अनंत विजय की पुस्तक ‘अमेठी संग्राम’ एक साल की हो गई। इस दौरान वेस्टलैंड से प्रकाशित यह किताब अंग्रेज़ी में भी आई। साल भर वाद-विवाद में बनी रही। प्रस्तुत है इसी किताब पर उनसे बातचीत का एक अंश-
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1अमेठी संग्राम के प्रकाशन का एक साल हो गया। इस दौरान के अनुभवों को साझा करना चाहेंगे?
अनंत- अमेठी संग्राम के प्रकाशन का सालभर बीत गया। इस दौरान कई तरह के बेहतरीन अनुभव मिले। महानगरों से लेकर देशभर के अलग अलग हिस्सों के पाठक मुझसे जुड़े और पुस्तक पर अपनी प्रतिक्रिया दी। सबसे अच्छा अनुभव ये रहा कि लोगों ने इस पुस्तक को खूब प्यार दिया। लांच के महीने भर बाद इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हो गया। पाठकों ने अपनी प्रतिक्रियाओं से मेरी इस पुस्तक को सालभर चर्चा में बनाए रखा।
2 आप अपनी पुस्तक ‘अमेठी संग्राम’ की सफलता का क्या कारण मानते हैं?
अनंत- सफलता! अभी मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था। पुस्तक, पाठकों को पसंद आ रही है, यह मेरे लिए संतोष की बात है। महामारी के इस दौर में मेरी पुस्तक अमेठी संग्राम देश के अलग अलग हिस्से में पहुंच रही है इससे अधिक संतोष की बात क्या हो सकती है। कुछ दिनों पहले दार्जिलिंग से एक पाठक ने इंटरनेट मीडिया पर मुझको टैग किया। इसके अलावा बलिया से लेकर भागलपुर तक, सिहोर से लेकर सूरत तक ये पुस्तक पहुंच रही है। अभी सफल होने की राह पर है। अगली बार जब आप प्रश्न करेंगे तब मैं इसका उत्तर देने में समर्थ हो पाऊंगा।
3 आपकी पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है जिसका नाम रखा गया- dynasty to democracy. क्या आपको लगता है कि यह नामकरण सही है? क्योंकि अगर वंशवाद रहा होता तो स्मृति ईरानी कभी चुनाव नहीं जीत पाती?
अनंत- मेरी पुस्तक का जो अनुवाद प्रकाशित हुआ है उसका पूरा नाम है- Dynasty to Democracy, The untold tale of Smriti Irani’s triumph. देखिए प्रभात जी ये तो आप भी मानेंगे कि अमेठी लोकसभा क्षेत्र से गांधी-नेहरू परिवार के लोग या उनके पारिवार के प्रतिनिधि लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। तो एक प्रकार का वंशवाद तो अमेठी में था। स्मृति इरानी से ज्यादा अमेठी की जनता ने वंशवाद के खिलाफ बिगुल फूंका। स्मृति इरानी और भारतीय जनता पार्टी की राजनीति ने अमेठी के लोगों के सामने एक विकल्प दिया। यहां एक बात याद रखिए कि स्मृति इरानी को पहली बार में जीत नहीं मिली, उन्होंने लगातार पांच साल अमेठी में काम किया और वहां के लोगों का भरोसा जीता। 2014 से लेकर 2019 तक स्मृति लगातार अमेठी की चिंता करती रहीं। बावजूद इसके मेरी किताब की सेंट्रल थीम है ये है कि 2019 में अमेठी की जनता गांधी परिवार के खिलाफ उठ खड़ी हुईं। और उसका ही परिणाम रहा राहुल गांधी की पराजय और स्मृति की विजय।
4 आपने अपनी किताब में यह लिखा है कि गांधी परिवार ने अमेठी के लिए कुछ नहीं किया। चुनाव जीतने के बाद से स्मृति ईरानी जी ने क्या-क्या किया है इस पर प्रकाश नहीं डाला। क्या इस जीत से अमेठी की किस्मत बदलने की उम्मीद भी की जा सकती है?
अनंत- प्रभात जी अगर आपने मेरी किताब पढ़ी हो तो मैंने ये स्पष्ट किया है कि ये पुस्तक अमेठी में स्मृति इरानी की जीत पर केंद्रित है। किस प्रकार स्मृति इरानी ने अपने राजनैतिक कौशल से गांधी परिवार के तथाकथित गढ़ को ढहाया, ये पुस्तक उसकी कहानी कहती है। मेरी पुस्तक 2019 में स्मृति इरानी की जीत से शुरू होती है और 2014 तक जाती है और इस कालखंड की राजनीति को पकड़ने की कोशिश करती है। एक अध्याय में 1967 में अमेठी के लोकसभा क्षेत्र बनने से लेकर 2019 तक के चुनाव तक का इतिहास भी है। अगर आपका ये साक्षात्कार मेरी किताब से इतर अमेठी की राजनीति पर होता तो मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर अवश्य देता।
5 आपकी किताब स्मृति ईरानी को ‘जायंट किलर’ की तरह स्थापित करती है। दक्षिणपंथी विमर्श में राहुल गांधी को ‘पप्पू’ कहा जाता रहा है। क्या आप यह मानते हैं कि राहुल गांधी अमेठी की राजनीति के जायंट थे या हैं?
अनंत- प्रभात जी ये बताइए कि क्या आपको याद पड़ता है कि कोई कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहते हुए लोकसभा का चुनाव हारा? जहा तक मुझे स्मरण आता है कि कांग्रेस पार्टी के एक सौ छत्तीस साल के इतिहास में अध्यक्ष पद पर रहते हुए इस पार्टी का कोई व्यक्ति चुनाव में पराजित नहीं हुआ। राहुल गांधी हुए। वैसे राहुल गांधी अमेठी से पंद्रह साल तक सांसद रहे, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे और उस परिवार से भी हैं जिनसे तीन प्रधानमंत्री हुए। राहुल गांधी की मां को सबसे अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष रहने का गौरव हासिल है। अब भी वो कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस पार्टी की महासचिव हैं। इतनी बातों से आप अर्थ निकाल सकते हैं कि राहुल गांधी की राजनीति में क्या हैसियत है। इंटरनेट पर दिए जानेवाले विशेषणों क्या प्रतिक्रिया देना।
6 आपने अमेठी संसदीय क्षेत्र के संदर्भ में 1967 के आम चुनाव को बहुत अहम माना है। ज़रा उसके बारे में विस्तार से बताइए।
अनंत- इसलिए कि 1967 में अमेठी लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आया। 1967 के चुनाव में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे। उनको कुल मतदान का 35.81 फीसदी वोट मिला था जबकि उनके प्रतिद्वंदी भारतीय जनसंघ के गोकुल प्रसाद को 33.74 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को 1967 के लोकसभा चुनाव में बहुत मामूली अंतर से जीत मिली थी। कहने का आशय ये है कि अमेठी में आरंभ से ही विपक्षी दल मजबूत रहे हैं. जनसंघ की यहां मजबूत उपस्थिति रही है, बाद में भारतीय जनता पार्टी की। कालांतर में हुए चुनावों के परिणाणों से ये स्पष्ट भी है।
7 1977 में अमेठी से संजय गांधी की हार हुई और रायबरेली में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को पराजित किया, जिसको आपने अपनी किताब में ऐतिहासिक कहा है। लेकिन 1980 में दोनों सीटों पर कांग्रेस की वापसी हुई। क्या आपको नहीं लगता है कि 2019 की जीत अमेठी से गांधी परिवार की निर्णायक हार नहीं है? यानी पिक्चर अभी बाक़ी है।
अनंत- प्रभात जी जैसा कि मैंने ऊपर भी कहा है कि मेरी किताब अमेठी में स्मृति की 2019 की जीत की वजहों को ट्रेस करती है। 1977 और 1980 के चुनाव के समय की स्थितियां अलग थीं। अब की स्थिति अलग है। भविष्य में क्या होगा ये तो कोई भविष्यवक्ता या ज्योतिषी ही बता सकता है। मुझे मालूम है कि आपकी ज्योतिषीय गणनाओं में रुचि है लेकिन मैं इस विद्या से बिल्कुल अनजान हूं, लिहाजा पिक्चर के बारे में बताना मेरे लिए संभव नहीं है।
8 2019 में अमेठी से स्मृति ईरानी की जीत में आप किसकी भूमिका अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं- स्मृति ईरानी की, भाजपा की या आरएसएस की?
अनंत- मेरी किताब में इन बातों पर विस्तार से चर्चा है। स्मृति इरानी का राजनैतिक कौशल और लोगों के साथ बेहद सहजता से जुड़ जाने का उनका स्वभाव, नरेन्द्र मोदी की साख और लोकप्रियता और भाजपा और आरएसएस के संगठन की ताकत- इन तीनों को मिलाकर स्मृति इरानी की जीत की तस्वीर बनती है। मैंने अपनी किताब में इन तीन विषयों को प्राथमिक सोर्स के हवाले से परखा और फिर लिखा है।
9 आपने लिखा है कि गांधी परिवार ने अमेठी के लिए कुछ नहीं किया लेकिन फिर भी अमेठी की जनता ने इस परिवार को इतना समर्थन क्यों दिया? 1989 में जब वीपी सिंह की लहर थी तब भी अमेठी ने राजीव गांधी को भारी बहुमत से क्यों जिताया?
अनंत- मैंने ये कहीं नहीं कहा कि गांधी परिवार ने अमेठी के लिए कुछ नहीं किया। मैंने उन य़ोजनाओं के बारे में बताया जिसको बहुत प्रचारित किया गया लेकिन उनके अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके। चाहे वो अमेठी में बड़े बड़े औद्योगिक घरानों का उद्योग स्थापित करने की बात रही हो या फिर ट्रिपल आईटी खोलने की बात । फिर तथ्यों के आधार पर उसका आकलन किया और जो तस्वीर निकल कर आई उसको लिख दिया। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि किसी ने उन तथ्यों को नकारा नहीं। आपको एक दिलचस्प बात बताता हूं कि 2009 में अमेठी में बिजली को लेकर एक बड़ा आंदोलन हुआ था, उसमें व्यापरियों पर लाठी चार्ज आदि हुए थे, उनको जेल भी भेजा गया था। आंदलोन इस वजह से हुआ था कि अमेठी में बिजली एक सप्ताह दिन में और एक सप्ताह रात में आती थी। आप कल्पना करिए। दूसरी बात कि मैंने अमेठी की तुलना सैफई, इटावा, वाराणसी और बारामती संसदीय क्षेत्र से की और ये बताने की कोशिश की अमेठी में अपेक्षाकृत कम काम हुए।
10 आपने इस किताब के लिए शोध करते हुए किन स्रोतों का सहारा लिया? आँकड़े कहाँ से लिए?
अनंत- मैंने 2014 और 2019 के चुनाव से जुड़े सभी दलों के नेताओं से बातचीत की। कांग्रेस के भी और भारतीय जनता पार्टी के भी। स्थानीय से लेकर केंद्रीय नेताओं से मैंने घंटों बातें की और उनसे चुनावों को लेकर उनके अनुभव पूछे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों से बात की, बीएसपी और एसपी के नेताओं से लेकर उस चुनाव को कवर करनेवाले पत्रकारों से बात की। सबसे अधिक सहायता मुझे अखबारों के स्थानीय संस्करणों से मिली। उनकी पुरानी फाइलों से कई लीड मिले जिसको फिर मैंने संबंधित व्यक्तियों से बात करके आगे बढ़ाया और स्टोरी के रूप में प्रस्तुत किया। आंकड़ों के लिए मैंने सिर्फ चुनाव आयोग के आंकड़ों पर भरोसा किया, कोट भी किया।
11 अंतिम सवाल यह कि आपने अपनी किताब में राष्ट्रकवि दिनकर को दो बार उद्धृत किया है लेकिन स्थानीय कवि जगदीश पीयूष को नज़रअन्दाज़ कर दिया है। जबकि राजीव गांधी के ज़माने से ही चुनाव में गांधी परिवार के लिए उन्होंने बहुत काम किया। नारे लिखे- अमेठी का डंका बेटी प्रियंका/अमेठी का बिगुल बेटा राहुल… उनको नज़रअन्दाज़ करने की कोई खास वजह?
अनंत- जगदीश पीयूष जी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। दिनकर मेरे प्रिय कवि, लेखक हैं और मैं उनको बार-बार उद्धृत करता हूं। उनको खूब पढ़ा है लिहाजा उनकी बातें जेहन में रहती हैं और मौके पर याद भी आ जाती हैं। इसके पीछे किसी को छोड़ने जैसी बात नहीं है।
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