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राजकमल प्रकाशन समूह की टॉप-सेलर लिस्ट और साहित्य


फरवरी, 2024 में हिंदी के सबसे बड़े प्रकाशक राजकमल प्रकाशन समूह ने पिछले 10 साल में प्रकाशित टॉप सेलर किताबों की सूची जारी की। सूची में 21 किताबें हैं। इन किताबों पर नजर डाल कर हम हिंदी प्रकाशन व्यवसाय और पाठकीयता की प्रकृति  को समझने की कोशिश कर  सकते हैं। प्रमोद रंजन का यह आकलन देखिए- 

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सूची में दाे किताबें अशोक कुमार पांडेय की हैं – “कश्मीर और कश्मीरी पंडित” और “उसने गांधी को क्यों मारा”। जब कश्मीर का मुद्दा गरमाया था तब कश्मीर वाली यह किताब अमेजन और फ्लिपकार्ट से बहुत बिकी थी। लोग अभी भी इस मुद्दे को गहराई से समझना चाहते हैं। गांधी के हत्यारे पर केंद्रित उनकी किताब भी समकालीन राजनीतिक परिदृश्य से घनिष्ठ रूप से संबद्ध होने के कारण खूब बिकी। एक ऐसे समय में जब पढ़ने-लिखने वाले लोग भय से चुप हो गए, राजकमल प्रकाशन ने न सिर्फ ऐसी किताबों को प्रकाशित करने का निर्णय लिया, बल्कि इन पर सेमिनार आदि आयोजित कर अपने तईं प्रमोट करने में भी संकोच नहीं किया। एक प्रकाशक के इस साहस पर या तो हिंदी लेखकों ने गौर नहीं किया है, या फिर लेखकों के पुराने मार्क्सवादी-समाजवादी पूर्वाग्रह उन्हें इसकी तारीफ करने से रोकते हैं। चाहे जो भी हो, लेकिन राजकमल ने इस दौर में मुखर प्रतिरोध के साहित्य का प्रकाशन किया है, जिसमें पेरियार की ‘सच्ची रामायण’ व पेरियार का अन्य साहित्य शामिल है। राममंदिर के शिलान्यास से प्राण-प्रतिष्ठा तक के शोर के बीच कथित राम-विरोधी पेरियार के साहित्य का हिंदी में आना अपने आप में एक उल्लेखनीय घटना है। राजकमल के इस साहस को बाजार का दबाव कहकर खारिज करना एक बड़ी भूल होगी। राजकमल प्रकाशन ने अशोक कुमार पांडेय की विनायक दामोदर सावरकर पर केंद्रित किताब भी जनवरी, 2022 में प्रकाशित की थी, जिसमें सावरकर की वीरता की अच्छी खबर ली गई है। सावरकर मौजूदा सरकार के प्रेरणा स्रोतों में से एक हैं। हिंदू-राष्ट्र की उनकी सैद्धांतिकी मौजूदा सरकार की अभिव्यक्ति की आजादी के दमन का नैतिक आधार प्रदान करती है। 

ध्यान रहे, हिंदी किताबों का बाजार आज भी सरकारी खरीद पर आश्रित है और  ऐसी किताबों का प्रकाशन सरकारी खरीद के रास्ते में कितना खतरनाक हो सकता है, इसे वे समझ सकते हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में लिखने-पढ़ने का कारण सरकारी दमन का शिकार हुए हैं।

बहरहाल, इस टॉप-सेलर सूची में हिंदी की सिर्फ एक ऐसी किताब है, जो अपने साहित्यिक मूल्याें के कारण प्रतिष्ठित है। वह है अज्ञेय की “शेखर: एक जीवनी”। सूची में शामिल अन्य किताबों को मैं असाहित्यिक नहीं कह रहा हूं। न ही मैं यहां टॉप सेलर किताबों को अधिक गुणवत्तापूर्ण बता रहा हूं।

सूची में एक किताब गीतांजलि श्री की “रेत समाधि” भी है। इसके बिकने का कारण संभवत: लोगों की स्वभाविक जिज्ञासा रही होगी। यह हिंदी की पहली किताब है, जिसे ‘बुकर’ पुरस्कार मिला था। मैंने भी यह किताब मंगवाई थी और अनेक पाठकों, आलोचकों की तरह मुझे भी यह घनघोर रूप से अपठनीय लगी।

सूची में शामिल कुछ लेखकों की गैर-साहित्यिक ब्रांड वैल्यू है। मसलन, गुलजार की किताब ‘पाजी नज्में’, रवीश कुमार की ‘बोलना ही है’ और ‘इश्क में शहर होना’, कुमार विश्वास की ‘फिर मेरी याद’ और पीयूष मिश्रा ‘तुम्हारी और औकात क्या है’ व ‘कुछ इश्क किया, कुछ काम किया’ इस सूची है। इसमें राहत इंदौरी की गजलों की किताब ‘मेरे बाद’ भी शामिल है। 

लेकिन जो बात सबसे अधिक गौरतलब है वह है कि 21 में से छह किताबें दलित-बहुजन विचारों की हैं। ये किताबे  हैं- 1. मणिकर्णिका (तुलसी राम), 2. जूठन (ओमप्रकाश वाल्मिकी), 3. सच्ची रामायण (सं. प्रमोद रंजन), 4. जाति-व्यवस्था और पितृसत्ता (सं. प्रमोद रंजन), 5. एक था डॉक्टर एक था संत (अरुंधति रॉय) और 6. भीमराव आम्बेडकर (किस्टोफर जेफरलो)। इनमें से मणिकर्णिका को प्रकाशित हुए 14 साल हो चुके हैं, जबकि जूठन 27 साल पहले प्रकाशित हुई थी। लेकिन ये आज भी बिक रही है। 

मेरा अनुमान है कि आम्बेडकर पिछले लगभग 30-40 सालों से हिंदी की दुनिया में टॉप सेलर हैं। हिंदी-जगत से आम्बेडकर का परिचय 70 के दशक में लखनऊ के “बहुजन कल्याण प्रकाशन” ने करवाया था। यह प्रकाशन चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु चलाते थे। बाद के वर्षों में आम्बेडकर – भीम पत्रिका पब्लिकेशंस, सम्यक प्रकाशन, गौतम प्रकाशन, बामसेफ के विभिन्न प्रकाशनों, आनंद साहित्य सदन आदि के माध्यम से बिकते रहे। बड़े प्रकाशकों ने उन पर केंद्रित किताबों को बहुत बाद में प्रकाशन योग्य पाया। दलित-बहुजन मिशन के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं द्वारा मेलों, रैलियों में बेचे जानी वाले आम्बेडकर केंद्रित लाखों-लाख किताबों का हिसाब लगाना बहुत कठिन है।

प्रसंगवश एक और बात ध्यान आती है। मोहनदास नैमिशराय का उपन्यास  “महानायक बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर” का पहला संस्करण धम्म ज्योति चैरिटेवल ट्रस्ट, दिल्ली ने 2012 में प्रकाशित किया था। नैमिशराय जी ने शुरु में इसे स्वयं गांव-गांव घूम-घूम बेचा। मेरे पास इसका 52 वां संस्करण है, जिसे हिंदी बुक सेंटर, दिल्ली ने 2017 में  प्रकाशित किया है। यानी, 2012 से 2017 तक हर साल इसके 10 संस्करण प्रकाशित होते रहे! आज भी यह खूब बिकता है। कहा जाता है कि धर्मवीर भारती का ‘गुनाहों का देवता’ हिंदी का सबसे अधिक बिकने वाला उपन्यास है। ‘गुनाहों का देवता’ 1959 में  प्रकाशित हुआ था और अब तक इसके सौ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अगर, तार्किक रूप से, वर्षों की तुलना करते हुए देखें तो क्या नैमिशराय का उपन्यास बिक्री के मामले में उससे कहीं आगे नहीं है? राजकमल प्रकाशन समूह की उपरोक्त सूची में भी दो किताबें डॉ. आम्बेडकर पर केंद्रित हैं।

राजकमल प्रकाशन से अक्टूबर, 2022 में छपी धर्मवीर यादव गगन द्वारा संपादित “पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली” भी खूब बिकी है, एक ही साल में उसके दो संस्करण खत्म हो गए। सुना है तीसरा संस्करण आने वाला है।  ये वही ललई सिंह हैं जिन्होंने पहली बार पेरियार की सच्ची रामायण को हिंदी में पहली बार 1968 में प्रकाशित किया था। प्रकाशन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस किताब को जब्त कर लिया था। ललई सिंह ने सरकार के निर्णय के खिलाफ लंबा मुकदमा लड़ा और जीता। ललई सिंह अर्जक संघ से जुड़े प्रखर सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे लेखक भी थे और एक तर्कवादी के रूप में उनका अपना एक अलग प्रभा-मंडल था। ग्रंथावलियों की बिक्री के मामले में ललई सिंह ग्रंथावली ने अब तक के सभी कीर्तिमान को तोड़ दिए हैं। हालांकि यह ग्रंथावली इस टॉप सेलर सूची में नहीं है। लेकिन, किसी ग्रंथावली का महज एक साल में दो संस्करण प्रकाशित हो जाना हिंदी प्रकाशन जगत के लिए एक अभूतपूर्व घटना है।

उपरोक्त टाॅप-सेलर सूची में अन्य किताबें – आज़ादी मेरा ब्रांड (अनुराधा बेनीवाल), सोफी का संसार (जॉस्टिन गार्डर), और किस्सा किस्सा लखनउवा (हिमांशु बाजपेयी) और नॉन रेजिडेंट बिहारी (शशिकांत मिश्र) हैं।

गौरतलब यह भी है कि यह सूची सिर्फ “राजकमल प्रकाशन” की नहीं है, बल्कि “राजकमल प्रकाशन समूह” की है। यानी, इसमें राजकमल प्रकाशन, राधाकृष्ण प्रकाशन, लोकभारती, सार्थक, रेमाधव, सारांश, साहित्य भवन आदि की भी टॉप सेलर किताबें हैं। वह भी एक साल की नहीं, एक दशक की। बहुजन साहित्य की बिक्री का यह ट्रेंड कुछ तो संकेत करता है न?

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(प्रमोद रंजन की दिलचस्पी सबाल्टर्न अध्ययन और तकनीक के समाजशास्त्र में है। संप्रति, पूर्वोत्तर भारत की एक यूनिवर्सिटी में शिक्षणकार्य व स्वतंत्र लेखन करते हैं। संपर्क: janvikalp@gmail.com, Mo: 9811884494)

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