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कथा-कहानी

लालची हूहू की कहानी:   मृणाल पाण्डे

प्रसिद्ध लेखिका मृणाल पाण्डे आजकल एक सीरीज़ लिख रही हैं ‘बच्चों को न सुनाने लायक बाल कथा’, जिसमें पारम्परिक बोध कथाओं को लिख रही हैं और समकालीन संदर्भों में वे पोलिटिकल सटायर लगने लग रही हैं। सीरीज़ की दूसरी कथा पढ़िए- जानकी पुल ================================= बहुत दिन हुए एक घने जंगल …

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मृदुला शुक्ला की कहानी ‘सगुनी’

कल फ़ेसबुक लाइव में प्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय को सुन रहा था। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा जिसका उनको अनुभव न रहा हो। असल में यह अनुभव लेखक का ऑबजर्वेशन होता है। लेखिका मृदुला शुक्ला की कहानी ‘सगुनी’ पढ़ते हुए यह बात याद आ गई। विस्थापित …

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अलेक्सान्द्र पूश्किन की कहानी ‘डाकचौकी का चौकीदार’

अलेक्सान्द्र पूश्किन की आज जयंती है। महज़ 38 साल की आयु में दुनिया छोड़ देने वाले इस कवि-लेखक की एक कहानी पढ़िए। अनुवाद किया है आ. चारुमति रामदास ने- =============== मुंशी सरकार का, तानाशाह डाकचौकी का  – राजकुमार व्याज़ेम्स्की डाकचौकी के चौकीदारों को किसने गालियाँ नहीं दी होंगी, किसका उनसे …

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बच्चों को न सुनाने लायक एक बालकथा:  मृणाल पाण्डे

जानी-मानी लेखिका मृणाल पांडे पारम्परिक कथा-साँचों में आधुनिक प्रयोग करती रही हैं। इस बार उन्होंने एक पारम्परिक बाल कथा को नए बोध के साथ लिखा है और महामारी, समकालीन राजनीति पर चुभती हुई व्यंग्य कथा बन गई है। एक पाठक के तौर पर यही कह सकता हूँ कि महामारी काल …

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अनघ शर्मा की कहानी अब यहाँ से लौट कर किधर जायेंगे!

अनघ शर्मा युवा लेखकों में अपनी अलग आवाज़ रखते हैं। भाषा, कहन, किस्सागोई सबकी अपनी शैली है उनकी। यह उनकी नई कहानी है। पढ़कर बताइएगा- मॉडरेटर ============ 1 पिछली सर्दियों की बर्फ़ अब पिघलने लगी थी। पहाड़ का जो टुकड़ा काट कर पार्क बनाया गया था, उसके पिछवाड़े में जमी …

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प्रवीण कुमार झा की कहानी ‘स्लीपर सेल’

बहुत कम लेखक होते हैं जो अनेक विधाओं में लिखते हुए भी प्रत्येक विधा की विशिष्टता को बनाए रख सकते हैं। उनकी ताज़गी बरकरार रखते हुए। लॉकडाउन काल में प्रवीण कुमार झा का कथाकार रूप भी निखार कर आया है। यह उनकी एक नई कहानी है- मॉडरेटर। ================================== “नील! आपका …

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प्रमोद द्विवेदी की कहानी  ‘पिलखुआ की जहाँआरा’

‘जनसत्ता’ के फ़ीचर एडिटर रहे प्रमोद द्विवेदी ने अपने कथाकार रूप के प्रति उदासीनता बरती नहीं तो वे अपनी पीढ़ी के सबसे चुटीले लेखक थे। मुझे याद है आरम्भिक मुलाक़ातों में एक बार शशिभूषण द्विवेदी ने उनकी दो कहानियों की चर्चा की थी, जिनमें से एक कहानी यह थी। भाषा …

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उर्मिला शिरीष की कहानी ‘बिवाइयाँ’

उर्मिला शिरीष 1980-90 के दशक की पढ़ी जाने वाली लेखिका रही हैं। मेरे मेल पर उनकी यह कहानी आई है। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ============= दुकान पर पाँव रखने की जगह नहीं थी। शहर का पुराना बाज़ार। छोटी सँकरी सड़कें। सड़कें क्या गलियाँ कह सकते हैं। दस कदम आगे बढ़े …

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प्रवीण कुमार झा की कहानी ‘जामा मस्जिद सिंड्रोम’

प्रवीण कुमार झा का लेखन कई बार हैरान कर जाता है। अनेक देशों, मेडिकल के पेशे के अनुभवों को जब वे कथा के शिल्प में ढालते हैं तो ऐसी कहानी निकल कर सामने आती है। कहानी के बारे में ज़्यादा नहीं बताऊँगा। स्वयं पढ़कर देखिए- मॉडरेटर ===================================== गिरजाघर वाली गली …

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पंकज मित्र की कहानी ‘मंगरा मॉल’

पंकज मित्र हिंदी के वरिष्ठ लेखक हैं और निस्संदेह अपनी तरह के अकेले कथाकार हैं। समाज की विद्रुपताओं पर व्यंग्य की शैली में कथा लिखने का उनका कौशल उनको एक अलग पहचान देता है। यह उनकी एक प्रासंगिक कहानी है। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ========== शहर के किनारे जब मंगरा …

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