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गिरिराज किराडू की लगभग कविताएँ

आज विश्व कविता दिवस पर पढ़िए मेरी पीढ़ी के सबसे प्रयोगशील और मौलिक कवि गिरिराज किराडू की कविताएँ जो उनकी प्रयोगधर्मिता का नया आयाम हैं- प्रभात रंजन
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लगभग कविता
गिरिराज किराडू

वैसे तो मुझे कभी पता नहीं चला कि मैं लेखक हूँ या नहीं इसलिए जो मैं लिखता हूँ वह कविता है कि नहीं या बस लगभग किसी तरह कविता है ऐसा लगना कोई ख़ास बात नहीं है. गद्य के यह टुकड़े मैंने “लगभग कविता” सीरीज़ में लिखे हैं. यह लगभगपन दीपेन्द्र बघेल को, और अब उनकी याद को समर्पति है. जिनके जीवन में दीपेन्द्र घटित हुए वह जानते हैं “पाठक” अपने एकदम तकनीकी रूप में कौन होता है. उत्तर-सरंचनावादियों की उनकी पढ़त को उनके सब मित्र याद करते हैं, मुझे उनकी ‘कैपिटल’ की पढ़त भी बहुत अच्छे-से याद है. दीपेन्द्र से बात होती थी तो लगता था कई ‘पाठ’ उठकर कमरे में चले आये हैं. मुझे हमेशा यह लगा दीपेन अस्थि-मज्जा, मांस, खून से नहीं कई पाठों से बने हैं, वे इस जैविक अर्थ में भी पाठक थे. मैं सारी ज़िंदगी उनसे लिखवाने का प्रयास करता रहा क्योंकि मैंने उनकी लिखी ‘द रिप्रेजेंटेशन्स ऑफ़ द इंटेलेक्चुअल’ की हिन्दी में समीक्षा एकदम शुरू के दिनों में पढ़ी थी. बहुत मित्र, ख़ासकर मदन सोनी जिनके वे सबसे ज़्यादा क़रीब थे शायद इस दुनिया में,
वे यह प्रयास करते रहे. इधर वे फ़ेसबुक पर आदतन सुचिंतित और आदतन उदार टिप्पणियाँ दूसरों के लिखे पर करते थे. यहाँ भी ख़ुद नहीं लिखते थे. उनके जाने के बाद से मैं उन्हें याद कर कई बार रोया हूँ. वे होते तो तो कहते आप वास्तव में रहना कब सीखेंगे! मुझे उनके बोले में यह इटेलिक दिखता रहता था. अलविदा दीपेन!

अब मैं आपके और लगभग के बीच से हटता हूँ, आप दीपेन के साथ उसमें प्रवेश कर सकते हैं

1

रघुराम राजन के बारे में सोचने की शुरूआत करते हुए मैंने पाया कि कई साल तक यह जानने के बावजूद
कि कोई रघुराम राजन हैं उनके बारे में कभी सोचा ही नहीं लेकिन अब आख़िरकार मैंने उनके बारे में
सोचना शुरू कर दिया है
मुझे नहीं मालूम वह कौन हैं कहाँ रहते हैं किसी दिन आमने सामने हो जाने के आसार वैसे ही हैं जैसे
इस पृथ्वी के अनंतकाल तक बचे रहने के लेकिन हर दूसरे महीने वे संकट के भाष्य निराशा की आकाशवाणी
उम्मीद के परचम की तरह सामने तान दिए जाते हैं
मुझे नहीं मालूम वे बचपन में कंचे खेलते थे या नहीं जो विश्वविद्यालय वे बना रहे उसमें फूलों की वादियाँ
हैं कि नहीं सूट बूट के अलावा वे कुछ पहनते हैं या नहीं लेकिन ग्रेजुएशन के दिनों में पढ़ी इक्नोमिक्स
और उसके अलावा हर साल पढ़ी गफ़्लत की गणित के भरोसे बिना गूगल का रस्ता लिए मैंने
आख़िरेकार रघुराम राजन के बारे में सोचना शुरू कर दिया है
2

एक फ़ोटो है जिसमें किसी और की जैकेट पहने हूँ
एक अतिरिक्त सार्वजनिक समारोह में

जिसकी जैकेट थी
हफ़्ते भर बाद शहर लौटते ही उसे लौटा दी थी
सात दिन में जितनी कहानियाँ जैकेट ने जमा की उन्हें
बाद में एक एक कर उनके अदाकार तक लौटाने में
कई साल लगे
एकाध अभी भी अटकी हुई हैं
उन्हें पहनकर सब्ज़ी ख़रीदने जाता हूँ तो
फ़ोटो जैसा लगता हूँ
3

हम दोनों भाइयों के कोई बहन नहीं हुई लेकिन घर में तीन लड़कियाँ थीं एक मुझसे बड़ी
एक हमउम्र एक छोटी छह लड़के थे उसके अलावा सात मर्द और चार औरतें थी तीन चाचा
अभी छोटे थे हम लड़के बहनों को न मारें इसके लिए हमें एक कल्पना से
डराया गया कि अगर हम बहनों को मारेंगे तो हमारी हथेलियों पर काँटे उगेंगे
मुझे नहीं याद हम छहो ने कभी उन्हें या उन्होंने हमें मारा हो हम छहो के बीच कभी कभार
क्षणिक हिंसा हो जाती थी ग़रीबी डर और बिना खिलौनों के बचपन में हम एक दूसरे के
खिलौने थे और खेल भी
लेकिन जिन्होंने हमें डराया था वे अक्सर उन्हें और हमें भी किसी किसी दिन मारते थे जब वे
सोये होते हम उनकी हथेलियों की सहमी-सहमी सी जाँच करते थे

4

जैसे चंद्रमा मुआफ़ी माँगता है रात से वैसे मुआफ़ी माँगता हूँ तुमसे

5

आँखें
चेहरे से गिर गईं
आंसुओं की तरह

6

हर भले राजनेता की तरह क्या अमित शाह भी न देखते होंगे
पीएम बनने का सपना
सुबह शॉवर के नीचे या कुर्ता पहनते या आईने में देखकर कुछ ठीक करते
या एक और राज्य फतह करने की खबर आने के बाद के चालीस सेकिंड में
या पन्द्रह अगस्त छब्बीस जनवरी जैसे दिन राष्ट्र के नाम सम्बोधन देखते हुए

सपना एक दीर्घकालीन राजनीति है
इसे अमित शाह से ज़्यादा भी कोई जानता है
फिर भी हर भले राजनेता की तरह क्या अमित शाह भी न देखते होंगे
पीएम बनने का सपना

7
हर भले राजनेता की तरह रागा भी न देखते होंगे
पीएम बनने का सपना

किसी मज़दूर के साथ सेल्फ़ी लेते हुए किसी मैकेनिक से हाथ मिलाते हुए
किसी रघुराम राजन से बतियाते किसी स्टूडेंट के साथ खिलखिलाते
या संसद से आते जाते अपने ड्राइवर को देखते हुए
अचानक आ गये चालीस सैकंड के एकांत में

पीएम होना एक त्रासदी है इसे रागा से ज़्यादा भी कोई जानता है
फिर भी हर भले राजनेता की तरह रागा भी न देखते होंगे
पीएम बनने का सपना

8
आठ बरस तीन सौ दिन हुए
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लिये

दस बरस दो सौ इकतीस दिन हुए
तुम्हें चूमे

एक युग हुआ हमें एक दूसरे में विहार किये

पूँजी हमसे मृत्यु भी छीन लेगी?

9

टू जी फ़ोन से ठीक से रिकॉर्ड हो जाएगी हत्या?

10

देसराज काली की गिरस्ती में एक दिन रहना
उसके दोस्तों के साथ बारिश में भीगना
उसके कुनबे को दुआ सलाम करना
सूरज और चाँद के दफ़्तर में रौला पा देना
इससे बड़ा दिन
इससे बड़ा सौभाग्य
मेरा तो न हुआ इस जीवन में!

11
[दीपेन्द्र बघेल के लिये]

आह दीपेन!
दीपेन
दीपेन
दीपेन
दीपेन दीपेन दीपेन
आह!

 
      

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