मैं मनुष्य ही बने रहना चाहता हूँ- विश्वनाथ त्रिपाठी

हाल में ही प्रसिद्ध आलोचक, लेखक और सबसे बढ़कर एक बेजोड़ अध्यापकविश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने जीवन के 80 साल पूरे कर लिए. लेकिन अभी भी वे भरपूर ऊर्जा से सृजनरत हैं. अभी हाल में ही उनकी किताब आई है ‘व्योमकेश दरवेश‘, जो हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन-कर्म पर है. उनसे …

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एक विदेशी की नज़र में एशिया की रेलयात्राएं

  हाल में ही पेंगुइन-यात्रा प्रकाशन से प्रसिद्ध लेखक पॉल थरू की किताब ‘द ग्रेट रेलवे बाज़ार’ इसी नाम से हिंदी में आई है. जिसमें ट्रेन से एशिया के सफर के कुछ अनुभवों का वर्णन किया गया है. हालाँकि पुस्तक में एशिया विशेषकर भारत को लेकर पश्चिम में रुढ हो …

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अज्ञेय के साहित्य के प्रति उदासीनता के पीछे क्या वजह रही?

अज्ञेय की जन्मशताब्दी के अवसर पर आज प्रसिद्ध आलोचक मदन सोनी का यह लेख जिसमें उन्होंने उस पोलिमिक्स को समझने-समझाने की कोशिश की है जिसने साहित्य की स्वाधीनता के सवाल को उठाने वाले अज्ञेय को साहित्य के प्रसंग से ही बाहर कर दिया. मदन जी के शब्द हैं, प्रसंगवश यहाँ …

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प्रेम की भूमि पर हमने घृणा को भी पलते हुए देखा.

‘इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ में पत्रकारिता से कैरियर शुरु करने वाले रुस्तम मूलतः कवि-दार्शनिक हैं. हिंदी कविता में उनका स्वर एकदम अलग है. इसीलिए शायद उनकी कविताएँ लगभग अलक्षित रह गईं. हाल में ही हार्पर कॉलिन्स प्रकाशन से उनकी कविताओं का संचयन प्रकाशित हुआ है. आप ही पढकर बताइए कि …

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लिखना एक आत्मघाती पेशा है

क्यों लिखता हूँ?… जाने क्यों इस सोच के साथ मुझे मुझे अक्सर नवगीतकार रामचंद्र चंद्रभूषण याद आते हैं. डुमरा कोर्ट, सीतामढ़ी के रामचंद्र प्रसाद जो नवगीतकार रामचंद्र चंद्रभूषण के नाम से नवगीत लिखते थे. जब ‘तार सप्तक की तर्ज़ पर शम्भुनाथ सिंह के संपादन में नवगीतकारों का संकलन ‘नवगीत दशक’ …

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सिनेमा में हिंदी प्रदेशों को अपराध के पर्याय के रूप में ही क्यों दर्शाया जाता है?

प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने अपने इस लेख में यह दिखाया है कि किस तरह हिंदी सिनेमा में पंजाब को प्रेम के पर्याय के रूप में दर्शाया जाता है, जबकि सारे अपराधी हिंदी प्रदेशों के ही होते हैं. दुर्भाग्य से हिंदी प्रदेशों से आने वाला फिल्मकार भी इसी रूढ़ि …

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न मैं काठ की गुड़िया बनना चाहती हूँ न मोम की

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर प्रस्तुत हैं आभा बोधिसत्व की कविताएँ- जानकी पुल. मैं स्त्री मेरे पास आर या पार के रास्ते नहीं बचे हैं बचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ता. जहाँ बचाया जा सके किसी भी कीमत पर, घर, समाज न कि सिर्फ अपनी बात। …

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एक उपन्यास में अज्ञेय

अज्ञेय की संगिनी इला डालमिया ने एक उपन्यास लिखा था’ ‘छत पर अपर्णा. कहते हैं कि उसके नायक सिद्धार्थ पर अज्ञेय जी की छाया है. आज अज्ञेय जी की जन्मशताब्दी पर उसी उपन्यास के एक अंश का वाचन करते हैं- जानकी पुल. लाइब्रेरी से सिद्धार्थ ने किताब मंगवाई थी. उन्हें …

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अज्ञेय विप्लवी, विद्रोही और क्रांतिकारी थे- उदयप्रकाश

आज अज्ञेय की जन्म-शताब्दी है. आज से अज्ञेय के साहित्य को लेकर तीन दिनों के कार्यक्रम का भी शुभारंभ हो रहा है. जिसमें एक वक्ता उदयप्रकाश भी हैं. इस अवसर पर अज्ञेय को लेकर उनके विचारों से अवगत होते हैं. प्रस्तुति हमारे ब्लॉगर मित्र शशिकांत की है- जानकी पुल. अभी …

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संस्कृति का तीर्थ है ‘मुअनजोदड़ो’

इतिहासकार नयनजोत लाहिड़ी ने अपनी पुस्तक ‘विस्मृत नगरों की खोज’ में लिखा है कि १९२४ की शरद ऋतु में पुरातत्ववेत्ता जॉन मार्शल ने एक ऐसी घोषणा की, जिसने दक्षिण एशिया की पुरातनता की उस समय की सारी अवधारणाओं को चमत्कारिक ढंग से परिवर्तित कर दिया: यह घोषणा थी ‘सिंधु घाटी …

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