आज दीवाली की मुबारकबाद के साथ सुहैब अहमद फ़ारूक़ी का यह व्यंग्य-
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नोट: यह सिर्फ व्यंग्य है। इसे गंभीरता से और आधिकारिक तौर पर लेना प्रतिबंधित है।
हज़रात! आप को और आपके अपनों को दीवाली की पुरख़ुलूस मुबारकबाद!
जैसा कि आपको वाज़ेह है कि ख़ाकसार एक सरकारी नौकर है और आपको यह भी मालूम होगा कि सरकार अपने नौकरों को निर्धारित पाबंदियों के साथ नौकरी करवाती है। यह अलग बात कि कोई भी नौकर अपने मालिक द्वारा निर्धारित पाबंदियों का तोड़ निकाल लेता ही है। स्थाई एवम निश्चित दिशा निर्देशों के इलावा अस्थाई मुद्दों के लिए दिशा-निर्देश को ‘सर्कुलर’ कहते हैं।
दीवाली पर हर साल सरकार की तरफ़ से एक सर्कुलर जारी होता है जिसमें सरकारी कर्मचारियों पर ‘गिफ़्ट’ लेने और देने पर प्रतिबंध होता है।
मगर जनाब इश्क़ और ‘बिज़नेस’ कहीं पाबंदियों से रुके हैं ?
इश्क़ करने पर उम्र की पाबंदी आयद नहीं होती। लेकिन आजकल के इश्क़ के लिए हैसियत का होना निहायत ज़रूरी है। शादीशुदा आदमी की क्या हैसियत और क्या बिसात? इसलिए मैंने उम्र की बात नहीं की यहाँ, हैसियत बयान की है शादीशुदा होने की।
अब बात बची ‘बिज़नेस’ की। तो अरबों-करोड़ों रुपए के इस सालाना कारोबार को कोई मामूली सर्कुलर रोक सकता है क्या?
इसलिए दोस्तों स्वागत है आपका आपके गिफ्टों के साथ, मगर गिफ्ट ही लाएं, टेंशन नहीं।
मतलब
मिठाई कितनी भी उच्च वर्ण या कोटि की हो, बिल्कुल न लाएं! ख़बरों में मिठाई में मिलावट की पढ़-सुन कर मेड तो दूर, जानवर भी मिठाई की तरफ ‘जम्हाई’ नहीं ले रहे। दूसरा रीज़न फिटनेस सेंसिटिविटी का भी है। मिठाई के बदले चोकोलेट व कुकीज़ चल सकते हैं। बेहतर रहेगा कि ड्राई फ्रूट बोले तो सूखे मेवे ले आओ। वो चूँकि कोलेस्ट्रोल-फ्री होते हैं। उनके सेवन से दिल अच्छा रहेगा तो आप दिल के क़रीब रहेंगे।
देशभक्ति और राष्ट्रधर्मिता के इस समय-काल में विदेशी वस्तुओं का गिफ़्ट न दें। विदेश का अर्थ सिर्फ़ चीन से लगाएं। स्साले हम से भी घटिया बनाने लगे हैं।
फेंगशुई वाले बाज़ आएं ! पिछले साल वाले ‘यंत्र’ भी अभी अनपेक्ड पड़े हैं। बात अंधविश्वास की इतनी नहीं है जितनी मजबूरी दिल्ली शहर के आवसीय फ्लेट में अल्टरेशन कराने की है। वास्तु दिशा ठीक कराने के चक्कर में बजट की दशा बिगड़ जाती है।
और भई अगर सूट लेंथ ला रहे हैं तो स्टिचिंग के ख़र्च का लिफ़ाफ़ा भी लेते आइयेगा। आपको मालूम ही है टेलर की फ़ीस कपड़े के मूल्य से डबल हो गई है।
रुको रुको ! ख़ाकसार ने मद्यपान कभी किया नहीं और धूम्रपान छोड़े हुए 19 साल और आठवां महीना चल रहा है। लेकिन यह सोच कर आप इन दोनों वस्तुओं के गिफ़्ट लाने से परहेज़ न करें। मेरे बहुत से दोस्त ‘मादकता’ पसंद भी हैं। उनको फारवर्ड कर देता हूँ।
अंत में! गिफ्ट देने आएं, तो दें और फ़टाफ़ट निकल लें। चाय के ‘पूछने’ के इंतज़ार में ‘पारस्परिक’ समय को बर्बाद न करें।
जल्दी करें! केवल एक दिन बचा है। पिछले साल की तरह डेट एक्सटेंड नहीं की जायेगी।
डिस्क्लेमर: ‘निज-हित’ में जारी ! सरकारी सर्कुलर को भी मानना है तो भाई पचास फीसदी मान लेते हैं मतलब गिफ़्ट लेंगे लेंगे ही, देंगे किसी को नहीं। शादीशुदा शख़्स की बात अलग है। बिना पेंशन और बिना रिटायरमेंट वाली इस नौकरी मैं आपको घरेलू सरकार द्वारा जारी घोषित और अघोषित सर्कुलर व स्टैंडिंग आर्डर को शब्दशः मानना ही होता है। इस नौकरी में आपकी स्थिति ‘ख़रबूज़े और छुरी वाली’ कहावत में ख़रबूज़े वाली होती है। आपको कटना ही है मतलब गिफ़्ट देना ही है। हां कभी ‘सरकार’ आपको गिफ़्ट देना चाहे तो आप अपने को खरबूजा मानकर ‘न’ न करें। सुना और सुनाया हुआ चुटकुला सुनाता हूँ:-
पति के जन्मदिन पर पत्नी ने पूछा: “क्या गिफ्ट दूं?”
पति: “तुम मुझे प्यार करो, इज्ज़त करो और मेरा कहा मानो बस्स यही काफ़ी होगा !!
पत्नी (कुछ देर सोच के): “नहीं मैं तो गिफ्ट ही दूँगी!”
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दुआओं में याद रखिएगा।
bahut khoob! apki baat mani jaye…