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देशभक्ति सबसे बड़ी भक्ति होती जा रही है!

बंद कमरों की सुविधा से बाहर निकलने पर बार-बार इस बात का अनुभव होता है कि हवाओं में देशभक्ति का रंग घुलता जा रहा है. खासकर जो युवा आबादी है वह देशप्रेम को सबसे बड़ा प्रेम मानने लगी है. मुझे उन उपन्यासों की याद आती है जो स्वतंत्रता संघर्ष की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर लिखे गए थे, जिनमें देशप्रेम के लिए प्रेमी प्रेमिका अपने निजी प्रेम की कुर्बानी दे देते थे. जयंत कुशवाहा का एक उपन्यास मैंने बचपन में पढ़ा था जो आज तक मुझे नहीं भूला.

आजकल मुझे इस देशभक्ति के अनुभव अक्सर होते हैं. कल मैं नोएडा से ऑटो में लौट रहा था. ऑटो वाले भईया बड़े बातूनी लग रहे थे. इधर-उधर की बातों के बाद वे यूपी चुनाव पर आए. पूछा- ‘क्या लग रहा है सर?’

‘एक्जिट पोल तो बता रहा है कि बीजेपी जीत रही है”, मैंने संभलते हुए जवाब दिया.

वह मुझे भांपना चाह रहा था मैं उसको.

इशारा मिलते ही वे धाराप्रवाह बोलने लगे- ‘देश में विकास तो होना ही चाहिए. अगर देश को आगे बढ़ना है तो मोदी का रहना बहुत जरूरी है.’

मैंने कहा लेकिन महंगाई बढ़ रही है तो जवाब में बोले कि देश को मजबूत बनाने के लिए शुरू में परेशानी उठानी ही पड़ती है.

मैंने कहा कि आज ही दूध के दाम बढ़ गए हैं. वे बोले, ‘देखिये सर देश विकास कर रहा है. जब देश आगे बढ़ जायेगा तो हम भी आगे बढ़ेंगे. हमको भी फायदा होगा. हमेशा अपने फायदा-नुक्सान के बारे में ही सोचेंगे तो देश का विकास कैसे होगा?

मुझे याद आया कि कुछ दिन पहले मेरे क्लास में एक स्टूडेंट ने भी कहा था- सर देश को मजबूत बनाने के लिए मोदी की जरूरत है. देश में कोई नेता इतना मजबूत नहीं है. सब नकारात्मक राजनीति करते हैं मोदी ही हैं जो सकारात्मक बातें करते हैं.

बात बात में यह बताना भूल गया कि ऑटो वाले भईया की उम्र तीस साल के आसपास थी.

जब मेरा घर पास आया तो ऑटोवाले भईया ने पूछा- ‘आप कहाँ के हैं?’

‘मुजफ्फरपुर”- मैंने जवाब दिया.

‘हम मोतिहारी के हैं”, खुल्ले पैसे लौटाते हुए ऑटो वाले भईया ने बोला.

यह देशभक्ति का दौर है जो हर भक्ति, शक्ति को पीछे छोडती जा रही है और देश में अभी यह माहौल रहने वाला है.

मैं अगर ऐसा कह रहा हूँ तो इसके पीछे मेरा अपना अनुभव है. मैं डीयू के एक कॉलेज में पढाता हूँ. हर दिन 18 से 24 साल की उम्र के बच्चों के बीच रहता हूँ. डीयू वह विश्वविद्यालय है जहाँ देश भर के बच्चे पढने आते हैं.

दुःख इस बात का है इस देश के जो तथाकथित बौद्धिक हैं उन्होंने पिछले तीन सालों में मोदी के ऊपर चुटकुले बनाने के अलावा कुछ भी नहीं किया है. न वे हवा समझ पा रहे हैं न हवा बना पा रहे हैं.

-प्रभात रंजन

 
      

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