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अमिताभ को एंग्री यंगमैन बनाने वाले प्रकाश मेहरा

13 जुलाई को प्रकाश मेहरा का जन्मदिन था. 70-80 के दशक के स्टार निर्देशक को लगता है लोग भूल गए हैं. नवीन शर्मा का यह लेख उनको याद करते हुए लिखा है. इसी लेख से मुझे पता चला कि वे अच्छे गीतकार थे और ‘तुम गगन के चन्द्रमा मैं धरा की धूल हूं’ गीत के लेखन से उन्होंने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की थी- मॉडरेटर
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हिंदी सिनेमा के सबसे चमकदार सितारे अमिताभ बच्चन ही माने जाते हैं। उन्हें मिलिनियम स्टार की भी संज्ञा दी जाती है। उनको इस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे अधिक योगदान जिस शख्स का रहा उसे हम प्रकाश मेहरा के नाम से जानते हैं। प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर से ही अमिताभ बच्चन ने हिंदी फिल्मों के आकाश में बुलंदियों की तरफ यात्रा का आगाज किया था।
प्रकाश मेहरा को ज्यादातर लोग आमतौर पर एक शानदार निर्देशक के रूप में ही जानते हैं। कम ही लोग जानते हैं कि वे एक संवेदनशील और अच्छे गीतकार भी थे। उन्होंने अपना करियर गीतकार के रूप में ही शुरू किया था। तुम गगन के चन्द्रमा मैं धरा की धूल हूं इस पहले गीत के बदले उन्हें मात्र पचास रुपये मिले थे।
उत्तर प्रदेश के बिजनौर में 13 जुलाई को पैदा होने वाले प्रकाश का जीवन संघर्षों से भरा रहा। कभी नाई की दुकान में रात बितायी तो कभी भूखे पेट फुटपाथ पर बैठे रहे। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।     संघर्ष के दिनों में उन्होंने फिल्म डिवीजन में रोजाना पांच रुपये पर नौकरी की। इधर-उधर भटकते प्रकाश ने ढेरों संगीतकारों के आगे अपना गीत सुनने के लिए मिन्नतें करते थे। अक्सर लोग उन्हें दुत्कार दिया करते थे। कभी कोई सुनता भी तो अनमने ढंग से। एक बार संगीतकार के यहां बैठे प्रकाश का गीत भरत व्यास ने सुना और वह गीत खरीदा लिया। प्रकाश को बदले में मिले थे सिर्फ पचास रुपये। यह गीत था तुम गगन के चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूं। यहीं से शुरू हुआ प्रकाश मेहरा का फिल्मी सफर।
 इसके बाद वे फिल्म निर्माण में आए। 1968 में उन्होंने शशि कपूर के साथ फिल्म हसीना मान जाएगी बनाई हिट रही थी। 1971 में संजय खान व फिरोज खान के साथ उनकी फिल्म मेला रिलीज हुई। फिर प्रकाश एक के एक फिल्म बनाते चले गए।
जंजीर ने बनाई अमिताभ-प्रकाश की कामयाबी की राह
 प्रकाश मेहरा की मुलाकात प्राण से हुई तो इन दोनों ने मिलकर जंजीर का ताना बाना बुना। वर्ष 1973 में रिलीज हुई जंजीर ने अमिताभ और प्रकाश मेहरा दोनों के लिए हिंदी फिल्मों में शानदार सफर का आगाज कर दिया। जंजीर में अमिताभ बच्चन ने एक ईमानदार पुलिस अफसर का यादगार रोल किया था। इसमें धीर-गंभीर और अपराधियों के प्रति अपना सारा गुस्सा निकालनेवाले एंग्र्री यंगमैन का जन्म हुआ। इस फिल्म की लेखक जोड़ी सलीम खान और जावेद अख्तर को ही भ्रष्टाचार के विरोध में उबले गुस्से का जनक माना जाता है। अमिताभ बच्चन, प्राण और जया भादुड़ी की इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर भी कमाल दिखाया था।
यहीं से निर्देशक प्रकाश मेहरा और अमिताभ की जुगलबंदी शुरू हुई।  इस जोड़ी की अगली फिल्म हेराफेरी भी हिट रही। इसके बाद अमिताभ और विनोद खन्ना को लेकर खून पसीना फिल्म ने भी कमाल दिखाया।
मुकद्दर का सिंकदर से अमिताभ को बनाया बॉलीवुड का सिंकदर
जंजीर के बाद अमिताभ व प्रकाश मेहरा की जोड़ी की सबसे शानदार फिल्म आई मुकद्दर का सिंकदर थी। यह एक बेसहारा गरीब बच्चे के संघर्ष की दास्तान है। जो बड़ा होकर सही-गलत तरीके अपनाते हुए पैसेवाला बन जाता है। इस फिल्म ने अमिताभ के एंग्रीयंग मैन की इमेज को और भी पुख्ता किया। इस फिल्म के सारे गीत भी काफी लोकप्रिय हुए थे। खासकर ओ साथी ले तेरे बिना भी क्या जीना, सलामे इश्क मेरी जान जरा कबूल कर ले, टाइटल सांग और दिल तो है दिल दिल का ऐतबार क्या किजे। सलामे इस तो बिनाका गीतमाला में टॉप में रहा था।
 इस फिल्म के बाद अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के सबसे बड़े सुपर स्टार में शुमार हो गए थे। हालत यह हो गई कि उनके टक्कर का कोई अभिनेता नहीं बचा खासकर सबसे ज्यादा मेहनताना लेने में वे सभी अभिनेताओं से काफी आगे निकल गए।
लावारिस(1981) इस जोड़ी की एक और सुपर हिट फिल्म थी। इसका गीत मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है,जो है नाम वाला वही तो बदनाम है काफी लोकप्रिय हुआ था। नमक हलाल (1982)में प्रकाश मेहरा अमिताभ बच्चन की एंग्री यंगमैन की छवि से हटकर कॉमेडी करने का मौका दिया। इसमें भी अमिताभ बच्चन ने कमाल दिखाया और फिल्म सुपरहिट हुई। इस फिल्म में भी पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी और हम नाचे बीन घूंघरू के ..उस वर्ष का सबसे हिट गाना था।
 1984 में आई शराबी फिल्म में अमिताभ ने यादगार अभिनय किया था। इस फिल्म के गीत प्रकाश मेहरा ने ही लिखे थे जो काफी लोकप्रिय हुए थे। खासकर जहां चार यार मिल जाएं वहां रात हो गुलजार, मुझे नौ लख्खा मंगा दे  और लोग कहते हैं मैं शराबी हूं।
 1989 में आई जादूगर इस जोड़ी की सबसे बेकार फिल्म कही जा सकती है।
इनकी अन्य फिल्मों में ज्वालामुखी (1980) , मुकद्दर का फैसला (198।) , मुहब्बत के दुश्मन (1988), जादूगर (1989) , जिन्दगी एक जुआ (1992 ) चमेली की शादी आदि ।
वस्तुत: प्रकाश मेहराका सिनेमा मनोरंजन के सफल फ़ॉर्मूले का सिनेमा है । दर्शक आखिर क्या देखना पसंद करते है इस बात को प्रकाश मेहरा बखूबी समझते है । केवल अमिताभ बच्चन ही नहीं , शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना की प्रतिभा का भी प्रकाश मेहरा की फिल्मो में बेहतरीन उपयोग हुआ है। वह नायक को आम आदमी की संवेदनाओं से लैस तो रखते थे लेकिन उनका नायकत्व विशिष्ट होता था । और जब महान सा दिखने वाला नायक प्रतिरोधी शक्ति को हराता था तो तो दर्शक तालियाँ बजाने लगते थे। प्रकाश मेहरा कद्दावर किरदारों को तरजीह देते थे।  अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना बारम्बार उनकी फिल्मो के नायक इसलिए बनते रहे है। प्रकाश महरा समझते थे कि दर्शक फिल्मे महज दुखों को महसूस करने के लिए नहीं आते वरन फिल्मों की चमत्कृत कर सकने जैसी शक्ति को देखने आते है। दर्शक भावुकता के साथ-साथ साहस और पराक्रम का नाटक देखने आते हैं।
 प्रकाश मेहरा ऐसी कहानी कहने की कोशिश करते थे जो आम दर्शकों को अपनी सी लगे। शराबी का अंदर से दुखी किन्तु बाहर से हंसोड़ किरदार हो या मुक्कदर का सिकन्दर का साहसी किन्तु भीतर से टूटे दिल वाला सिंकदर या फिर लापरवाह लावारिस जिसके भीतर उपेक्षा के भाव का लावा उबलता रहता है ये सभी किरदार और अति नाटकीय प्रभाव दर्शकों के दिलो दिमाग को झकजोर कर रख देते थे। यही प्रकाश महरा के फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत थी । एक मई 2009 को प्रकाश मेहरा का देहांत हो गया।
 
      

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