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बाहर का उजाला मन को अँधेरा कर जाता है!

दीवाली से छठ तक बिहार में आज भी एक उत्सव का माहौल बना रहता है. साल भर लोग इन्तजार करते हैं इस त्यौहार का. इसी को याद करते हुए अपने बचपन के दिनों में चली गई हैं युवा कवयित्री रश्मि भारद्वाज– मॉडरेटर  ======================= बीते दिनों का जो एक छूटा सिरा …

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पाकिस्तान ना हुआ मानो सगी ख़ाला घर हो गया

बहुत दिनों बाद सदफ़ नाज़ ने व्यंग्य लिखा है. और क्या लिखा है! तंजो-ज़ुबान की कैफियत पढने लायक है- मॉडरेटर  =======  ये जो पुरजोश-छातीठोक,धर्म-राष्ट्र बचाओ किस्म के लोग हैं, आए दिन किसी न किसी को पाकिस्तान भेज रहे हैं। वह भी बिना बैग-बैगेज और वीज़ा-पासपोर्ट के। यह सब देख कर …

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थी कोई आवाज या सचमुच खुदा

आज महान लोक गायिका रेशमा की पुण्यतिथि है. उनको याद करते हुए लेखिका, गायिका मालविका हरिओम ने यह दिल को छू लेने वाला लेख लिखा है. साथ में मालविका जी की आवाज में रेशमा का मशहूर गीत-‘चार दिनों का प्यार ओ रब्बा’- मॉडरेटर  =====================    सहरा–सहरा, रेतीलीपगडंडियोंपरचलतीऔरजलती, तप–तपकरसोनाबनतीहुईकलानेजिसकलाकारकोनवाज़ा, साधा, रूखीगर्महवाओंनेजिसकेसुरोंकोदिन–रात माँजने …

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अंकिता आनंद की आठ कविताएं

हिंदी में लिखने वाले ऐसे कवि-कवयित्रियों की तादाद बढ़ रही है कविता जिनके लिए कैरियर नहीं है, कुछ पाने की महत्वाकांक्षा नहीं. उनके लिए कविता समय, समाज में जो खो रहा है उसको दर्ज करने की बेचैनी है. अंकिता आनंद की कविताओं को पढ़ते हुए यह महसूस हुआ. बावजूद इसके …

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अवधेश प्रीत और ‘चाँद के पार एक चाभी’

अवधेश प्रीत हमारे दौर के एक जरूरी लेखक हैं. पिछले दिनों उनकी एक कहानी ‘हंस’ में आई थी- ‘चाँद के पार एक चाभी’. गाँव के बदलते हुए यथार्थ का बड़ा अच्छा रचनात्मक पाठ है उसमें. उसी कहानी पर एक टिप्पणी की है युवा पाठक-लेखक सुशील कुमार भारद्वाज ने- मॉडरेटर  ===================================== …

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गोपालराम गहमरी के भारतेंदु हरिश्चन्द्र

इस वर्ष एक बहुत अच्छी पुस्तक आई- ‘गोपालराम गहमरी के संस्मरण’. संपादन किया है संजय कृष्ण ने. इस पुस्तक में जासूसी कथा के इस अग्रदूत ने एक संस्मरण भारतेंदु हरिश्चंद्र पर लिखा है. जरूर पढियेगा. आनंद आ जायेगा- मॉडरेटर =============   जे सूरजते बढ़ि गये                         गरजे सिंह समान                         तिनकी आजु …

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नारंगी देश? या हरा देश? खूनी देश? या शांत?

कविता कई बार हमारी बेचैनियों को, हमारी चिंताओं को भी आवाज देती है. देश-समाज पर चिंता करने की एक शैली. सौम्या बैजल की कविताओं को पढ़ते हुए वही बेचैनी महसूस हुई. मुक्तिबोध की पंक्तियाँ हैं- क्या करूँ/कहाँ जाऊं/ दिल्ली या उज्जैन?  सौम्या बैजल हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लेख, कवितायेँ और …

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राजनीति की चालें और लेखक!

मुझे पुण्यप्रसून वाजपेयी की वह बात अक्सर याद आती है जो उन्होंने बहुत पहले मुझे साक्षात्कार देते हुए कही थी. उन्होंने कहा था कि भारतीय मानस में अभी कैमरे का मतलब सिनेमा होता है. आप टीवी का कैमरा लेकर कहीं भी जाइए लोग सिनेमा की शूटिंग की तरह जुटने लगते …

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या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता!

विजयादशमी के बहाने एक लेख लिखा है- प्रभात रंजन  ===================================== ब्रिटिश लेखिका एलिस एल्बिनिया ने कुछ साल पहले महाभारत की कथा को आधुनिक सन्दर्भ देते हुए एक उपन्यास लिखा था ‘द लीलाज बुक’, इसमें समकालीन जीवन सन्दर्भों में संस्कृति-परम्परा की छवियों को देखने की एक मजेदार कोशिश की गई है. …

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तुम्हारी लिखी हमारी प्रेम कविता डिलीट हो गई

1    तकनीक, आभासी दुनिया ने हमारे संबंधों के संसार को बदल कर रख दिया है. प्रेम का एक नया संसार है. इन कविताओं में अभिव्यक्त अनुभव इसी नए संसार के माध्यम से है. यशस्विनी पांडे की कविताएं जब मेल पर मिली तो सबसे पहले उन कविताओं के अनुभव संसार …

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