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शिक्षा में मातृभाषा का महत्व: डॉक्टर दीपक कोईराला

ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज(सांध्य) में ” शिक्षा में मातृभाषा  का महत्व ” विषय पर मातृभाषा दिवस पर दिनांक 17 फ़रवरी को चौथे  व्याख्यान का आयोजन किया गया। आयोजन का आरम्भ डॉक्टर लालजी के वक्तव्य से हुआ। उसके बाद ज़ाकिर हुसैन दिल्ली विश्वविद्यालय(सांध्य) के प्राचार्य प्रोफ़ेसर मसरूर अहमद बेग ने डॉक्टर दीपक कोईराला का विस्तृत परिचय देते हुए गुरुकुल और भारतीय शिक्षा पद्धति के क्षेत्र में उनके योगदान का उल्लेख किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉक्टर हिंदी विभाग में असोसिएट प्रोफ़ेसर प्रभात रंजन ने डॉक्टर दीपक कोईराला के व्यक्तित्व और कृतित्व पर सुंदर प्रकाश डाला। बताया कि वे संस्कृत नव्य व्याकरण के ज्ञाता हैं और इनकी उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला। और गुरुकुल शिक्षा के क्षेत्र में इनका अपूर्व योगदान हैं। प्रस्तुत है रपट-

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प्रसिद्ध विद्वान डॉक्टर दीपक कोईराला ने मंगलाचरण के साथ अपने व्याख्यान की शुरुआत की। उसके बाद उन्होंने कहा कि मातृभाषा बोलते ही भाषा माँ से जुड़ जाती है। उन्होंने पारम्परिक शिक्षा से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने शास्त्रों का हवाला देते हुए यह कहाँ कि सबसे पहली गुरु माँ ही होती है। हम चार गुरुओं में सबका त्याग कर सकते हैं लेकिन माँ गुरु का त्याग नहीं कर सकते। शोध से यह पाया गया कि माँ के गर्भ में छठे सप्ताह से बच्चा माँ की भाषा को ग्रहण करने लगता है। मातृभाषा में शिक्षा से बच्चे का सर्वाधिक विकास होता है।

भारत में लगभग 180 साल से अंग्रेज़ी को शिक्षा में महत्व प्रदान किया तब भी इस देश में 10 प्रतिशत लोग ही अंग्रेज़ी बोल पा रहे हैं- 7% शहरी क्षेत्रों तथा 3% ग्रामीण क्षेत्रों में। आज भी लोग अपनी अपनी मातृभाषाओं में बात करते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को बताया गया है और उसमें शिक्षा का आग्रह भी किया गया है। आने वाले समय में इसके परिणाम हमें देखने को मिलेंगे। कालिदास का उदाहरण आता है कि विपत्ति के समय सबसे पहले माँ का ही नाम निकलता है।

विद्वानों का कहना है हमें उस भाषा में बात करनी चाहिए जिस भाषा में हम स्वप्न देखते हैं। उन्हीं देशों का विकास सर्वाधिक हुआ है जिन देशों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रही है। सबसे अधिक वैज्ञानिक पेटेंट मातृभाषा शिक्षा वाले देशों में हुए हैं।

उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि पारम्परिक ज्ञान के लिए दुनिया भारत की दिशा में देखती है। लेकिन अपने शास्त्रों से कटे रहे हैं। हमें अपनी भरतीय पद्धति की शिक्षा ही नहीं बल्कि चिकित्सा सहित ज्ञान के तमाम क्षेत्रों में उनके महत्व को समझने की ज़रूरत है। आधुनिक विकास की होड़ में हम अपना विनाश कर रहे हैं।

विद्वान वक्ता ने विस्तार से यह बताया कि मातृभाषा में शिक्षा को लेकर किस तरह के और कितने प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। नई शिक्षा नीति में उनको किस तरह समाहित किया गया है। उनको सुनना अपने आपको वैचारिक रूप से समृद्ध करने वाला रहा।

इस प्रेरक व्याख्यान के अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया डॉक्टर पदम परिहार ने। उन्होंने कहा कि इस व्याख्यान को सुनते हुए उनको बहुत अच्छा लगा। उन्होंने संस्कृत के श्लोकों के माध्यम से भारतीय शिक्षा के महत्व को बताया, जो बहुत उल्लेखनीय था। हमारे देश में मातृभाषा में शिक्षा माध्यम किस प्रकार हो सकता है इसको बताने के लिए पदम जी ने विद्वान वक्ता को बहुत धन्यवाद दिया। उन्होंने प्राचार्य महोदय तथा संयोजक डॉक्टर लालजी का बहुत धन्यवाद दिया। साथ ही तकनीकी समिति और मातृभाषा समिति का भी धन्यवाद दिया।

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