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मी टू के लिए शक्ति के पर्व से बेहतर मौका और क्या हो सकता है?

मीटू अभियान के बहाने एक अच्छा लेख वरिष्ठ पत्रकार-लेखिका जयंती रंगनाथन का आज ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में पढ़ा. साझा कर रहा हूँ- प्रभात रंजन

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हैशटैग-मी टू की गुहार हमारे यहां भी पहुंच ही गई। इस अभियान के लिए शक्ति के पर्व से बेहतर मौका और क्या हो सकता है? हर दिन कुछ नए नाम सामने आ रहे हैं, नए खुलासे हो रहे हैं, बातें बन रही हैं। फिल्म जगत, मीडिया, मनोरंजन जगत, राजनीति… औरतें सामने आ रही हैं, बता रही हैं कि बरसों पहले उनके साथ क्या हुआ था? कइयों ने कहा, हमारे पास उस समय आवाज उठाने का साहस नहीं था। वह शक्तिशाली था, उसके हाथ में हमारा भविष्य था। अब जब सब आवाज उठा रहे हैं, तो लग रहा है कि यही सही वक्त है, अपने साथ हुए यौन शोषण को दुनिया के सामने लाने का।

क्या यह सिर्फ शक्ति और सेक्स की जंग है? क्या हमारा समाज औरत विरोधी है? क्या यहां किसी भी क्षेत्र में महिलाएं सुरक्षित नहीं? मैं ऐसा नहीं पाती।

तीस साल पहले, जब मैंने अपने लिए पत्रकारिता का पेशा चुना था, तब पता था कि इस क्षेत्र में नाममात्र स्त्रियां होंगी। साथ काम करने वाले कुछ हमउम्र, तो कुछ वरिष्ठ पुरुष थे। धर्मयुग  के संपादक धर्मवीर भारती ने काम करने का माहौल जरूर सख्त रखा था, पर महिलाओं के लिए सौहार्दपूर्ण और स्नेहिल माहौल था। कभी यह एहसास नहीं हुआ कि आपको स्त्री होने की वजह से कम आंका जा रहा है। अपने आसपास दूसरी संस्थाओं में भी आमतौर पर ऐसा ही माहौल पाया। पूरे संस्थान में कोई एक पुरुष साथी ऐसा होता था, जिससे युवा लड़कियों को दूर रहने की सलाह दी जाती। और यह सलाह भी पुरुष और महिलाएं, दोनों देते थे। इसके अलावा स्त्री-पुरुष के बीच जो भी रिश्ते बनते, उनकी आपसी सहमति से बनते थे।

हैशटैग मी टू इंडिया की लहर शुरू हुई नब्बे के दशक की मिस इंडिया और फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्त के उस बयान से, जिसमें उन्होंने दस साल पहले नाना पाटेकर पर फिल्म हॉर्न ओके प्लीज  के एक आइटम गाने की शूटिंग के दौरान यौन प्रताड़ना और हिंसा का इल्जाम लगाया था। पिछले कुछ साल से तनुश्री देश से बाहर हैं। इस घटना के तुरंत बाद भी वह मुंबई में पुलिस के पास गई थीं। लेकिन केस तब रफा-दफा हो गया। वर्षों बाद जब वह वतन लौटीं, तो उन्होंने एक बार फिर अपने साथ हुई प्रताड़ना का जिक्र छेड़ दिया।

तनुश्री के बयान के बाद बेशक इंडस्ट्री के बहुत कम लोगों ने उनका साथ दिया, पर कुछ ही दिनों में फिल्म इंडस्ट्री, मनोरंजन, राजनीति, पत्रकारिता और दूसरे भी क्षेत्र से जुड़ी कई हस्तियों के नाम सामने आने लगे। तीन दिन पहले रात को फेसबुक पर जब नब्बे के दशक में चर्चित धारावाहिक तारा की निर्माता और लेखिका विनता नंदा की पोस्ट पढ़ी, तो अवाक् रह गई। विनता से तारा  के निर्माण के दौरान और उसके बाद भी कई बार मिल चुकी हूं। हमारी पीढ़ी की वह एक स्मार्ट और प्रतिभाशाली नाम थीं। 19 साल बाद विनता ने यह राज खोला है कि कैसे तारा  में काम करने वाले मुख्य कलाकार आलोक नाथ ने उनके साथ न सिर्फ बलात्कार किया, बल्कि उन्हें प्रताड़ित भी किया था। विनता कहती हैं, ‘आलोक को सजा हो न हो, इससे अब मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं लंबे समय तक अवसाद में रही। मेरा करियर लगभग खत्म हो गया। मुझे इस हादसे से निकलने में वक्त लगा। अब जाकर हिम्मत जुटा पाई हूं कि जो मेरे साथ हुआ, वह दुनिया को बता सकूं।’
मुंबई में रहते हुए लंबे समय तक मैंने फिल्म और टीवी जगत को काफी नजदीक से देखा है। इस इंडस्ट्री का खेल दौलत-शोहरत और सेक्स पर टिका है। जिसके पास यह सब कुछ है, वह इस खेल में सबसे पावरफुल माना जाता है। इंडस्ट्री में येन-केन-प्रकारेण पैर जमाने को आतुर युवा अपने हिस्से का छोटा सा खेल खेलते हैं। इसमें कभी उनकी जीत होती है, तो कभी हार। हैशटैग मी टू के बारे में चर्चित अभिनेत्री और निर्माता पूजा भट्ट कहती हैं, ‘आप दुनिया के हर मर्द को कठघरे में नहीं खड़ा कर सकते। उसी तरह, आप यह भी नहीं कह सकते कि हमेशा औरत ही सही होती है। मैं इस इंडस्ट्री की बेटी हूं और यहां पर हर रिश्ता आपसी लेन-देन का होता है। अगर किसी के साथ कुछ गलत हुआ है, तो उसे आवाज उठानी ही चाहिए, ताकि जो गलत है, उसे और आगे बढ़ने का
मौका न मिले।’

पिछले साल लगभग इसी समय हॉलीवुड मी टू कैंपेन से थर्रा गया था। अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने सोशल मीडिया पर मी टू हैशटैग के साथ नामी निर्माता हार्वे वांइस्टीन के यौन शोषण की करतूतों को जगजाहिर किया। इसके बाद तो कई अभिनेत्रियों ने अपनी बात सामने रखी। देखते-देखते मी टू कैंपेन ने हॉलीवुड के कई नए-पुराने नामों की धज्जियां उड़ाकर रख दी।

हॉलीवुड और अब अपने यहां भी यही लगता है कि  मी टू जैसे अभियान के लिए कोई तैयारी जैसी चीज नहीं करनी पड़ती। आपको बस खुले दिल से यह स्वीकार करना होगा कि आप अपने सामने कुछ गलत नहीं होने देंगे। अभी तक जो भी मामले सामने आए हैं, उनमें अधिकांश मामले वर्षों पहले घटे हैं। अभी तो आरोप तय होना है। पुरुषों को भी अपना पक्ष सामने रखना है। लेकिन यह बात भी अहम है कि स्त्रियां अपनी हर असफलता का दारोमदार मी टू पर नहीं बांध सकतीं। आपको अपने कुछ मसले खुद ही सुलझाने होंगे।

पिछले पांच साल से अपने संस्थान में यौन अपराध कमेटी की अध्यक्ष होने के लिहाज से मैंने यह पाया कि किसी भी कृत्य में भागीदारी सिर्फ पुरुष की या सिर्फ स्त्री की नहीं होती। हमेशा पुरुष ही गलत नहीं होते, कुछ मामले ऐसे भी सामने आए, जहां लड़कियां अपनी मर्जी से बने रिश्ते के टूट जाने के बाद आक्रामक हो गईं। मामले की सच्चाई जाने बिना किसी एक का पक्ष लेना अभियान की आंच को ध्वस्त कर सकता है। लेकिन यह भी सही है कि किसी स्त्री के साथ अगर कभी भी गलत हुआ है, तो उसे न्याय मिलना चाहिए और आरोपी को सजा। चाहे मी टू हो या न हो।

जिस तरह रोज खुलासे हो रहे हैं, उससे लग रहा है, अभी तो बस यह शुरुआत भर है। अभी तो और आवाजें उठनी हैं। इन आवाजों के जरिए ही इस अभियान की दिशा तय होगी और अंजाम भी। कहीं ऐसा न हो कि यह अभियान कुछ पुराने झगड़े निपटाने और अपना गुस्सा उतारने का एक मंच भर बनकर रह जाए।

 
      

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2 comments

  1. एक अभियान के रूप में मी टू साहसिक पहल है जिसका हर वह व्यक्ति समर्थन करेगा जो स्त्री के प्रति सम्मान का भाव रखता है|
    पर अगर कुछ स्त्रियों ने निजी स्वार्थ ,रागद्वेष, और आर्थिक या राजनीतिक लाभ के लिए मी टू का प्रयोग किया(जिसकी यत्किंचित संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता)तो इसके दूरगामी परिणाम स्त्रियों के विरुद्ध होंगे|

  2. बहुत संतुलित लेख है. फ़ौरन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचना चाहिए…

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