पेशे से डॉक्टर प्रवीण कुमार झा रहते नॉर्वे में हैं लिखते हिन्दुस्तान की स्थितियों पर हैं. वामा गाँधी के नाम से ‘चमनलाल की डायरी’ नामक एक किताब लिख चुके हैं. मूलतः व्यंग्यकार हैं. कई बार उनको पढ़ते हुए हरिशंकर परसाई याद आ जाते हैं. मसलन रंगीला शहंशाह के किस्से पढ़ते हुए. आप भी पढ़िए और रंगीलावाद को अपनाइए- मॉडरेटर
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लोकतंत्र में जब कुकुरमुत्तों की तरह पार्टियाँ बन गई, किसी को बहुमत नहीं मिला। न कोई गठबंधन को तैयार। हर दूसरे महीने चुनाव होने लगे, और वही ड्रामा शुरू। आखिर थक हार कर महामहिम ने संसद में ताला लगवा दिया, और लोकतंत्र बरखास्त कर दी। देश में राजशाही की स्थापना की गई और इसके लिये दस प्रतियोगिताओं के आयोजन किये गए। जो विजयी, वही राजा। रंगीला राजा ने कुश्ती में सबको मात दी, शतरंज में सूरमाओं को हराया, साइकल से आगरा–दिल्ली रेस जीती, काशी में शास्त्रार्थ और बॉर्नवीटा क्विज भी। ऐसे ही कई मुकाबलों में परचम लहराकर दिल्ली की गद्दी पर जा बैठे।
रंगीला राजा अजीब से मनुष्य थे। सुपरमैन की चड्डी पहनकर घूमते थे, और माथे पर स्वस्तिकनुमा टीका करते थे। लंबे बाल और हिटलर वाली छद्म मूँछ। स्वनामधन्य थे रंगीला राजा। महामहिम की शर्तों पर खरे उतरे, तो अब हिंदुस्तान के शहंशाह थे। जो मर्जी पहने, जो मर्जी करें।
रोम के राजाओं की तरह उन्हें गणमान्य लोगों की संसद दी गई, जो मंत्रालय वगैरा सँभालेंगें। पर चलेगी बस रंगीला–राजा की। संसद का पहला सत्र प्रारंभ हुआ। रंगीला राजा बुलेट से पधारे और संसद के लॉन में धूप सेंकने लगे। वहीं कुर्सियाँ लगवाई गई और राजा साहेब को मुद्दों से अवगत करवाया गया।
“बाकी मुद्दे बाद में। पहले इस कश्मीर को रफा–दफा करिए।“
“राजा साहेब, वो तो आज तक कोई नहीं सुलझा पाया।“
“कल ही घोषणा कर दी जाए। आजाद हैं, जो मरजी करें।“
“क्या कह रहे हैं हजूर?”
“वही जो आप सुन रहे हैं। अगला मुद्दा बताएँ।“
“बाकी तो वही घिसे–पिटे जातिवाद आदि हैं।“
“जातिवाद कड़े तौर पर लागू कर दी जाए। चार वर्ण बना के काम बाँट दी जाए।“
“ये कैसे संभव है? अब तो हर जाति हर कर्म कर रही है।“
“हाँ! तो ऑप्शन दे दीजिये। किसे पूजा–पाठ करना है, किसे बंदूक उठानी है? एक हफ्ते के अंदर फाइनल बता दें। बाद में बदला नहीं जाएगा। और कुछ?”
“इससे तो हम पिछली सदी में लौट जाएँगें।“
“राजा–महाराजा भी तो आ गए। पिछली–अगली छोड़ो। मेरी बात कल तक लागू हो जानी चाहिए।“
कश्मीर अचानक से आजाद हो गया। सेना जश्न मनाती सियाचिन के ग्लेसियर और पूँछ के बीहड़ पहाड़ों से निकल कर जम्मू में सेट हो गई। रंगीला शहंशाह की जय–जयकार करने लगी। बाकी के देश और कश्मीर में खलबली मच गई। खैर, बाकी का देश तो जाति वाली फॉर्म भरने में व्यस्त हो गया, कश्मीर में कोई रणनीति नहीं नजर आ रही थी। पाकिस्तान भी कन्फ्यूज्ड था।
घाटी से पलायन हो रहे थे। भारत–कश्मीर बॉर्डर पर भीड़ जमा हो गई। उधर पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन बोरिया–बिस्तर बाँधने लगे। ‘कश्मीर हमारा है‘ के बोर्ड हटा दिए गए। पाकिस्तान की हालत उस बच्चे की तरह हो गई थी, जिसका पसंदीदा खिलौना छीनकर लॉलीपॉप पकड़ा दी गई हो। अब वो रोते–रोते लॉलीपॉप चूस रहा है, और खिलौने को याद कर रहा है।
यहाँ अलग ही अराजकता मची है। वैश्य और दलित काउंटरों में लंबी लाइन लगी है। क्षत्रिय में कुछ मौने सरदार खड़े हो गए हैं। ब्राह्मण काउंटर में कुछ वृद्ध और कुछ गोल–मटोल पंडे।
“अबे छोड़ो भाई! कहाँ धूप में खड़े रहेंगें? चल ब्राह्मण ही बन जाते हैं।” दलित काउंटर से एक अधेड़ की आवाज।
“पूजा–पाठ के लिए संस्कृत सीखनी पड़ेगी। इधर ही खड़े रहो।“
“किसने कहा? पूजा की किताबें आती है। पढ़ डालो। दक्षिणा उठाओ।“
“दक्षिणा न मिली तो भूखे मरोगे। यहाँ बढ़ई, धोबी, खानसामा सभी नौकरियाँ है।“
“तो क्षत्रिय वाले में घुस जाता हूँ।“
“खामख्वाह मारे जाओगे। लगे रहो चुपचाप।“
थोड़ी ही देर में भगदड़, छीना–झपटी सब शुरू।
“अरे भाई चतुर्वेदी! काहे इधर घुसे चले आ रहे हो। जाओ अपनी लाइन में।“
“भाई दुकान है मेरी। मैं वैश्य वाली में लगूँगा।“
“और जनेऊ उतार फेंकोगे?”
“ऑर्डर आएगा तो फेंक दूँगा। जनेऊ का क्या है?”
“फिर पीछे लगो! वर्मा–श्रीवास्तव को आगे जाने दो।“
“ये कोई बात नहीं हुई। अब सुना है, एक ही सरनेम मिलेगा हर जात को।“
“रंगीला भी अजीब आदमी है। कश्मीर भी छोड़ दिया।“
“सुना है पाकिस्तान भी नहीं ले रही।“
“न न! उनकी आर्मी घुस चुकी है।“
“जैसे तू घुसा पड़ा है। निकाल सब चतुर्वेदी–दूबे को।“
धक्केबाजी फिर से चालू हो गई। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। सब जान बचाकर तितर–बितर हुए। आखिर सब कुछ न कुछ जाति उठाकर चल दिए। एक हफ्ते में रंगीला की मनु–संहिता लागू हो गई।
अब जातियाँ बँट गई तो आरक्षण खत्म। सारे पंडित मंदिरों में मिलते या विद्यालयों में। जिन्होंनें जबरदस्ती जाति उठा ली थी, उनको सरकार की ओर से मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाने लगा। कुछ ही दिनों में सब सेट हो गए।
रही बात कश्मीर की, उसमें पाकिस्तान का कब्जा तो हुआ, पर वहाँ बम फिर से फूटने लगे। आतंकवादी तो ठहरे आतंकवादी, उनके लिये क्या जिहाद और क्या कश्मीर? बम फोड़े जाओ बस। बिना मतलब का श्रीनगर के सचिवालय में बम छोड़ कर भाग गए। अब उन्हें कौन समझाए कि भाई कश्मीर को आजाद हुए हफ्ता हो गया।
रंगीला शहंशाह रोज संसद बिठाते और ऐसे ही ताबड़तोड़ अजीबोगरीब निर्णय लेते।
“आज से सबकी वेतन एक कर दो, घंटे के हिसाब से।“
“मतलब बढ़ई भी वही कमाए, जो वकील?”
“अरे वकील तो छोड़ो, टाटा–बिरला भी वही कमाएँगें जो बढ़ई।“
“ये तो साम्यवाद ला रहे हैं हजूर।“
“इससे याद आया। आप लोग ‘रंगीलावाद‘ शब्द पर किताब निकालें। बहुत हो गया साम्यवाद, समाजवाद!”
“सारे प्राइवट अस्पताल और स्कूल सरकारी बना दें। इलाज मुफ्त!”
“सरकारी खजाना खाली हो जाएगा!”
“सबसे टैक्स वसूल करें। जो न दे, गरम ईंट पर धूप में खड़े कर दें। और हाँ! हाई–कोर्ट सुप्रीम कोर्ट का झंझट खत्म करें।“
“मतलब?”
“एक ही बार कचहरी बैठेगी। जितना जोर लगाना है लगा लो। जज साहब ने कह दिया मुजरिम तो फाइनल।“
“लेकिन अपील तो होनी चाहिए।“
“कन्फ्यूजन होगा तो जज माँग लेगें ‘सेकंड ओपिनियन‘ भाई। जब वो पक्के हैं, तो कोई अपील नहीं।“
“अब सजा भी बता दीजिए हजूर।“
“जज साहब जो मरजी करें। फाँसी पर न लटकाएँ। गंगा में डुबा–डुबा कर मारें, ताकि उसके भी पाप धुल जाएँ।“
“वाह! कितना पवित्र मृत्युदंड!”
“चलिये, अब संसद भंग की जाए। और वीकेन्ड मनाया जाए।“
रंगीलावाद के आगमन के बाद हिंदुस्तान सपाट हो गया। जितनी टेढ़ी–मेढ़ी रेखायें थी, शतरंज के खाने की तरह सीधी हो गई। और रंगीला के ऊँट, घोड़ों, प्यादों से पट गई। फिर भी, साँप–सीढ़ी खेल से तो बेहतर ही थी। पता नहीं, हिंदुस्तान आगे जा रहा था या पीछे, पर रंगीला भारत खुशनुमा जरूर था।