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आलिया भट्ट के अभिनय का नया मुकाम है ‘राज़ी’

जब से ‘राज़ी’ फिल्म आई है इसकी चर्चा थम नहीं रही है. मेघना गुलजार की इस फिल्म को आलिया भट्ट के लिए भी याद किया जायेगा. इसी फिल्म पर निवेदिता सिंह का लेख- मॉडरेटर

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हाल के वर्षों में जिस अभिनेत्री ने अपने अभिनय के दम पर सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया है वह है आलिया भट्ट. हालाँकि ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ फ़िल्म से अभिनय की शुरुआत करने वाली इस मासूम और चुलबुली लड़की को देखकर उस समय यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि आगे चलकर वह ऐसी फ़िल्मों का चुनाव करेंगी कि सिर्फ़ अपने दम पर किसी फ़िल्म को हिट करा सकेंगीं पर हाइवे और उड़ता पंजाब में अपने सशक्त अभिनय के बाद ‘राज़ी’ के ज़रिए आलिया ने यह साबित कर दिया है कि अब फ़िल्में चलाने के लिए उसमें किसी एस्टेब्लिश हीरो का होना ज़रूरी नहीं है।अगर फ़िल्म की कहानी में दम है तो वह अपने कंधों पर फ़िल्म को बेहतरीन बनाने का ज़िम्मा ख़ुद ब ख़ुद उठा सकती हैं..

अब आते हैं फ़िल्म पर जो हरिंदर सिक्का के अंग्रेजी उपन्यास ‘सहमत कॉलिंग’ पर आधारित है, जिसे लिखा है ख़ुद फ़िल्म की निर्देशक मेघना गुलज़ार ने। मेघना की एक ख़ासियत है कि वह किसी भी विषय पर फ़िल्म बनाने से पहले उस पर ख़ूब रिसर्च करती हैं और छोटी छोटी बातों की डिटेलिंग पर भी उतना ही ध्यान देती हैं. ड्रामा हो, इमोशन्स या फ़िर कोई इंटेंस सीन उसको वास्तविक बनाने के लिए वह हर कोशिश करती हैं और कामयाब भी होती हैं। राज़ी 1971 के जंग के दौर में पाकिस्तान में बहू बनकर गयी भारत की बेटी सहमत (आलिया भट्ट) द्वारा पाकिस्तान की जासूसी की कहानी है। सहमत के पिता हिदायत (रजित कपूर) भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए काम करता है पर जब उसे पता चलता है कि उसे ट्यूमर है और वह थोड़े दिनों का मेहमान है तो वह अपनी जिम्मेदारी अपनी बेटी को सौंप देता है। बेटी सहमत जिसकी रगों में उसके पिता और दादा की तरह ही देशभक्ति का ख़ून दौड़ रहा होता है ख़ुशी ख़ुशी अपने देश के लिए अपनी क़ुर्बानी देने को तैयार हो जाती है। सहमत की शादी पाकिस्तान की सेना में ब्रिगेडियर सईद (शिशिर शर्मा) के छोटे बेटे इक़बाल (विक्की कौशल) से हो जाती है। सहमत के पिता हिदायत का सईद से पुराना सम्बन्ध है और हिदायत इसी विश्वास का फ़ायदा उठाकर अपनी बेटी को पाकिस्तान जासूसी करने के लिए भेजता है जिससे देश को दुश्मन के हाथों से बर्बाद होने से बचाया जा सके।
फ़िल्म की पूरी कहानी सहमत के इर्द गिर्द ही घूमती है। कॉलेज में पढ़ने वाली एक आम लड़की जिसे ख़ून देखकर ही चक्कर आता है एक दिन अपने देश की हिफ़ाज़त की ख़ातिर सब कुछ न्योछावर कर देती है। आलिया एक बेटी, पत्नी , बहू और जासूस सभी क़िरदारों में एक अलग छाप छोड़ती हैं। एक तरफ़ देशभक्ति तो दूसरी तरफ़ पति और ससुराल वालों के प्यार के बीच झूलती सहमत कहीं कहीं बहुत बेबस नज़र आती है जो स्वाभाविक भी है। एक ही समय में अलग अलग क़िरदारों को इतनी जीवंतता से पर्दे पर उतारने का काम सहमत ने बख़ूबी किया है इसके लिए उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। बाक़ी सभी क़िरदार भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करते नज़र आते है पर सहमत का क़िरदार इतना इतना मज़बूत और सशक्त है कि उसके सामने वह बौने साबित होने लगते हैं। इक़बाल एक सुलझे हुए पति के रूप में लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं जो अपने देश से प्यार करने के साथ ही साथ अपनी बीवी का उसके देश (भारत) के लिए प्यार को भी समझता है।
अगर आप देशभक्ति के रंग से सराबोर एक ऐसी फ़िल्म देखना चाहते हैं जो बिना ज़्यादा शोर शराबे और गोला बारूद के आप के दिल में देशप्रेम का बीज बो दे तो इस फ़िल्म को ज़रूर देखें। दूसरा आप इस फ़िल्म को आलिया के बेहतरीन अभिनय के लिए भी देख सकते हैं किस तरह एक जासूस लड़की 24 घण्टे अपनी जान जोख़िम में डालकर अपने देश की हिफ़ाज़त करती है और उसके लिए उसे कैसी कैसी कठिन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है पर कहते हैं न देशप्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं और इस फ़िल्म की यही जीत है। कसी हुई कहानी और उम्दा अभिनय के लिए दोनों के लिए यह फिल्म देखी जानी चाहिए.
हॉल से बाहर आने के बाद भी ‘ऐ वतन आबाद रहे तू, मैं जहाँ में रहूँ जहाँ में याद रहे तू’ गीत कुछ देर तक कानों में बजता रहता है।
निवेदिता सिंह
निवेदिता सिंह
 
      

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