़ चिपचिपाहट और गन्दगी फैली थी। सड़क से उछलकर कीचड़ के बड़े-बड़े छीटें कार के सामने वाले शीशे पर भी पड़ रहे थे, जो हिमपात के समय गिरने वाले बर्फ के फाहों से पूरी तरह अलग थे। लेफ़ लफ़्रेन्तिविच ने अपने ओवरकोट का बटन फिर से खोल दिया और बाहर निकलने का इरादा छोड़ दिया। आख़िर कार के भीतर गर्माहट थी। आज उन्हें अपने उस लेख का पारिश्रमिक मिल गया था, जो पिछली मार्च-अप्रैल में ’सम्मेलन के परचे’ नामक किताब में छपा था, हालाँकि अब तक उन्हें पारिश्रमिक पाने की कोई उम्मीद नहीं रही थी। लेफ़ लफ़्रेन्तिविच मेट्रो से भी शहर के दूसरे किनारे पर दूर बसे अपने मौहल्ले में वापिस लौट सकते थे, लेकिन जब उनके सहलेखक और पीएच०डी० के छात्र पेत्या ने उन्हें अपनी फ़ोर्ड में शापिंग सेण्टर तक छोड़ने की बात कही तो वे उसके इस प्रस्ताव को नज़रअन्दाज़ नहीं कर पाए। पारिश्रमिक मिलने के बावजूद लेफ़ लफ़्रेन्तिविच का मिजाज़ इस समय अच्छा नहीं था। दो दिन पहले ही अपनी बीवी से उनकी लड़ाई हो गई थी और अब उन्हें लग रहा था कि उसे कोई तोहफ़ा देना बेकार ही होगा। वैसे भी आज बीवी को कोई तोहफ़ा देने का उनका कोई इरादा नहीं था, इसलिए उनके मन में आया कि उसके लिए आज कोई उपहार ख़रीदना ख़ुद को धोखा देना होगा। नया साल आने में अभी तीन दिन बाक़ी हैं और उपहार ख़रीदने के लिए अभी काफ़ी वक़्त है….।

    — पेत्या तुम्हारी क्या उम्र होगी ? पच्चीस?

    — जी, चौबीस का हो चुका हूँ।

    —तीस साल की उम्र तक तो बिना शादी किए मज़े से रह सकते हो। कम से कम तीस साल की उम्र तक।

  2. A. Charumati Ramdas

    बहुत अच्छा अनुवाद किया है आपने, अनिल जी…मुझे अच्छा लगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *