वरिष्ठ लेखक हृषीकेश सुलभ का उपन्यास आया है ‘अग्निलीक’। भोजपुरी समाज के सामाजिक, राजनीतिक बदलावों को लेकर लिखा गया यह एक ऐसा उपन्यास है जिसे मेले-ठेले की भीड़ में नहीं अकेले में पढ़ा जाना चाहिए। उपन्यास पर एक टिप्पणी पढ़िए, लिखी है अनामिका अनु ने- मॉडरेटर
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“मनरौली की हों या देवली की या फिर किसी गाँव की, जिन-जिन औरतों की बदचलनी के क़िस्से मशहूर थे, वे सब क़िस्मत की मारी और नरम दिल मिली गुल बानो को। “
वे जो चौबीसों घंटे अपने आदमी के नाम की तस्बीह लिए फिरती थीं और नाक पर मक्खी तक न बैठने देती थीं, कठकरेज मिली। “
“अग्निलीक” ह्रषीकेश सुलभ
अग्निलीक पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक, राजनीतिक,आर्थिक और भावनात्मक सरोकारों से जुड़ी जिंदगी का यात्रा वृतांत है। इस यात्रा में हर तबके ,धर्म और जाति की औरतों और पुरुषों के पदचिन्ह हैं।
समय के साथ महिलाओं की वैचारिक और व्यवहार में आए परिवर्तन का लेखा जोखा है।इस उपन्यास में मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक उलझनों में डूबते उभरते लोगों की मनोकथा के साथ सामाजिक और राजनीतिक उथल- पुथल की भी जोरदार दस्तक है।
इस उपन्यास में कहानी है, नाटक है, गीत से दृश्य हैं ,प्रेम के कई रंग और प्रखर जनचेतना है। इस उपन्यास में जिस तरह से महिला पात्रों ने सब्र से अपने रास्ते तय किये हैं वह कमाल का है।इस उपन्यास में चुप से प्रखर हुई महिलाओं के साहस और निर्णय पर मुहर लगाते पुरुषों का कथा संसार भी है।
सड़कें है, प्रकृति है,गाँव और शहर के दृश्य के साथ साथ बाजार और घर का आंगन भी है। शमशेर साँई की हत्या से शुरू और मनोहर रजक की हत्या पर विराम लेता उपन्यास आपको एक अद्भुत जलयात्रा पर ले जाता है जिसमें हिलोरें है, लहरें है, हवा है, रोमांच है, किनारा भी है और डूबने का दर्द भी।
इस उपन्यास के कई दृश्य बड़े मनोरम और हृदयग्राही हैं। ये दृश्य आपकी आँखों में चाँदी के वरक सा चमक उठती हैं और आप स्वंय को वहीं कहीं पाते हैं जहाँ लेखक आपको ले जाना चाहते हैं। इन जीवंत सुगबुगाते दृश्यों के लिए लेखक की कलम को बधाई।
“किनारे की धरती जैसे-जैसे जल से उतरान होती, चना और तीसी छींट दिया जाता। फगुनहट बहते-बहते दुधही का तट तीसी के नीले फूलों से पट जाता। नीले फूलों के वलय के बीच दुधही के थिराए जल में तैरती चहल्वा मछलियाँ और किनारे के पाँक में डेरा डाले रहतीं गैंची और गरई ।दूर -दूर से उड़ते हुए जल में खेलते पंडुक पंछी और चाँदी-सी चमकती चहल्वा का भोग लगाते बगुले”
कई मार्मिक बिंदु पर पूरी कहानी ठहर जाती है। पात्र की निश्चलता और समर्पण की भुकभुकाती डिबिया जैसे जलती है, ओसारे का सारा अंधकार,सारी दृष्टि उस नरम उष्णता और झिलमिल रोशनी को समर्पित हो जाती है।मानो सारे पात्र, सारी कथा उस पल का निर्निमेष दृष्टि वंदन कर रहे हो। ऐसा ही एक दृश्य है जब शमशेर साँई की हत्या के बाद रेशमा से गुल बानो मिलती है। संवादहीन ,अश्रुपरिभाषित वे क्षण वेदना विनिमय के उस शीर्ष बिंदु पर पहुँचते हैं जो दो आत्माओं के बीच पुल गढ़ती है और इनकी सारी संवेदनाएं आपस में घुलकर शरबत हो जाती हैं । यह दृश्य बहुत मीठा है-
“पतली-सी गली में खुलता एक छोटा सा दुपलिया दरवाज़ा और लोहे की छड़ी वाली एक खिड़की थी। खिड़की से आती रोशनी में गुल बानो ने देखा, एक साँवली औरत तख़्त पर बैठी थी और खिड़की के पार निहार रही थी। गुल बानो की नज़र उसके नज़र से मिली। दोनों ने अपने-अपने दुःखों की चादर से अपने को ढँक रखा था। दुःख दुःख को टेर रहा था। आँसुओं से तर-बतर गुल बानो के ताँबई चेहरे को रेशमा ने अपनी छाती से सटा लिया था और उसके उलझे केशों को बिना कुछ बोले सहला रही थी।दोनों के बीच निःशब्द संवाद चल रहा था।रेशमा ने पानी दिया था उसे। घूँट-घूँट पानी गुल बानो के कंठ के भीतर उस रात ऐसे उतरा कि जैसे महतारी के छाती से सूँता हुआ दूध उतर रहा हो। “
ऐसे न जाने कितने खूबसूरत दृश्यों के साथ बनी और इत्मीनान से कही गयी कई जिंदगियों की दास्तान है अग्निलीक।
अकरम को पीटकर रेशमा ने समाज को आगाह किया कि औरत का प्रेम पाक होता है।ये मोल -जोल की वस्तु नहीं है। श्रद्धा के इस व्यवहार में व्यापार नहीं चलता।
मुन्नी बी के लिए व्यग्र मुन्ने मियाँ ने भाई बहन के प्रेम को जो ठौर दिया है, वह भी कमाल का है। रेवती की निडर आँखों में हौसला है। मनोहर की विनम्रता में ज्ञान है।पाकड़ पेड़ की टहनियों पर मृत पति की आत्मा को टेरती गुल बानो की आँखें।अकलू यादव का लम्बे अंतराल के बाद ससुराल जाना और जुड़ कर वापस आना। जसोदा और कुसुम देवी का आदेश कि रेवती का पढ़ना लिखना किसी हाल में बंद नहीं होना चाहिए।ऐसे कई अद्भुत
प्रसंगों को जीने और महसूस करने के लिए ये उपन्यास बार बार पढ़ा जाएगा।
इसमें शमशेर,गुलबानो,अकरम,मुन्नी बी,लीलाधर,अच्छेलाल,कुंती,जसोदा,लीला शाह,अकलू,नौशेर,नाज़ बेगम, पिंटू,ढोंढा़ई बाबा, मुन्ने मियाँ,सुजित, रेवती,मनोहर आदि कई पात्र हैं। पर जो कभी नहीं भूली जाएगी वह है रेशमा कलवारिन ।उसे जैसा बुना और तराशा गया है वह कलेजे में हुक और आँखों में तरल चमक की तरह कौंधकर सीधे हृदय में स्थापित हो जाती है।
इस खूबसूरत उपन्यास के लिए लेखक को बधाई।