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कोफ़ी अवूनोर को श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी एक लम्बी कविता हिंदी में

हाल में नैरोबी में हुए आतंकी हमले में घाना के कवि कोफ़ी अवूनोर भी मरने वालों में थे. उनकी एक लम्बी कविता का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. जानकी पुल की तरफ से उस कवि को श्रद्धांजलि स्वरुप- जानकी पुल.
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कोफी अवूनोर की कविता
यह पृथ्वी, मेरा भाई
एक पहचानी हुई आवाज़ में सुबह चटकती है
हवाओं को चीरती हुई
हमारे मंदिरों को गिरा चकनाचूर करती
हमारी आशा के चर्च की परवरिश करती
उन वेदियों पर हमारी जान की पेशकश करती
बहुत पहले की गई सफाई के लिए।
वायुतरंगों के भीतर जो हम अंतड़ियों में ढोते हैं
और प्रार्थना करते हैं
अकेली सड़क के किनारों से चीख उठती है
जैसे बंदूकधारियों का आवारा जूता।
मैं हिस्सोपका प्याला उठाता हूँ
और आँसू प्यास के होंठ को छूते हैं
आसमान घृणा और मृत्यु के लाखों मीनारों बीच रोता है
हम प्रार्थना करते हैं
चमक की इकलौती आशा के लिए
मेरी स्पर्धा की मंज़िल चमकती है
मोक्ष की तलवार दिखाई देती है। 
उस समय मेरा संगीत बजने लगता है
रत्न और जड़ी बूटियों से कमरा महकता है
मेरी जाति के घाव को भरने के लिए
शोधक चमक को हमेशा के लिए धोने हेतु
जैसे हम नए मक्के के लिए अन्न भंडार खोजते हैं।
हम उसकी आशा करते हैं,
जो कभी चमत्कार था
उस मोक्ष की प्रतीक्षा में
जिसे हमने कई प्रार्थनाओं में मांगा था
कई तरह से प्रस्तुत होता है।
जलते हुए पैरों के मौसम में
खराब फसल और विनाश का विवाह होता है
उस समय तलवार की चमक और बढ़ जाती है
जो ईस्टर के चाकू की प्रतिकृति जैसी लगती है।
तन्हा आसमान के चारों ओर आवाज़ें धूमती हैं
नर्तकी अपने कपड़े एकत्रित करती है
पेशकश की गई गायों की खाल खींचती है
खुद को नया ड्रमबनाने के लिए।
दूर-दूर तक आवारा आसमान रोता है
उन पैरों की लय में
अपने हिंसा की नकल करते हुए।
सड़क के साथ-साथ चलते हुए
घायल और बेड़ी में बंद घसीटे जाते हैं 
हम सबकी खुशी के लिए।
हम विजेता के कदमों में फूल चढ़ाते हैं
अपने पापों से मुक्ति के लिए भीख मांगते हैं।
वह कब्र से बाहर आएगा
उसके कपड़े उसके चारों तरफ बिखरेंगे
तब कीड़े उनके काम नहीं आएंगे।
उसका चेहरा कई सूर्यों-सा चमक उठेगा।
उसकी चाल में विजेता का-सा असर होगा,
उसका माथा हज़ारों सितारो-सा चमकेगा
वह रहस्योद्घाटन के बाद घुटने पर झुकेगा
और इसी पृथ्वी पर मर जाएगा।
और मैं प्रार्थना करता हूँ
मेरे पहाड़ों को और ऊँचा किया जाए
और जो मुझे साफ करता है
साँस लेता है
मर जाएगा।
वे उन्हें विशालता के पार ले जाएँ
जैसे वे उनके जाते ही वे लड़खड़ाने लगे
और फिर गुलाब-सा।
वे चारागाह के टीले के किनारे गए
और एक मौन प्रार्थना में झुक गए
वे फिर टीले तक गए  
नाक रगड़ी
मोहम्मद के उपासकों की तरह।
अचानक वे फिर उठे
भीड़ की ओर इशारा किया
पहचान के व्यर्थ सम्बोधनों में
तेज़ आवाज़ों ने उन्हें बधाई दी
वे मुस्कुराए, लहराए
जैसे वे एक बड़ी नाव की यात्रा पर हों।
अचानक एक चुप्पी पसर जाती है
जैसे कि भीड़ को धक्का दिया गया हो
और उज्ज्वल तेज सुबह में धकेला गया हो।
वे टीले तक उन्हें ले जाते हैं
एक अंधे व्यक्ति के धोखे के खेल में
वे रेत पर ला खींचते हैं
समंदर की तरफ उनकी पीठ
जो उन्हें दूर रखेगा।
दिमाग में दरार की तीखी खबर सुन
वे गिर जाते हैं
एक चीख उन्हें बधाई देती है
और अंधेरे में पटक देती है। 
और मेरे पहाड़ सलामत रहते हैं

दुनिया के ख़त्म होने तक।  
 
      

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4 comments

  1. bahut achchhi kavita

  2. कविता से ……….."और इसी पृथ्वी पर मर जाएगा " । अंत का पूर्वाभास लगी ये पंक्तियाँ । धन्यवाद आपने यह कविता साझा की ।

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