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Tag Archives: 100 years of indian cinema

हृषिकेश मुखर्जी की सिनेमाई

हृषिकेश मुखर्जी की सिनेमाई के अनेक अनछुए पहलुओं को लेकर दिलनवाज ने बहुत अच्छा लेख लिखा है- जानकी पुल. ======= मध्यवर्गीय मनोदशाओं के संवेदनशील प्रवक्ता हृषिकेश मुखर्जी हिंदी सिनेमा में विशेष महत्व रखते हैं। सामान्य मुख्यधारा से एक स्तर ऊंचा मुकाम रखती हैं हृषिदा की फ़िल्में। उनका सिनेमा एक रचनात्मक …

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मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का

पहली सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ पर एक रोचक  लेख पढ़िए दिलनवाज का- जानकी पुल.  ============================================================  सिनेमा  के सन्दर्भ  में  ‘सवाक ‘ फिल्मों का आगमन प्रस्थान बिंदु की तरह स्मरण किया जाता है .  बॉम्बे   सिनेमा में इस तकनीक का भव्य  स्वागत हुआ. स्पष्ट  हो चुका था कि फ़िल्में पोपुलर  तत्वों की और जाएंगी . स्पष्ट था …

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हिंदी सिनेमा की पहली महिला फिल्म निर्माता: ईस्थर विक्टोरिया अब्राहम उर्फ प्रमिला

भूली-बिसरी अभिनेत्री, फिल्म-निर्माता प्रमिला पर विपिन चौधरी का एक रोचक लेख- जानकी पुल. =================================================================== हिंदी सिनेमा अपनी स्थापना के शानदार सौ वर्ष पूरे होने की खुशगवार आलम में सराबोर है. सिनेमा की इस नींव को पुख्ता करने में संगीतकारों, गायक-गायिकाओं, निर्देशक, स्टंटमैन, निर्माताओं के अलावा पर्दे के पीछे के हजारों-हज़ार …

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भारतीय सिनेमा के कोलंबस दादा साहेब तोरणे

रामचंद्र गोपाल दादा साहेब तोरणे का नाम इतिहास-निर्माताओं में आना चाहिए था, लेकिन ‘पुंडलीक’ फिल्म के इस निर्माता-निर्देशक के नाम गुमनामी आई. 25 मई 1912 को ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ में प्रकाशित विज्ञापन में ‘पुंडलीक’ को भारत की पहला कथा-चित्र बताया गया था और ग्रीव्स कॉटन कम्पनी में काम करने वाले …

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‘किस्मत’ आज भी एक प्रासंगिक फिल्म है

ज्ञान मुखर्जी की फिल्म ‘किस्मत’ १९४० में रिलीज हुई थी. इसे हिंदी का पहला ‘ब्लॉकबस्टर मूवी’ कहा जाता है. उस फिल्म को याद कर रहे हैं सैयद एस. तौहीद– जानकी पुल.  —————————————————————————- ज्ञान मुखर्जी  की ‘किस्मत’खुशी और गम के पाटों में उलझे शेखर (अशोक कुमार) एवं रानी (मुमताज़ शांति) की …

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क्या ‘पुंडलीक’ भारत की पहली फीचर फिल्म थी?

१९१२ में बनी फिल्म ‘पुंडलीक’ क्या भारत की पहली फीचर फिल्म थी? दिलनवाज का यह दिलचस्प लेख उसी फिल्म को लेकर है- जानकी पुल. ———————————————–  इस महीने में भारत की पहली फीचर फिल्म ‘पुंडलीक’ निर्माण का शतक पूरा कर रही है.    अमीर हो या गरीब… बंबई ने इस ऐतिहासिक घटना का दिल से स्वागत किया। उस शाम ‘ओलंपिया थियेटर’ में मौजूद हर वह शख्स जानता था कि कुछ बेहद रोचक होने वाला है। हुआ भी… दादा साहेब द्वारा एक फिल्म की स्क्रीनिंग की गई…पहली संपूर्ण भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के प्रदर्शन ने हज़ारों भारतीय लोगों के ख्वाब को पूरा किया। तात्पर्य यह कि भारतीय सिनेमा सौवें साल में दाखिल हो गया…जोकि एक उत्सव का विषय है। धुंधीराज गोविंद फालके (दादा साहेब फालके) हांलाकि इस मामले में पहले भारतीय नहीं थे। उनकी फिल्म से एक वर्ष पूर्व रिलीज़ ‘पुंडलीक’ बहुत मामलों में पहली भारतीय फिल्म कही जा सकती है, लेकिन कुछ विदेशी तकनीशयन होने की वजह से इतिहासकार इसे पहली संपूर्ण भारतीय फिल्म नहीं मानते। फालके ने अपनी फिल्म को स्वदेश में ही पूरा किया जबकि तोरणे ने ‘पुंडलीक’ को प्रोसेसिंग के लिए विदेश भेजा,फिर फिल्म रील मामले में भी फालके की ‘राजा हरिश्चंद्र’ तोरणे की फिल्म से अधिक बडी थी। पुंडलीक के विषय में फिरोज रंगूनवाला लिखते हैं…   ‘दादा साहेब तोरणे की ‘पुंडलीक’ 18 मई,1912 को बंबई के कोरोनेशन थियेटर में रिलीज़ हुई। महाराष्ट्र के जाने–माने संत की कथा पर आधारित यह फिल्म, भारत की प्रथम कथा फिल्म बन गई। पहले हफ्ते में ही इसके रिलीज़ को लेकर जन प्रतिक्रिया अपने आप में बेमिसाल घटना थी, जो बेहतरीन विदेशी फिल्म के मामले में भी शायद ही हुई हो।  वह आगे कहते हैं ‘पुंडलीक को भारत की पहली रूपक फिल्म माना जाना चाहिए, जो कि फाल्के की ‘राजा हरिश्चंद्र’ से एक वर्ष पूर्व बनी फिल्म थी’ बहुत से पैमाने पर पुंडलीक को ‘फीचर फिल्म’ कहा जा सकता है : 1)कथा पर आधारित अथवा प्रेरित प्रयास 2) अभिनय पक्ष 3) पात्रों की संकल्पना 4)कलाकारों की उपस्थिति 5) कलाकारों के एक्शन को कैमरे पर रिकार्ड किया गया। टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित समीक्षा में लिखा गया ‘पुंडलीक में हिन्दू दर्शकों को आकर्षित करने की क्षमता है। यह एक महान धार्मिक कथा है, इसके समान और कोई धार्मिक नाटक नहीं है। पुणे के ‘दादा साहेब तोरणे’(रामचंद्र गोपाल तोरणे)में धुंधीराज गोविंद फालके(दादा साहेब फालके) जैसी सिनेमाई दीवानगी थी। उनकी फिल्म ‘पुंडलीक’ फालके की फिल्म से पूर्व रिलीज़ हुई, फिर भी तकनीकी वजह से ‘राजा हरिश्चंद्र’ की पहचान पहली संपूर्ण भारतीय फिल्म रूप है। तोरणे की फिल्म को ‘भारत की पहली’ फ़ीचर फिल्म होने का गौरव नहीं मिला| पुंडलीक के रिलीज़ वक्त तोरणे ने एक विज्ञापन भी जारी किया, जिसमें इसे एक भारतीय की ओर से पहला प्रयास कहा गया। बंबई की लगभग आधी हिन्दू आबादी ने विज्ञापन को देखा। लेकिन यह उन्हें देर से मालूम हुआ कि ‘कोरोनेशन’ में एक शानदार फिल्म रिलीज हुई है। पुंडलीक को तकरीबन दो हफ्ते के प्रदर्शन बाद  ‘वित्तीय घाटे’ कारण हटा लिया गया। तोरणे को फिल्मों में आने से पहले एक तकनीकशयन का काम किया। एक ‘बिजली कंपनी’ में पहला काम मिला। पर यह उनकी तकदीर नहीं थी। कंपनी में रहते हुए ‘श्रीपद थियेटर मंडली’ के संपर्क में आए । वह कंपनी …

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