इस बार हंस कथा सम्मान दो लेखकों को संयुक्त रूप से दिया गया है, जिनमें एक प्रीति प्रकाश हैं। प्रीति प्रकाश तेजपुर विश्वविद्यालय की शोधार्थी हैं और जानकी पुल पर पहले भी लिखती रही हैं। जानकी पुल की तरफ़ से उनको बधाई और आप उनकी नई कहानी पढ़िए-
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इस कहानी में कहानी जैसा कुछ नहीं है। न कुछ तड़का है, न कुछ छौंक है। इश्क़ का नमक भी नहीं और बदले की आग तो बिलकुल भी नहीं। यह कहानी तो शुद्ध सात्विक कहानी है। जिसमे धर्म और भक्ति इतनी है कि पढने के बाद अगर सावन में सात बार चिकन खाने का पाप भी कर लिया तो माफ़ हो जायेगा।
छोटा शहर है हमारा, और उस पर भी और छोटा टोला। खटिक मोहल्ला, यही नाम दिया था शहरवालों ने इस टोले को। यहाँ रहने वाले अधिकतर लोग फल बेचने के काम में लगे हैं। कुछ लोगों की पान की गुमटी है, तो कुछ छोटे मोटे होटल या फिर दुकान में काम करते हैं। यहाँ “लोग” मतलब मरदाना जानना सब। बस स्टैंड से एकदम सटे गैरमजरुआ जमीन पर बसा है हमर ई टोला, छोटी जात के लोग का छोटा सा टोला।
तो क्या, भगवान् तो बड़ा- छोटा नहीं देखते। उनके लिए तो सब बराबर। कब, कहाँ, किस रूप में दर्शन दे दे कोई नहीं जानता। अब कौन जानता था कि उस पीपल के पेड़ में उतना महातम था। कहाँ तो सरकारी स्कूल के बच्चे उसके नीचे बैठे दू का दू, दू दुनी चार पढ़ते रहते, छुट्टी के बाद यही बच्चे उसी पेड़ से पकुआ तोड़ तोड़ खाते। आते जाते लोग गर्मी में वही गमछा बिछा लेट जाते। लुका छिपी में शायद ही कोई बच्चा होगा जो उसके पीछे न छुपा होगा। बच्चे, भर गर्मी उसके पत्तो से कभी पान, कभी नाव, कभी ताला बनाते। कहाँ तो वहां जुआरियों शराबियों का अड्डा लगता और दोपहरी से शाम तक ताश का खेल चलता। रोज रात कोई दारु पी के टुन्न होकर वहीं सो जाता और सुबह मेहरारू के झनर झनर से नींद खुलती। और ये रोजमर्रा के सारे पाप हो रहे थे उसी पीपल पेड़ के नीचे और किसी को खबर ही न थी उनके महातम की। वो तो भला हो रजुआ की माँ का जो सब तरफ से हार कर उनकी शरण में जा बैठी। लाइब्रेरी के बाहर कांसेस में बैंकिंग का सेट बना बनकर जब हमरे ‘ही मैन’ रजुआ की हिम्मत भी जवाब देने लगी थी और जब हर परीक्षा में एक, दू नंबर से वो फेल हो जा रहा था तो उसकी माँ ने पिपराहा बाबा की शरण गही। पिपरहा बाबा मने वही पीपल का पेड़।
नया पीयर साडी पहन के और मांग तक सिंदूर टीक के जब हाथ में फुलडाली लिए एक दिन रजुआ के माँ वहां पहुँची और पेड़ के चारों तरफ रक्षा का धागा बाँधने लगी तो लोग भकुआ के देखने लगे।
“बाबा, अब कौनो देवता मून बाकि नहीं रह गए। अब आप ही संभाले हमारी नाव। हमरे रजुआ को नौकरी मिल जाये तो अष्टजाम करवाउंगी इसी पीपल पेड़ के नीचे।”
रजुआ की माँ ने भाखा। जाने उन्हें किस ज्योतिष ने कह दिया था कि पीपल पेड़ की पूजा करे। लेकिन अब तो लोग कहते हैं कि पिपराहा बाबा ने रजुआ की माँ के माथा पर सवार होकर भखवाया। रजुआ की माँ भी कहती हैं कि उनके भाखते ही पीपल पेड़ के पत्ते खूब जोर जोर से हिलने लगे जैसे असीस रहे हो। विश्वास नहीं करने की कोई वजह नहीं है क्योंकि जो रजुआ पिछले तीन साल से बैंकिंग का सेट बना रहा था, उसकी नौकरी लग गयी। बैंक क्लर्क बन गया वो। फिर शादी की और एक साथ गाड़ी, फर्नीचर, इनवर्टर, फ्रीज, टीवी, और घरवाली सबका मालिक बन गया। फिर तो राजू बाबु की माँ ने बड़ी धूम धाम से अष्टजाम जग कराया उसी पीपल के पेड़ के नीचे। शामियाना लगा, लाउडस्पीकर में तीन दिन हरे रामा, हरे कृष्णा बजता रहा। भर मोहल्ला के लोग को पूड़ी, जलेबी और सब्जी का भोज मिला। तीन दिन बाद जब शामियाना हटा तो पीपल की कई शाखें टूट गयी थी, लेकिन इससे क्या फरक पड़ना था, लाउडस्पीकर से उसका महातम कई टोलो तक फ़ैल चुका था। बोलो पिपराहा बाबा की जय।
फिर तो आये दिन, कभी कोई पूजा तो कभी कोई जग वही पीपल के नीचे होने लगे। शनिचर के सबेरे तो अँधेरे में ही लाइन लग जाती थी पूजा करने वालों की। शाम को कई दिए जल रहे होते। दिन भर अगरबत्ती की महक से गमकने लगा उ अथान। सुहागिनों ने सेंदुर से टीक टीक कर औरी जगता कर दिया उस जगह को। कोई परीक्षा देने जाये तो उहे से टीका उठा के माथे पर लगा ले। कोई लडकी के लिए वर खोजने निकले तो वही अगरबत्ती की राख और फूल उठा के गाठ बाँध ले। बोलो पिपराहा बाबा की जय।
जब सत्रोहना का बेटा, झंदीला की बेटी को भगा के लाया और कहा कि पिपराहा बाबा को साक्षी मानकर उनके ही गाछ से सेंदुर उठा के मांग भरा है तब सत्रोहना को मानना ही पड़ा उस शादी को। फिर तो टोले की कोई शादी पूरी न होए जब तक वर- वधु पिपराहा बाबा का आशीर्वाद न ले ले। सावन में महादेव स्थापित करा के पूजा बाद वही लोग पीपल के नीचे रखने लगे माटी के महादेव को। धीरे-धीरे भक्तन की भीड़ भी बढ़ने लगी। वार्ड पार्षद की चार बेटी थी, दुल्हिन चौथी बार पेट से थी। भाखा कि पिपराहा बाबा एक बेटा दे दे तो वो टाइल्स पिटवा देंगे। बाबा ने सुन ली। आठ महीने बाद लोगो ने देखा, पार्षद पति मारे टाइल्स पिटवा रहे थे पीपल के चबूतरे पर। टाइल्स भी ऐरू गैरु नहीं, सब देवी देवता बनल टाइल्स। किसी पर महादेव जी माता पारवती साथै गणेश भगवान् को गोद में लिए बैठे है, तो किसी पर राधा- कृष्ण अशीस रहे हैं। किसी पर राम सीता लच्छमन वन जा रहे हैं तो किसी पर विष्णु भगवान् मगर को दर्शन दे रहे हैं। कुछे दिन में साफ़ शकल-सूरत बदल गया जगह का। सबने देखा कैसा चकाचक हो गया उ अथान। बोलो पिपराहा बाबा की जय।
लेकिन धीरे धीरे पीपल सूखने लगा। उस पर बने सारे घोंसले जाने कहाँ गायब हो गए। जैसे अब चिरई चुनमुन को भी पता चल गया हो कि वो कोई आम पेड़ नहीं पिपराहा बाबा है जिन के माथे पर घोसला बनाना मतलब बैकुंठ का कन्फर्म टिकेट कैंसिल करना। पीपल की जड़ के पास बनी चीटियों की बीब तो उसी दिन साफ़ कर दी गयी थी जब टाइल लगा। पर इन छोटी-छोटी चीजों की परवाह कौन करे जब साक्षात् एक ब्राह्मण पुरुष वहां आसन जमाने लगे। एक सुबह टोले वालों ने देखा – लाल चन्दन लगाये, गेरुआ कपड़े पहने, चेहरे पर भव्य ओज वाले कोई साधु वही बैठे हैं। पहले तो आते जाते लोगो ने उन्हें पूरी सरधा से परनाम किया। मंगरू जरा निठ्ठला आदमी था। अक्सर सुबह वही बैठ कर दतुअन करता और एने ओने ताक झाँक करता रहता। अब कहते हैं न खाली दिमाग शैतान का डेरा। तो उस शैतान ने ही बाबा जी से सवाल करने शुरू कर दिए।
“ कहाँ से हो बाबाजी?”
“ हम तो इस पूरे संसार के हैं बच्चा। ये पूरा संसार हमारा है।” बाबा जी ने अपने अंगोछे से अथान साफ़ करते हुए कहा।
“तो फिर इहाँ कैसे? राह चलते ठहर गए हो क्या? कहीं और जाने वाले हो क्या?” बेहूदा मंगरुआ दतुअन फिर से मुंह में डालने के पहले सारे सवाल पूछ लेना चाहता था।
“किसको कहाँ जाना है, ये तो भोलेनाथ तय करते हैं बच्चा। कल रात मेरे सपने में पिपराहा बाबा आये। मुझसे कहा तू कहाँ भटक रहा है। जा खटिक मोहल्ला में, वही मैं तेरी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। बस, नींद खुल गयी। अब बाबा का आदेश था, तो मुझे मानना ही था। सो यहाँ हूँ।”
“ सो तो ठीक है, लेकिन पिपराहा बाबा ने सपने में और कुछ नहीं बताया? खाओगे क्या, रहोगे कहाँ?”
“जिस विधि राखे राम, उस विधि रहिये” बस इतना कह कर बाबा जी चुप हो गए। उनके चेहरे से साफ़ नज़र आ रहा था कि बाबा जी को अब उस निठ्ठले की सवालो में कोई रस नहीं आ रहा था। वो तो पूजा की थाल सजाने में लगे थे।
मंगरुआ को समझ नहीं आया कि पिपराहा बाबा और राम जी में कौने कनेक्शन है का। हो भी सकता है, आखिर दुनो तो भगवान् ही है न। वह और सवाल पूछता लेकिन तभी उसे बबिता की मतारी हाथ में फूल डाली लिए आते दिखी। बबिता और मंगरुआ साथ ही पढ़े थे। मंगरुआ ने कितनी बार उसे पकुआ तोड़ तोड़ के दिया था। उसके बदले सर पर लालमी( तरबूज) रख कर बेच आया था, और पूरी इमानदारी से सारे पैसे उसे दे दिए थे। अब बड़े होने पर जब बबिता की मतारी उसके लिए वर खोज रही थी तो मंगरुआ की पूरी कोशिश रहती कि वो उन्हें नजर आ जाये। इसलिए झट मुंह से दातुन निकाल पिपराहा बाबा के सामने हाथ जोड़ खड़ा हो गया।
शायद बबिता की मतारी ने ही नए पधारे बाबाजी के बारे में सबको बताया। जिसने सुना हतप्रभ हुआ। अरे इतना होश तो हमें रहा ही नहीं कि पिपराहा बाबा की सेवा के लिए किसी बाबा जी को ले आये। अब पिपराहा बाबा ने स्वयं जब इसका इन्तेजाम कर दिया है तो हमसे इतना न हो पायेगा कि बाह्मण के रहने खाने का इन्तेजाम कर दे। तय हुआ हर घर महिना में सौ रुपये चंदा देगा बाबाजी को। रहने के लिए बबिता की महतारी के घर में ही एक कमरा दे दिया जाएगा। उहे चूल्हा जला लेंगे बाबाजी, और दू गो रोटी सेक लेंगे। बोलो पिपराहा बाबा की जय।
बस उ दिन से विधिवत पिपराहा बाबा की पूजा शुरू हो गयी। आये दिन पूजा पाठ, जग परयोजन। आये दिन भोपा लाउडस्पीकर। अब त उ अथान का महातम दूर दूर तक फ़ैल गया है। लोग कहाँ कहाँ से आते हैं मनौती माँगने। बड़ी भीड़ लगती है हर शनीचर को। मेला ठेला लग गया है। एक दान पेटी रख दी है बाबाजी ने। वही भक्त लोग दान पुन्य भी कर लेते हैं। अगल बगल की जमीन छेक के बाबाजी ने कुटी बना ली है। कुछ अधर्मी लोग कहते हैं कि वही रात में दारू कबाब का दौर भी चलता है। लेकिन अगर अईसा होता तो भसम न कर देते पिपराहा बाबा। वही अब एगो छोटी चुकी मन्दिर भी बन गया है। आगे जाके बड़का मन्दिर बनाने का परयास चल रहा है। बस एक बात है- “पीपल का पेड अब कहीं नहीं दिखता। जाने वो कहाँ चल गया। लेकिन उ दिन बाबा कथा कह रहे थे विद्यापति और भगवान् शंकर का। भगवान् शिव, शुगना बनके विद्यापति के यहाँ काम करते थे। लेकिन जिस दिन विद्यापति ने उन्हें पहचान लिया उसी दिन से अंतर्ध्यान हो गए। शायद पीपल का पेड़ भी वैसे ही अंतर्ध्यान हो गया हो। बाकि महातम बहुत है उस अथान का अब। सब जानते हैं बड़ी जगता हैं पिपराहा बाबा। बोलो पिपराहा बाबा की जय।
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पिपराहा बाबा की जय’ कहानी में कुछ त्रुटियाँ हैं-
1) अष्टयाम मात्र 24 घंटे का होता है, तीन दिनों का.नहीं।एक याम=3 घंटे।
2) विद्यापति के पास शिव उगना के रूप में रहते थे, शुगना के रूप मे ंनहीं।
3) जाहि विधि राखै राम, ताहि विधि रहि रहिहौं।
4)भाषा मुझे तो अच्छी लगी, मगर दूसरे इलाकों के लोग इसका रस नहीं ले. पाएंगे।
कहानी अच्छी लगी। हमारे आस पास जिस तरह प्रकृति का क्षरण हो रहा है वह एक सम्वेदनशील मसला है।
कहानी अच्छी लगी। धर्म का बाजारीकरण और पाखंड कहानी के मूल मे है। बाबाजी द्वारा की गयी भूलें कहानी को यथार्थ के अधिक करीब ले जाती हैं।
कहानी पढ़ी। अच्छी लगी। कहानी में “बोलो पीपरहा बाबा की जय” का उद्घोष बार बार होना एवं पीपल के वृक्ष का अस्तित्व ही समाप्त होना एक दुखद पहलू है। बाबाजी द्वारा श्लोक में की गई त्रुटी बाबाजी के बनावटी होने के तरफ इशारा करती है।
Bahut achha likhi ho Preeti.Aisa hi hota hai hamare desh me dharm ke naam par.
Bahut achhi kahani hai.Real life me yahi hota hai.
kahani bahut hi achchhi hai.
बहुत ही खूबसूरत रचना ।ऐसे कई पिपराहा बाबा हम अपने आसपास देखते हैं ।क्षेत्रीय भाषा में अंधभक्ति का जीवन चित्रण ।बढ़िया छोटी। मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ है।
Bahut hi jabardast kahani. Andhbhakti ka satik vivran.